दूसरों की ओर ऊंगली उठाने वाले यह क्यों भूल जाते है बाकी की तीन ऊंगलियां उन्हीं की ओर इशारा कर रही है. बाबाओं को दोषी ठहराने से पहले अपने गिरेबां में भी झांक कर देखना होगा कि जब जानते-समझते हुए अपना सब कुछ बाबा के चरणों में न्यौछावर कर दिया था. तो फिर बाबा को दोषी कैसे ठहराया जा सकता है. गलत आचरण और गलत बात हमेशा गलत ही होती है. ऐसा कभी नहीं हो सकता है कि पहले की सही बात बाद में गलत साबित हो जाएं. धोखाधड़ी, यौन-शोषण कभी भी सही नहीं हो सकता है. अगर कोई ठान ही ले कि किसी के चक्कर में नहीं आना है तो शायद भगवान में भी इतनी ताकत नहीं है कि उसके इरादे को पलट दे, तो फिर साधु-संतों की हैसियत ही क्या?
सरकार को चाहिए कि साधु-संतों और बाबाओं को पैक करके हिमालय के उन बर्फीले इलाकों में छोड़ देना चाहिए, जहां तापमान शून्य डिग्री से भी नीचे हो. यहां शहरों के वातानुकूलित आश्रमों में बैठकर भोली-भाली जनता को लूटते रहते है. आखिर धर्मभीरू जनता को भी पता चले कि उनके बाबाओं की औकात कितनी है. अंधी भक्ति का मतलब यह नहीं होता कि आप गधे को ही बाप समझने लगो.