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कत्ले गारत 16

4 जनवरी 2023

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मैं जिस रास्ते से इस गांव में आया था। उसी रास्ते से ही मुझे लौटना था। इतने सालों के बाद भी मैं वो रास्ता कभी भूल नहीं पाया था। वह नदी पार करना ,नदी पार करके फिर इस गांव में आना ,जब मैं कभी भूला नहीं पाया था।

कई बार मैं ,नदी पार करके उस रास्ते तक, कहीं दूर तक निकलता । फिर मैं लौट आता था। और ऐसा मैं कई बार तक करता रहा था। जब भी मेरे आंखों के आगे वह घटना घुम जाती। मैं आए हुए रास्ते पर कहीं दूर तक निकल जाता।   फिर वापस लौट जाता।

आंखों में आंसू भरे हुए, दिल में ज्वालामुखी लिए हुए। उस जंगल ,पहाड़ ,पर्वत के उस पगडंडियों को मैं देखता रहता। फिर मन ही मन खुद को समझाता।  एक दिन मै ईस रास्ते पर जरूर लौटूंगा। 
उन इंसानियत के दुश्मन को नेस्तानाबूद जरुर करूंगा ।
मैं अपने आप में कूढ़ता रहा। सोचता रहा ।एक दिन जरूर मैं लौटूंगा। इस गांव को देखूंगा। कत्ले गारत के ,दारोमदार उन लोगों को मैं ढूंढ- ढूंढ कर ,एक-एक को मौत की नींद सुलाऊंगा। मैंने अपने आप से वादा किया था। और इस वादे को निभाना ही था। कुदरत का लिखा कोई टाल नहीं सकता।
वह गांव फिर से बस नहीं सकती थी। जो हुआ वह सुधर नहीं सकता था। मगर जिसने किया है। उसको सजा मैं जरूर दे सकता था।
जो उसने लिख छोड़ा है, उसे कोई मिटा नहीं सकता  था।

 नदी के इस पार तक गांव वाले, बच्चे, बूढ़े मुझे छोड़ने के लिए आ गए थे। नदी अभी भी छिचला ही था ।नदी में गहराई बडी नहीं थी। बारिश के मौसम में नदी में पानी भर जाता था। और नदी चौड़ी हो जाती थी। और उसमें गराई भी बढ़ जाती थी। मगर जैसे-जैसे बारिश का मौसम खत्म होने लगता। फिर नदी अपने पिछले रूप में आ जाती।
मैं नदी पार कर चुका था। मगर पुष्प लता वही खड़ी मुझे नज़रों से ओझल होते हुए देखती रही थी।
 ओझल होने से पहले मुझे देखती रही थी।पुष्प लता मुझे एक टक देखे जा रही थी।
 मैं उसकी आंखों को बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। मुझे डर था। कहीं उसकी आंखों को देख कर मैं लौट ना जाऊं ।इसलिए भी मैं उसकी आंखों से डरता था।
बिन बोले  आंखों से बहुत कुछ बोल जाती थी। और उसकी आंखों का बोलना ।उसके आंखों का सामना करना मेरे लिए बहुत मुश्किल काम था। उसकी आंखों का सामना मैं कर नहीं सकता था। उसकी आंखों के डर से उसकी आंखों में जो बात थी ,उसके डर से ,मैं उससे आंखें मिला नहीं पा रहा था। कहीं मैं अपने मकसद से भटक न जाऊं!
मगर ,वह मेरा प्यार थी। वो मेरी जिंदगी थी। उससे बचकर मै कैसे निकल जाता। नदी के पार पहुंच कर मैंने घोड़े पर ऐड़ लगाए। घोड़े पर सवार हुआ। फिर मैंने पीछे मुड़ कर देखा। सारे गांव वाले धीरे-धीरे लौट रहे थे। मगर पुष्प लता वही खड़ी देख रही थी। मैंने पीछे मुड़कर जब देखा तो उसने मुझे हाथ हिलाया। जैसे कह रही हो, जल्दी लौट के आना। मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी।
मैंने भी हाथ हिला दिया। जैसे कह रहा हूं- फिर चिंता मत करो; मैं लौट कर जरूर आऊंगा! तुम्हारे पास मेरा इंतजार करना।
मुझे लगता हमारा यह प्यार पल भर का नहीं था ।जन्म जन्मांतर का था।

जैसे मेरा घोड़ा भी बिछड़ने के लिए तैयार नहीं था।  मैंने घोड़े के गले को थपथपा ।बोला- चल मेरे दोस्त ,चल अब पुराने गांव की ओर ले चल। जहां पर हमारा बचपन हंसा, बोला ,खेला।
मेरा घोडा पश्चिम की ओर सरपट दौड़ लगाने लगा। मेरा घोड़ा पीछे देखे  बगैर आगे देखकर भागने लगा। उसे पता था। पुराने गांव पहुंचने के लिए पूरा दिन लगना है।
शायद मेरे  घोडे  को भी याद था।वह हादसे वाली रात। शायद उसकी आंखों मे भी यह जलजला घूम रहा हो।
उसने  मुझे  अपनी जान लगाकर बचाया था। अगर वह इतनी सरपट नहीं भागता, तो शायद कुछ लोग मेरे पीछे आए थे ।पिछे पिछे न छूट जाते ।और वह मुझे भी जान से मार  सकते थे। मेरे पीछे भागते हुए लोगों की मंशा तो यही थी।
करीब चार-पांच घंटे लगातार चलने के बाद भी हम शायद आधे रास्ते तय कर पाए थे। मैंने देखा सूरज आसमान से  नीचे की ओर ढल रहा था। उसका मतलब था दोपहर से अब शाम होने वाली थी।
 मुझे बहुत जोर से भूख लगने लगी थी। मैंने घोड़े को कहा कि ऐसी जगह चल जहां पर पीने कि पानी तो हो । फिर  तुम घास चर लेना मैं रोटी खा लूंगा।
घोड़े ने चलते हुए सिर हिलाया था। जैसे कहराहा हो!ठीक है! ठीक है!
घोड़ा चलते हुए आगे जब निकला तो उसने थोड़ी दूर दाई काट ले ली थी। मैं समझ गया था, कि उसे नमी की कोई खुशबू आ गई हो। या घास की तलब हो गई हो। जिस और वह निकला था। उस ओर पानी का छोटा सा चश्मा था।
पानी के चश्मे के पास पहुंच कर घोड़ा ठहर सा गया था। और सर हिला के हल्का सा  हिन हिना  ने लगा था।
मैं घोड़े को बोला- पानी तो पिला देगा, तो लेकिन बैठकर खाऊंगा कहा। फिर मैं बोला कोई बात नहीं। तू पहले पानी पीले।
मैं घोड़े से उतर गया था। मेरा घोडा पानी पीने लग गया था।
घोड़े ने मुझे सही जगह लाकर खड़ा कर दिया था। पास ही में एक पिपल का बड़ा सा पेड़ था। जिसके जड़ में कई पत्थर लगे हुए थे। और बैठने की अच्छी सी जगह थी।
कई देर तक चलते रहने की वजह से मेरे चेहरे में भी थकान आना  गई थी। मैं चश्मे से थोड़ा पानी पीता हुआ पिपल  के पेड़ के जड़ की और बढ़ा घोड़े को मैंने थपथपा कर बोला- देख ले ,घांस बहुत है तेरे लिए। रोटी खाना हो तो आ जाओ।
घोड़े को और ज्यादा कहने की जरूरत नहीं पड़ी ।वह घांस के पेड़ के पत्तों को चबाने लग चुका था ।मैं पेड़ के नीचे बैठकर पोटली खोल चुका था। और पराठे  निकाल कर खाने लग गया था।
पांच पराठे मैं खा चुका था। और बाकी के पराठे मैंने पोटली में बंद करने से पहले एक पराठा निकालकर घोड़े के मुंह पर डाल दिया था। मेरा घोड़ा पराठा चबा चबा  कर खाने लगा।  साथ में घांस भी चरे जा रहा था।
पराठा खाने के बाद चुल्लू भर पानी मैंने चश्मे से निकालकर पी ली थी।
कुछ देर आराम करने के लिए मैं पत्थर में लेट गया था। और घोड़े पर नजारे गडाने की जगह मैंने आंखें  मूंद  ली थी। थोड़ी देर में ही मुझे झबकी आ गई थी। मैं नींद के आगोश में थोड़ी देर के लिए खो गया था।
चारों ओर अंधेरा छाया हुआ था। जंगल की वह रात थी। मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। मैंने महसूस किया, मेरे सामने,4 जंगली लोग आकर खड़े हो गए थे। सबके चेहरे में काले रंग से रंगा हुआ था। हथियार से लैस थे। उनके पास भाले और तलवार भी थे। इसका मतलब वे शिकार  ्के््क्के््के््क्क्के््क्के््के््क् खोज में निकले  हुए थे ।और मुझे सोते हुए देखकर उन्होंने मुझे  को चारों ओर से घेर लिया था।
उनकी भाषा  मुझे समझ नहीं आ रही थी। उनकी बातों में कुछ अचरज सा था।

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रचनाएँ
कत्ले गारत
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बदले और खून से सनी खूनी सफर सफर का इतिहास है ।जिसे हम कत्ले गारत का नाम देकर यहां प्रस्तुत करना चाहते हैं।
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यह उपन्यास काल्पनिक है ।जिसका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं ।या फिर किसी वास्तविक व्यक्ति या समुदाय को चोट पहुंचाने के लिए कतई लिखी गई नहीं है। &n

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गांव के लोगों की खासियत होती है- वह जो थोड़े में संतुष्ट हो जाते हैं। वह नहीं सोचते कि वह कार पर चले। वे यह नहीं सोचते कि बहुत बड़ा बंगला बने, वे नहीं सोचते कि बहुत बड़ी कोठी हो ।बस दो वक्त की रोटी बी

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1 जनवरी 2023
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शायद कुछ साल यूं ही गुजर ग्ए थे। इस घर ने इस गांव में मुझे अपनापन और प्यार मोहब्बत मिला था। इस बात को लेकर मुझे किसी से शिकायत नहीं है। इस बात को लेकर मुझे किसी से शिकायत नहीं है।इन्होंने मुझे इतना मो

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मैंने पढ़ाई अपने कबीले की स्कूल में थोड़ी बहुत की थी ।जिसे पढ़ाई कह नहीं सकते थे।इस गांव में आने के बाद ,मैंने गांव में छोटे-छोटे बच्चों को जितना आता था। पढ़ाने की कोशिश की थी।हिंदी इंग्लिश की अक

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2 जनवरी 2023
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मेरी जिंदगी में सिर्फ एक ही लक्ष्य बचा हुआ था। और वो लक्ष्य था किसी तरह भी उन खूनियों का खात्मा करना। क्योंकि मुझे पता था। कि यह सारा सरकारी नुमाइंदों की मिलीभगत में हुई थी। इसलिए कानून का सहारा लेना

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2 जनवरी 2023
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अब बापी भी बड़ी हो चुकी थी। 10:11 साल की हो चुकी थी। दीदी के गोद में दूसरा एक बच्चा भी आ चुका था। उसकी भी उम्र अभी 4 साल की हो चुकी थी। मैं अग्निपुत्र- इस परिवार का एक अभिन्न अंग बन चुका था ।परिवार का

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3 जनवरी 2023
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यह वक्त नहीं था। कि मैं पंडित जी के साथ जाउं। गांव पहुंच कर खोजबीन करूं! जहां गांव के बारे में गांव की आबादी के बारे में नोटेड होता है ।क्योंकि ,अभी हम पुष्पलता के इलाज के लिए आए हुए थे। और जरूरी था,

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आज शहर में आए हुए तीसरा दिन था। पुष्प लता लगभग ठीक हो गई थी। मेरे इकरारेईश्क के बाद उसका बुखार धीरे-धीरे कमता चला गया था। या यूं कहें कि दोनों की एकरार के बाद बुखार लगभग उसी, समय कम हो गया था।मु

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4 जनवरी 2023
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पुष्पा को समझ आ चुका था। जिंदगी के बारे में। पुष्पा को इस बात की समझ आ गई थी। जो जिंदगी में जीने के लिए पैसे की भी जरूरत होगी। जो मैं शहर जाकर ही कमा सकता था। गांव में रहकर तो हम सिर्फ खा पी सकते थे।

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6 जनवरी 2023
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वे चार लोग थे ।और मैं उनके बीच में एक अकेला लेटा हुआ था। और मेरी नींद को देखते हुए उन लोगों ने जागाने के लिए एक ने मुझे छू करा आवाज लगाया था।उनकी आवाजों से मेरी आंखें खुल गई थी। मैंने नजर इधर-उधर घुमा

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कत्ले गारत 18

7 जनवरी 2023
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मुझे पता था ।मेरा रास्ता आसान नहीं था। मुझे यह भी पता था। जिन चार लोगों पर मैंने हमला किया था। वह लोग यकीनन कोई न कोई मेरे पीछे आने वाले थे। उन के मुताबिक वह सिर्फ चार नहीं थे ।पूरा कुनबा था। उन

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कत्ले गारत 19

8 जनवरी 2023
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बीच में आए इन सब लोगों से मैं खुद को बचाना चाहता था।। मेरा मकसद अपने गांव तक पहुंचना था। यह देखना था ,उस कत्ले गारत में कोई बचा तो नहीं ।या यह जानना था -कि कत्ले गारत के बाद वहां इंडस्ट्री बसा है

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कत्ले गारत 20

8 जनवरी 2023
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मुझे बहुत आगे निकलना था। वक्त बहुत जाया हो चुका था।मैंने आसमान की ओर देखा। सूरज क्षितिज पे कहीं छुपने की तैयारी कर रहा था। मुझे अपने गांव आगे बढ़ना था। और रात के रुकने की व्यवस्था भी करना था। मेरा घोड

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कत्ले गारत 21

10 जनवरी 2023
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मकान के बाहर सारागांव जमा हो गया था। सारा गांव ही एक कुनबा था। गांव के लोग में एकता थी एक स्वर बद्धता थी ।जो वहां जमा होने पर दिखती थी।गांव के बड़े बुजुर्ग की आंखों में आंसू थे। बच्चे भूल से गए थे। उस

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कत्ले गारत 22

11 जनवरी 2023
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उन के अंदर की ज्वाला को मैंने भड़काने की कोशिश की। उनके अंदर की ज्वाला शायद शांत हो चुकी थी ।या कुछ न कर पाने की वजह से वह चुपचाप हो गए थे।शायद वह नहीं चाहते थे ,कि जो बचे खुचे हैं, उनको कोई नुकसान पह

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कत्ले गारत 23

13 जनवरी 2023
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मुझे अब भटकने की जरूरत नहीं थी। गांव वालों को पता था । वह पुराना गांव हमारा कहां पर है.. किस रास्ते से वहां पर जा सकते हैं!मैं अकेला ही उस ओर जाने के लिए तैयार था। मैं सबसे पहले उस धरती का दर्शन चाहता

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कत्ले गारत 24

14 जनवरी 2023
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जब मेरी आंखें खुली, चट्टानों में बैठे-बैठे मुझे नशा सा छा गया था। जिसकी वजह से मैं वहीं पर लुढ़क गया था। करीब चार-पांच घंटे यूं ही मैं बेहोश सा पड़ा रहा। जब मेरे घोड़े ने मुझे

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कात्ले गारत 25

17 जनवरी 2023
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मैं पानी पीकर और हाथ मुंह धो कर अपने गांव की ओर मुड़ा। चारों तरफ बाउंड्री लगी हुई, बीच में कोई इंडस्ट्री बसी हुई थी। बाउंड्री पत्थरों से दीवार बनाई गई थी इस पार से उस पार देख पाना मुमकिन नहीं था

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कत्ले गारत 26

18 जनवरी 2023
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मैं अपने गांव में था। जो अभी फिलहाल इंडस्ट्री में तब्दील हो गई थी। और मेरे अपने लोग यहां कोई नहीं था। मेरा अपना मकान भी नहीं था।मैंने गांव की मिट्टी को अपनी मुट्ठी में लिया दिल से लगा लिया। सच म

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20 जनवरी 2023
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कामदारों से मुझे सिर्फ इतना ही पता चल सका था, कि वह अरबों पति लोग थे ।उनके पास पहुंचना मुश्किल काम था। मैं साइबर में बैठकर,इन लोगों का रिहायश, ऑफिस पता लगाना चाहता था। यूं तो वे लोग यहां भी

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कत्ले गारत 28

23 जनवरी 2023
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मार्गरेटा से टोपला बस्ती, ज्यादा दूर नहीं था। करीब 20 किलोमीटर का रास्ता था । ऑन द रोड।अगर मैं अपने घोड़े पर ही टोपला बस्ती पहुंचता तो, लोग यही समझते ,कि कोई बैंड बाजा बारात वाला ही होगा। जो किस

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कत्ले गारत 29

24 जनवरी 2023
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अंधेरी रात थी। आसमान में तारे चमक रहे थे। मगर टोपला बस्ती का यह एरिया ,रोशनी से जगमग आ रहा था। ऐसा लगता था जैसे आसमान के सारे तारे जमीन पर उतर आए हो। और कोठियों में जगमगा रहे हो।जहां मैं ठहरा था , रिस

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कत्ले गारत 30

25 जनवरी 2023
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मौसम इतना ठंडा नहीं था। फिर भी मैं अपने घोड़े को खुले छत में नहीं रख सकता था। रात को रुकने के लिए उसे भी छत चाहिए थी । घास चाहिए था ।और खाने के लिए दाना भी चाहिए था ।पानी भी चाहिए था। उसकी फिकर मुझे अ

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कत्ले गारत 31

29 जनवरी 2023
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अभिषेक ने जो कार्ड दिया था। उसमें सिर्फ उसका नाम और फोन नंबर लिखा हुआ था।और कहा था ।दो दिन बाद कॉल कर लेना। आज तीसरा दिन था। मैंने अभिषेक को कॉल किया था।अभिषेक निहायत ही शरीफ और ईमानदार शख्सियत था। और

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कत्ले गारत 32

30 जनवरी 2023
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मैंने ,अपने घोड़े को अस्तबल में ला के बांध दिया था। अस्तबल में घोड़े के लिए चारे की भी परेशानी नहीं थी।घोड़ा मवेशियों के साथ खुश रह सकता था। मैंने अपने कमरे की सफाई के लिए चाची को बोल दिया था। कमरा सा

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कत्ले गारत 33

31 जनवरी 2023
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कहते हैं - गुनाह कभी छुपता नहीं ।कभी न कभी गुनाह, नासूर बन के दिल को ,कचोटने लगती है।यह कुदरत का न्याय है। बदला लेने के लिए कुदरत ही तैयार करती है। मजलूम पर किया गया जुल्म कभी खाली नहीं जाता। उभ

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