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कत्ले गारत 29

24 जनवरी 2023

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अंधेरी रात थी। आसमान में तारे चमक रहे थे। मगर टोपला बस्ती का यह एरिया ,रोशनी से जगमग आ रहा था। ऐसा लगता था जैसे आसमान के सारे तारे जमीन पर उतर आए हो। और कोठियों में जगमगा रहे हो।
जहां मैं ठहरा था , रिसोर्ट टाइप के कच्चे मकान  थे। होटल एक कच्चे मकानों पर बनाया गया था ।बांस के कमरे थे ऊपर छत खरपतवार डाला गया था। और खुला हुआ लॉन, घास  उगे हुए थे ।पिछवाड़े में वैसे ही कुछ बना हुआ था। जहां पर मैंने अपने घोड़े को बाध कर रखा था।
मैंने रिसोर्ट से जैसे ही बाहर कदम रखा था ।मुझे कहीं भी अंधेरा नजर नहीं आया था। रिसोर्ट से लेकर कोठियों तक ,सारे स्ट्रीट लाइट जली हुई  थी।
मैं चहल कदमी करता हुआ कोठियों की ओर निकल पड़ा था। उन कोठियों का जायजा लेने के लिए ।रात के वक्त उन कोठियों के  गार्ड्स क्या करते हैं ,जरूर सो जाते होंगे। दिन की तरह हर वक्त चौंकन्ने तो रहते नहीं होंगे!
इंसानी जिश्म थी, कोई मशीनरी तो नहीं। जरूर आराम तो फरमाते होंगे! जरूर सो जाते हो या झबकि लेते हो।

रात का ज्यादा वक्त गुजरात न था।10:15 बज रहे होंगे। उस कोठियों के  आसपास से ऐसे गुजर रहा था ।जैसे कोई खाना खाने के बाद टहलने के लिए निकलता है।
अभी तो मैंने कोई ऐसी हरकट किया ही नहीं था ।प्लान कोई बनाया ही नहीं था ।तो किसी को मेरे ऊपर शक, या सुबह करने की तो कोई बात ही नहीं थी ।मैं फुल कॉन्फिडेंस में सोसायटी के गेट से ,दो चक्कर लगा आया था।
गेट पारदर्शि था।। गेट के दोनों पार आराम से देखा जा सकता था। और गेट के पास बना हुआ छोटा सा आफिस भी शिशेदार था।  जिसके अंदर एक गार्ड बैठा हुआ था। और बैठे  बैठे  झुम रहा था ।जिसके पास कोई गन नहीं था। बगैर गन का ही था।
मगर ,गेट पर एक बड़ा सा शीशा लगा हुआ था। जैसे कि गाड़ी पर मिरार लगा होता है ।पीछे की ओर आते जाते लोगों को देखने के लिए।
मुझे उस मैन गेट पर सीसीटीवी कैमरा नजर नहीं आ रहा था। दिन के वक्त 2 गन मेन का खड़ा  होना, इस बात की ओर इशारा कर रही थी। कि शायद मंत्री के पास कोई और मंत्री भी आया होगा। मुलाकात के लिए ,या फिर मीटिंग के लिए ।इसीलिए इतने सारे गनमैन खड़े थे। रात के वक्त उन गन मेनों का ना होना इसी बात की ओर इशारा कर रही थी।
रात के वक्त शायद ऐ सारे गन मेन ,सिर्फ रामेश्वर धनवार की कोठी पर ही पहरा देते हो!?
क्योंकि ,उस चाय वाले के बताए मुताबिक, वहां पर रामेश्वर धनवार ही एक नेता हुआ करता था। बांकी के सारे सरकारी अफसर तो थे ।मगर कोई नेता नहीं था।

अंदर जाने का  कोई जरिया नहीं था। उसके लिए मुझे किसी कोठी पर काम करना जरूरी था ।वरना मैं यूं घुमते रह जाता ।और कुछ काम ना होता।
मुझे धनवार की कोठी के आसपास जाना जरूरी था। तब जाकर मुझे उसके सिक्योरिटी सिस्टम के बारे में पता चलता । या फिर मैं वहां किसी भी कोठी में काम करता , तो कोठी में काम करने वाले, किसी से मैं दोस्ती कर लेता।

इस तरह से मैं, उसके  बारे में कुछ जानकारी हासिल कर सकता था। मगर चाय वाले ने जो बताया था ।उस तरीके से तो, बस ऊपर ही ऊपर जानकारी हासिल कर सकता था।
जब तक मैं धनवार के कोठी केअंदरूनी सुरक्षा व्यवस्था के बारे में पता नहीं कर पाता ,तो मैं कोई कदम उठा नहीं सकता था। या फिर मुझे यह जानकारी हासिल की रामेश्वर कब कहां जाता है। कहां वह सिक्योरिटी कम रखता है। या फिर बच्चों के बारे में पता हो ,मगर एक बात यह थी ,कि मैं उनके बच्चों का कुछ बिगाड़ नहीं सकता था। और बिगाड़ना चाहता भी नहीं था।
मेरी दुश्मनी प्लैटिनम इंडस्ट्री को चलाने  वाले मालिकान और रामेश्वर धनवार से था। उनके कुनबे से नहीं।
इसीलिए ,सबसे पहले मेरा टारगेट रामेश्वर धनवार था।
रामेश्वर धनवार के बारे में हर चीज ,हर एक बायोग्राफी,  ,हर चीज चाहिए था मुझे।
रामेश्वर  के बारे में ,चाय वाले के मुताबिक, जो कोठी बताई थी ,वह शुरू से तीसरे कोठी थी।

भव्य कोठी थी,वह। लाल राजस्थानी पत्थर से बनाया हुआ। उसको  देखकर अक्सर राजस्थान की याद ताजा हो जाती थी। राजस्थानी अंदाज में बनाई हुई कोठी और सारे कोठियों से अलग थलग लगती थी। और कोठी का एरिया भी ज्यादा था।
क्यों ना होता, प्लैटिनम इंडस्ट्रीज से उसने अच्छा खासा पैसा कमाया था। गरीबों की लाश पर खड़ी यह कोठी थी।  नौगांव के किसानों के खून से सींचा हुआ लाल पत्थर था।
मैं आज के दिन भी, उसी चाय की दुकान पर चाय पीने के लिए बैठ गया था। मेरे बैठते ही उसको समझ आ गई थी। कि डबल चाय पिलानी होगी। मगर उसे क्या था! उसे तो पैसे से मतलब था। डबल क्या वह तो तीन-चाय एक कप में डाल कर भी दे देता।उसे तो पैसे मिलने थे।
चाय की दुकान सोसाइटी से निकलने वाले रास्ते पर ही था। जो भी आता उसी के दुकान के रास्ते से गुजरना पड़ता।
मैं चाय पी रहा था। मगर मेरी तवज्जो सोसाइटी से निकलने वाली गाड़ी की और थी। तभी मैंने एहसास किया ,पहले एक सफेद कार निकली ।उसके पीछे दूसरा एक कार निकला। जिस पर तिरंगा  झंडा लगा रखा था। मैं समझ गया नेताजी का कार था।
कार के पिछले वाले साइड से नेताजी बैठे हुए थे ।उनका रंग सावला था ।जो तस्वीर मैंने कई जगह हुडिग बोर्ड में देखी थी ।बिल्कुल वैसा ही चेहरा था ।मगर फर्क इतना था ।कि हुर्डिग बोर्ड में लगा हुआ पोस्टर गोरा सा था।
मगर ,नेताजी कुछ ज्यादा ही सावले थे। मेरा शिकार ।मैं मन ही बोला-मेरा शिकार।  मगर प्रत्यक्ष बोला -आज तो नेता जी के पास इतने सारे सुरक्षा व्यवस्था है नहीं। जो मैंने उस दिन देखा था।
चाय वाला बोला- शायद पार्टी ऑफिस जा रहे हो !या फिर जब वह अपने फार्म हाउस में जाते हैं !तो उनके साथ कोई भी गार्ड नहीं रहता है।

फार्म हाउस में जाते वक्त गार्ड नहीं रहता? 
क्या वहां उनको सुरक्षा की जरूरत नहीं है?

चाय वाला बोला- उनका ड्राइवर जो है !वही उनका गार्ड का भी काम करता है। वह माहिर है ।ब्लैक बेल्ट है। और लोडेड गन  उसके साथ हरदम रहता है। वह आदमी नहीं, जल्लाद है। किसी को भी गोली मारने के लिए हिचकता नहीं है। जो भी उनके सुरक्षा के आगे आ जाए।
मैंने हुंकार भरा-हूं?
चायवाला फिर बोला-अब तो शांति है! जब उग्रवादियों का बोलबाला था !उसके बेटे की किडनैपिंग के बाद, उसको भी जान की धमकी दिया जाने लगा ।फिर उसने यह शख्सियत को बकायदा गार्ड के रूप में, तब अपने पास रखा।

मैंने धनवार और इसके सिक्योरिटी के बारे में ज्यादा जानकारी लेने के लिए आगे और पूछा-इतनी सारी सिक्योरिटी होने के बाद भी, उसके बच्चे को किडनैप कैसे कर लिया गया था!?

किडनैप करने वाले, जैंगो क्लब के लोग थे।

जंगो क्लब के लोगों ने , उनके  छोटे बेटे को स्कूल से उठवा लिया था। बच्चे के साथ  स्कूल में तो कोई सिक्योरिटी नहीं थी। 
बच्चा क्या छोटा था ?-मैंने पूछा।
जब अगवा  हुआ था, उस समय बच्चा करीब 7 साल का रहा होगा?
बच्चे को जिंदा छोड़ दिया था, उन लोगों ने?
हां !बच्चा तो हंसता खेलता हुआ ही आया था!
कब की बात  है यह?
इस बात को भी शायद ढाई तीन  साल हो गए होंगे।
जैंगो क्लब के लोगों को गिरफ्तार नहीं किया गया था?
कौन गिरफ्तार करता ?कोई गिरफ्तारी नहीं हुई? मुझे तो यह लग रहा था ,कि पुलिस वाले भी उन  लोगों से मिले हुए हैं? अपनी जानकारी के मुताबिक चाय वाला बता रहा था।
मैं बोला- जब कि ,आप बता रहे हो! यह पिछले कई  सालों से यहां पर इलेक्शन जीत रहा है। दो बार एमएलए में रह चुका है। फिर पुलिस वाले तो सारे इसके हाथ में होंगे ?फिर कोताही कहा बरती गई?
शायद किसी बात को लेकर समझौता हो गई हो? मुझे तो यही लगता है। वरना जैंगो क्लब के लोग पकड़े जाते ।कई लोग पुलिस के गोली के शिकार भी हो जाते ।
समझौता ,कैसा समझौता ?हुआ होगा !एक एमपी और एक और उग्रवादी क्लब के बीच?

लगता है जेन्गो  क्लब  वालों ने किसी दुखती रग पर हाथ रख दिया ,या कुछ ऐसे चीजों पर उन्होंने हाथ रखी। हो मिनिस्टर साहब चाह कर भी नहीं निकल पा रहे थे ।फिर बच्चे के किडनैप के बाद ,पांच करोड़ रुपए उन्होंने चुकाया  है। और पुलिस को भी पीछे हटवा लिया।
चायवाला आगे बोला-शायद उन्हें कुछ ऐसी बातें पता लगी थी! जो सामने आती तो एमपी साहब की खुशी छीन जाती। या फिर जेल के अंदर होते ।इसीलिए भी जेन्गो क्लब से समझौता करने के लिए ,उन्होंने रकम मुहैया कराया ।और पुलिस को भी इस लफड़े से दूर  रखा।
धनवार  साहब ने ऐसा क्या कर रखा है ?जो पब्लिक के सामने आने पर उनके शाख मिट्टी में मिल जाती? मैंने जिज्ञासा व्यक्त की। मैं उसके मुंह से सुनना चाहता था। मगर रामेश्वर धनवार ने कौन सा पाप किया था। सब मुझे पता था । मासूम चेहरे के पीछे छुपा हुआ एक राक्षस था।
उस के लालच ने, कयी परिवारों को बर्बाद कर दिया था ।एक गांव के गांव को खत्म कर दिया था ।जलाकर राख कर दिया था।  कत्ले गारत मचा दिया था। यह इंसान माफी के लायक था ही नहीं। उसे तो कड़ी से कड़ी  सजा होनी चाहिए थी।
इतिहास के पन्ने से नौगांव के लोगों का, नामोनिशान मिटाने वाले रामेश्वर धनवार को कड़ी से कड़ी सजा देने के लिए ,कानून के पास कोई सबूत नहीं था।
फिर रामेश्वर और जेन्गो क्लब के बीच में घनिष्ठता बढ़ती गई। इस घनिष्ठता की वजह से रामेश्वर को एक फायदा यह हुआ, कि  वह  अजेय हो गया । वह उग्रवादियों से बेखौफ हो गया।
उसके वोटों की गिनती बढ़ गई ।समर्थन बढ़ गया। लोगा रामेश्वर धनवार को बिल्कुल भगवान की तरह मानने लगे।
उसकी आमदनी कहां से होती थी। इस बात का कोई थाह नहीं था। किसी को।
चाय वाला आगे  और बातें जोडता हुआ बोला-अब रामेश्वर धनवार लोगोका,  भलाई करता है। कानूनी कोई कार्रवाई हो ,  किसी को सिग्नेचर चाहिए ,किसी को एमपी की सिफारिश चाहिए वह भी कर देता है।

मैं यहां का लोकल नहीं हूं ।फिर मेरी भलाई कैसे कर सकता है ?क्योंकि, मुझसे तो उसे किसी प्रकार के वोट की उम्मीद नहीं है। नेता जब किसी का काम करते हैं, जब उसे अपनी वोट की गिनती बढ़ जाने की संभावना होती है।
चाय वाला बोला- तुम्हें तो सिर्फ अभी नौकरी की जरूरत है।
हा! ऐसी नौकरी। जहां पर मुझे रहने खाने का भी ठिकाना मिल जाए।
चायवाला फिर बोला -हां तुम्हारे लिए मैंने किसी से बात चला रखी है ।देखो वह एकाध दिन में वह मुझे बता देगा ।वह पूछ रहा था डिगबोई  में तुम्हारा कोई जानने वाला पहचानने वाला है ?जो तुम्हारी गारंटी ले सके?
मैं बोला -नहीं !यहां मेरा कोई जान पहचान नहीं है ?ना ही मेरा कोई गारंटी लेने वाला!

फिर तुम्हें कोई कोठी पर कैसे रखेगा? आज की डेट में ,हर कोई सोचता है। कि कोई भी कामदार रखें तो ,उसका कोई गारंटर जरूर हो। और तुम्हें कोई जानता नहीं तो गारंटी क्यों,देने  लगा।
सच में चाय वाले की बात सही थी। यहां  मेरा कोई जान पहचान नहीं था ।कोई जानने वाला नहीं था। तो कोठियों में नौकरी क्यों कर मिलने लगी।
मगर मुझे किसी भी तरह रामेश्वर धनवार के बारे में जानकारी हासिल करनी थी। उसके सिक्योरिटी सिस्टम के बारे में जानकारी हासिल करनी थी ।और फिर यह भी हासिल करना था। कि वह दो कौन-कौन से लोग हैं। शाइन इंडिया लिमिटेड के मालिक जिन्होंने नौगांव को नष्ट किया था। नौगांव को श्मशान घाट में तब्दील करके, कत्ले  गारत मचा करके आग के शोलों पर ,झौक के लिए छोड़ दिया था।

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रचनाएँ
कत्ले गारत
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बदले और खून से सनी खूनी सफर सफर का इतिहास है ।जिसे हम कत्ले गारत का नाम देकर यहां प्रस्तुत करना चाहते हैं।
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टेंडर किसी व्यापारी के नाम पर छूट चुका था। व्यापारी क्या वह अपने आप को बहुत बड़ा इंडस्ट्रियलिस्ट समझता था। वह चाहता था। किसी तरह भी इस गांव को खाली कर दिया जाए ।क्योंकि ,उस गांव से ही होकर वह रास्ता प

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गांव के लोगों की खासियत होती है- वह जो थोड़े में संतुष्ट हो जाते हैं। वह नहीं सोचते कि वह कार पर चले। वे यह नहीं सोचते कि बहुत बड़ा बंगला बने, वे नहीं सोचते कि बहुत बड़ी कोठी हो ।बस दो वक्त की रोटी बी

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1 जनवरी 2023
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शायद कुछ साल यूं ही गुजर ग्ए थे। इस घर ने इस गांव में मुझे अपनापन और प्यार मोहब्बत मिला था। इस बात को लेकर मुझे किसी से शिकायत नहीं है। इस बात को लेकर मुझे किसी से शिकायत नहीं है।इन्होंने मुझे इतना मो

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1 जनवरी 2023
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मैंने पढ़ाई अपने कबीले की स्कूल में थोड़ी बहुत की थी ।जिसे पढ़ाई कह नहीं सकते थे।इस गांव में आने के बाद ,मैंने गांव में छोटे-छोटे बच्चों को जितना आता था। पढ़ाने की कोशिश की थी।हिंदी इंग्लिश की अक

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2 जनवरी 2023
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मेरी जिंदगी में सिर्फ एक ही लक्ष्य बचा हुआ था। और वो लक्ष्य था किसी तरह भी उन खूनियों का खात्मा करना। क्योंकि मुझे पता था। कि यह सारा सरकारी नुमाइंदों की मिलीभगत में हुई थी। इसलिए कानून का सहारा लेना

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2 जनवरी 2023
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अब बापी भी बड़ी हो चुकी थी। 10:11 साल की हो चुकी थी। दीदी के गोद में दूसरा एक बच्चा भी आ चुका था। उसकी भी उम्र अभी 4 साल की हो चुकी थी। मैं अग्निपुत्र- इस परिवार का एक अभिन्न अंग बन चुका था ।परिवार का

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3 जनवरी 2023
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यह वक्त नहीं था। कि मैं पंडित जी के साथ जाउं। गांव पहुंच कर खोजबीन करूं! जहां गांव के बारे में गांव की आबादी के बारे में नोटेड होता है ।क्योंकि ,अभी हम पुष्पलता के इलाज के लिए आए हुए थे। और जरूरी था,

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आज शहर में आए हुए तीसरा दिन था। पुष्प लता लगभग ठीक हो गई थी। मेरे इकरारेईश्क के बाद उसका बुखार धीरे-धीरे कमता चला गया था। या यूं कहें कि दोनों की एकरार के बाद बुखार लगभग उसी, समय कम हो गया था।मु

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4 जनवरी 2023
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पुष्पा को समझ आ चुका था। जिंदगी के बारे में। पुष्पा को इस बात की समझ आ गई थी। जो जिंदगी में जीने के लिए पैसे की भी जरूरत होगी। जो मैं शहर जाकर ही कमा सकता था। गांव में रहकर तो हम सिर्फ खा पी सकते थे।

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4 जनवरी 2023
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मैं जिस रास्ते से इस गांव में आया था। उसी रास्ते से ही मुझे लौटना था। इतने सालों के बाद भी मैं वो रास्ता कभी भूल नहीं पाया था। वह नदी पार करना ,नदी पार करके फिर इस गांव में आना ,जब मैं कभी भूला नहीं प

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6 जनवरी 2023
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वे चार लोग थे ।और मैं उनके बीच में एक अकेला लेटा हुआ था। और मेरी नींद को देखते हुए उन लोगों ने जागाने के लिए एक ने मुझे छू करा आवाज लगाया था।उनकी आवाजों से मेरी आंखें खुल गई थी। मैंने नजर इधर-उधर घुमा

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मुझे पता था ।मेरा रास्ता आसान नहीं था। मुझे यह भी पता था। जिन चार लोगों पर मैंने हमला किया था। वह लोग यकीनन कोई न कोई मेरे पीछे आने वाले थे। उन के मुताबिक वह सिर्फ चार नहीं थे ।पूरा कुनबा था। उन

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8 जनवरी 2023
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बीच में आए इन सब लोगों से मैं खुद को बचाना चाहता था।। मेरा मकसद अपने गांव तक पहुंचना था। यह देखना था ,उस कत्ले गारत में कोई बचा तो नहीं ।या यह जानना था -कि कत्ले गारत के बाद वहां इंडस्ट्री बसा है

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8 जनवरी 2023
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मुझे बहुत आगे निकलना था। वक्त बहुत जाया हो चुका था।मैंने आसमान की ओर देखा। सूरज क्षितिज पे कहीं छुपने की तैयारी कर रहा था। मुझे अपने गांव आगे बढ़ना था। और रात के रुकने की व्यवस्था भी करना था। मेरा घोड

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10 जनवरी 2023
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मकान के बाहर सारागांव जमा हो गया था। सारा गांव ही एक कुनबा था। गांव के लोग में एकता थी एक स्वर बद्धता थी ।जो वहां जमा होने पर दिखती थी।गांव के बड़े बुजुर्ग की आंखों में आंसू थे। बच्चे भूल से गए थे। उस

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11 जनवरी 2023
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उन के अंदर की ज्वाला को मैंने भड़काने की कोशिश की। उनके अंदर की ज्वाला शायद शांत हो चुकी थी ।या कुछ न कर पाने की वजह से वह चुपचाप हो गए थे।शायद वह नहीं चाहते थे ,कि जो बचे खुचे हैं, उनको कोई नुकसान पह

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कत्ले गारत 23

13 जनवरी 2023
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मुझे अब भटकने की जरूरत नहीं थी। गांव वालों को पता था । वह पुराना गांव हमारा कहां पर है.. किस रास्ते से वहां पर जा सकते हैं!मैं अकेला ही उस ओर जाने के लिए तैयार था। मैं सबसे पहले उस धरती का दर्शन चाहता

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कत्ले गारत 24

14 जनवरी 2023
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जब मेरी आंखें खुली, चट्टानों में बैठे-बैठे मुझे नशा सा छा गया था। जिसकी वजह से मैं वहीं पर लुढ़क गया था। करीब चार-पांच घंटे यूं ही मैं बेहोश सा पड़ा रहा। जब मेरे घोड़े ने मुझे

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कात्ले गारत 25

17 जनवरी 2023
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मैं पानी पीकर और हाथ मुंह धो कर अपने गांव की ओर मुड़ा। चारों तरफ बाउंड्री लगी हुई, बीच में कोई इंडस्ट्री बसी हुई थी। बाउंड्री पत्थरों से दीवार बनाई गई थी इस पार से उस पार देख पाना मुमकिन नहीं था

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कत्ले गारत 26

18 जनवरी 2023
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मैं अपने गांव में था। जो अभी फिलहाल इंडस्ट्री में तब्दील हो गई थी। और मेरे अपने लोग यहां कोई नहीं था। मेरा अपना मकान भी नहीं था।मैंने गांव की मिट्टी को अपनी मुट्ठी में लिया दिल से लगा लिया। सच म

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कत्ले गारत 27

20 जनवरी 2023
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कामदारों से मुझे सिर्फ इतना ही पता चल सका था, कि वह अरबों पति लोग थे ।उनके पास पहुंचना मुश्किल काम था। मैं साइबर में बैठकर,इन लोगों का रिहायश, ऑफिस पता लगाना चाहता था। यूं तो वे लोग यहां भी

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कत्ले गारत 28

23 जनवरी 2023
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मार्गरेटा से टोपला बस्ती, ज्यादा दूर नहीं था। करीब 20 किलोमीटर का रास्ता था । ऑन द रोड।अगर मैं अपने घोड़े पर ही टोपला बस्ती पहुंचता तो, लोग यही समझते ,कि कोई बैंड बाजा बारात वाला ही होगा। जो किस

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24 जनवरी 2023
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अंधेरी रात थी। आसमान में तारे चमक रहे थे। मगर टोपला बस्ती का यह एरिया ,रोशनी से जगमग आ रहा था। ऐसा लगता था जैसे आसमान के सारे तारे जमीन पर उतर आए हो। और कोठियों में जगमगा रहे हो।जहां मैं ठहरा था , रिस

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25 जनवरी 2023
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मौसम इतना ठंडा नहीं था। फिर भी मैं अपने घोड़े को खुले छत में नहीं रख सकता था। रात को रुकने के लिए उसे भी छत चाहिए थी । घास चाहिए था ।और खाने के लिए दाना भी चाहिए था ।पानी भी चाहिए था। उसकी फिकर मुझे अ

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29 जनवरी 2023
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अभिषेक ने जो कार्ड दिया था। उसमें सिर्फ उसका नाम और फोन नंबर लिखा हुआ था।और कहा था ।दो दिन बाद कॉल कर लेना। आज तीसरा दिन था। मैंने अभिषेक को कॉल किया था।अभिषेक निहायत ही शरीफ और ईमानदार शख्सियत था। और

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कत्ले गारत 32

30 जनवरी 2023
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मैंने ,अपने घोड़े को अस्तबल में ला के बांध दिया था। अस्तबल में घोड़े के लिए चारे की भी परेशानी नहीं थी।घोड़ा मवेशियों के साथ खुश रह सकता था। मैंने अपने कमरे की सफाई के लिए चाची को बोल दिया था। कमरा सा

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कत्ले गारत 33

31 जनवरी 2023
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कहते हैं - गुनाह कभी छुपता नहीं ।कभी न कभी गुनाह, नासूर बन के दिल को ,कचोटने लगती है।यह कुदरत का न्याय है। बदला लेने के लिए कुदरत ही तैयार करती है। मजलूम पर किया गया जुल्म कभी खाली नहीं जाता। उभ

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