जब मेरी आंखें खुली, चट्टानों में बैठे-बैठे मुझे नशा सा छा गया था। जिसकी वजह से मैं वहीं पर लुढ़क गया था। करीब चार-पांच घंटे यूं ही मैं बेहोश सा पड़ा रहा। जब मेरे घोड़े ने मुझे जगाने की कोशिश की, तब मेरी नींद खुली ।
मैं उसी पत्थर में ही बेहोश सा नींद में समा गया था ।पता नहीं कैसा यह तिलस्म था।
मगर, मेरे साथ कुछ हुआ नहीं था।या फिर यहां पर कुछ ऐसे गैसों का प्रभाव था ।जो इंसान को सेंसलेस कर देती है। कुछ देर के लिए।मैं उठा करीब 4, 5 घंटे गुजर गए होंगे ।
घोड़ा मुझे जगाने की कोशिश कर रहा था ।मैंने उसे देखा ।वह मुझे सर से यू धकेल रहा था। जैसे बोल रहा हो- उठ जा भाई, उठ जा! आगे चलना भी है।
मैंने अपनी थैले में तलाश किया ,थैला जैसा का तैसा था ।कुछ भी गड़बड़ नहीं था।
शायद लोग यहां गुजरते नहीं थे। राहगीर सारे इस रास्ते से गुजरने से डरते थे। शायद ऐसे ही कारणों की वजह से। मगर ,ऐसा क्यों होता था?
क्या यहां आते ही ऑक्सीजन की कमी हो जाती थी ।मगर चारों ओर तो हरियाली ही हरियाली थी ।फिर ऑक्सीजन की कमी कैसे हो जाती थी। दर्रा इतना संकरा तो था नहीं। की हवा आ-जान सके!
यह तो प्रकृति का खेल था। जिसे हम तिलस्म कह सकते थे।
यह सचमुच में कोई तिलस्म होता तो शायद मेरे साथ कुछ बुरा होता। या फिर कुछ अच्छा होता! कुछ भी तो नहीं हुआ था ?
मैंने अपने थैले में से खाने का सामान निकाला। जो मामी ने मुझे बांध कर दिया था। क्योंकि भूख बहुत ज्यादा लग रही थी। थकान भी खूब हो रहा था।
मामी ने मुझे भारी मात्रा में पराठे बांध दिये थे। और पराठे के साथ अचार रखा हुआ था ।मैंने दो पराठे अपनी घोड़े की और बढ़ा दी। घोड़ा खुश -खुश पराठे चबाने लगा। मैं भी पराठे खाने लगा।
पराठे खाने के बाद मुझे, अपने शरीर पर कुछ स्फुर्ति सी महसुस की।मैंने पराठे खाए और पानी जमके पी।
पानी पीते हैं मुझे कुछ सरसराहट सी महसूस होने लगी। जैसे कुछ लोग मेरी और आ रहे हो। मैंने अपने 2 धारी तलवार को टटोला वह सही सलामत थी।
फिर तलवार को खिंच लिया।और बिजली की गति से पीछे की ओर मुड़ा।
दो हथियार बंद मेरी ओर बढ रहे थे। उनके पास आधुनिक हथियार थे।
ओ लोग मेरे पास आते हुए एक ने कड़क कर बोला- तुम कौन हो ,और कहां जा रहे हो, और यहां क्या कर रहे हो?
मैं बोला -मै राहगिर हूं। नौ गांव जा रहा हूं। नौकरी की तलाश में। चलते-चलते थक कर बैठ गया था मैं। तो मुझे अचानक नींद आ गई।
खतरनाक एरिया है । यात्री अक्शर यहां भटक जाते हैं। नौगांव से ऊपर जो पहाड़ियां है। वहां से प्लेटिनम धातु निकाली जाती है। और धातु निकालते वक्त जो गैस निकलता है। वह यहां पर छोड़ दिया जाता है। जिसकी वजह से लोगों में बेहोशी छा जाती है।
मैं समझ गया था। कि मैं अब नव गांव के आस-पास ही हूं ।जहां पर फैक्ट्री लगी हुई है।
आप लोग कौन हैं ?मैंने उनसे सवालात की!
प्लेटिनम धातु निकाले जाने वाले इन पहाड़ियों के चारों ओर, कई सुरक्षाकर्मी लगा रखे हैं। उनमें से हैं। हम यहां चलने वाले यात्रियों को अगाह करते हैं।
एक बोला दर्रे से आगे एक मोड़ आती है ,बाये। जैसे ही अंदर चले जाते हो। वहां पर एक प्लांट सा बना हुआ है ।जहां गैस निकासी होती है। उस ओर जाना मत। उधर जहां गैस निकासी होती है। वहां पर लोग ज्यादा बेहोश हो जाते हैं। जानवर तो मर भी जाते हैं-उस गैस के प्रभाव से।
क्या मुझे वहां रोजगार मिल सकता है?
हम तो बस सुरक्षा कर्मी है ।हमें इस बात का कोई इल्म नहीं है ।इसके लिए तुम्हें नौगांव ही पहुंचना होगा। वहां पहुंचकर ही तुम्हें जानकारी मिल सकती है।
क्या नौगाव रहने खाने के लिए होटल लॉज कुछ तो मिल सकता है? मैंने उन्हीं से जानकारी हासिल करने की सोची।
उनमें से एक बोला -है वहां पर; अब तो छोटे-मोटे लॉज भी बन चुके हैं।
वह फैक्ट्री लगाने से पहले एक बहुत बड़ा सा गांव था। वह गांव के लोग कहां चले गए? वहीं पर रहते हैं? या सरकार ने कोई दूसरी जमीन दे दी।
एक ने बोला -हमें इस बात की खास जानकारी नहीं है। हम तो 7, 8 महीने से यहां पर सुरक्षाकर्मी के हिसाब से काम कर रहे हैं। इस गांव का इतिहास हमें क्या मालूम?
मैंने पूछा नौगांव यहां से कितनी दूरी पर है?
अगर अपने घोड़े पर सवार होकर जाओगे तो मुश्किल से 15:20 मिनट का रास्ता होगा आगे जाते तुम्हें नदी मिलेगा
नदी मिलते ही, नदी के छोर छोर से रास्ता गुजरती है। उसी से तुम नावगांव के अंदर घुस सकते हो ।नौगांव घुसते ही तुम्हें कई दुकानें मिलेंगे ।होटल मिलेंगे। और भी रहने बैठने का व्यवस्था मिलेगा। पहले रहने खाने की व्यवस्था कर लो ,फिर दूसरे दिन जाकर तुम अपनी रोजगारी के बारे में पूछताछ कर लेना। उनमें से एक ने मुझे सलाह दी।
उनमें से एक ने पूछा। लगता है तुम बहुत दूर से आए हो, नौकरी की तलाश में।
मैंने कहा यहां मैं बहुत दूर एक गांव है ,ढेकीयाजुली जहां रोजगार की कोई व्यवस्था नहीं है। खेती के अलावा। वहीं से आ रहा हूं मैं। और इतने दूर से आते वक्त ,कई जंगली जानवर से और डकैतों से सामना करना पड़ता है।
इसीलिए हथियार रखना जरूरी है। मैंने अपने हथियार की ओर इशारा करते हुए कहा। क्योंकि ,वह मेरे तलवार की ओर देख रहे थे।
यूं भी इन इलाकों में ,बिना हथियार के जंगल की ओर कोई निकलता नहीं था। जंगल में कई अप्रत्याशित चीजों से ,जानवर से दो चार होना पड़ता था।
लगता तो ऐसा ही है ,उसमें से एक ने कहा। मगर तुम से खतरनाक तो जानवर नहीं हो सकते। तुम देखने में ही शेर से लगते हो ।तुमसे भारी तो कोई पड नहीं सकता।
ऐसी कोई बात नहीं ,आप मेरा मजाक उड़ा रहे हो।
उनमें से एक बोला- इतना लंबा रास्ता जंगल, पहाड़ ,पर्वतों का। तय करके आना यूं भी मामूली बात नहीं है ।साधारण इंसान के बस में नहीं है ।क्योंकि ,यहां पर जो भी नौकरी के लिए आते हैं ।आस-पास के गांव या शहर से ही आते हैं। इतना लंबा रास्ता पैदल तय करके शायद तुम ही आए हो।
मैं बोला -आपकी बातों से मैं सहमत हूं ।मगर, क्या करूं? नौकरी की तलाश में मुझे इधर उधर भटकने से अच्छा यही आना ही अच्छा लगा ।इसलिए मैं आ गया ।क्योंकि मैंने सुना था। यहां पर प्लेटिनम फैक्ट्री लगी हुई है। पहले गांव हुआ करती थी -नौगांव।
हम कुछ देर तक यूं ही बातें करते रहें। मैं भी उनसे जानकारी हासिल करने के चक्कर में उनसे बातें करता रहा।
उनसे तो यह बात स्पष्ट हो गई थी। कि प्लेटिनम फैक्ट्री कहीं आस-पास ही है। और नौगांव भी अब नौगांव भी ज्यादा दूर रह नहीं गया था। मगर, उनके के मुताबिक सच में - आज के दिन मुझे रात गुजारने की व्यवस्था करनी थी।
मैं चलने के लिए तैयार हो गया था। घोड़े की पीठ थपथपाया फिर रकाब में पैर रखकर घोड़े की पीठ पर लद गया था।
जब मैं अपने घोड़े पर सवार होकर मुड़कर जाने लगा, तो एक ने पूछ लिया। इतनी देर बातें कर ली हमने- तुम्हारा नाम तो नहीं पूछा! भाई तुम्हारा नाम तो बता दो?
मैं बोला -अग्निपुत्र!!
दोनों अपने आप में बड़बड़ाए - अग्निपुत्र!
दोनों हाथ हिलाते हुए बोले -चलो अग्नि पुत्र! अगर किस्मत रही तो फिर मिलेंगे!
मैं आगे की ओर बढ़ चला मेरी मंजिल पास हीं थी ।सच में थोड़ा आगे जाने के बाद एक रास्ता दो भागों में बट जाता था ।एक बाईं और चली जाती थी। उनके के मुताबिक बाये और चलना न था। क्योंकि वही आसपास कहीं गैसों का पाइप लगा हुआ था। और उसमें से जहरीली गैस छोड़ी जाती थी।
मैं आगे सीधा रास्ता दो भागों में पटता था। दाएं और की जाने वाली रास्ते पर मुड़ गया था। फिर मैं जैसे आगे जाता रहा मुझे नदी दिखाई दी। आगे जो नदी थी उससे हम डिहिंग के नाम से पुकारा करते थे।
वही नदी जिस पर हम बचपन में खेला करते थे,मछली मारा करते, इस पर तैरा करते, केले के तंबे से नांव बनाकर दूर दूर निकल जाते। नदी के बहाव के साथ। फिर नदी के किनारे लग कर वापस आते। गर्मी के दिनों में दिनभर नदी में ही तैरा करते ।मवेसियो को पानी पिलाने के लिए नहला लाने के लिए, भी यहीं पर लाते।
मेरा तो जी कर रहा था- कि कुछ देर उसी नदी के किनारे बैठा रहूं, और उसे देखता हूं। और बचपन और लड़कपन की उन यादों को दिल में सजोता रहूं। मगर, मुझे पता था। अगर मैं ज्यादा देर नदी के पास रहा, तो मैं कहीं नहीं जा पाऊंगा ।मेरी आंखों से आंसू बहने लग गए थे। वह मेरा खुशहाल बचपन, सजीव बनकर मेरे दिमाग में चक्कर घिन्नी की तरह घूमने लग गया था।
मेरा घोड़ा भी मचलने लगा था, शायद उसे भी अपना बचपन याद आ गया हो। क्योंकि मैं उसे इसी नदी में पानी पिलाने के लिए और नहलाने के लिए लेकर आता था।
मैं उसे लेकर धीरे-धीरे नदी के पास पहुंचा और उतर गया। मेरे घोड़े ने खूब जमकर नदी का पानी पिया। मैंने हाथ मुंह धोए और पानी पी लिया।
मेरे से रहा नहीं गया ।कुछ देर मैं नदी के पास में ही पत्थर पर बैठकर ,नदी को निहारता रहा। नदी का शीतल जल बार-बार उछलकर मेरे पैर से लग जाते थे ।और बार-बार एक ही कहानी दोहराती थी। कहती थी।
तू आ गया !बस तेरा ही इंतजार था! तुम्हें बदला लेना है !इस गांव के लोगों की तबाही का बदला लेना है। कत्ले गारत का बदला लेना है।
खून का बदला खून । कत्ले गारत का बदला कत्ले गारत।
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