कामदारों से मुझे सिर्फ इतना ही पता चल सका था, कि वह अरबों पति लोग थे ।उनके पास पहुंचना मुश्किल काम था।
मैं साइबर में बैठकर,इन लोगों का रिहायश, ऑफिस पता लगाना चाहता था। यूं तो वे लोग यहां भी आते होंगे ।फैक्ट्री के अंदर भी कोई न कोई ऑफिस होगा। वहां पर उनसे मुलाकात हो सकती थी।
मगर ,मुझे सिर्फ मुलाकात नहीं करनी थी। मुझे तो इनको खत्म करना था ।इसलिए इनका रिहाइश पता करना जरूरी था।
पहले तो मुझे यह पता करना था ।की फैक्ट्री का मालिक कौन है ?और हिस्सेदार कितने हैं? फिर इस कत्ले गारत में कौन-कौन सामिल था।
अगर मैं किसी से मालिकान के बारे में खोद खोद पूछने लग जाऊंगा, घटना चक्र के बाद अगर कोई इन्वेस्टिगेशन, कानूनी कारवाई होगी तो, मेरे बारे में पता चल सकता है।
मुझे खौफ नहीं था ।कि मैं पकड़ा जाऊंगा। मुझे इस बात का मलाल हो सकता था। कि काम खत्म होने से पहले अगर मैं पकड़ा गया ,
तो मेरा मिशन अधूरा रह जाएगा।
इस वक्त मेरे पास कोई मोबाइल नहीं था। इंटरनेट पर कोई भी चीज तलाश करने के लिए मुझे या तो साइबर में जाकर बैठना था ।या फिर किसी को बोलकर पता करवाना था। आज के जमाने में ,हर किसी के पास मोबाइल था ।मेरे पास नहीं था। और मैं अपने आप को मोबाइल से कनेक्ट करना चाहता भी नहीं था ।कोई भी मुझे ,मोबाइल के जरिए मेरे लोकेशन के जरिए ,मुझे ढूंढ पाए ऐसा मैं नहीं चाहता था।
मुझे हर कदम फूंक-फूंक कर चलना था।
अब उन लोगों का कम डाउन शुरू हो गया था। क्योंकि मैं अब नौगांव में था। और उनकी तलाश में था।
इंसानी जिंदगी पाने के बाद, इंसान को चाहिए की जैसी जिंदगी ,जैसा सम्मान वह अपने लिए चाहता है। वैसा ही दूसरे के साथ भी करें। वरना जितनी जोर से जितनी ताकत लगा कर तुम पत्थर आसमान में उछालोगे ,उतनी ही तेजी से नीचे भी आएगा। यह प्रकृति का नियम है। कुदरत का कानून।
साइबर से मुझे पता चला यह लोग शहर में रहते हैं। शाइन इंडिया लिमिटेड के मालिक का अपना रिहाइश मारर्गरेटा में है।
मार्गरेटा पूर्वांचल का एक शहर है ।जो जागुन फिर इधर डिगबोई और कई सारे चाय बागानों के बीच में है। यह शहर खूबसूरत सा शहर ।डिहिंग नदी किनारे बसा हुआ शहर। कई इंडस्ट्रियलिस्टों का रियास है। क्योंकि ,यह तहसील है ।यहां से सारे काम होते हैं।
तिनसुकिया डिस्ट्रिक्ट के बाद इसका ही नंबर आता है। क्योंकि, इधर बॉर्डर क्रॉस करने के बाद ,सामान फरोख्त के लिए व्यापारिक सेंटर है।
यह व्यापारिक सेंटर इसलिए भी है। कि पहाड़ों से लोग उतर कर यहां आते हैं। पहले तो जागुन में छोटी मोटी खरीदारी हो जाती थी। मगर यह तहसील , तिनसुकिया के बाद दूसरा व्यापारी स्थल है। जहां लोगो को थोक में या फिर खुदरे में भी सस्ते में सामान उपलब्ध हो जाती है।
"मार्गरेटा मक्कड़ कलोनी।"
यहां पर बड़ी-बड़ी कोठिया है। जब लोगों ने देखा कि ,पहाड़ों से लोग अक्सर यही पर आते हैं ।बिजनेस सेंटर यही बना हुआ है। तीनसुकिया ,तो बहुत बड़ा सेंटर है। लेकिन तिनसुकिया से भी ज्यादा महत्व पहाड़ों से उतरने वालों के लिए मार्गरेटा है। क्योंकि, मार्गरेटा और तिनसुकिया के बीच में ,करीब 50 -55 किलोमीटर का फासला है। लोग 50 55 किलोमीटर का फासला तय करने से बेहतर यही पर खरीदारी करना ही उचित समझते हैं। क्योंकि, उन्हें फिर पहाड़ों में चढ़ना भी होता है।
उन्हें रात होने से पहले पहाड़ों में फिर से वापस जाना होता है। इसीलिए भी वे यह 100 किलोमीटर का फेरा लगाने से अच्छा। यही मार्गरेटा में खरीदारी ही करना उचित समझते हैं। इसीलिए भी मार्गरेटा तिनसुकिया से ज्यादा महत्वपूर्ण व्यापारिक सेंटर बनता जा रहा है।
पहाड़ों के पास ,और ब्रह्मपुत्र नदी की सहायक नदी-डिहिग, पास में होने के कारण यहां की आबो हवा भी कुछ अच्छी रहती है। हवा में नमी कम रहती है। गर्मी का पता ही नहीं चलता। ठंडी का मौसम यहां जानलेवा होता है।
साइन इंडिया लिमिटेड के ,मालिक के खोज में मुझे मार्गरेटा पहुंचना था। मार्गरेटा यहां से लंबी दूरी तय करके जाना था। कुछ तो मुझे अपने घोड़े पर विश्वास था। मगर मार्गरेटा जैसे शहर में मैं अपने घोड़े को लेकर घूम नहीं सकता था। मार्गरेटा पहुंचने के लिए, पहले मुझे जागुन पहुंचना था।
जागुन से मुझे फिर सवारी लेकर मार्गरेटा पहुंचना था।
जागुन जंगलों का सिलसिला खत्म होने के बाद ।पहाड़ों की तलहटी में बसा हुआ शहर था। पहाड़ों से उतरने के बाद सबसे पहले शहर जागुन पर ही हम उतरते थे। जागुनसे हमें सभी जगह के लिए सवारिया मिल जाती थी।
मैं सोच रहा था ।क्या मुझे मालिकान से मुलाकात के लिए जागुन फिर मार्गरेटा पहुंचना चाहिए? या फिर मुझे यही नौगांव पर रहकर उनका इंतजार करना चाहिए।
मार्गरेटा में प्लेटिनम इंडस्ट्री के मालिक के रिहाइश को ढूंढना कोई मुश्किल काम नहीं था। क्योंकि मार्गरेटा में ऐसे रहीस गिनती के रहे होंगे।
ऐसे शहरों में -करोड़पति यों को ढूंढने के लिए वह भी प्लेटिनम इंडस्ट्री के मालिक जैसे अरबों पति को ढूंढने के लिए, मुझे ज्यादा जद्दोजहद करने की जरूरत नहीं थी।
मगर ,मुझे उस तक पहुंचने के लिए जरिया चाहिए था।
मैं कोई ऐसा काम नहीं करना चाहता था ।जो मेरा बार खाली चला जाए। मैं तो बस उन लोगों के लिए कहर बनकर टूटना चाहता था। और उन्हें मौत के घाट उतार कर ही सांस लेना चाहता था।
बहुत लंबा सफर तय करके मैं नौगांव आया था। नौगांव से फिर मुझे लंबा सफर तय करके जागुन पहुंचना था ।
लेकिन आजकल मुश्किलात कम थी। जब से यहां पर प्लेटिनम इंडस्ट्री बसी हुई थी ।तब से बाय रोड आराम से आया जाया जा सकता था। पहाड़ों में नदी नालों में भटकने की जरूरत नहीं थी। मगर मेरे पास अभी एक समस्या थी।
वह समस्या थी मेरा अपना घोड़ा! मैं अपने दोस्त घोड़े को कहां छोड़ सकता था ?कि मैं फिर वापस आने पर उसे पा सकूं! या फिर मैं अपने घोड़े के साथ ही बाय रोड आ सकता था। इसमें शायद वक्त ज्यादा लग सकता था। या फिर मैं नौगांव से जंगल और पठार के रास्ते अगर मैं जागुन की ओर उतरता । शायद वह मेरे लिए शॉर्टकट होता।
इससे मुझे एक फायदा होता !कि मेरा किराया बच जाता; दूसरा मैं अपने दोस्त घोड़े को अपने साथ रख सकता था। मैं अपने को घोड़े बहुत प्यार करता था। वह भी शायद मेरे से बिछड़ने के बाद मुश्किल से ही रह पाता।
वह मासूम था। बेजुबान था ।मगर मैं उसकी फीलिंग समझता था। वह मेरी भी मुझे समझता था। कभी-कभी तो मुझे यूं लगता कि हम एक दूजे के लिए बने हुए हैं।
मैं चाहता था कि, मैं अपना काम खत्म करके फिर अपने घोड़े के साथ- ढेकियाजुली या फिर नौगांव लौट जाऊं, जहां मेरी कुसुमलता इंतजार कर रही थी। जिसके साथ जिंदगी गुजारने की मैंने कश्मे ले ली थी।
मेरा प्यार ;मेरी जिंदगी!
मगर मुझे सबसे पहले अपने जिंदगी के मक्शद को पूरे करना चाहिए, यह मुझे पता था।
मैंने अपने घोड़े के साथ ,जागुन जाने की सोच ली। जागुन के बाद मैं, गांव के रास्ते से हाईवे में आए वेगैर मार्गरेटा पहुंच सकता था।
और यही मैंने किया। घोड़े के साथ होने की वजह से, मैं लोगों की नजर में आ सकता था। लेकिन यह मेरी मजबूरी थी।
मैं घोड़े के साथ जागुन पार होता हुआ गांव के रास्ते मार्गरेटा पहुंच ही गया था।
मैंने यह भी चेक कर लिया था। कि शाइन इंडिया के मालिक कान के बारे में ।साइन इंडिया एक बड़ी कंपनी थी ।जिसके तीन मालिक थे। जिसमें एक एमपी भी था। रामेश्वर धनवार। जो उद्योग राज्यमंत्री था। दूसरा ठोस व्यापारी था। इंडस्ट्रियलिस्ट् था। मगर क्यों इस तरीके से गुंडागर्दी में उतर आया। गुंडागर्दी फिर पूरे के पूरे गांव को तहस-नहस करने की जुर्रत कैसे हुई थी जिसमें शायद कुछ पुलिस वाले भी होंगे ।कुछ और भी मिनिस्टर होंगे।
पता लगाना मेरे लिए जरूरी था ।पता लगाकर ही उनको उनकी किए की सजा देना था।
यह इतना आसान होने वाला नहीं था। इन्हें ढूंढना । फिर उनके पास पहुंचना। फिर इनको एक एक कर के मौत के घाट उतारना।
जब मैं नौगांव से भागा था। ना समझ था। अब समझ आ गई थी। मगर सामने कई तरह की समस्याएं खड़ी थी ।
मगर मुझे सारी समस्याओं को पार करके उनके पास पहुंचना ही था।
रामेश्वर धनवार जो इस गेम का टीम लीडर था। उसके पास पहुंचना इतना मुश्किल नहीं था ।क्योंकि, वह एक नेता था ।और नेता से मुलाकात आराम से की जा सकती थी ।उसकी सुरक्षा व्यवस्था का पता आराम से किया जा सकता था ।
रामेश्वर धनवार, मिनिस्ट्री आफ इंडस्ट्री जिसके हाथ में था ।उसने ही इस बात का उन्हें इजाजत दी होगी, कि वहां पर इंडस्ट्री लगाएं। जबकि यह पता होते हुए, भी वहां पर एक अच्छा खासा गांव बसा हुआ है ।अच्छे खासे लोग बसे हुए हैं। बच्चे होंगे, बूढ़े होंगे ,इंसानों के इंसानियत होगी ।सबको तहस-नहस करने की शायद इजाजत दी थी।
उसके गर्दन पर अगर खंजर रखूंगा। तो वह सारा उगल देगा ।मेरा सबसे पहला टारगेट रामेश्वर ही था।
रामेश्वर धनवार यहां से 16 किलोमीटर आगे टोपला बस्ती मे उसकी कोठी थी। वहीं पर उसकी रिहायश थी ।
अक्सर उससे मुलाकात वहीं पर हो सकती थी। उझसे मुलाकात करने के लिए कई लोग आते-जाते रहते थे। रामेश्वर धनवार लोगों के नजरों में चढ़ा हुआ था ।
एक निहायत ही ईमानदार ,बहुत ही वफादार बहुत, ही पब्लिक केयरिंग मिनिस्टर के रूप में लोग उसे जानते थे ।उसके पास कई लोग अपनी समस्याओं को लेकर पहुंचते थे।
और जनता की समस्याओं का हल भी चुटकियों में कर देता था। लोग उसके कायल थे।
मगर पैसे की लालच ,दौलत का नशा, इंसान को हैवानियत के कगार पर लाकर खड़ा कर देता है ।इंसान को दौलत के अलावा कुछ नहीं दिखता ।इंसानियत उनके लिए पैर की जूती के बराबर होती है।
रामेश्वर धनवार आदिवासियों में था। जिसकी घुसपैठ आदिवासियों में भी ज्यादा थी । वह मिनिस्ट्री आफ इंडस्ट्री संभालता था। कहीं भी इंडस्ट्री लगाने के लिए, इंडस्ट्री के पोलूशन फ्री सर्टिफिकेशन, इंडस्ट्रियल के लिए जगह, सारा वही मुहैया कराता था ।और इंडस्ट्री को पास करने का जिम्मा भी उसी के पास था।
और सरकारी महकमा, जो प्लैटिनम के लिए मरी जा रही थी। वह भी उसी के हाथ में था।
जब नौगांव पर हादसा अंजाम दिया गया था। उस वक्त कौन था?
मगर रामेश्वर धन्यवाद पिछले 10 सालों से ईसी मिनिस्ट्री पर जमा हुआ था।
दो बार वह एमएलए भी इस एरिया से रह चुका था। एमएलए होने के बाद ही ,वह एमपी बना था। और उसी वक्त उसने वह कारनामा किया होगा।
यह यरिया मेरे लिए बिल्कुल अनजाना सा था। कोई जान पहचान नहीं थी। कोई ठौर ठिकाना नहीं था। बस बदले की आग में झुलसता हुआ, मैं निकल पड़ा था।
मेरी यह जानकारी काफी नहीं थी। मुझे रामेश्वर धनवार के बारे में ,हर एक चीज की बारीकी से जानकारी हासिल करना था। मेरी एक छोटी सी छोटी चूक, मुझे अपने मिशन पर नाकामयाब कर सकता था। और मैं अभी फिलहाल अपने मिशन पर किसी और को शामिल कर नहीं सकता था।
मैंने मन बना लिया था। सबसे पहले रामेश्वर धनवार को ही टारगेट किया जाए ।क्योंकि, अगर मिनिस्ट्री लेवल से छूट नहीं दी गई होती, तो आज वहां पर प्लेटिनम इंडस्ट्री नहीं। नौगांव के लोग बसे हुए मिलते ।
मुझे इस तरीके से दर-दर भटकना न पड़ता। गरीब लोगों के जाने नहीं जाती। कई लोगों की जिंदगी बर्बाद नहीं होता। पूरा गांव उजड़ चुका न होता!?
मासूम लोगों की जाने नहीं गई होती। नौगांव कत्ले गारत का शिकार नहीं हुआ होता! नौगांव जलजले के आगोश में समा नहीं गया होता!
यही वह शख्सियत थी- जिसके देखरेख में, जिसके जानकारी में ,जिनके परमिशन की वजह से ही सारा खेल रचा गया ।खूनी खेल। खूनी खेल का मुख्य दारोमदार यही था। वहां इंडस्ट्री के लिए परमिशन देना- और वहां पर कत्ले गारत का परमिशन दोनो एक ही बात थी।
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