----जय श्री कृष्णा -----
काम- काज रे साथे कविता लिखणे रो
म्हनें अणुतो शोक है --------------
एक दिन शाम री टेम बैठो -बैठो मन रा
विचार मांडतो के अचानक म्हारे कविता प्रेमी रो फोन आयो ---
घण्टी बाजी फोन री
कविता रे आगे विरामचिह्न लगाईन कविता ने रोकी और फोन उठायों क्योंकि
मैनें मिनखां सुं गणौ हेत हैं ------
फोन उठायो हेल्लौ कुण भगवान
उत्तर मिलयौ -कोई अजांण हा
पण में समजग्यौं फोन तो कांई जाण ने ईज करीयौ ----------------
बोलों अरज करो सा
खूब दिनों सुं विचार करु कांई पुछणे रो
तो कांई पूछूँ थाने
तो में कईयौ इणमे आज्ञा लेण री कांई बात कोनी आप पूछो -----
बड़ो अटपटो हो सवाल
1~थे कविता क्यूं लिखो --
में कईयौ मन रा सगळा विचार
केवण सारु
2~थाने कविता किकर उपजे
कठू उपजे हैं थाने शब्द
में कईयौ किकर उपजे कविता
मैनें ध्यान कोनी
पर मैनें अहसास होवे
पढ़णे वालों रो हौसलों होज्यावै बुलंद
जद मांडू में शब्द
मन री सगळी भावना जद समझ आ जावै
फिर अपणे विचारों सुं एक नई कविता रो जन्म होवै
और पछें रामा सामा करता कईयो
आपरी हर कविता मैनें गणी दाय आवै---
म्हारे कविता रे प्रेमियों रो दिल सुं
गणौ-गणौ धन्यवाद ----
•अपणौ छोो राजस्थानी •
------लेखक -----
मंशीराम देवासी
बोरुन्दा जोधपुर