एक बात समझ में नहीं आती है कि जब हमारी हैसियत नहीं होती तो क्यों दूसरे परिवार की प्यारी सी बिटिया को अपने घर में बहू बनाकर लाते है. क्या हम इतने निकम्मे, लूले-लंगडे हो गए है कि बेटे व परिवार की सुख-सुविधा की वस्तुओं को एकत्र करने की नियत के साथ दूसरे से धन ऐंठने के लिए उनकी प्यारी सी बिटिया को विवाह मंडप में अग्नि के सात फेरों के बाद अपने घर ले आते है. फिर उस परिवार की मजबूरी बन जाता है कि वह अपनी बिटिया की खुशी के लिए वह सब कुछ करे, जो हम चाहते है. क्योंकि हम तो पहले से ही इतने कंगाल हैं, घर में खाने को सूखी रोटी भी मुश्किल से बन पाती हैं. गाडिय़ों में घूमने का अरमान वर्षों से दिल में दबा रखा है कि बेटे की शादी में लडक़ी नए मॉडल की कार तो अपने साथ लाएगी ही, नहीं तो लेटेस्ट बाइक तो पक्की ही समझो. फिर हमने अपने बेटे पर बचपन से लेकर जवानी तक पढ़ाई-लिखाई, शौक पूरे करने के लिए लाखों खर्च कर दिए. अब इनको कौन समझा जा सकता है कि जिस घर से बिटिया को लाए है, क्या वह अनपढ़ है, उसकी पढ़ाई-लिखाई के लिए उसके माता-पिता के पास क्या कुबेर का खजाना था या उसकी योग्यता व खूबसूरती किसी से कम थी, नहीं बेटे वालों की नियत में ही खोट था, तभी तो वह कुटिल मुस्कान के साथ योग्य बिटिया के घर के चक्कर काट रहे थे कि उनको तो अपने बेटे के लिए यही बिटिया नहीं, अलादीन का चिराग चाहिए. जिसको जरा दबाओ और मुंह-मांगी मुराद पूरी करवाओ. बस एक बार बहू बनाकर अपने घर ले आये फिर हमको सामाजिक रूप से उसको बंधक बनाने और उसके माता-पिता को ब्लैकमेल करने का अधिकार मिल जाएगा. फिर उसके बाद बेटे की जिंदगी ऐश से कटेगी. आप अपने आसपास देखिए किसी भी लडक़े की शादी की बात चलते ही, उसके दोस्तों व परिचितों का पहला सवाल यही होता है कि अरे भाई बताओ सगाई में कौन सी कार या बाइक मिलने वाली है. दूसरी ओर बिटिया के परिचितों के चेहरे पर हल्की सी मुस्कराहट दिखाई देती है कि चलो बिटिया के लिए एक मुकम्मल घर की तलाश पूरी हुई. शादी के बाद हर खुशी या गम को बिटिया की किस्मत से जोड़ दिया जाता है, अगर शुभ हुआ तो बेटी की किस्मत अच्छी है, जो अच्छे घर में गई है. लेकिन अगर अशुभ हो गया तो बेटी की आगे की जिंदगी बहुत ही खतरनाक रास्तों पर समझो, जहां पर उसको अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ सकता है. अगर किसी तरह वह बच भी गई तो मानसिक रूप से उसको इतना तोड़ दिया जाता है कि वह अपने अस्तित्व को ही भूल जाती है. कहा जाता है कि इस सृष्टि में इंसान सबसे बेहतरीन प्राणी है, इनमें भी नारी को सर्वश्रेष्ठ सम्मान मिला है, साल में दो बार मां को प्रसन्न करने के लिए नवरात्र के व्रत रखे जाते है. उसके बाद भी पुरुषों की मानसिकता इतनी खतरनाक हो गई है कि बिटिया को गर्भ में ही कत्ल कर दिया जाता है. हां अपवाद हो सकते है जो बिटिया या बहू को बेटे से ज्यादा मान-सम्मान देते है, पर आज के समय में उनकी स्थिति में ऐसी हो गई जैसे सूरज को दीपक दिखाना. मेरा मानना है कि अगर पति-पत्नी में वाद-विवाद की स्थिति संबंध टूटने के कगार तक पहुंच गई तो ससम्मान दोनों को अलग-अलग रास्तों को अपना लेना चाहिए. पर ऐसी स्थिति में पति पक्ष की ओर से पत्नी को सदासदा के लिए चुप कर दिया जाता है और कुछ सालों पर यही पति महोदय दोबारा से समाज में अपने वंश को चलाने एक नए घर की तलाश शुरू कर देते है जहां उनको मिल सके, उनके बेटे को जनने के लिए एक बहू. पति को भगवान मानने वाले समाज में आखिर कब बहू-बेटियों को इस मानसिक, शारीरिक उत्पीडऩ से मुक्ति मिलेगी, यह सवाल हर समय हमको परेशान रखता है. आखिर ऐसा क्यों होता है और कब तक होता रहेगा?