कुत्ता भौंका भौं-भौं, बिल्ली चिल्लाई म्याऊं- म्याऊं. चूहा दहाडा- कौन है बे, जो हल्ला मचा रखा है. यह नजारा देख रहा शेर सकपकाता हुआ दुम दबाकर भाग निकला. रास्ते में हांपते हुए भागते शेर को देख खरगोश ने पूछा, क्या बात है मालिक. शेर ने सारा नजारा कह सुनाया. तब खरगोश बोला, सर ये चूहा शहर में एक नेता जी की चुनावी पार्टी से घुट्टी लेकर आया है. बस उसी का असर हैं. मैंने तो ये भी सुना है कि वो जड खोदने की ट्रेनिंग लेकर आया है. वो समय गया, जब उसने आपको जाल काटकर आजाद कराया था. अब तो चुनाव लडने की बात भी कर रहा था. चूहा कह रहा था कि अब जंगल में शेरशाही नहीं चलेगी. जंगल का राजा हमेशा शेर नहीं रहेगा. हमें अपने अधिकार चाहिए. बोलने की आजादी चाहिए. जरुरत पड़ी तो शिकारी को दोबारा बुलाया जाएगा. खरगोश बोले जा रहा था. शेरे सोच में पड़ गया और बोला कि ऐसा तो सोचा ही नहीं था. खरगोश आगे बोला कि मैं तो सोच रहा हूं कि कहीं अगर इस घुट्टी का चस्का जंगलवासियों को लग गया तो आपका क्या होगा? इस घुट्टी की महिमा के चलते ही शेर चूहा व चूहा शेर हो जाता है और बाकी बेहोश. बस इसी बेहोशी के आलम में बेफिजूल की कभी खत्म न होने वाली बहसबाजी में मूलभूत समस्याएं अपने समाधान से कोसों दूर होती जा रही है. बस तभी से चूहा मस्त और शेर सदमे में है.