जीएसटी लागू होना ही है, तो डर किस बात का. आम आदमी का क्या है पहले दो रु पए की चाय पीता था, अब दस रु पए की. लेकिन, चाय पीना बंद तो नहीं करता. जीएसटी लागू होने के बाद चीजें तो बाजार में मिलेंगी ही. अब जो जिस भाव मिलेंगी, मिल ही जाएंगी, अब जीएसटी लागू होने के बाद खाना-पीना बंद तो नहीं कर देंगे. मीडिया ने जीएसटी बिल ऐसा बना दिया है, जैसे प्रलय आने वाली है, आसमान धरती पर गिर पड़ेगा और धरती आसमान में उड़ जाएगी. तमाम एक्सपट्र्स के पैनल आम जनता को जीएसटी के फायदे-नुकसान समझाने में जुटे पड़े हैं कि ये टैक्स खत्म होगा, वो टैक्स लग जाएगा. ऐसा होगा, वैसा होगा. सच कहा जाए तो सब कुछ समझ से बाहर है. बस इतने के सिवाय की जीएसटी लागू होगा और सब कुछ बदल जाएगा. बस मारा जाएगा तो सिर्फ
व्यापार ी वर्ग. जैसे वो अपने घर में छिपे तहखाने के पैसे से सामान खरीदता-बेचता हो. व्यापारी का क्या है जितने में खरीदता है, उसमें अपना मुनाफा जोड़ कर बेच देता है. हां डंडी मारने की आदत पर रोक काफी है व्यापारियों के होश उड़ाने के लिए. तन ढकने का सामान बेचने वाले यूं परेशान घूम रहे हेै कि जीएसटी लागू होते सब बेपर्दा घूमने लगेेगे और वो भूखे मर जाएंगे. ज्यादा क्या होगा कुछ थोड़ा महंगा होगा और कुछ थोड़ा सस्ता होगा. यूं भी सस्ता तो कुछ हुआ ही नहीं अब तक. जीएसटी लागू होने से पहले भी किसी विभाग ने टैक्स लगाया तो लगा ही दिया न. बाकी जनता कामधेनु गाय है ही निचोड़ ली जाएगी घाटा पाटने के लिए. नोट बंदी के दौर में भी जिंदगी चल ही रही थी, भले ही थोड़ी दिक्कत हुई थी. अब जीएसटी लागू होगा तब भी जिंदगी चलती ही रहेगी. अब रही बात रोने वालों की तो उनको तो रोना ही है, चाहे कुछ महंगा हो या सस्ता, उनको पीएम
मोदी का विरोध करना है, तो करना है, चाहे मोदी सरकार कुछ भी कर लें.