‘कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना,
छोड़ो बेकार की बातों में कहीं बीत न जाए रैना’
यह कहने या सुनने को तो सिर्फ एक हिन्दी फिल्म का बहुत ही दिलकश व प्रसिद्ध गाना है. इस गाने में जिन लोगों का जिक्र हुआ है, उन्हीं लोगों की वजह से आज हम अपने घर को घर नहीं बना पा रहे है. इन्हीं लोगों की वजह से हमारे अपने दूर होते जा रहे है. इनकी बातों में आकर हम बुजुर्गों की अनमोल शिक्षाप्रद बातें और अपने संस्कारों को भूलते जा रहे है. इन लोगों की बातों का ही असर है हमारी दिनचर्या बदलने के साथ-साथ ही हमारे पैर भी चादर से बाहर निकलते जा रहे है. जीवन स्तर सामान्य से ऊपर उठाने के लिए रिश्वत लेनी शुरू कर दी. क्योंकि हमको अपना नहीं, लोगों का डर था, इसलिए हमने पिताजी के बनाए सालों पुराने घर को तुडवाकर उसको आधुनिकता की प्रतीक व ऐशो-आराम की हर वस्तु से परिपूर्ण किया, ताकि लोगों को संतुष्ट करके उनका मुंह बंद करना है. इन लोगों की दहशत का आलम है कि आज लाचार व बेबस प्रेमी-प्रेमिका आत्महत्या जैसे कदम उठा रहे है, भले ही वह आर्थिक व सामाजिक स्तर पर सक्षम हो. कभी-कभी तो उनके घर वाले भी उनको वैवाहिक जीवन शुरू करने का आशीर्वाद ख़ुशी-ख़ुशी देने को तैयार हो जाते है, पर लोगों व समाज के डर की वजह से वह तो स्वयं घुट-घुट कर जीने को विवश हो जाते है. उन लोगों का क्या कर सकते है, जिन्होंने माता सीता की पवित्रता पर ऐसी ऊंगली उठाई कि आज तक हमारी लाड़ली बेवजह बदनाम होती चली आ रही है, कोई इस बात पर सोचने को तैयार नहीं है, बस यूं ही जिए चले जा रहे है, बस समय और नाम बदल जाते है. इन लोगों की वजह से ही बच्चों को अपने माता-पिता व बुजुर्गों की बातें नागवार लगती है, क्योंकि उनके दोस्त क्या कहेंगे बड़े श्रवण कुमार बनते हो, तुम्हारी अपनी भी तो कोई बात होनी चाहिए, अब तुम बड़े हो चुके हो. अब इन लोगों का क्या कहना कि न किसी को जीने देते है और न किसी को चैन से मरने देते है. इनकी सच्चाई यह है कि आज धर्म खतरे में है, जनता को जागृत करने के लिए हर रोज टेलीविजन के माध्यम से हमारे घर में आने वाले कथावाचक हो या नेता, बहुत जाने-माने ऋषि-मुनि कोई भी बेदाग नहीं है. हम जहां तक सोच भी नहीं पाते, वहां यह लोग बेरोक-टोक आते-जाते है. इन लोगों की वजह से हम अपना कोई भी काम ईमानदारी से नहीं कर पाते. अगर इन लोगों की बातों को छोड दिया जाए तो शायद हमसे बेहतर कोई नहीं हो सकता है. यही वजह है आज तक भारत की सरकार पाकिस्तान के खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठा पायी, न जाने विश्व बिरादरी क्या कहेगी. दुनिया में रहना है तो दुनिया की सुननी ही होगी. फिर चाहे पडोसी गला ही काट ले जाए. जबकि भारत सरकार के पास पाक के खिलाफ पुख्ता साबुत होगे. लेकिन फिर भी कोई एक्शन नहीं. वजह सिर्फ एक की लोगों का डर. वह कहते है न कि डर के आगे ही जीत होती है. तो बस समझ लीजिए है ये ही सही बात है. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जिनको कभी अमेरिका ने वीजा तक देने से मन कर दिया था. अगर लोगो के ताने सुन-सुन कर आम आदमी पार्टी के नेता अरविन्द केजरीवाल ने आप का गठन करके दिल्ली का चुनाव न लड़ा होता तो क्या वह भारतीय राजनीती में नए विकल्प के रूप में उभर पाते. अब जरा सोचिये अगर इन दोनों हस्तियों ने लोगो की बातों पर ध्यान होता तो क्या भारतीय राजनीति में इतना परिवर्तन होता. कहने का तात्पर्य है कि लोगो को बातों को सुनिए जरूर, लेकिन दिल में बैठने के लिए नहीं. बल्कि उन बातो पर मंथन करिये अपनी सफलता के लिए रास्ते निकालने के लिए.