shabd-logo

कत्ले गारत 5

30 दिसम्बर 2022

15 बार देखा गया 15
मैंने अपने घोड़े का रकाब निकाल कर, उसे चरने के लिए छोड़ दिया था। और पीठ थपथपाता हुआ मैंने उससे बोला -जब तक मैं सो लेता हूं !तू चरके जल्दी ही यहीं पर आ जाना ।समझ गया। घोड़े ने सर हिलाया जैसे कि उसने सारी बातें समझ लिया हो।और वक्त पर आजाने की बात कही हो।
 मैं घोड़े को छोड़ने के बाद उसी चटाई पर आकर लेट गया था ।और लेटते ही मेरी आंख लग गई थी।
जब मेरी नींद खुली तो मेरे आस-पास कई लोग जमा थे। और वे लोग मेरे ही बारे में बातें कर रहे थे। मेरा घोड़ा चर कर आ चुका था। और वह मुझे ही देख रहा था।
मेरी आंखें खुली घर का मालिक भी सामने ही बैठा हुआ था ।जैसे कई लोग मेरे को देखने के लिए वहां जमा हो गए थे। या मेरे बारे में जानने की उनकी इच्छा हो गई थी।
इतने सारे लोगों को मैंने अपने पास देखकर मैं भी उठ बैठा था। मैं हाथ जोड़ता हुआ सबको  अभिवादन करता हुआ बोला- सभी को मेरा नमस्कार!
उनमें से एक बुजुर्ग ने मेरी ओर देखा बोला- बेटा !तुम कहां से आए हो?
मैं बोला पश्चिम की ओर से आया हूं ।रोजी की तलाश में। मेरे घर वाले सारे किसी हादसे में मारे गए। अब मेरे पास कुछ नहीं रह गया ।तो फिर मैं यह सोचकर चला कि कहीं मुझे रोजगार मिल जाए। दो वक्त की रोटी खाने को मिल जाए। फिर मैं आ गया ।चलते चलते मेरे को भूख लगी तो सुबह-सुबह यहां पर आकर मैंने इनसे खाने के लिए रोटी मांग ली। अगर मुझसे कोई गलती हो गई हो, तो मुझे क्षमा कर देना।
मैं उठकर घोड़े का रकाब ढूंढने लगा ।घर का जो मालिक था ।उसने कहा- रकाब मैंने अंदर रख रदी है। चाहिए तो मैं तुम्हें निकाल कर देता हूं।
फिर उसी बूढ़े आदमी ने मेरे से पूछा -यहां से तुम कहां जाओगे?
मैं बोला -रोजी-रोटी की तलाश में निकला हूं। अगर यहीं पर कहीं रोजी-रोटी मिल जाए तो यही पर रह सकता हूं ।
बूढ़े व्यक्ति ने मेरे से पूछा -इस गांव में तुम क्या काम कर लोगे?
मैं बोला- कुछ भी दे दो! मेरे को खेतों में काम करने के लिए रख लो !लकड़िया चुनने के लिए रख लो !या कोई और किसी काम के लिए रख लो। मैं हर काम करने के लिए तैयार हूं। क्योंकि, मुझे और मेरे घोड़े को खाने के लिए दाना पानी की जरूरत है।
मुझे लगा वह व्यक्ति ,वह बूढ़ा व्यक्ति , शायद गांव का सरपंच रहा होगा !या फिर गांव के सबसे बूढ़े व्यक्ति के तौर में सभी उसकी बातों को सम्मान देते होंगे! इसीलिए सभी सवालात वही व्यक्ति कर रहा था!
हुआ बोला -बेटा अभी तुम्हारी उम्र भी तो कुछ भी नहीं है! तुम मुश्किल से 18 उन्नीस साल के हुए होगे!
मैं बोला-  मैं अभी सिर्फ 16 साल का हूं। और मैं बचपन से खेतों में काम करता आया हूं ।मैं भी गांव का ही रहने वाला हूं। यह मेरा घोड़ा  है यह भी मेरे साथ ही काम करता है। जंगल से लकड़ी चुनकर ला सकता हूं। घोड़े पर लाद कर।
बूढ़ा व्यक्ति बोला -कहीं तुम यह सोचने लगो कि इस काम के लिए बहुत सारे पैसे मिल जाएंगे। तो यह तेरी गलतफहमी है ,बेटा। यहां पर पैसे का कुछ भी काम नहीं है। यहां पर कोई कमाई नहीं है। बस खेतों का काम लकड़ी चुनना पानी लाना बस यही काम है। अगर करोगे तो गांव में तुम्हें कहीं ना कहीं रहने और खाने की व्यवस्था हम करवा देंगे।
मुझे तो रहने खाने की जगह मिलनी चाहिए। काम तो मैं कुछ भी कर लूंगा ।और आपकी कही बातें मेरे समझ में आ गई है ।और मैं आपकी बातों से सहमत भी हूं। इसीलिए आप मेरे रहने खाने की व्यवस्था करवा दीजिए ।मैं आप लोगों को जो भी जो भी काम करवाएगा मैं उसके काम कर दिया करूंगा।
बूढ़ा व्यक्ति बोला- ठीक है! हम तुम्हारे रहने खाने की व्यवस्था करवा देते हैं।
मैं जिस  के बरांडे पर बैठा हुआ था ।वह व्यक्ति बोला- यह मेरे पास ही रहेगा !यही खाएगा! यहीं पिएगा! अगर किसी को कोई काम करवाना हो तो इसे यहीं आकर कह जाएगा, यह कर देगा।
मैंने ऊपर वाले के फिर लाख-लाख शुक्रिया अदा की, कि मुझे अब रहने खाने की चिंता करने की जरूरत नहीं। ऊपर वाले ने मुझे रहने खाने के लिए जगह दे दी थी। और मेरा घोड़ा मेरे साथ था।
शायद मेरी कच्ची उम्र देखकर ही, गांव वालों ने मुझ पर तरस खाया था। और रहने खाने की व्यवस्था करने की बात की थी ।और जिस घर में मैंने पहली बार खाना मांगा था ।उन्होंने भी शायद मेरे को रहम करने की सोच ली थी। या फिर उनके घर में सही में कोई काम करने वाला बंदा उनको चाहिए था ।जो लकड़ी उकड़ी ढो कर लाता ।या फिर और काम कर लेता। इसीलिए उन्होंने मुझे रहने खाने के लिए जगह दे दी थी।
मेरा अभी तक किसी ने नाम तक नहीं पूछा था। बूढ़े व्यक्ति ने पहली बार मेरा नाम पूछा- तेरा नाम क्या है बेटा?
मैं बोला -अग्निपुत्र!
बूढ़ा व्यक्ति फिर बोला। बड़ा अजीब सा नाम है तेरा ।मगर बहुत अच्छा भी है।
और गांव का नाम क्या है ?बाबा का नाम क्या है?
मैंने झूठ बोला मैं माजुली का रहने वाला हूं! पिता का नाम धर्मपुत्र है! और माता का नाम गंगेश्वरी है। हां वह दोनों इस संसार में नहीं है। कहते हुए मेरी आंखों से आंसू बहने लगे। मैं अपने आस्तीन से आंसुओं को पोछने लगा।

तुम्हारे माता-पिता कैसे मारे गए?
ग्रहण लगने के बाद ज्वार भाटा सा आने लगा और ज्वार भाटे में सारे नदी का पानी मकान पर आ गया ।सोते-सोते बा और मां पानी में डूब के मर गए ।मैं और मेरा घोड़ा  चराने के लिए ले गया था। जब लौट के आया तो मेरा 25-30 घरों का गांव कहीं दिखाई नहीं दे रहा था! मेरे गांव के नजदीक आसपास कोई दूसरा गांव नहीं था। तो अंदाजन मैं  चलता रहा चलता रहा और यहां पहुंच गया।
शायद आपको पता है। मैंने अपने गांव के बारे में सबको झूठी बात बताया। शायद असली बात बताता तो शायद कोई मुझ पर रहम करने की जगह ,मुझे  पकड़कर मार डालते । या फिर जिस गांव में कत्ले गारत मची थी। उस गांव से इन लोगों का कोई संबंध हो? यह लोग भी उन्हीं में शामिल हो!? तो फिर मेरा यहां रुकना बेमानी था। मुझे यह लोग पकड़कर मार डालते ।इसीलिए मुझे अपने रहने की जगह के बारे में झूठ बोलना पड़ा।
मैं जो भी काम कर रहा था ।अपनी समझ से कर रहा था। मेरे बाबा मुझे कहा करते थे -जहां किसी का नुकसान ना हो ।वहां झूठ बोलना पाप नहीं है। झूठ से किसी को हानि  पहुंचे किसी को नुकसान  पहुंचे तब वह झूठ पाप की श्रेणी में आता है। अन्यथा कोई भी ऐसी बात- जिनसे किसी इंसान को नुकसान न पहुंचे। इंसानियत को नुकसान न पहुंचे ।तो वह झूठ झूठ नहीं कहलाता।
ठीक है !आज से तुम इस गांव के हुए !उस बूढ़े बूढ़े व्यक्ति ने मुझसे कहा। और तुम इस घर के सदस्य हुए।
इमानदारी से रहना ,ईमानदारी से काम करना। कोई भी दिक्कत आए तो गांव वालों को बताना ।यह तुम्हारा कर्तव्य है ।तुम्हारी रक्षा करना ,तुम्हारे ध्यान रखना, संपूर्ण गांव वालों की जिम्मेदारी है।
अब तक तो मुझे ,यह गांव वालों की बातों से बहुत अच्छा लग रहा था। यह गांव वाले मेरे लिए रहम दिल साबित हो रहे थे। गांव वाले मेरे लिए भगवान से साबित हो रहे थे। मेरे रहनुमा साबित हो रहे थे।
बूढ़ा व्यक्ति बोला -गांव में तुम आए हो; तुम्हारे लिए पहनने की भी शायद कपड़े नहीं होंगे! तुम्हारे बिछाने के लिए ओढ़ने के लिए भी कपड़े नहीं होंगे ।
सारी व्यवस्था गांव वाले मिलकर कर देंगे। तुम यहीं पर रहो।
कहता हुआ वह बूढ़ा व्यक्ति उठकर चल दिया।
सभी को मैंने हाथ जोड़ें सभी मुस्कुराते , हाथ हिलाते हुए आगे निकल गए ।घर का जो मालिक था ।वह मेरे पास आकर बैठ गया। और उसकी बीवी और एक छोटी सी बच्ची मेरे पास ही आकर बैठ गये, और वह बोला -आज से तुम मेरे छोटे भाई के बराबर हो।यूं तो तुम मेरे बेटे के बराबर हो। यह मेरी बीवी है -इसे तुम कुछ भी बोल सकते हो। मां बोलो ;दीदी बोलो; भाभी बोलो। कुछ भी बोल सकते हो।

वह औरत तुनक कर बोली -क्यों कुछ भी बोलेगा ?यह तो मेरे भाई के बराबर है ।यह मेरा भाई है ।आज से तू मेरे भाई हो।
गांव वालों का प्यार देखकर मैं वहीं बैठ कर रोने लग गया ।मेरे आंखों से आंसू जर्जर झरने लगे। मैं समझ नहीं पा रहा था ।कि ऊपर वाले ने मुझ पर ऐसी रहम  क्यों कर दी ।जबकि मेरा पूरा कुनबा ,मेरा पूरा कबीला, मेरा पूरा गांव को उसने बर्बाद कर दिया था ।
क्या मेरे गांव के और भी लोग ,और भी लोग इस तरह बच्चे होंगे ?मैं सोचने लग गया था। मेरे आंसू जितने पोछता जाता उतना ही और सैलाब बन के बाहर निकलने लगा ।मुझे रोता देख उस घर की मालकिन ने मेरे सर पर हाथ रखा ।बोली -मेरे भाई !मत रो ,मत रो ।जो होना था तुम्हारे साथ हो गया ।अब जो भी होगा तुम्हारे साथ अच्छा ही होगा ।तुम हमारे पास हो ।तुम्हारी रक्षा करना ,तुम्हारी देखभाल करना ,हमारा काम है।
गांव वालों का ,और इस परिवार का , रहमदिली को देखते हुए मुझे तो यह नहीं लग रहा था ,कि यह गांव गरीबी में जूझ रहा है ।मुझे यूं लगा कि ईस गांव में खाने पीने की अच्छी व्यवस्था होगी। लोग अच्छे ही खाते पीते होंगे ।
क्योंकि ,जिस गांव में भुखमरी ही छाई हो ।उस गांव में किसी और एक अजनबी को इस तरह से पनाह कोई दे नहीं सकता ।मगर मुझे इस तरह से पनाह देने के पीछे, इस गांव के संपन्नता ,इस गांव के लोगों की दरियादिली शामिल था।
घर की मालकिन ने मुझे बताया। इस गांव का नाम है -ढेकिया जुली। ढेकियाजुली एक संपन्न गांव है।यह  खेती-बाड़ी अच्छी हो जाती है। बाढ़ कभी नहीं आती ।बारिश के मौसम में भी बाढ़ का प्रकोप नहीं रहता।
 कुछ पानी तो बढ़ जाता है ।मगर फिर भी बाढ़ का प्रकोप कभी यहां पर आता नहीं। इसलिए खेती नष्ट होने का कोई संभावना ही नहीं है। इसीलिए इस गांव के लोग सुख शांति से प्राकृतिक प्रकोप से बचे हुए रह रहे हैं।
वह अंदर जाती बोली- मैं तुझे बिस्तर ला कर देती हूं! यहीं पर बिछा लो !और आराम से सो लेना !तुम थके हुए हो ।और तुम दुखी भी हो। इसलिए आज के दिन तुम सो लो तुम्हारे घोड़े ने भी घास चरली है ।पानी भी पी ली होगी ।नहीं पिया होगा तो उसे मैं पिला देती हूं। तुम सोए रहो।

कुदरत का खेल देखिए। मेरा सब कुछ लूट कर मेरी हथेली से सब कुछ छीन कर ,एक सिक्का मेरे हथेली पर रख दिया था ।मेरे मां-बाप मेरे कुनबे को खत्म करने के बाद ।उसने मुझे यहां किसी के रहमो करम पर छोड़ दिया था।

                                  *******

33
रचनाएँ
कत्ले गारत
0.0
बदले और खून से सनी खूनी सफर सफर का इतिहास है ।जिसे हम कत्ले गारत का नाम देकर यहां प्रस्तुत करना चाहते हैं।
1

कत्ले गारत 1

28 दिसम्बर 2022
2
0
0

यह उपन्यास काल्पनिक है ।जिसका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं ।या फिर किसी वास्तविक व्यक्ति या समुदाय को चोट पहुंचाने के लिए कतई लिखी गई नहीं है। &n

2

कत्ले गारत 2

28 दिसम्बर 2022
0
0
0

अब मैं अपने आप को सुरक्षित महसूस कर रहा था। हवा में ठंडक बढ़ चुकी थी। हवा इतनी ठंड थी। कि ठिठुरन सी हो रही थी ।मगर यह ठिठुरन भी उस कत्ले गारत से कई गुना अच्छी थी। मैं खौफ़ के साऐ से बहुत दू

3

कत्ले गारत 3

29 दिसम्बर 2022
0
0
0

आसमान की ओर मैंने नजरें उठाकर देखा। क्षितिज में मुझे कहीं लाली सी ऊभरती दिखी। ऐसा लग रहा था। कुछ देर में उजाला होने वाला ही था। इसीलिए भी वह छोटी सी नदी मुझे साफ सी नजर आ रही थी।मैं भागते -भागते आसमान

4

कत्ले गारत 4

29 दिसम्बर 2022
0
0
0

जब वह गांव वाला अपने हाथों में गिलास जैसा कुछ सामान लेकर आया था ।वह छोटा सा लौटा था ।और उसने बैटते ही पूछा -क्या तुम लाओ पानी खाओगे?मैं समझ गया था लाव पानी एक तरह की शराब होती है। जो चावल से बनती है ।

5

कत्ले गारत 5

30 दिसम्बर 2022
0
0
0

मैंने अपने घोड़े का रकाब निकाल कर, उसे चरने के लिए छोड़ दिया था। और पीठ थपथपाता हुआ मैंने उससे बोला -जब तक मैं सो लेता हूं !तू चरके जल्दी ही यहीं पर आ जाना ।समझ गया। घोड़े ने सर हिलाया जैसे कि उसने सा

6

कत्ले गारत 6

30 दिसम्बर 2022
0
0
0

घर पर कई काम हो सकते थे। जानवर पाल रखे हो तो जानवर के लिए ।चराना चलाना आदि काम रखरखाव का काम हो सकता था। गाय भैंस हो तो इसको रखरखाव के लिए उससे दूध दुहने के लिए, उसको पानी सानी करने के लिए

7

कत्ले गारत 7

31 दिसम्बर 2022
0
0
0

टेंडर किसी व्यापारी के नाम पर छूट चुका था। व्यापारी क्या वह अपने आप को बहुत बड़ा इंडस्ट्रियलिस्ट समझता था। वह चाहता था। किसी तरह भी इस गांव को खाली कर दिया जाए ।क्योंकि ,उस गांव से ही होकर वह रास्ता प

8

कत्ले गारत 8

31 दिसम्बर 2022
0
0
0

गांव के लोगों की खासियत होती है- वह जो थोड़े में संतुष्ट हो जाते हैं। वह नहीं सोचते कि वह कार पर चले। वे यह नहीं सोचते कि बहुत बड़ा बंगला बने, वे नहीं सोचते कि बहुत बड़ी कोठी हो ।बस दो वक्त की रोटी बी

9

कत्ले गारत 9

1 जनवरी 2023
0
0
0

शायद कुछ साल यूं ही गुजर ग्ए थे। इस घर ने इस गांव में मुझे अपनापन और प्यार मोहब्बत मिला था। इस बात को लेकर मुझे किसी से शिकायत नहीं है। इस बात को लेकर मुझे किसी से शिकायत नहीं है।इन्होंने मुझे इतना मो

10

कत्ले गारत 10

1 जनवरी 2023
0
0
0

मैंने पढ़ाई अपने कबीले की स्कूल में थोड़ी बहुत की थी ।जिसे पढ़ाई कह नहीं सकते थे।इस गांव में आने के बाद ,मैंने गांव में छोटे-छोटे बच्चों को जितना आता था। पढ़ाने की कोशिश की थी।हिंदी इंग्लिश की अक

11

कत्ले गारत 11

2 जनवरी 2023
0
1
0

मेरी जिंदगी में सिर्फ एक ही लक्ष्य बचा हुआ था। और वो लक्ष्य था किसी तरह भी उन खूनियों का खात्मा करना। क्योंकि मुझे पता था। कि यह सारा सरकारी नुमाइंदों की मिलीभगत में हुई थी। इसलिए कानून का सहारा लेना

12

कत्ले गारत 12

2 जनवरी 2023
0
0
0

अब बापी भी बड़ी हो चुकी थी। 10:11 साल की हो चुकी थी। दीदी के गोद में दूसरा एक बच्चा भी आ चुका था। उसकी भी उम्र अभी 4 साल की हो चुकी थी। मैं अग्निपुत्र- इस परिवार का एक अभिन्न अंग बन चुका था ।परिवार का

13

कत्ले गारत 13

3 जनवरी 2023
0
0
0

यह वक्त नहीं था। कि मैं पंडित जी के साथ जाउं। गांव पहुंच कर खोजबीन करूं! जहां गांव के बारे में गांव की आबादी के बारे में नोटेड होता है ।क्योंकि ,अभी हम पुष्पलता के इलाज के लिए आए हुए थे। और जरूरी था,

14

कत्ले गारत 14

3 जनवरी 2023
0
0
0

आज शहर में आए हुए तीसरा दिन था। पुष्प लता लगभग ठीक हो गई थी। मेरे इकरारेईश्क के बाद उसका बुखार धीरे-धीरे कमता चला गया था। या यूं कहें कि दोनों की एकरार के बाद बुखार लगभग उसी, समय कम हो गया था।मु

15

कत्ले गारत 15

4 जनवरी 2023
0
0
0

पुष्पा को समझ आ चुका था। जिंदगी के बारे में। पुष्पा को इस बात की समझ आ गई थी। जो जिंदगी में जीने के लिए पैसे की भी जरूरत होगी। जो मैं शहर जाकर ही कमा सकता था। गांव में रहकर तो हम सिर्फ खा पी सकते थे।

16

कत्ले गारत 16

4 जनवरी 2023
0
0
0

मैं जिस रास्ते से इस गांव में आया था। उसी रास्ते से ही मुझे लौटना था। इतने सालों के बाद भी मैं वो रास्ता कभी भूल नहीं पाया था। वह नदी पार करना ,नदी पार करके फिर इस गांव में आना ,जब मैं कभी भूला नहीं प

17

कत्ले गारत 17

6 जनवरी 2023
0
0
0

वे चार लोग थे ।और मैं उनके बीच में एक अकेला लेटा हुआ था। और मेरी नींद को देखते हुए उन लोगों ने जागाने के लिए एक ने मुझे छू करा आवाज लगाया था।उनकी आवाजों से मेरी आंखें खुल गई थी। मैंने नजर इधर-उधर घुमा

18

कत्ले गारत 18

7 जनवरी 2023
0
0
0

मुझे पता था ।मेरा रास्ता आसान नहीं था। मुझे यह भी पता था। जिन चार लोगों पर मैंने हमला किया था। वह लोग यकीनन कोई न कोई मेरे पीछे आने वाले थे। उन के मुताबिक वह सिर्फ चार नहीं थे ।पूरा कुनबा था। उन

19

कत्ले गारत 19

8 जनवरी 2023
0
0
0

बीच में आए इन सब लोगों से मैं खुद को बचाना चाहता था।। मेरा मकसद अपने गांव तक पहुंचना था। यह देखना था ,उस कत्ले गारत में कोई बचा तो नहीं ।या यह जानना था -कि कत्ले गारत के बाद वहां इंडस्ट्री बसा है

20

कत्ले गारत 20

8 जनवरी 2023
0
0
0

मुझे बहुत आगे निकलना था। वक्त बहुत जाया हो चुका था।मैंने आसमान की ओर देखा। सूरज क्षितिज पे कहीं छुपने की तैयारी कर रहा था। मुझे अपने गांव आगे बढ़ना था। और रात के रुकने की व्यवस्था भी करना था। मेरा घोड

21

कत्ले गारत 21

10 जनवरी 2023
0
0
0

मकान के बाहर सारागांव जमा हो गया था। सारा गांव ही एक कुनबा था। गांव के लोग में एकता थी एक स्वर बद्धता थी ।जो वहां जमा होने पर दिखती थी।गांव के बड़े बुजुर्ग की आंखों में आंसू थे। बच्चे भूल से गए थे। उस

22

कत्ले गारत 22

11 जनवरी 2023
0
0
0

उन के अंदर की ज्वाला को मैंने भड़काने की कोशिश की। उनके अंदर की ज्वाला शायद शांत हो चुकी थी ।या कुछ न कर पाने की वजह से वह चुपचाप हो गए थे।शायद वह नहीं चाहते थे ,कि जो बचे खुचे हैं, उनको कोई नुकसान पह

23

कत्ले गारत 23

13 जनवरी 2023
0
0
0

मुझे अब भटकने की जरूरत नहीं थी। गांव वालों को पता था । वह पुराना गांव हमारा कहां पर है.. किस रास्ते से वहां पर जा सकते हैं!मैं अकेला ही उस ओर जाने के लिए तैयार था। मैं सबसे पहले उस धरती का दर्शन चाहता

24

कत्ले गारत 24

14 जनवरी 2023
0
0
0

जब मेरी आंखें खुली, चट्टानों में बैठे-बैठे मुझे नशा सा छा गया था। जिसकी वजह से मैं वहीं पर लुढ़क गया था। करीब चार-पांच घंटे यूं ही मैं बेहोश सा पड़ा रहा। जब मेरे घोड़े ने मुझे

25

कात्ले गारत 25

17 जनवरी 2023
0
0
0

मैं पानी पीकर और हाथ मुंह धो कर अपने गांव की ओर मुड़ा। चारों तरफ बाउंड्री लगी हुई, बीच में कोई इंडस्ट्री बसी हुई थी। बाउंड्री पत्थरों से दीवार बनाई गई थी इस पार से उस पार देख पाना मुमकिन नहीं था

26

कत्ले गारत 26

18 जनवरी 2023
0
0
0

मैं अपने गांव में था। जो अभी फिलहाल इंडस्ट्री में तब्दील हो गई थी। और मेरे अपने लोग यहां कोई नहीं था। मेरा अपना मकान भी नहीं था।मैंने गांव की मिट्टी को अपनी मुट्ठी में लिया दिल से लगा लिया। सच म

27

कत्ले गारत 27

20 जनवरी 2023
0
0
0

कामदारों से मुझे सिर्फ इतना ही पता चल सका था, कि वह अरबों पति लोग थे ।उनके पास पहुंचना मुश्किल काम था। मैं साइबर में बैठकर,इन लोगों का रिहायश, ऑफिस पता लगाना चाहता था। यूं तो वे लोग यहां भी

28

कत्ले गारत 28

23 जनवरी 2023
0
0
0

मार्गरेटा से टोपला बस्ती, ज्यादा दूर नहीं था। करीब 20 किलोमीटर का रास्ता था । ऑन द रोड।अगर मैं अपने घोड़े पर ही टोपला बस्ती पहुंचता तो, लोग यही समझते ,कि कोई बैंड बाजा बारात वाला ही होगा। जो किस

29

कत्ले गारत 29

24 जनवरी 2023
0
0
0

अंधेरी रात थी। आसमान में तारे चमक रहे थे। मगर टोपला बस्ती का यह एरिया ,रोशनी से जगमग आ रहा था। ऐसा लगता था जैसे आसमान के सारे तारे जमीन पर उतर आए हो। और कोठियों में जगमगा रहे हो।जहां मैं ठहरा था , रिस

30

कत्ले गारत 30

25 जनवरी 2023
0
0
0

मौसम इतना ठंडा नहीं था। फिर भी मैं अपने घोड़े को खुले छत में नहीं रख सकता था। रात को रुकने के लिए उसे भी छत चाहिए थी । घास चाहिए था ।और खाने के लिए दाना भी चाहिए था ।पानी भी चाहिए था। उसकी फिकर मुझे अ

31

कत्ले गारत 31

29 जनवरी 2023
0
0
0

अभिषेक ने जो कार्ड दिया था। उसमें सिर्फ उसका नाम और फोन नंबर लिखा हुआ था।और कहा था ।दो दिन बाद कॉल कर लेना। आज तीसरा दिन था। मैंने अभिषेक को कॉल किया था।अभिषेक निहायत ही शरीफ और ईमानदार शख्सियत था। और

32

कत्ले गारत 32

30 जनवरी 2023
0
0
0

मैंने ,अपने घोड़े को अस्तबल में ला के बांध दिया था। अस्तबल में घोड़े के लिए चारे की भी परेशानी नहीं थी।घोड़ा मवेशियों के साथ खुश रह सकता था। मैंने अपने कमरे की सफाई के लिए चाची को बोल दिया था। कमरा सा

33

कत्ले गारत 33

31 जनवरी 2023
0
0
0

कहते हैं - गुनाह कभी छुपता नहीं ।कभी न कभी गुनाह, नासूर बन के दिल को ,कचोटने लगती है।यह कुदरत का न्याय है। बदला लेने के लिए कुदरत ही तैयार करती है। मजलूम पर किया गया जुल्म कभी खाली नहीं जाता। उभ

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए