अराल सागर पश्चिमी एशिया की एक झील अथवा अंतर्देशीय सागर है। इसका नामकरण खिरग़्ज़ी शब्द अरालडेंगिज के आधार पर हुआ था जिसका अर्थ है द्वीपों का सागर। विश्व के अंतर्देशीय सागरों में क्षेत्रफल के अनुसारए इसका स्थान चौथा थी इसकी लंबाई लगभग २८० मील और चौड़ाई १३० मील थी इसकी औसत गहराई ५२ फुट थी और अधिकतम गहराई पश्चिमी तट की समांतर द्रोणी में २२३ फुट थी । इस सागर में जिंहुन अथवा आमू नदी ;ऑक्सस और सिंहुन अथवा सर नदी ;याक्सार्टिज गिरती थी जिनसे बड़ी मात्रा में अवसाद ;सेंडिमेंट का निक्षेप होता थी । इस सागर के पूर्वी तट के समांतर अनेक छोटे.छोटे द्वीपपुंज विद्यमान थे।
आंधियों की बहुलता और सुरक्षित स्थानों की कमी के कारण अराल सागर में जलयातायात सुविधाजनक नहीं थी । सागरपृष्ठ का शीतकालीन ताप लगभग ३२० फा0 रहता था यद्यपि अधिकांश तटीय भाग हिमाच्छादित हो जाता था । गर्मी में ताप लगभग ८०० फा रहता था । यह प्राचीन धारणा थी कि यह सागर कभी.कभी लुप्त हो जाया करता है जो मनुष्यों की खुद की गलतियों की वजह से लूप्त हो गया ।
एक समय इसका क्षेत्रफल लगभग 68ए000 वर्ग किलोमीटर था। इसके बाद 2007 तक यह अपने मूल आकार के 10 प्रतिशत पर आ गया है। पानी की लवणता में वृद्धि हो रही है और मछलियों का जीवन असंभव हो गया है। 1960 के बाद के दशकों में सूखे के कारण और पानी मोड़ने के लिए बनाई गई नहरों के कुप्रबंधन के चलते अराल सागर की तट रेखा में भी काफी कमी देखी गई है जहाँ बड़ी नौकाएँ चलती थीं वहाँ रेगिस्तान नजर आने लगा है।
कजाखस्तान और उत्तरी उज्बेकिस्तान के बीच मौजूद अरल सागर किस हद तक सूख चुका हैए ये नासा के नए वीडियो में साफ नजर आ रहा है। दुनिया का चौथा सबसे बड़ा सागर यानी अरल सागर का बीते 50 साल में 90 फीसदी हिस्सा सूख चुका है। एक वो भी दौर था जब 1ए534 आइलैंड वाले इस सागर को आइलैंड्स का सागर कहा जाता था।
दुनिया की सबसे बड़ी पर्यावरण त्रासदी में से एक
. अरल सागर के सूखने की घटना को दुनिया की सबसे बड़ी पर्यावरण त्रासदी में से एक माना जा रहा है।. 1960 से सागर से सूखने का सिलसिला शुरू हुआ और 1997 तक अरल सागर चार लेक में बंट गया था। . इसे उत्तरी अरल सागरए पूर्व बेसिनए पश्चिम बेसिन और सबसे बड़े हिस्से दक्षिणी अरल सागर के नाम दिया गया।
. 2009 तक सागर का दक्षिण.पूर्वी हिस्सा पूरी तरह से सूख में गया और दक्षिण.पश्चिमी हिस्सा पतली पट्टी में तब्दील हो गया।
सागर के सूखने का असर
सागर के सूखने से सबसे ज्यादा नुकसान यहां की फिशिंग इंडस्ट्री को हुआ। फिशिंग इंडस्ट्री पूरी तरह से खत्म हो गईए जिसके चलते बेरोजगारी और इकोनॉमिक क्राइसिस का दौर शुरू हो गया। पानी सूखने के चलते पॉल्यूशन बढ़ा है और अरल सागर के इलाके में रह रहे लोगों को सेहत से जुड़ी परेशानियों से जूझना पड़ रहा है। मौसम पर भी इसका जबरदस्त असर पड़ा है। गर्मी हो या सर्दीए दोनों ही कहर बरपा रही है।
क्यों आई सूखने की नौबत
इस सागर के सूखने की शुरुआत सोवियत संघ के एक प्रोजेक्ट के चलते हुई। 1960 में सोवियत संघ के सिंचाई प्रोजेक्ट के लिए नदियों का बहाव मोड़ा गया थाए जिसके बाद से ही इस सागर के सूखने का सिलसिला जारी है। सागर को सूखने से बचाने और उसके हिस्से उत्तरी अरल सागर को भरने के लिए कजाखस्तान का डैम प्रोजेक्ट 2005 में पूरा हो गया थाए जिसके बाद 2008 में सागर में पानी का स्तर 2003 की तुलना में 12 मीटर तक बढ़ा था। हालांकिए इन सबके बावजूद सागर की स्थिति को ज्यादा सुधारा नहीं जा सका।पश्चिमी हिस्सा पतली पट्टी में तब्दील हो गया।