बहुत कुछ करने की तमन्ना दिल में रखते है, पर क्या करें, कभी अपने मन का डर, कभी समाज की बंदिशे कदमों को रोक देती है। इतना तो जानते है कि जिंदगी मौत का दरिया है, और इस मौत के दरिया से होकर गुजरना ही है, लाख कोशिशे कर लें, इस दरिया में बहने से तो कोई रोक नहीं सकता है। हां इतनी बात समझ में आती है कि अगर अपने बाजुओं में ताकत और दिल में हौसला है, तो इस दरिया में बहादुरी के साथ तैर कर अपनी सुनिश्चित मंजिल पर पहुंचा जा सकता है, नहीं तो खुद को इस दरिया में बहने दो, कहीं न कहीं किनारा तो मिल ही जाएगा। सदियों से ऐसा ही होता आया है कि जिनके पास दृढ इच्छा शक्ति होती है वह अपनी मंजिल पर अवश्य ही पहुंचते है, भले ही उनके रास्ते में कितनी भी मुसीबतें आई हो, समाज की बंदिशे भी उनके बढते कदमों को नहीं रोक पाई। एक नहीं, हजारों-लाखों उदाहरण हमारे सामने मौजूद है, बिल्कुल निम्न स्तर से अपनी जिंदगी का सफर शुरू करने वालों ने समाज द्वारा स्थापित व मान्य बुलंदियों को छुआ है। और दूसरी ओर सितारों सी चमक बिखरेने वाले जमीं पर टूट कर बिखर गए। समझने वालों के लिए इशारा ही बहुत होता है, और न समझने वालों के लिए कुछ भी नहीं। यह हमारा समाज है कि जो हमारे लिए आगे बढने के लिए उत्प्रेरक का काम करता है। अगर समाज का डर न हो तो इंसान इंसान नहीं रह सकता। हम तो खुद कैसे भी अपना जीवन बिता लेंगे। फिर जिंदगी के दरिया में कहीं न कहीं किनारे पर लग कर अपना जीवन व्यतीत कर ही लेंगे। अब क्योंकि हम इस समाज के महत्वपूर्ण अंश है, इसलिए हम हर पल समाज के आगोश में रहते है। समाज की बंदिशों का डर रहता है कि हम किसी भी काम को करने से पहले बहुत बार सोचने को मजबूर हो जाते है। अगर हमारी वजह से कोई गलत काम हो गया, तो कहीं मुंह दिखाने लायक भी नहीं रहेगे, फिर हमारे माता-पिता व हमारा परिवार समाज से कट भी सकता है और यही छोटी-छोटी बातें हमको कुछ सकारात्मक व सार्थक करने के लिए प्रेरित करती है। निम्न व मध्यम वर्गीय परिवारों की तरक्की के रास्ते समाज ही दिखाता है। जबकि उच्च वर्गीय परिवारों को समाज की कोई परवाह नहीं होती है, उनको लगता है कि वह समाज से ऊपर है। यह अलग बात है कि अपवाद हर जगह पर हो सकते हैं। बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक के लंबे सफर में सबसे बेशकीमती युवावस्था का समय हमारी जिंदगी का महत्वपूर्ण पड़ाव होता है, और इसी पडाव पर हमको बचपन की सुनहरों यादों के साथ सपनों को साकार करने प्रयास करना चाहिए, ताकि हम वृद्धावस्था में अपने समाज में गर्व से कह सके कि देखो और समझो हमने जिंदगी के दरिया में मजबूत व दृढ इच्छा-शक्ति के बल पर तैर कर अपने लिए वह मुकाम हासिल किए है, जो कामयाबी के शिखर बन गए। अगर हमने युवावस्था में समाज की परवाह नहीं की, तो ऐसा हो सकता है कि वृद्धावस्था में समाज हमारा साथ छोड दे और हम अकेले रह जाए, जिंदगी के आखिरी मोड पर। इसलिए जरूरी हो जाता है कि हमको अपना कल को संवारने के लिए आज समाज को सम्मान देकर और उससे प्रेरणा लेते हुए आगे बढने की कोशिश की जाए।