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कत्ले गारत 1

28 दिसम्बर 2022

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यह उपन्यास काल्पनिक है ।जिसका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं ।या फिर किसी वास्तविक व्यक्ति या समुदाय को चोट पहुंचाने के लिए कतई लिखी गई नहीं है।
                                       सुबीर रोका।

कत्ले गारत 1
यह मेरे समझ के बाहर की बात थी। क्योंकि, मैं कहां भागे जा रहा था। सिर्फ भागे जा रहा था। और इस भागमभाग में मेरे साथ सिर्फ मेरा अपना घोड़ा था ।उसके अलावा कुछ नहीं था। बिहड़ जंगलों में मैं सिर्फ भागे जा रहा था। मैं किस ओर भाग रहा था ?कहां जा रहा था ?मुझे कुछ पता नहीं था। सिर्फ मैं जान बचाने के लिए भागे जा रहा था। मेरा घोड़ा मेरा साथ दे रहा था।
मुझे अपनी मंजिल का कोई अता पता नहीं था। और दिशाओं का भी अता पता नहीं था। मैंने आसमान की ओर देखा- ध्रुव तारे को देख मुझे लग रहा था ।कि मैं पूरब की ओर जा रहा था।
थकान और भूख से  मैं निहाल हुआ जा रहा था। शायद ऐसी ही हालत मेरे घोड़े के भी थी। मगर मालिक के आदेश पर मेरा घोड़ा मुझे अपने पीठ में बिठाए दौड़े जा रहा था। मुझे पता था। वह घोड़ा  थक चुका था।
मुझे पता था मेरे घोड़े को खाना नहीं तो कम से कम पानी की तो बहुत जरूरत थी ।खाना तो बिहड़ में कहीं भी घास चर लेता ,लेकिन पानी पानी की जरूरत तो पानी से ही हो सकती थी।
मुझे लगा मेरे घोड़े को पाने की अब सख्त जरूरत थी ।वह लगातार 7 घंटे से दौड़ रहा था। मुझे पीठ पर बिठाए । 7 घंटा लगातार। यह तो सिर्फ घोड़ा ही कर सकता था। इंसानों की बस की बात नहीं थी।
कहीं भी हो मेरा साथ छोड़ सकता था। अगर पानी न मिले तो ,खाने का तो घास चर सकता था ।और इस बिहड़ में वही मेरा एक मात्र सहारा था ।उसके बगैर तो मैं पैदल कितना जा सकता था? नामुमकिन था।
बिहड जंगल, और घोर अंधकार ,इस अंधकार में मुझे कुछ नहीं दिख रहा था। मगर मेरे घोड़े को सब कुछ नजर आ रहा था ।इसीलिए वह सरपट दौड़ रहा था।
लगभग 7 घंटे से घोड़ा भागे जा रहा था।
जंगल में कई जगह पहाड़ भी आए ,कई जगह नदी नाले भी आए ,कई जगह सूखा मैदान भी आया ।मगर उन सब को पार करता हुआ मेरा थोड़ा आगे बढ़ा जा रहा था।
भागते -भागते हम बहुत दूर निकल आए थे ।हमें खुद पता नहीं था। कि हम कहां पहुंच गए हैं। इस लंबी दौड़ में, मैंने एहसास किया कि मेरे पीछे कोई भी  दुश्मन आ नहीं रहा था। शायद मेरे पीछे आने वाले थक हार कर एक आध घंटे पर जब मुझे ना देखा हो तो लौट गया हो।
मुझे अपनी जान बचानी थी। रात के अंधकार में इंसान अगर खौफ ज्यादा हो। तो उसको हथियार की जरूरत पड़ती है ।
मगर मेरे हाथ में हथियार के नाम पर एक सुई भी नहीं थी। मैं नहीं आता था मेरे आगे मेरी आंखों के आगे जो कत्ले गारत गुजरी थी। उस कत्ले गारत का मैं भी एक हिस्सा था ।शायद दहशत गर्द मुझे भी कत्ल कर देते।
उस कत्ले गारत में में जान बचाकर भागने में कामयाब शायद मैं ,ही एक इंसान था।
मुझे भी कत्ल करने के लिए कई घुड़सवार मेरे पीछे पीछे भाग रहे थे ।मगर मेरा घोड़ा मुझे बचाने में कामयाब हो गया था।
मैं अपने घोड़े का शुक्रगुजार था। कि वह बहुत तेज तर्रार निकला। उसने दुश्मनों के घोड़े को बहुत पीछे छोड़ कर बहुत आगे निकाल लाया था मुझे।
अब मेरे घोड़े को कुछ देर हकी आराम की जरूरत थी ।और उसे घांस चरने की भी जरूरत थी। इसीलिए मैं उसके पीठ से नीचे उतर गया। और उसे पीठ थपथपाता हुआ घांस चरने के लिए प्रेरित करने लगा।
 मेरा घोड़ा मेरी बातों को समझ कर ,वह घास चरने लगा ।क्योंकि ,बिहड़ में पर्याप्त घांस था। वह तो जानवर था। कि घास खा सकता था। मगर मैं तो इंसान था ।घास खा नहीं सकता था। मेरा घोड़ा भूख मिटा सकता था। घास चर कर मगर मैं क्या करूं? समझ नहीं आ रहा था! भूख से मेरी भी हालत पतली हुई जा रही थी!
मैं खौफनाक मंजर से बहुत दूर निकल गया था।
 मैं इस बात की तसल्ली करने के लिए अपने सुनने की शक्ति का प्रयोग कर रहा था। मैं सुनने की कोशिश कर रहा था ।कहीं से कोई इंसान की आवाज आ तो नहीं रही?
जब मुझे बिल्कुल तसल्ली हो गई ,तो घोड़े को मैं चरते देखने लगा था ।घोड़ा इत्मीनान से सपर सपर सपर करके घांस चरने लगा था। क्योंकि, यह घास का मैदान और अछूता घांस का मैदान था।
मेरे घोड़े को घास तो मिल ही गया था ।मगर घांस के साथ-साथ उसे और मुझे दोनों को पीने की पानी की जरूरत महसूस हो रही थी। मगर घोड़ा घांस को देखकर घांस चर ही रहा था। पानी की बात शायद उसने मेरे ऊपर छोड़ दी थी।
जिंदगी में ऐसी जरूरत कभी महसूस नहीं हुई थी ।मेरे साथ ऐसे वाक्यात  कभी गुजरा न था। मैं एक शांतिप्रिय इंसान था ।मैंने कभी किसी से लड़ाई नहीं की थी। मैंने कभी किसी से झगड़ा नहीं किए थे। मैंने कभी किसी को एक थप्पड़ भी नहीं मारा  था। फिर भी मेरे साथ ही ऐसा कुछ क्यों गुजरा था। 
मैंने कभी सोचा भी ना था। इस तरीके से मेरा सारा परिवार को कत्ल कर दिया जाएगा। मैंने कभी सोचा भी न था। इस तरीके से हमारे पूरे कुनबे को हमारे पूरे कबीले को कोई तहस-नहस कर देगा । 
मेरे घोड़े को चरने के लिए बढ़िया सा घांस मिल गया था। मैं घोड़े के साथ साथ ही उसके लगाम पकड़ कर उसके साथ साथ पैदल चहल कदमी कर रहा था।
 मैं यह नहीं चाहता था -ईस-किस अंधकार में घोड़ा कहीं गुम हो जाए। और मेरी एक अंतिम संपत्ति भी खो जाए ।जो मेरा अभी सहारा बना हुआ था। क्योंकि अभी इस वक्त इस से बढ़कर बड़ा दोस्त मेरे लिए और कोई नहीं था ।मेरा सहारा ही यही था।
मेरा घोड़ा इस वक्त मेरे लिए वरदान साबित हो रहा था।
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रचनाएँ
कत्ले गारत
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बदले और खून से सनी खूनी सफर सफर का इतिहास है ।जिसे हम कत्ले गारत का नाम देकर यहां प्रस्तुत करना चाहते हैं।
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गांव के लोगों की खासियत होती है- वह जो थोड़े में संतुष्ट हो जाते हैं। वह नहीं सोचते कि वह कार पर चले। वे यह नहीं सोचते कि बहुत बड़ा बंगला बने, वे नहीं सोचते कि बहुत बड़ी कोठी हो ।बस दो वक्त की रोटी बी

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मेरी जिंदगी में सिर्फ एक ही लक्ष्य बचा हुआ था। और वो लक्ष्य था किसी तरह भी उन खूनियों का खात्मा करना। क्योंकि मुझे पता था। कि यह सारा सरकारी नुमाइंदों की मिलीभगत में हुई थी। इसलिए कानून का सहारा लेना

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अब बापी भी बड़ी हो चुकी थी। 10:11 साल की हो चुकी थी। दीदी के गोद में दूसरा एक बच्चा भी आ चुका था। उसकी भी उम्र अभी 4 साल की हो चुकी थी। मैं अग्निपुत्र- इस परिवार का एक अभिन्न अंग बन चुका था ।परिवार का

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यह वक्त नहीं था। कि मैं पंडित जी के साथ जाउं। गांव पहुंच कर खोजबीन करूं! जहां गांव के बारे में गांव की आबादी के बारे में नोटेड होता है ।क्योंकि ,अभी हम पुष्पलता के इलाज के लिए आए हुए थे। और जरूरी था,

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आज शहर में आए हुए तीसरा दिन था। पुष्प लता लगभग ठीक हो गई थी। मेरे इकरारेईश्क के बाद उसका बुखार धीरे-धीरे कमता चला गया था। या यूं कहें कि दोनों की एकरार के बाद बुखार लगभग उसी, समय कम हो गया था।मु

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4 जनवरी 2023
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पुष्पा को समझ आ चुका था। जिंदगी के बारे में। पुष्पा को इस बात की समझ आ गई थी। जो जिंदगी में जीने के लिए पैसे की भी जरूरत होगी। जो मैं शहर जाकर ही कमा सकता था। गांव में रहकर तो हम सिर्फ खा पी सकते थे।

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वे चार लोग थे ।और मैं उनके बीच में एक अकेला लेटा हुआ था। और मेरी नींद को देखते हुए उन लोगों ने जागाने के लिए एक ने मुझे छू करा आवाज लगाया था।उनकी आवाजों से मेरी आंखें खुल गई थी। मैंने नजर इधर-उधर घुमा

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मुझे पता था ।मेरा रास्ता आसान नहीं था। मुझे यह भी पता था। जिन चार लोगों पर मैंने हमला किया था। वह लोग यकीनन कोई न कोई मेरे पीछे आने वाले थे। उन के मुताबिक वह सिर्फ चार नहीं थे ।पूरा कुनबा था। उन

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बीच में आए इन सब लोगों से मैं खुद को बचाना चाहता था।। मेरा मकसद अपने गांव तक पहुंचना था। यह देखना था ,उस कत्ले गारत में कोई बचा तो नहीं ।या यह जानना था -कि कत्ले गारत के बाद वहां इंडस्ट्री बसा है

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मुझे बहुत आगे निकलना था। वक्त बहुत जाया हो चुका था।मैंने आसमान की ओर देखा। सूरज क्षितिज पे कहीं छुपने की तैयारी कर रहा था। मुझे अपने गांव आगे बढ़ना था। और रात के रुकने की व्यवस्था भी करना था। मेरा घोड

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10 जनवरी 2023
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मकान के बाहर सारागांव जमा हो गया था। सारा गांव ही एक कुनबा था। गांव के लोग में एकता थी एक स्वर बद्धता थी ।जो वहां जमा होने पर दिखती थी।गांव के बड़े बुजुर्ग की आंखों में आंसू थे। बच्चे भूल से गए थे। उस

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11 जनवरी 2023
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उन के अंदर की ज्वाला को मैंने भड़काने की कोशिश की। उनके अंदर की ज्वाला शायद शांत हो चुकी थी ।या कुछ न कर पाने की वजह से वह चुपचाप हो गए थे।शायद वह नहीं चाहते थे ,कि जो बचे खुचे हैं, उनको कोई नुकसान पह

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13 जनवरी 2023
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मुझे अब भटकने की जरूरत नहीं थी। गांव वालों को पता था । वह पुराना गांव हमारा कहां पर है.. किस रास्ते से वहां पर जा सकते हैं!मैं अकेला ही उस ओर जाने के लिए तैयार था। मैं सबसे पहले उस धरती का दर्शन चाहता

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जब मेरी आंखें खुली, चट्टानों में बैठे-बैठे मुझे नशा सा छा गया था। जिसकी वजह से मैं वहीं पर लुढ़क गया था। करीब चार-पांच घंटे यूं ही मैं बेहोश सा पड़ा रहा। जब मेरे घोड़े ने मुझे

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17 जनवरी 2023
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मैं पानी पीकर और हाथ मुंह धो कर अपने गांव की ओर मुड़ा। चारों तरफ बाउंड्री लगी हुई, बीच में कोई इंडस्ट्री बसी हुई थी। बाउंड्री पत्थरों से दीवार बनाई गई थी इस पार से उस पार देख पाना मुमकिन नहीं था

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18 जनवरी 2023
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मैं अपने गांव में था। जो अभी फिलहाल इंडस्ट्री में तब्दील हो गई थी। और मेरे अपने लोग यहां कोई नहीं था। मेरा अपना मकान भी नहीं था।मैंने गांव की मिट्टी को अपनी मुट्ठी में लिया दिल से लगा लिया। सच म

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20 जनवरी 2023
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कामदारों से मुझे सिर्फ इतना ही पता चल सका था, कि वह अरबों पति लोग थे ।उनके पास पहुंचना मुश्किल काम था। मैं साइबर में बैठकर,इन लोगों का रिहायश, ऑफिस पता लगाना चाहता था। यूं तो वे लोग यहां भी

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23 जनवरी 2023
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मार्गरेटा से टोपला बस्ती, ज्यादा दूर नहीं था। करीब 20 किलोमीटर का रास्ता था । ऑन द रोड।अगर मैं अपने घोड़े पर ही टोपला बस्ती पहुंचता तो, लोग यही समझते ,कि कोई बैंड बाजा बारात वाला ही होगा। जो किस

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24 जनवरी 2023
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अंधेरी रात थी। आसमान में तारे चमक रहे थे। मगर टोपला बस्ती का यह एरिया ,रोशनी से जगमग आ रहा था। ऐसा लगता था जैसे आसमान के सारे तारे जमीन पर उतर आए हो। और कोठियों में जगमगा रहे हो।जहां मैं ठहरा था , रिस

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कत्ले गारत 30

25 जनवरी 2023
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मौसम इतना ठंडा नहीं था। फिर भी मैं अपने घोड़े को खुले छत में नहीं रख सकता था। रात को रुकने के लिए उसे भी छत चाहिए थी । घास चाहिए था ।और खाने के लिए दाना भी चाहिए था ।पानी भी चाहिए था। उसकी फिकर मुझे अ

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29 जनवरी 2023
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कत्ले गारत 32

30 जनवरी 2023
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कत्ले गारत 33

31 जनवरी 2023
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कहते हैं - गुनाह कभी छुपता नहीं ।कभी न कभी गुनाह, नासूर बन के दिल को ,कचोटने लगती है।यह कुदरत का न्याय है। बदला लेने के लिए कुदरत ही तैयार करती है। मजलूम पर किया गया जुल्म कभी खाली नहीं जाता। उभ

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