हमारा समाज आखिर किस ओर जा रहा है, कुछ समझ नहीं आ रहा है. लगभग हर सफल पुरुष के पीछे किसी महिला का हाथ होता है, लेकिन आज बदनाम होते हरेक पुरुष के पीछे भी महिला का ही हाथ है. आखिर ऐसा क्यों? एक बात मेरी समझ में आती है कि ताली कभी भी एक हाथ से नहीं बजती. ताली बजाने के लिए दोनों हाथों को मिलाना जरूरी होता है. अगर कोई पुरुष अपना घर-परिवार और समाज को ताक पर किसी महिला के पीछे पगलाया सा घूमते हुए कहता है कि मुझे प्यार हो गया है, तो दूसरी ओर वह महिला भी अपने अस्तित्व को दांव पर लगाने से परहेज नहीं करती. दोनों अपने-अपने परिवारों और समाज को धोखा देते हुए एक-दूसरे का भरपूर इस्तेमाल करते है. आखिर किस भी चीज की कोई सीमा होती है. फिर एक बात को पक्की है तो जो अपनों का न हो सका, वह किसी दूसरे का कैसे हो सकता है. लिहाजा जैसे ही आपका साथी आपकी जरूरतों को पूरा करने में अक्षम होता है, तब आप अपने लक्ष्यों की पूर्ति के लिए किसी ओर ठिकाने की ओर बढ़ना शुरू कर देते है, बस यही से प्यार में धोखे का खेल शुरू हो जाता है. इस धोखे को हर कोई अपने-अपने तरीके से परिभाषित करता है. महिलाएं (कुछ महिलाएं) अपने आप को सबसे ज्यादा समझदार समझती है, लेकिन वह सबसे बड़ी बेवकूफ होती है. इन्हीं कुछ महिलाओं के कारण त्रिया चरित्र जैसा शब्द अस्तित्व में आया होगा. स्त्री और पुरुष में पुरुष वाह्य तौर पर ताकतवर होता है तो स्त्री आंतरिक रूप से साहसी व धैर्यवान व बुद्घिमान होती है. फिर वह ऐसी गलतियां क्यों करती है, वह क्यों किसी पुरुष को अपने पर हावी होने का मौका प्रदान करती है. अगर वह ऐसा करती है तो उसकी गलती ही मानी जाएगी. फिर पुरुष प्रधान समाज में पुरुषों का ही पक्ष स्त्रीपक्ष पर हावी रहता है. क्या कभी किसी ने सुना है कि किसी पुरुष ने अपनी पत्नी को मौत के मुंह से बचाया है, नहीं. लेकिन यमराज के चंगुल से अपने पति को छुड़ाने वाली सावित्री का नाम इस देश का बच्चा-बच्चा जानता है. तब ऐसे क्या जरूरत है कि अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए अपनी अस्मत को दांव पर लगाने की. प्यार किसी से भी हो सकता है पर आपसी संबंध तो विवाहित स्त्री-पुरुष के बीच तक ही रहे तो सामाजिक व्यवस्था को कोई खतरा नहीं है. लेकिन जहां बात आती है धोखे की, तो यह वर्तमान के साथ-साथ भविष्य के अच्छे संकेत नहीं है.