कभी-कभी लगता है कि भारत सरकार और पाक सेना की गतिविधियों को देखते हुए भारतीय सेना में विद्रोह हो गया तो क्या होगा. जब डॉक्टर, वकील और नेता या किसी अन्य समुदाय में से संबधित की जानलेवा हमले या दुर्घटना में मौत होती है तो हड़ताल का झंडा बुलंद करते हुए सड़के क्या संसद तक जाम कर दी जाती हो. हाल ही में इंडियन एयर लाइन ने नेताजी से पंगे के चलते हड़ताल का बिगुल बजाने के साथ शिवसेना का संसद में हंगामा या लखनऊ में एसटीएफ के छापो के डर से पेट्रोल पम्पों की हड़ताल, बगैर सोचे समझे की आम जनता को कितनी परेशानी होगी. दूसरी ओर एलओसी पर भारतीय सेना के जवानो की मौत या अपने ही देश में कश्मीर में पत्थरबाज़ी की घटनाओं के साथ-साथ नक्सली हमलों में जवानो के मारे जाने की घटना. ऐसे जानलेवा हमलो के चलते यदि भारतीय सेना का धैर्य जवाब दे गया, तब भारत सरकार हमले की निंदा किन शब्दों में करेगी. जब ख़ामोशी में सुलगते अंगारे और दिल ही दिल में सिसकते शहीदों के परिजनों की बददुआ बाहर निकलेगी तब क्या होगा. इसका अंदाजा लगाना भी उतना ही मुश्किल है जितना भारतीय सेना के धैर्य की थाह लेना. फिर कश्मीर के हालत पर काबू पाना इतना आसान होता तो कांग्रेस कब का ये काम पूरा कर चुकी होती. शायद कर भी लेती, क्योंकि कश्मीर समस्या को जन्म देने से लेकर वर्तमान हालत तक पहुंचने में कांग्रेस की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. कश्मीर में जिस तरह से युवा पत्थरबाजों के रूप में आतंकियों को बैकअप दे रहे है, वही असल चिंता की बात है. दरअसल किसी भी समस्या के खात्मे के लिए सरकार के साथ-साथ स्थानीय लोगों की भूमिका भी बहुत मायने रखती है. जैसे पंजाब के निवासियों के जज्बे और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की दृढ़ इच्छाशक्ति के चलते पंजाब से आतंकवाद खत्म हुआ. जो जनता सोच समझ कर आतंकियों का पनाह देती हो, तब कैसे माना जा सकता है कि कश्मीर के युवा राह भटक गए है. सब अपनी जगह पर सही है. जहां गैर कश्मीरियों को लगता है कश्मीर के युवा गलत है. वहीँ कश्मीरी कैसे भारत सरकार पर यकीन करे, जिनको बचपन से भारत का विरोध सिखाया गया है. कश्मीर समस्या को नासूर बनाने के लिए वहां की जनता के साथ राजनेता दोनों जिम्मेदार है. जिन्होंने समय रहते इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाने के बजाय सिर्फ अपने अहम की पॉलिटिक्स पर ही ध्यान दिया. आज नासूर बनी कश्मीर समस्या की एक असरदार सर्जरी की जरुरत महसूस की जा रही है. लेकिन इसमें निर्दोष जाने जाने का खतरा है, क्योकि ये डॉक्टर्स की नहीं, इंडियन आर्मी की आतंक के खिलाफ सर्जरी होगी. क्योकि मर्ज जरुरत से ज्यादा पुराना है और ऑपरेशन के आर्डर पेपर पर साइन करने वालों के पास अभी बमुश्किल तीन साल का ही अनुभव है. तब ऐसे में ऑपरेशन से पहले मरीज को भरोसे में थोड़ा वक़्त लगना लाज़मी है.