गरीबों और अनाथों के लिए मदर टेरेसा किसी भगवान से कम नहीं रहीं. जितने गरीब और निराश्रित लोगों की मदर टेरेसा ने सेवा की, उनके लिए तो वे जीवित रहते हुए ‘संत’ थीं.
ऐसे में मदर टेरेसा को ‘संत’ की उपाधि को लेकर उनके अनुयायियों और वेटिकन सिटी में जर्बदस्त उत्साह है. ऐसे में यह जानना बेहद जरूरी है कि किसी शख्सियत को ‘संत’ की उपाधि देने के क्या पैमाने हैं और इसकी क्या प्रक्रिया है?
‘संत’ का दर्जा पाने के लिए दो चमत्कारों को मान्यता मिलना जरूरी होता है. मदर टेरेसा की मौत के पांच साल बाद पोप जॉन पॉल दि्वतीय ने उनके एक चमत्कार को स्वीकार किया था. एक बंगाली आदिवासी महिला मोनिका बेसरा को पेट का अल्सर था, जो ठीक हो गया. कहा गया कि यह मदर टेरेसा की अलौकिक ताकत की वजह से हुआ.
दूसरा कथित चमत्कार ब्राजील में हुआ था, जहां एक शख्स ने दावा किया कि मदर टेरेसा की वजह से उसका ब्रेन ट्यूमर का ‘चमत्कारिक रूप से’ इलाज हुआ. इस शख्स का कहना था कि वह नई जिंदगी मिलने के लिए मदर का आभारी है.
पोप फ्रांसिस ने दूसरे चमत्कार को भी मान्यता दे दी थी. इसके बाद अगले साल उन्हें ‘संत’ बनाए जाने का रास्ता साफ हो गया था. वेटिकन पैनल ने ‘संत’ की उपाधि के लिए जिन पांच उम्मीदवारों के नाम पर गौर किया, उनमें मदर टेरेसा का नाम सबसे ऊपर था.
दरअसल, कैथोलिक चर्च की किसी भी शख्सियत को ‘संत’ घोषित करने की एक आधिकारिक प्रक्रिया है. इसके तहत बड़े पैमाने पर ऐतिहासिक शोध, चमत्कारों की खोज और उसके सबूत का विशेषज्ञों के दल के द्वारा आकलन किया जाता है. मदर टेरेसा के मामले में इस प्रक्रिया का समापन उनको ‘संत’ की पदवी मिलने के साथ हो जाएगा.
इसके लिए जिस प्रक्रिया को अपनाया जाएगा, वह इस प्रकार है. ‘संत’ घोषित करने की प्रक्रिया की शुरूआत उस स्थान से होती है जहां वह रहे या जहां उनका निधन होता है. मदर टेरेसा के मामले में यह जगह है कोलकाता.
‘संत’ घोषित करने का पहला पड़ाव
प्रॉस्ट्यूलेटर प्रमाण और दस्तावेज जुटाते हैं और ‘संत’ के दर्जे की सिफारिश करते हुए वेटिकन कांग्रेगेशन तक पहुंचाते हैं. कांग्रेगेशन के विशेषज्ञों के सहमत होने पर इस मामले को पोप तक पहुंचाया जाता है. वे ही उम्मीदवार के ‘नायक जैसे गुणों’ के आधार पर फैसला लेते हैं.
अगर प्रॉस्ट्यूलेटर को लगता है कि उम्मीदवार की प्रार्थना पर कोई रोगी ठीक हुआ है और उसके भले चंगे होने के पीछे कोई चिकित्सीय कारण नहीं मिलता है तो यह मामला कांग्रेगेशन के पास संभावित चमत्कार के तौर पर पहुंचाया जाता है. इसे धन्य माने जाने की जरूरत होती है. ‘संत’ घोषित किए जाने की प्रक्रिया का यह पहला पड़ाव है.
पोप लेते हैं अंतिम फैसला
चिकित्सकों के पैनल, धर्मशास्त्रीयों, बिशप और चर्च के प्रमुख (कार्डिनल) को यह प्रमाणित करना होता है कि रोग का निदान अचानक, पूरी तरह से और दीर्घकालिक हुआ है और ‘संत’ दर्जे के उम्मीदवार की प्रार्थना के कारण हुआ है.
इससे सहमत होने पर कांग्रेगशन इस मामले को पोप तक पहुंचाता है और वे फैसला लेते हैं कि उम्मीदवार को ‘संत’ घोषित किया जाना चाहिए. लेकिन ‘संत’ घोषित किए जाने के लिए दूसरा चमत्कार भी जरूरी होता है.
संत’ घोषित करने की प्रक्रिया की आलोचना भी होती है क्योंकि इसे खर्चीला, गोपनीय माना जाता है. यह भी माना जाता है कि इसका दुरूपयोग हो सकता है तथा राजनीति , वित्तीय और आध्यात्म क्षेत्र के दबाव के चलते किसी एक उम्मीदवार को कम समय में ‘संत’ का दर्जा मिल सकता है जबकि कोई और सदियों तक इसके इंतजार में रहना पड़ सकता है.