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कत्ले गारत 28

23 जनवरी 2023

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मार्गरेटा से टोपला बस्ती, ज्यादा दूर नहीं था। करीब 20 किलोमीटर का रास्ता था । ऑन द  रोड।
अगर मैं अपने घोड़े पर ही टोपला बस्ती पहुंचता तो, लोग यही समझते ,कि कोई बैंड बाजा बारात वाला ही होगा। जो किसी की शादी में घोड़ा ले आया है।
मैं इतना लंबा सफर अपने घोड़े पर ही कर रहा था। अपना गांव ढेकियाजुली से ,मामा का गांव, नौगांव ,नौगांव से फिर जागुन ,जागुन से मार्गरेटा, मार्गरेटा से पावै, पावै से डिगबोई  फिर टोपला  बस्ती इतना लम्बा सफर मैंने अपने घोड़े पर ही तय किया था।
 इसीलिए मुझे घोड़े का खाने-पीने का खूब ख्याल करना था। जो सिर्फ घोड़ा नहीं था। यह मेरा दोस्त था ।जो मेरे दुख सुख में काम आने वाला था।
क्योंकि, मार्गरेटा और डिगबोई के बीच में जो फासला था। उस फासले में कई घांस के मैदाने  थी। इसलिए मुझे अपने घोड़े की चिंता नहीं थी। पानी कहीं भी मिल सकता था। घोड़े के लिए।
मैं अगर मंथर गति से भी चलता, तो दो ढाई घंटे में डिगबोई , टोपला बस्ती पहुंच जाता। ऐसी छोटी- मोटी जानकारी मुझे लोगों से मिल जाया करते। फिर भी लोगों से पूछने के बाद ही मैंने टोपला बस्ती की ओर रूख किया था।
मुझे यूं भी रामेश्वर धनवार के पास पहुंचना ही था।
मंजिल में पहुंचने के बाद, शायद घास का मैदान मिले या ना मिले !इसीलिए मैंने उसे अपने घोड़े को घांस चरने  के लिए कह दिया था।
क्योंकि, मुझे पास में ही घांस का मैदान और मेरे बैठने के लिए चबूतरा सा दिख गया था। फिर मैंने अपने बैग से हथियार निकाल कर, कुछ  पेड़ों के डालो को काटकर , मैंने अपने घोड़े के आगे रख दिया था। जिसके पत्ते मेरा घोड़ा खुशी से खा भी रहा था।
मैंने घोड़े का गर्दन सहलाते हुए कहा था ।पेट भर के खा ले। आगे शायद मिले या ना मिले। पानी के लिए आगे देखते हैं।
थोड़ी देर  इंतजार के बाद, हम वहां से चल पड़े थे ।घोड़ा  घांस चबाकर खुश था। और कोई तेजी नहीं हम धीरे-धीरे चाल पर डिगबोई  टोपला बस्ती की ओर चलने लगे।
चलते हुए हम पावई से पार कर चुके थे ।पावई एक छोटा सा स्टेशन था ।जहां चाय बगाने ज्यादा थी। घांस के मैदान भी ज्यादा थे। वही बीच एक छोटी सी नाली मिल गई थी। देखने में मुझे साफ पानी सा लगा। मैंने घोड़े को वहीं पर पानी पिलाया ।घोड़ा पानी पी पीकर फूर्रफुर्र पानी मेरी ओर मारने लगा ।इसका मतलब था उसका पेट पानी से भर गया था।
रास्ते पर लगी हुई माइलस्टोन पर मैंने देखा डिगबोई 7 किलोमीटर लिखा हुआ था।और
 डिगबोई  में टोपला बस्ती ,कहीं आस पास में ही होगा।
लोगों के कहने पर मुझे यह जानकारी मिली थी। मै इस वक्त डिगबोई में एंट्री कर चुका था। स्टेशन रोड पर आते ही मुझे लगने लगा था। कि वह एक साफ सुथरा प्लांन्ड सिटी था।
लोगों का चहल पहल बढ़ गया था। इस वक्त करीब सुबह के 10:00 बज रहे होंगे।
मौसम सुहाना था ।क्योंकि मौसम के मुताबिक न ठंडी का मौसम था। न गर्मी का मौसम। बीच का मौसम था।
 साफ-सुथरा इंडस्ट्रियल प्लेस , देखने में ही पता चलता था। यह कंपनी के द्वारा बसाए गए कई क्वार्टर दिख रहे थे। लेकिन एक ही साइज के, एक ही तरह के।
मुझे पूछने पर पता चला कि मुझे सीधे आगे बढ़ना था। फिर कोई चौराह आ जाए तो वहां से मुझे पूछना था, कि टोपला बस्ती कहां पर है। लेकिन मुझे इस वक्त सीधे रामेश्वर धनवार के पास नहीं पहुंचना था। बल्कि उसके आसपास कहीं अपना रहने का ठिकाना ढूंढना था ।
मैंने आगे बढ़ते हुए कई बड़े-बड़े हर्डिग देखें थे।  जिस पर रामेश्वर धनवार के बड़े-बड़े चित्र हाथ जोड़े हुए खड़े मुस्कुराते हुए दिखाई दिए थे।
इसका मतलब यह था, कि यहां पर रामेश्वर धनवार एक जाना माना परिचित चेहरा था। सभी का चहेता था।
मुझे रामेश्वर धनवार के बारे में संपूर्ण जानकारी हासिल करनी थी ।फिर उसके विरुद्ध में कदम उठाना था।
मुझे पता चला रामेश्वर धनवार इसी इलाके से दो बार एमएलए के पद में जित चुका था। फिर इसी एरिया से ही वह एमपी के लिए खड़ा हुआ था। और उसने एमपी की सीट भी हासिल कर ली थी।
पिछले कई सालों से वह इंडस्ट्रियल मिनिस्ट्री पर था। जब कत्ले गारत  हुई थी  नौगांव में तब रामेश्वर  मिनिस्टर ऑफ इंडस्ट्री पर तैनात था।

मैं  उन लोगों के खून का प्यासा था। जिन्होंने हमें तबाह किया था। हमारे पूरे गांव को तहस-नहस किया था ।मैं कोई कातिल नहीं था। मैं वे फुजुल में किसी बेगुनाह को खत्म करना नहीं चाहता था। ना ही किसी बेगुनाह  के खून से अपने हाथों को रंगना चाहता था।
 सेंट्रल डिगबोई एरिया से जैसे आगे बढ़ा ,तो किसी को पूछ लिया था ।कि  टोपला बस्ती किधर है ?
अभी दोपहर का करीब 12:30 रहे होंगे। पूरा का पूरा दिन मेरे पास था। लेकिन, मैं चाहता था। कि मैं अपने घोड़े को कहीं पर रखूं। उसके बाद ही पैदल हो या किसी और सवारी से रामेश्वर धनवार के कोठी का चक्कर लगाना चाहता था।
टोपला बस्ती में मुझे रहने के लिए लॉज मिल गई थी ।और खास बात तो यह कि रिसोर्ट टाईप लाज  थी ।पीछे की ओर ,अपने घोड़े को रखने के लिए मुझे जगह मिल गई थी ।लेकिन उसकी घास और दाने पानी का व्यवस्था मुझे खुद करना था।
पास ही के दुकान से मैंने कुछ भुने हुए चने ,और मकई के दाने लाकर अपने घोड़े को परोस दिया था।  घोड़े के पीठ से जिन  उतार कर अपने कमरे में रख लिया था। की घोड़ा अपने आपको रिलैक्स महसूस करें। उसके पीठ पर जिन बाधते ही  आर्मी की तरह तैनात हो जाता था ।जैसे कोई फौजी अपने शरीर में ड्रेस डालते ही, ड़्यूटी के लिए तैयार हो जाता है। ऐसे ही मेरे घोड़े के पीठ में जिन बाधते ही, वह दौड़ने के लिए चलने के लिए तैयार हो जाता।
घोड़े का जिन उतारने का मतलब, घोड़ा  समझता था। कि अब उसको कुछ आराम करने को मिल जाएगा। मेरा घोड़ा मेरे प्रति बफादार था। तो मुझे भी उसके साथ ईमानदार होना जरुरी था ।उसके खाने पीने का ध्यान रखना जरुरी ।
आराम तो , मुझे भी करना था। लेकिन मेरे मन में तसल्ली नहीं थी। मुझे रामेश्वर धनवार की  कोठी और कोठी पर लगे सेकुरिटी  सिस्टम की जानकारी हासिल करना था।
                                        ***
उस वक्त मैं टोपला बस्ती के  ,चाय के ढाबे में चाय पी रहा था। यह चाय का ढाबा रामेश्वर धनवार के कोठी से कुछ ही दूरी पर थी। रामेश्वर धनवार की यह कोठी का जो एरिया था, वह कोठियों से ही भरा हुआ था। सरकारी बड़े -बड़े अफसरों के यहां कोठियां बनी हुई थी। तथा कई इंडस्ट्रियलिस्ट भी यहां पर रहते थे। मगर रामेश्वर धनवार की कोठी गेट से जैसे अंदर घुसते ही तीसरी कोठी थी।
 अंदर जाने के लिए गेट बनी हुई थी ।वहां पर गेटेड एंट्री करने के बाद ही कोई अंदर जा सकता था। सोसाइटी के चारो ओर बाउंडरी बनी हुई थी। और बाउंड्र के अंदर कोठियां-ही-कोठियां थी। और बाउंड्री के अंदर जाने के लिए बड़ा सा गेट बना हुआ था ।
 और गेट पर तीन गार्ड्स ससस्त्र मौजूद थे।
रामेश्वर धनवार रूलिंग सरकार के एक मंत्री पद पर आसीन था ।इसीलिए भी शायद यह कि चौकसी ज्यादा रखी जाती थी। और सारी कोठियों में, रामेश्वर धनवार की कोठी सबसे बड़ी कोठी थी ।और उसके गेट के बाहर ही दो गनमैन काले लिवास में ,कार्बाईन लिए खड़े रहते थे। और अंदर क्या व्यवस्था थी। यह जानने के लिए तो उन्ही गन मेन से किसी को पूछताछ करना जरूरी था। अगर किसी गार्ड से पूछताछ की जाती, तो फिर मैं शक के घेरे में आ जाता।
और जब रामेश्वर धनवार कहीं निकलता था। तब भी उसके आगे पीछे जेड गार्ड लगे रहते थे। काले लिबास में एक जीप में करीब चार गार्ड और पीछे करीब चार गार्ड चलते थे। इनके रहते रामेश्वर धनवार से बदला लेने की बात कोई भी सोच भी नहीं सकता था ।
और मेरे पास-
हथियार के नाम पर मेरे पास चाकू ,तलवार के अलावा कुछ नहीं था।  इनके पास  हथियार भी ऐसे थे , आग बरसाने वाली। एक ही गोली पर मेरा सारा मिशन धरा का धरा रह जाता। डायरेक्ट छुरी तलवार से, उस पर पर हमला कर ही नहीं सकते थे ।उसके पास भी मैं फटक भी नहीं सकता था।
फिर मैं रामेश्वर धनवार पर कैसे बार कर सकता था। वह भी इतने सारे गार्डो  के बीच में? मेरा टारगेट सिर्फ रामेश्वर धनवार ही नहीं था ।और भी लोग थे ।इसीलिए मुझे खुद को अंतिम वक्त तक बचाना था।
मगर ,कुदरत का एक करिश्मा ही था। कि  हर कदम मेरे साथ कुदरत दे रही थी।
उस लाज पर ठहरे हुए, आज मेरा दूसरा दिन था।
मैं रामेश्वर धनवार  के कोठी के पास बने   चाय की दुकान में पहुंच गया था।
मुझे चाय की लत नहीं थी।मगर ,जानकारी हासिल करने के लिए। मुझे दुकान अच्छा लगा। अक्सर आसपास की दुकान से, आसपड़ोस के  लोगों से ,ही किसी की जानकारी निकाली जा सकती है। इसीलिए मैं, चाय की दुकान में, चाय के बहाने चला गया था।
अक्शर मेरा कसा हुआ बदन देखकर ,लोग मुझ पर आकर्षित हो जाया करते थे। आज भी ऐसा ही हुआ था। मैं चाय पीने के लिए बैठा हुआ था। और चाय वाले को बोला कि एक डबल चाय बनाना।
चाय वाला चौका, मेरी ओर देखा, बोला -डबल चाय कैसे होता है बेटा?
मैं मुस्कुराता हुआ बोला- दो चाय बनाइए ,और एक ही बड़े कप में डाल कर दीजिए। बस हो गया डबल चाय।
चाय वाला भुन भुनाता हुआ बोला ।पहली बार देखा। एक ही बार में  दो चाय पीने वाला।
मैं बोला -गांव में तो हम लोटा भर के चाय पीते हैं चाचा!
गांव से आए हो? किस गांव के रहने वाले हो?
बहुत अंदर गांव से आए हूं  चाचा !जहां पर गाड़ियां भी नहीं चलती ।पैदल का रास्ता चलना पड़ता है । यहां  नौकरी की तलाश में आया हूं ।कोई छोटी-मोटी नौकरी मिल जाए?

पढ़ा लिखा कम हूं ।इसीलिए छोटी-मोटी नौकरी ही ढूंढ रहा हूं। और आपकी नजर में कोई नौकरी हो। दो वक्त की रोटी  कमाने के लिए तो बताइए?
यहां  कहां पर ठहरे हो ?उसने मुझसे पूछा।

मैं बोला -इधर पास ही एक छोटा-मोटा रिसॉर्ट है ।जहां पर ठहरा हुआ हूं। मगर होटल में कितने दिन तक रह सकता हूं । यहां तो मुझे रहने के लिए कोई किराए का मकान चाहिए। और फिर ऐसी नौकरी कि दो वक्त की रोटी कमा सकूं। या फिर ऐसी नौकरी जहां ,काम के साथ रहना खाना पीना सब कुछ मिल जाए।

ऐसा काम तो बस कोठियों में ही मिल सकता है ।जहां तुम्हें रहने का भी ठिकाना मिल जाएगा।

कोई भी काम कर लूंगा चाचा। मैं-मैं बोला।
चाय वाला बोला -चलो यहां पर लोग चाय पीने के लिए आते हैं ,कोठियों में काम करने वाले भी  । मैं उनसे बात कर लूंगा ।अगर तुम्हारी किस्मत साथ रही तो । किसी ना किसी कोठी में तुम्हें काम दिला दूंगा।
मैं बोला -ठीक है चाचा !बड़ी मेहरबानी होगी तुम्हारी! क्योंकि ,बिना नौकरी के ,मै यहां कितने दिन रह सकता हूं? अपने पैसे खर्च करके।
मैने चाय  के साथ दो बंद बिस्कुट भी ले लिए थे। क्योंकि यहां पर बिस्कुट ,मट्ठी ,समोसे के अलावा और कुछ नहीं मिलता था। आस- पास कोई दुकान नहीं थी।
मैं चाय के साथ बंद खाता रहा ।और पूछा  यहां  तो बहुत बड़ी -बड़ी कोठियां हैं। मेरे ख्याल से सरकारी अफसरों के कोठियां हैं सारे। मैंने आगे बात बढ़ाने के लिए यह बात छेड़ी थी।
चाय वाला चाय बनाता हुआ ,कोठी की ओर इशारा करता हुआ बोला -हां !सारी कोठिया है! एक और दूसरी और सड़क की दूसरी ओर कॉलोनी बसी हुई है ।और कुछ होटल भी है।
मैं बोला यहां पर  किसी नेता की भी कोठी है।

हां है ना -रामेश्वर धनवार! चाय वाला बोला।
मैं अनजान सा बनता हुआ बोला- नेताजी की कोई फैक्ट्री  भी लगा रखी है?
चाय वाला बोला - नौगांव में उनकी एक फैक्ट्री है। प्लेटिनम फैक्ट्री ।जिन पर उनकी हिस्सेदारी है, सबसे बड़ी हिस्सेदारी।
मैं अनजान बनता हुआ पूछा- नौगांव? यह कहां पड़ा!
बहुत दूर है जहां पर बसे जाती नहीं। सिर्फ अपनी गाड़ी पर जा सकते हैं ।इनकी प्लैटिनम फैक्ट्री जब से लगी है ।तब से इनकी तो चांदी ही चांदी कट रही है ।करोड़ों में कमा रहे हैं। लाखों में खर्च कर रहे हैं।
उसी फैक्ट्री में ही मुझे लगवा देते। मैं बोला।
 यहां से बहुत दूर है ,बेटा ।और मैं कहां से लगा दूं। मुझे तो सिर्फ जानकारी है ।कि उनके पास नौगांव में प्लेटिनम फैक्ट्री है। इसके अलावा मेरी कोई पहुंच नहीं है। यह कोठियों में काम करने वाले ,कुछ लोगों को मैं जानता हूं ।जिन से बात करके देखता हूं ।अगर  बात बन जाती है ।तो तुम्हें कोठियों में सेट कर दूंगा।

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रचनाएँ
कत्ले गारत
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बदले और खून से सनी खूनी सफर सफर का इतिहास है ।जिसे हम कत्ले गारत का नाम देकर यहां प्रस्तुत करना चाहते हैं।
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टेंडर किसी व्यापारी के नाम पर छूट चुका था। व्यापारी क्या वह अपने आप को बहुत बड़ा इंडस्ट्रियलिस्ट समझता था। वह चाहता था। किसी तरह भी इस गांव को खाली कर दिया जाए ।क्योंकि ,उस गांव से ही होकर वह रास्ता प

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गांव के लोगों की खासियत होती है- वह जो थोड़े में संतुष्ट हो जाते हैं। वह नहीं सोचते कि वह कार पर चले। वे यह नहीं सोचते कि बहुत बड़ा बंगला बने, वे नहीं सोचते कि बहुत बड़ी कोठी हो ।बस दो वक्त की रोटी बी

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मेरी जिंदगी में सिर्फ एक ही लक्ष्य बचा हुआ था। और वो लक्ष्य था किसी तरह भी उन खूनियों का खात्मा करना। क्योंकि मुझे पता था। कि यह सारा सरकारी नुमाइंदों की मिलीभगत में हुई थी। इसलिए कानून का सहारा लेना

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अब बापी भी बड़ी हो चुकी थी। 10:11 साल की हो चुकी थी। दीदी के गोद में दूसरा एक बच्चा भी आ चुका था। उसकी भी उम्र अभी 4 साल की हो चुकी थी। मैं अग्निपुत्र- इस परिवार का एक अभिन्न अंग बन चुका था ।परिवार का

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यह वक्त नहीं था। कि मैं पंडित जी के साथ जाउं। गांव पहुंच कर खोजबीन करूं! जहां गांव के बारे में गांव की आबादी के बारे में नोटेड होता है ।क्योंकि ,अभी हम पुष्पलता के इलाज के लिए आए हुए थे। और जरूरी था,

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पुष्पा को समझ आ चुका था। जिंदगी के बारे में। पुष्पा को इस बात की समझ आ गई थी। जो जिंदगी में जीने के लिए पैसे की भी जरूरत होगी। जो मैं शहर जाकर ही कमा सकता था। गांव में रहकर तो हम सिर्फ खा पी सकते थे।

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मैं जिस रास्ते से इस गांव में आया था। उसी रास्ते से ही मुझे लौटना था। इतने सालों के बाद भी मैं वो रास्ता कभी भूल नहीं पाया था। वह नदी पार करना ,नदी पार करके फिर इस गांव में आना ,जब मैं कभी भूला नहीं प

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वे चार लोग थे ।और मैं उनके बीच में एक अकेला लेटा हुआ था। और मेरी नींद को देखते हुए उन लोगों ने जागाने के लिए एक ने मुझे छू करा आवाज लगाया था।उनकी आवाजों से मेरी आंखें खुल गई थी। मैंने नजर इधर-उधर घुमा

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मुझे पता था ।मेरा रास्ता आसान नहीं था। मुझे यह भी पता था। जिन चार लोगों पर मैंने हमला किया था। वह लोग यकीनन कोई न कोई मेरे पीछे आने वाले थे। उन के मुताबिक वह सिर्फ चार नहीं थे ।पूरा कुनबा था। उन

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बीच में आए इन सब लोगों से मैं खुद को बचाना चाहता था।। मेरा मकसद अपने गांव तक पहुंचना था। यह देखना था ,उस कत्ले गारत में कोई बचा तो नहीं ।या यह जानना था -कि कत्ले गारत के बाद वहां इंडस्ट्री बसा है

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मुझे बहुत आगे निकलना था। वक्त बहुत जाया हो चुका था।मैंने आसमान की ओर देखा। सूरज क्षितिज पे कहीं छुपने की तैयारी कर रहा था। मुझे अपने गांव आगे बढ़ना था। और रात के रुकने की व्यवस्था भी करना था। मेरा घोड

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मकान के बाहर सारागांव जमा हो गया था। सारा गांव ही एक कुनबा था। गांव के लोग में एकता थी एक स्वर बद्धता थी ।जो वहां जमा होने पर दिखती थी।गांव के बड़े बुजुर्ग की आंखों में आंसू थे। बच्चे भूल से गए थे। उस

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उन के अंदर की ज्वाला को मैंने भड़काने की कोशिश की। उनके अंदर की ज्वाला शायद शांत हो चुकी थी ।या कुछ न कर पाने की वजह से वह चुपचाप हो गए थे।शायद वह नहीं चाहते थे ,कि जो बचे खुचे हैं, उनको कोई नुकसान पह

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मुझे अब भटकने की जरूरत नहीं थी। गांव वालों को पता था । वह पुराना गांव हमारा कहां पर है.. किस रास्ते से वहां पर जा सकते हैं!मैं अकेला ही उस ओर जाने के लिए तैयार था। मैं सबसे पहले उस धरती का दर्शन चाहता

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जब मेरी आंखें खुली, चट्टानों में बैठे-बैठे मुझे नशा सा छा गया था। जिसकी वजह से मैं वहीं पर लुढ़क गया था। करीब चार-पांच घंटे यूं ही मैं बेहोश सा पड़ा रहा। जब मेरे घोड़े ने मुझे

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मैं पानी पीकर और हाथ मुंह धो कर अपने गांव की ओर मुड़ा। चारों तरफ बाउंड्री लगी हुई, बीच में कोई इंडस्ट्री बसी हुई थी। बाउंड्री पत्थरों से दीवार बनाई गई थी इस पार से उस पार देख पाना मुमकिन नहीं था

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कत्ले गारत 26

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मैं अपने गांव में था। जो अभी फिलहाल इंडस्ट्री में तब्दील हो गई थी। और मेरे अपने लोग यहां कोई नहीं था। मेरा अपना मकान भी नहीं था।मैंने गांव की मिट्टी को अपनी मुट्ठी में लिया दिल से लगा लिया। सच म

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कामदारों से मुझे सिर्फ इतना ही पता चल सका था, कि वह अरबों पति लोग थे ।उनके पास पहुंचना मुश्किल काम था। मैं साइबर में बैठकर,इन लोगों का रिहायश, ऑफिस पता लगाना चाहता था। यूं तो वे लोग यहां भी

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मौसम इतना ठंडा नहीं था। फिर भी मैं अपने घोड़े को खुले छत में नहीं रख सकता था। रात को रुकने के लिए उसे भी छत चाहिए थी । घास चाहिए था ।और खाने के लिए दाना भी चाहिए था ।पानी भी चाहिए था। उसकी फिकर मुझे अ

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29 जनवरी 2023
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अभिषेक ने जो कार्ड दिया था। उसमें सिर्फ उसका नाम और फोन नंबर लिखा हुआ था।और कहा था ।दो दिन बाद कॉल कर लेना। आज तीसरा दिन था। मैंने अभिषेक को कॉल किया था।अभिषेक निहायत ही शरीफ और ईमानदार शख्सियत था। और

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मैंने ,अपने घोड़े को अस्तबल में ला के बांध दिया था। अस्तबल में घोड़े के लिए चारे की भी परेशानी नहीं थी।घोड़ा मवेशियों के साथ खुश रह सकता था। मैंने अपने कमरे की सफाई के लिए चाची को बोल दिया था। कमरा सा

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कहते हैं - गुनाह कभी छुपता नहीं ।कभी न कभी गुनाह, नासूर बन के दिल को ,कचोटने लगती है।यह कुदरत का न्याय है। बदला लेने के लिए कुदरत ही तैयार करती है। मजलूम पर किया गया जुल्म कभी खाली नहीं जाता। उभ

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