ओ रे मांझी ले चल
ओ रे मांझी ले चल मुझे गंगा पार. क्योंकि गंगा तट पर ऋषिकेश में अंग्रेजों के जमाने में बने लक्ष्मण झूला पुल को आवाजाही के लिए सुरक्षा की दृष्टि से बंद कर दिया गया है. कहा जा रहा है कि यह ,पुल अपनी उम्र पूरी कर चुका है. 1927 से 1929 के बीच तैयार किया गया. यह सस्पेंशन ब्रिज 1930 में जनता के लिए शुरू किया गया था. यह पुल देश दुनिया के पर्यटककों के लिए आकर्षण का केंद्र है तो स्थानीय लोगों के लिए रोजी-रोटी कमाने का जरिया. मनी कूट पर्वत की तलहटी में गंगा गन से 60 फीट की ऊंचाई पर बना 450 मीटर लंबे पुल पर फोटोग्राफी क्रेज के चलते फोटो जरूर खिंचवाते थे. उनकी खूबसूरती का आलम यह था कि गंगा की सौगंध, सन्यासी, सौगंध, नमस्ते लंदन, बंटी और बबली महाराजा, अर्जुन पंडित, दम लगा के आइसा जैसी फिल्मों के अलावा सीआईडी और भाभी जी घर पर हैं जैसे धारावाहिकों वीर शूटिंग यहां पर हुई है.
पुरातन कथनानुसार भगवान श्रीराम के अनुज लक्ष्मण ने इसी स्थान पर जूट की रस्सियों के सहारे नदी को पार किया था. स्वामी विशुदानंद की प्रेरणा से कलकत्ता के सेठ सूरजमल झुहानूबला ने यह पुल सन् 1889 में लोहे के मजबूत तारों से बनवाया, इससे पूर्व जूट की रस्सियों का ही पुल था एवं रस्सों के इस पुल पर लोगों को छींके में बिठाकर खींचा जाता था. लेकिन लोहे के तारों से बना यह पुल भी 1924 की बाढ़ में बह गया. इसके बाद मजबूत एवं आकर्षक पुल बनाया गया. विश्वविख्यात लक्ष्मण झूला पुल को सुरक्षा की दृष्टि से बंद होने के चलते टिहरी और पौड़ी 2 जिलों की कनेक्टिविटी विश्व विख्यात पर्यटन स्थल पर टूट गई है. गंगा के दो किनारों पर बसने वाले और व्यापार करने वालों पर रोजी-रोटी का संकट मुंह बाए खड़ा हो गया है. वहीं दूसरी ओर ऋषिकेश से लक्ष्मण झूला तक पहुंचने वाले परिवहन व्यवसाय में लगे लोगों को भी धक्का लगा है.
जहां कभी किसी दौर में लक्ष्मण झूला पुल पर से अंबेस्डर कार को भी निकाला जा सकता था. वहीं अब लगभग 3 किलोमीटर पीछे ही रुकना पड़ेगा. इस पुल के बंद होने से ऋषिकेश के साथ- साथ गंगा पार की आर्थिकी पर भी गहरा असर पड़ेगा. ऐतिहासिक धरोहर को बचाने के लिए शासन प्रशासन के साथ-साथ स्थानीय लोगों को भी इसमें सहयोग करना होगा ताकि पुल पर अनावश्यक दबाव ना बढ़े. अगर देखा जाए तो स्थानीय लोगों को ज्यादा दिक्कत नहीं होने वाली है क्योंकि उनके लिए लक्ष्मण झूला पुल से 2 किलोमीटर पहले और 2 किलोमीटर बाद में दो फूल और भी हैं जिनमें एक राम झूला में सस्पेंशन पूर्ण और गरुड़ चट्टी में मोटर मार्ग. साथ ही ऋषिकेश लक्ष्मण झूला को जोड़ने के लिए एक सड़क मार्ग भी है जो बैराज के रास्ते वहां पहुंचा जा सकता है. कहा जाता है कि पलों ने की खता, सदियों ने सजा पाई. जर्जर होते जा रहे इस सस्पेंशन फुल पर जबरदस्ती आवाजाही का प्रयास किया गया तो मानवीय क्षति का अंदाजा लगाया जा सकता है. यूं भी माना जाता है कि इस पुल के बीचो-बीच गंगा की गहराई को आज तक कोई नहीं नाप सका है. लक्ष्मण झूला पुल बंद होने के बाद गंगा के दो किनारों को जोड़ने के मानवीय जरूरतों को गोरा करने के लिए क्या फिर गंगा की लहरों पर सुनाई देगा ओ रे माझी ले चल मुझे गंगा पार.