अमृतसर हादसा: पंजाब के अमृतसर में दशहरे पर बड़ा हादसा हो गया. रावण दहन के दौरान मची भगदड़ के कारण 61 लोग ट्रेन से कट गए. वे रेल की पटरी पर थे और रेल इतनी रफ्तार में आई कि वे संभल भी नहींसके. घटना में 150 से ज्यादा लोग घायल हैं. हादसे की भयावहता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पटरी के करीब 200 मीटर तक शव और घायल थे. उल्लास पल में मातम में बदल गया. रेल गुजर गई थी, कई लाशें बिछाकर. इस हादसे के लिए दशहरा कमेटी, पुलिस प्रशासन, नगर निगम और रेलवे प्रशासन सामूहिक रूप से जिम्मेदार हैं. आखिर कर्तव्य और नैतिक जिम्मेदारी भी कोई चीज होती है. लेकिन यह चारों अपना दामन पाक साफ करने के फेर में बलि का बकरा ढूंढने में लगे हुए हैं. इस मामले में जांच जैसी कोई बात ही नहीं है सब कुछ साफ साफ नजर आ रहा है. असल में पब्लिक की चिंता करता ही कौन है जब सामने रसूखदार चीफ गेस्ट हो तो सब उसके आगे पीछे ही घूमते हैं. क्या इनको मालूम नहीं था कि रेलवे ट्रैक पर शाम के समय ट्रेनें गुजरती हैं और वहां पर पब्लिक जमा होगी. यह सब कुछ अचानक तो नहीं हुआ. आयोजन कमेटी ने इसके लिए पहले से ही तैयारियां की होंगी, यह तैयारियां इनमें से किसी के संज्ञान में ना हो, ऐसा हो नहीं सकता. ऐसे हादसों में अकसर एक छोटे अदने से कर्मचारी पर गाज गिराकर उच्च स्तरीय अधिकारी अपना दामन बचा ले जाते हैं. जबकि वह प्यादा तो अपनी मर्जी से पानी तक नहीं पी सकता. अब रेलवे ड्राइवर ने ब्रेक नहीं मारे तो क्यों. फाटक का गेट मैन क्या कर रहा था? या पुलिस के सिपाही ने वहां मौजूद लोगों को क्यों नहीं हटाया. आयोजन समिति के कार्यकर्ता उस समय कहां पर थे. दरअसल कुछ नहीं, उस समय पर सब अपनी हनक में थे किसी को पब्लिक से कोई मतलब नहीं था उनकी बला से. मंच पर रूलिंग पार्टी की दमदार चीफ गेस्ट हो और सामने हजारों की संख्या में भीड़, तब रुतबा तो दिखाना ही था. हद देखिए हादसे के तुरंत बाद मृतकों की छोड़ सब अपना दामन साफ करने की जुगत में भिड़ गए. जैसे कर्तव्य और नैतिक जिम्मेदारी कोई चीज होती ही नहीं. दशहरा आयोजन से जुड़ा हर व्यक्ति इस हादसे के लिए जिम्मेदार है आखिर रेलवे ट्रैक के पास पब्लिक की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं किए गए? जबकि सबको मालूम था कार्यक्रम के बीच में यहां से ट्रेनें गुजरती है. रही बात पब्लिक के जागरूक होने की तो, अगर पब्लिक जागरूक हो जाए तो आधी समस्याए पैदा होने से पहले ही खत्म हो जाए.