मोदी युग के बाद राहुल युग. मतलब अच्छे दिन आने तय हैं. वजह साफ है राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस भाजपा और फिर कांग्रेस. भाजपा में भले ही समर्पण, त्याग और वफादारी की कमी हो, लेकिन कांग्रेस में ये सब अव्वल दर्जे का है. सब जानतेे हैं कि राहुल खुद पीएम बनने के इच्छुक हों या न हों, लेकिन उनके भक्त उनको पीएम बनाने के लिए जिस समर्पण भाव से प्रयासरत हैं, वह काबिले तारीफ है. वफादारी और त्याग की बात तो इतनी है कि चुनाव होने से पहले ही उनको अध्यक्ष मान लिया गया है. जहां मोदी युग में पीएम पद के दावेदार गाहे-बगाहे अपनी इच्छाएं जाहिर करते ही रहते हैं, वहीं कांग्रेस में राहुल गांधी के होते हुए कोई सोचता तक नहीं. भले ही महत्वपूर्ण मौकों पर राहुल सीन में हों या न हों, लेकिन पूरी फिल्म उनके इर्द-गिर्द ही घूमती है. जहां मोदी युग के बाद भाजपा का बिखरना लगभग तय है, वहीं कांग्रेस का एकजुट होना. यूं भी बिन पेंदी के गुलदस्तों से कब तक घर को खूबसूरत बनाया जा सकता है. सरकार जाने की सरसराहट में ही गुलदस्तों का गिर जाना तय है. सबसे बड़ी बात है कि कांग्रेस के बदसूरत गमलों में भाजपा कैसे खूबसूरत फूल उगा सकती है. दूसरी ओर पीएम मोदी जबरदस्त पारी खेल रहे हैं, जबकि राहुल गांधी का खेलना अभी बाकी है. यूं भी बंद मुठ्ठी लाख की, खुल गई तो खाक की. जिस दिन कांग्रेस गठबंधन की राजनीति छोड देगी, उसी दिन से निखरने लगेगी और मोदी युग के अंत के साथ ही भाजपा बिखर जाएगी. न पीएम खराब है और न राहुल. सारा खेल सलाहकार और चापलूसों का है.