मेज कुर्सी से बोली: सुनो बहन ना जाने कहां से यह मुंहजला कोरोना जब से आया है तब से हमारा मन नहीं लगता, बच्चों के हल्ले गुल्ले के बीच मैडम का डंडा जब मुझे लगता था तो बच्चे सहन जाते थे। पूरी क्लास में सन्नाटा छा जाता था। लेकिन वह सन्नाटा दिल को सुकून देता था क्योंकि उस सन्नाटे में हमारे प्यारे बच्चों का भविष्य छिपा था। कुर्सी बोली हां बहन यह बात तो सही है जब से यह कोरोनावायरस आया है तब से बच्चों का स्कूल में आना ही बंद हो गया है बहुत बुरा लगता है अब पता ही नहीं चल रहा है कि बच्चे स्कूल कब आएंगे। सुना है आजकल मैडम जी ऑनलाइन ही बच्चों को पढ़ा देती हैं। कभी-कभी ऐसा लगता है कि ऑनलाइन क्लासेज अगर रूटीन में चलने लगी तो हमारा क्या होगा। बहुत धूल मिट्टी जम गई है कोई सफाई भी नहीं करता। कई महीनों से तो डॉक्टर ने हमारा हेल्थ चेकअप भी नहीं किया है।
हाथ-पैर भी इधर-उधर हिल रहे हैं लेकिन कोई देखने सुनने वाला नहीं है। मेज बोली छोड़ बहना जो होगा देखा जाएगा। सुना है बच्चे आजकल घर पर ही उधम मचा रहे हैं। बच्चों ने ऑनलाइन क्लास के चलते मोबाइल से दोस्ती कर ली है। दोस्ती भी ऐसी कि सात अजूबे इस दुनिया के आठवीं जोड़ी बच्चे और मोबाइल की। कुर्सी बोली लगता है कि ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब डिजिटल इंडिया का सपना भी साकार हो जाएगा। छोटे-छोटे बच्चे ऑनलाइन क्लास में कितना पढ़ते और समझते होंगे यह तो नहीं मालूम, लेकिन बच्चे ऑनलाइन शॉपिंग भी करने लगे हैं।
पहले पेरेंट्स बच्चों की शिकायत मैडम से करते थे कि मैडम इनका ध्यान रखो यह मोबाइल बहुत देखते हैं लेकिन अब बच्चे कहते हैं कि मोबाइल दे दो मैडम की क्लास आई है। कुर्सी मेज की इस बातचीत के बीच में ब्लैक बोर्ड बोला अरे चुप करो तुम दोनों यह क्या अनाप-शनाप बातें कर रही हो, मुझे देखो मुझ पर कितनी सफेदी छा गई है कोई सफाई करने वाला भी नहीं है। साल भर बीत गया अभी तक चौक से मिलना नहीं हुआ। अच्छा सोशल डिस्टेंसिंग का नियम आया है। तुम दोनों कम से कम एक दूसरे के पास तो हो। इसी बीच में पंखा चिल्लाया क्या बे तुम सब क्या बात कर रहे हो मुझे देखो लटके लटके क्या हाल हो गया है।