4 अप्रैल 2016
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पर्यटन-प्रशासन एवं प्रबंधन में यूजीसी-नेट उत्तीर्ण, एम.बी.ए. इन टूरिज्म-मैनेजमेंट(सीएसजेएम-कानपुर विश्वविद्यालय), मास्टर्स इन मास-कम्युनिकेशन(लखनऊ विश्वविद्यालय), दैनिक जागरण-यात्रा विभाग में बतौर लेखक (१ जून २००८ से १७ सितम्बर २०१५ तक ) ७ वर्ष, ३ माह एवं १७ दिन का कार्य-अनुभव, नई दिल्ली के प्रकाशकों द्वारा कुछ पुस्तकों का प्रकाशन जैसे - मैनेजिंग एंड सेल्स प्रमोशन इन टूरिज्म (अंग्रेज़ी), शक्तिपीठ (हिंदी) और फिल्म-पटकथा लेखन पर आधारित मौलिक गीतों युक्त हिंदी में लिखी पुस्तक- “देवी विमला”...एक साधारण भारतीय महिला की असाधारण कहानी, प्रख्यात गीतकार श्री प्रसून जोशी द्वारा एक प्रतियोगिता में चयनित सर्वश्रेष्ठ गीतों में से एक गीत शामिल, जागरण जोश के कवर पेज पर आल-एडिशन फोटो...D
आई थिंक जो सैटिस्फाइड है स्वयं से वो सफल जो किसी से इंस्पायर्ड ना हो कर खुद से प्रेजेंटेबल रहे वो आधनिक है
23 अप्रैल 2016
आई थिंक जो सैटिस्फाइड है स्वयं से वो सफल जो किसी से इंस्पायर्ड ना हो कर खुद से प्रेजेंटेबल रहे वो आधनिक है
23 अप्रैल 2016
आज में जी ले तो आधुनिक है अपने संस्कृति और संस्कार को निभा ले तो आधुनिक है
22 अप्रैल 2016
आदरणीय चंद्रेश जी, सफलता का कोई भी सारभौमिक परिभाषा तो है नहीं अपितु शर पर छत हो , दाल रोटी मिल रही हो और जबबदरियां निभ जाय तो सफल है वह व्यक्ति, इच्छाओं क अन्त है क्या????????
22 अप्रैल 2016
संपत्ति और शिक्षा
22 अप्रैल 2016
<p>एक बात तो ॐ प्रकाश जी ने सही कही , </p><p>दूसरी बात आपको अपने मायने पता होने चाहिए। अपनी सीमाएं और प्राथमिकता तय कर लेनी चाहिए . उनको पूरा करने के लिए अपना बेस्ट देना चाहिए. जितना दुनिया के चक्कर में पड़ो उतनी ही प्रॉब्लम होती है . इसलिए अपनी ज़िन्दगी अपने हिसाब से जीना ज़रूरी है , बस थोड़ा बहुत आपको स्वयं को समाज और समय के हिसाब से ढालना तो पड़ेगा ही वरना लोग आपको पिछड़ा हुआ मानने लगेंगे. </p>
5 अप्रैल 2016
आपके पास पैसा हो, विलासितापूर्ण जीवन जीते हों, बस इसे ही सफल और मॉडर्न माना जाता है...इसके आगे फिर अध्यात्म की बातें हैं, वो सब बड़ी-बड़ी बातों और किताबों के लिए हैं !
4 अप्रैल 2016