इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर गौरवशाली भारतीय संस्कृति को बिगाडऩे का आरोप लगता आया है, जबकि यह सच नहीं है, संस्कृति बिगाडऩे के लिए मीडिया से ज्यादा आम जनता दोषी है. याद कीजिए कभी दूरदर्शन ने अपनी संस्कृति के अनुरूप रामायाण, महाभारत, सामाजिक व्यथा को दर्शाते हमलोग, बुनियाद धाराावाहिक शुरू किए थे. रामायाण के प्रसारण समय तो कफ्र्यू जैसी स्थिति बन जाया करती थी. तब जैसी टीआरपी आज संभव नहीं. बाजारीकरण के दौर में निजी टीवी चैनल्स बाजार में आ गए. अब यही से असली खेल शुरू होता है आम जनता ने दूरदर्शन को बॉय-बॉय बोल, इन चैनल्स को हाथों-हाथ लिया. कौन नहीं चाहेगा, वह अपने क्षेत्र में सर्वोच्च स्थान पर हो. फिर जिसको पब्लिक पसंद करेगी, अब क्योंकि दूरदर्शन पर सरकार का वर्चस्व था, और हमारी सरकारों की कार्यप्रणाली पर कुछ भी कहना बेकार ही है, क्योंकि सरकारों की ढुलमुल नीतियां और कार्यप्रणाली तो जगजाहिर है. दूसरी ओर स्वतंत्र रूप से मैदान में उतरे निजी चैनल्स घर-घर में घुसने के लिए घर-घर की कहानी, सास भी कभी बहू थी, बिग-बॉस जैसे सीरियल्स के सहारे आम जनता के दिलो-दिमाग पर अपनी पैठ बनाने में सफल रहे, फिर उनको आम जनता का समर्थन मिला. इन चैनल्स का उद्देश्य सिर्फ-सिर्फ दूसरे से आगे निकलने का ही है फिर इन पर कोई नियंत्रण भी नहीं है. पूरी आजादी के साथ काम करने का मौका जिसके पास हो, वह बेहतर तो करेगा ही. चौबीस घंटे हमारे घरों में घुसे रहने वाले इन चैनल्स ने जब अपना असर दिखाया, तब हमारी आंखें खुली, और हमने भी आव देखा न ताव, सीधे आरोप जड़ दिया इन चैनल्स पर, कि अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए ये कुछ भी दिखा देते है, इनको अपनी संस्कृति से कोई मतलब नहीं है. अब यही पर सवाल उठता है कि क्यों हम इन चैनल्स को देखते है, जब हमको पता है कि यह चैनल्स हमारे परिवारों को विघटन के कगार पर ले जा रहे है, हमारी संस्कृति को बर्बाद करने पर तुले हुए है. तो क्यों इन चैनल्स को अपने घर में घुसने दिया जाए. अगर ये चैनल्स कुछ भी दिखाने को स्वतंत्र है तो हम भी तो आजाद है, हमारे पास भी अधिकार है कि हम उसको अपने घर में घुसने से रोक सके. लोकतांत्रिक देश में सबको अपने तरीके से जीने की आजादी है, तो इन चैनल्स की आजादी पर प्रतिबंध क्यों लगाया जाए? आम जनता चाहे तो इन चैनल्स को देखना बंद कर सकती है, और जब इनको देखने वाला कोई होगा ही नहीं, तो इनकी टीआरपी कैसे बढ़ेगी. इनकी टीआरपी हमने खुद ही बढ़ाई है. अपने समाज और संस्कृति को बर्बाद होने से बचाने के लिए आम जनता को ही पहला कदम उठाना होगा, फिर ये चैनल्स तो आम जनता के दीवाने है, टीआरपी के लिए खुद ब खुद ही सुधर जाएंगे.