यह उपन्यास काल्पनिक है ।जिसका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं ।या फिर किसी वास्तविक व्यक्ति या समुदाय को चोट पहुंचाने के लिए कतई लिखी गई नहीं है।
सुबीर रोका।
कत्ले गारत 1
यह मेरे समझ के बाहर की बात थी। क्योंकि, मैं कहां भागे जा रहा था। सिर्फ भागे जा रहा था। और इस भागमभाग में मेरे साथ सिर्फ मेरा अपना घोड़ा था ।उसके अलावा कुछ नहीं था। बिहड़ जंगलों में मैं सिर्फ भागे जा रहा था। मैं किस ओर भाग रहा था ?कहां जा रहा था ?मुझे कुछ पता नहीं था। सिर्फ मैं जान बचाने के लिए भागे जा रहा था। मेरा घोड़ा मेरा साथ दे रहा था।
मुझे अपनी मंजिल का कोई अता पता नहीं था। और दिशाओं का भी अता पता नहीं था। मैंने आसमान की ओर देखा- ध्रुव तारे को देख मुझे लग रहा था ।कि मैं पूरब की ओर जा रहा था।
थकान और भूख से मैं निहाल हुआ जा रहा था। शायद ऐसी ही हालत मेरे घोड़े के भी थी। मगर मालिक के आदेश पर मेरा घोड़ा मुझे अपने पीठ में बिठाए दौड़े जा रहा था। मुझे पता था। वह घोड़ा थक चुका था।
मुझे पता था मेरे घोड़े को खाना नहीं तो कम से कम पानी की तो बहुत जरूरत थी ।खाना तो बिहड़ में कहीं भी घास चर लेता ,लेकिन पानी पानी की जरूरत तो पानी से ही हो सकती थी।
मुझे लगा मेरे घोड़े को पाने की अब सख्त जरूरत थी ।वह लगातार 7 घंटे से दौड़ रहा था। मुझे पीठ पर बिठाए । 7 घंटा लगातार। यह तो सिर्फ घोड़ा ही कर सकता था। इंसानों की बस की बात नहीं थी।
कहीं भी हो मेरा साथ छोड़ सकता था। अगर पानी न मिले तो ,खाने का तो घास चर सकता था ।और इस बिहड़ में वही मेरा एक मात्र सहारा था ।उसके बगैर तो मैं पैदल कितना जा सकता था? नामुमकिन था।
बिहड जंगल, और घोर अंधकार ,इस अंधकार में मुझे कुछ नहीं दिख रहा था। मगर मेरे घोड़े को सब कुछ नजर आ रहा था ।इसीलिए वह सरपट दौड़ रहा था।
लगभग 7 घंटे से घोड़ा भागे जा रहा था।
जंगल में कई जगह पहाड़ भी आए ,कई जगह नदी नाले भी आए ,कई जगह सूखा मैदान भी आया ।मगर उन सब को पार करता हुआ मेरा थोड़ा आगे बढ़ा जा रहा था।
भागते -भागते हम बहुत दूर निकल आए थे ।हमें खुद पता नहीं था। कि हम कहां पहुंच गए हैं। इस लंबी दौड़ में, मैंने एहसास किया कि मेरे पीछे कोई भी दुश्मन आ नहीं रहा था। शायद मेरे पीछे आने वाले थक हार कर एक आध घंटे पर जब मुझे ना देखा हो तो लौट गया हो।
मुझे अपनी जान बचानी थी। रात के अंधकार में इंसान अगर खौफ ज्यादा हो। तो उसको हथियार की जरूरत पड़ती है ।
मगर मेरे हाथ में हथियार के नाम पर एक सुई भी नहीं थी। मैं नहीं आता था मेरे आगे मेरी आंखों के आगे जो कत्ले गारत गुजरी थी। उस कत्ले गारत का मैं भी एक हिस्सा था ।शायद दहशत गर्द मुझे भी कत्ल कर देते।
उस कत्ले गारत में में जान बचाकर भागने में कामयाब शायद मैं ,ही एक इंसान था।
मुझे भी कत्ल करने के लिए कई घुड़सवार मेरे पीछे पीछे भाग रहे थे ।मगर मेरा घोड़ा मुझे बचाने में कामयाब हो गया था।
मैं अपने घोड़े का शुक्रगुजार था। कि वह बहुत तेज तर्रार निकला। उसने दुश्मनों के घोड़े को बहुत पीछे छोड़ कर बहुत आगे निकाल लाया था मुझे।
अब मेरे घोड़े को कुछ देर हकी आराम की जरूरत थी ।और उसे घांस चरने की भी जरूरत थी। इसीलिए मैं उसके पीठ से नीचे उतर गया। और उसे पीठ थपथपाता हुआ घांस चरने के लिए प्रेरित करने लगा।
मेरा घोड़ा मेरी बातों को समझ कर ,वह घास चरने लगा ।क्योंकि ,बिहड़ में पर्याप्त घांस था। वह तो जानवर था। कि घास खा सकता था। मगर मैं तो इंसान था ।घास खा नहीं सकता था। मेरा घोड़ा भूख मिटा सकता था। घास चर कर मगर मैं क्या करूं? समझ नहीं आ रहा था! भूख से मेरी भी हालत पतली हुई जा रही थी!
मैं खौफनाक मंजर से बहुत दूर निकल गया था।
मैं इस बात की तसल्ली करने के लिए अपने सुनने की शक्ति का प्रयोग कर रहा था। मैं सुनने की कोशिश कर रहा था ।कहीं से कोई इंसान की आवाज आ तो नहीं रही?
जब मुझे बिल्कुल तसल्ली हो गई ,तो घोड़े को मैं चरते देखने लगा था ।घोड़ा इत्मीनान से सपर सपर सपर करके घांस चरने लगा था। क्योंकि, यह घास का मैदान और अछूता घांस का मैदान था।
मेरे घोड़े को घास तो मिल ही गया था ।मगर घांस के साथ-साथ उसे और मुझे दोनों को पीने की पानी की जरूरत महसूस हो रही थी। मगर घोड़ा घांस को देखकर घांस चर ही रहा था। पानी की बात शायद उसने मेरे ऊपर छोड़ दी थी।
जिंदगी में ऐसी जरूरत कभी महसूस नहीं हुई थी ।मेरे साथ ऐसे वाक्यात कभी गुजरा न था। मैं एक शांतिप्रिय इंसान था ।मैंने कभी किसी से लड़ाई नहीं की थी। मैंने कभी किसी से झगड़ा नहीं किए थे। मैंने कभी किसी को एक थप्पड़ भी नहीं मारा था। फिर भी मेरे साथ ही ऐसा कुछ क्यों गुजरा था।
मैंने कभी सोचा भी ना था। इस तरीके से मेरा सारा परिवार को कत्ल कर दिया जाएगा। मैंने कभी सोचा भी न था। इस तरीके से हमारे पूरे कुनबे को हमारे पूरे कबीले को कोई तहस-नहस कर देगा ।
मेरे घोड़े को चरने के लिए बढ़िया सा घांस मिल गया था। मैं घोड़े के साथ साथ ही उसके लगाम पकड़ कर उसके साथ साथ पैदल चहल कदमी कर रहा था।
मैं यह नहीं चाहता था -ईस-किस अंधकार में घोड़ा कहीं गुम हो जाए। और मेरी एक अंतिम संपत्ति भी खो जाए ।जो मेरा अभी सहारा बना हुआ था। क्योंकि अभी इस वक्त इस से बढ़कर बड़ा दोस्त मेरे लिए और कोई नहीं था ।मेरा सहारा ही यही था।
मेरा घोड़ा इस वक्त मेरे लिए वरदान साबित हो रहा था।
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