साक्षरता का दीपक जलाते चलो तुम
अशिक्षा का अँधेरा मिटाते चलो तुम
बुझी दीप बाती है कितने महल मे
भटकते निरक्षर की काली निशा में
केख मॅा की लज्जित किये ये दशा
डसती निरक्षरता की नागिन जहॅंा पर
सपेरा अब हमे बुलाना पड़ेगा
घासों के घर की बन महलों की रानी
उठके जलाओं अगूठें निशानी
तभी मिट सकेगा तम का अन्धेरा
तभी आ सकेगा जीवन में सवेरा