•---------गर्मी ----------•
मानव भळे धर्मी हो या कर्मी
सगळा ने लागे सूरज री गर्मी
अरे कांई बात करे भला आदमी
कंठ तो कांई सूख रही हैं आ जमी
सब जणौ रो एक ही गावणौ
कद आवेळा आँधी कद बरसेळा पानी
बळती काया री पिड़ा
म्हारा सूरज धणी थे क्यूं नी जानी
असमान सूँ झुर-झुर पड़ रही अंगार
अब तो दया करो देव
माने क्यूं समझो हो थे भंगार
पसीने सूँ
परेशान गोरड़ी छोड़ दियो हैं संणगार
धरती सुखी अम्बर सुखा सुखग्या अब कुआँ
अचानक ही सूरज इतना लाल कैसे हुआ
पुछे दादी ,नानी ,मौसी अर भुआ
ईता अजब-गजब
ऐ लिखाया नवा कवि कुण हुआ
और एक कवि री शक्ति तो जन शक्ति ही है
जितनी आप को सीख मिलेगी
उतनी ही मेरी और शक्ति बढेगी
•--------विचारक---------•
भाई मंशीराम देवासी
बोरुन्दा जोधपुर
९७३०७८८१६७