सब झूठ बोलते है कि हम सब एक है। कोई एक नहीं है, सब अलग-अलग है, सबकी अपनी ढपली-अपना राग है। कोई उत्तर तो कोई दक्षिण ध्रुव बनने को बेताब है। कभी देखी है एकता (आजादी से पहले की बात अलग है) अगर हम सब एक होते है तो क्या हमारे देश में आतंकवाद अपनी जड़े मजबूत कर पाता। क्या भ्रष्टाचार चरम सीमा पर पहुंच पाता। क्या पाकिस्तान आए दिन हमको आंख दिखाता, क्या चीन हमारे घर में घुसने की तैयारी करता। क्या विदेशों में पढने गए छात्रों के साथ बुरा बर्ताव होता। क्या हमारे सम्मानित नेताओं को विदेशी धरती पर बेइज्जत किया जाता। क्या विदेशियों में इतनी हिम्मत आ जाती कि वह हमारे घर में घुसकर हमारे मुंह पर थूक दें और हम कुछ भी न कर सके। दरअसल सच्चाई बहुत कड वी होती है, जिस बात को हम कभी नहीं जान पाएंगे, उसको वह अच्छी तरह जानते है, हम सिर्फ कहने में विश्वास करते है और वह सिर्फ और सिर्फ करने में। हमारी कथनी और करनी में अंतर साफ दिखाई देता है। विदेशी बहुत अच्छी तरह जानते है कि आजादी के समय अंग्रेज कामयाबी का जो नायाब मंत्र फूट डालो-राज करो, भारतीयों को दे गए थे, उसको आज हर भारतीय अपनी हैसियत और योग्यता के अनुसार जप रहा है। इस मंत्र को जपते-जपते हर भारतीय किसी भी जख्म को नासूर बनाने में माहिर हो चुका है। किसी भी स्तर पर किसी को काम को टालने की ऐसी आदत पड गई, जो हमको अंधकार की ओर ले जा रही है। इस अजीब से बोझिल हो चुके माहौल में कोई समस्या का समाधान करने की बात करता है तो अपने ही उसके रास्ते में बाधाएं खडी करके उसके जवां होते मनोबल को धराशायी कर देते है। देश हित की बातें तो बहुत करते है, पर क्या कभी इनका सटीक समाधान ढूंढने का कोई भी प्रयास ईमानदारी से आज तक हुआ है क्या? हर समस्या का सिर्फ और सिर्फ एक ही समाधान है कि हर हाथ को काम, और जब तक यह हाथ खाली रहेंगे, किसी न किसी का झंडा उठाते रहेंगे, और जब यह झंडा उठाते रहेंगे तब तक एकता की बात करना बेमानी है। क्योंकि आज इनके दिलों और हाथों में तिरंगे नहीं, बल्कि अनेक रंगों ने अपनी जगह बना ली है। आजादी के कई दशकों बाद भी बेरोजगारी की समस्या जस की तस बनी हुई है, जब तक इस समस्या का समाधान नहीं होगा, तब तक देश में किसी भी समस्या का समाधान नहीं होगा। क्योंकि जब आदमी खुद काम करता है तो वह खुद्दार होता है और खुद्दार आदमी को आंखें दिखाने की हिम्मत किसी में नहीं होती है, चाहे कोई भी हो। यही हमारे देश का दुर्भाग्य का है कि हमारे नेताओं ने यहां का धन विदेशी बैंकों में जमा करा दिया, और खुद विदेशियों से गुहार लगाते है कि कुछ आर्थिक मदद करो। अब खुद समझिए भला देने वाला मांगने वाले से क्यों दबेगा। इसलिए वह जब चाहे हमारी बेइज्जत कर दिया करते है, और हम सिर्फ आपस में लड़ने के सिवा कुछ नहीं कर पाते।