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कत्ले गारत 26

18 जनवरी 2023

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मैं अपने गांव में था। जो अभी फिलहाल इंडस्ट्री में तब्दील हो गई थी। और मेरे अपने लोग यहां कोई नहीं था। मेरा अपना मकान भी नहीं था।
मैंने गांव की मिट्टी को अपनी मुट्ठी में लिया दिल से लगा लिया। सच  में मेरी गांव की मिट्टी की खुशबू ,मेरे रग -रग में बसी हुई थी। मेरी आंखें गीली हो गई थी। आंसुओं को बहने से मैं रोक न पाया था। मेरी जमीन, मेरी मिट्टी, मेरा गांव।
बाबा कहते थे-जब कुछ भी समझ में नहीं आए। अपने लक्ष्य के बारे में कुछ पता ना चले! अगर दिल कोई गलत रास्ते पर चले जाए !तो यह एक मुट्ठी मिट्टी अपने गांव की ,लेकर उसे सीने से लगाकर ,आंखें बंद कर लेना ,सच में तुम्हें सच्चा रास्ता अपने आप दिखने लगेगा।
जिसे अपनी जमीन से प्यार ना हो। उसे जिंदगी में किसी से प्यार हो ही नहीं सकता किसी के प्रति सम्मान हो ही नहीं सकता।
जिसने जिस धरती पर जन्म लिया, उस धरती को वह प्यार नहीं कर सकता! तो अपनी मां को भी प्यार नहीं कर सकता। जो अपनी मां को प्यार नहीं कर सकता। वह जिंदगी में किसी को प्यार कर ही नहीं सकता ।किसी और को सम्मान नहीं कर सकता!
मेरे दिल में कैतुहल था। अविश्वास था। अपनी जमीन पर बसे,  इस फैक्ट्री के प्रति।
मैंने ,उसी शाम फैक्ट्री के चारों ओर चक्कर लगा ली थी।
फैक्ट्री के चारों ओर चक्कर लगाने में ,मुझे किसी मुश्किलात का सामना करना ना पड़ा था।
ना ही मुझे चक्कर लगाते हुए किसी ने टोका। ना ही किसी गार्ड ने मेरे को रोका । मैंने अपने घोड़े पर सवार फैक्ट्री के चक्कर लगाई। फैक्ट्री पर दो बड़े- बड़े गेट थे ।एक छोटा सा गेट था। फैक्ट्री की सुरक्षा की व्यवस्था पुख्ता की गई थी।
क्योंकि, जो चारों ओर सड़के बनी हुई थी ।वह किसी न किसी गेट पर जाकर अंदर हो लेती थी। 
फिर भी मैंने फैक्ट्री के चारों ओर चक्कर लगा लिया था। जिस गांव में कभी बिजली की सुविधा नहीं थी। आज फैक्ट्री में चारों ओर स्ट्रीट लाइट झिलमिला  रही थी। ऐसा लगता था जैसे खूबसूरत कोई शहर बसाया गया हो।

फैक्ट्री के चारों ओर ,स्ट्रीट लाइटें लगी हुई थी। अंधेरा कहीं नहीं था। और फैक्ट्री के चारों और गार्ड्स ससस्त्र गार्ड चक्कर लगाते रहते थे।
फैक्ट्री के सुरक्षा की इतनी पुख्ता व्यवस्था क्यों की गई थी?
प्लेटिनम धातु, सोने से भी कीमती धातु था। इसे प्राप्त करने के लिए खून की नदियां बहाए गए थे। पूरे एक बसे बसाए गांव को तहस-नहस कर दिया गया था। उस गांव का नामो निशान हिंदुस्तान के मानचित्र से मिटा दिया गया था।
यह जो बसी हुई थी ।यह फिर से बसाई गई थी। फैक्ट्रियां फिर से डाली गई थी। जो लोग इतिहास काल से बसे हुए थे ।उनको खत्म कर दिया गया था ।जैसे बच्चे मानचित्र पर लिखे हुए पेंसिल के चिन्ह को रबड़ से मिटा देते हैं। उसी तरह इंसानी जिंदगियों को मिटा दिया गया था।
अब  बसी बसाई शहर को फिर से  उजाड़ना था। लेकिन मेरे पास इतने साधन नहीं थे ।मगर, मन में एक लक्ष्य था। 
जिन्होंने भी नौगांव को नेस्तनाबूद किया था। जिन लालची लोगों ने इस फैक्ट्री को बसाने के लिए इन लोगों को गांव के लोगों को खत्म करने की ठानी थी ।
उन्हीं लोगों ने यहां फैक्ट्री बसाई थी। इसलिए मेरा पहला टारगेट फैक्ट्री के मालिकान थे।
मैं फैक्ट्री के चारों ओर चक्कर लगाने के बाद, फिर उन्हीं होटलों के पास आ गया था ।जहां पर मुझे गरमा- गरम खाना मिल सकता था ।लोगों की भीड़ थी। लोग आ जा रहे थे ।कोई किसी के प्रति ध्यान नहीं दे रहा था।
 क्योंकि यह अब शहर था ।और यहां पर ऐसे होटल कुछ ही गिनती के थे ।शायद इसीलिए भी जो होटल थे ,उन पर भीड़ लगती थी।

सूरज कब का क्षितिज के दूसरे पार छुप गया था। शहर के बाहर अंधेरा था। मगर शहर रोशनियों से जगमग आ रहा था।
कभी का ओ "नौगांव" अब प्लेटिनम सिटी के नाम से लोग जानने लगे थे। जहां पर प्लेटिनम के लिए पहाड़ों को तोड़ा जा रहा था। और शायद प्लेटिनम निकालने के बाद उसे ट्रीट करने के लिए, उसे प्लैटिनम में तब्दील करने के लिए के लिए, यहां फैक्ट्री डाली गई थी। क्योंकि रा मटेरियल खदानों से निकलती थी ।वह रो प्लेटिनम होता था। उसको प्रशोधित करना पड़ता था। उसे  प्लेटिनम धातु में कन्वर्ट करना पड़ता था।
प्रशोधन के लिए ही यहां पर फैक्ट्री डाली गई थी। बसी बसाई आबादी को तहस-नहस करके नौगांव को प्लैटिनम सिटी में कन्वर्ट कर दिया गया था।
मुझे प्लैटिनम सिटी में ही रहना था। शायद मुझे काम करने के लिए भी, या फिर "द साइन इंडिया लिमिटेड के मालिकान को पता करने के लिए भी मुझे कुछ, दिन इंतजार करना था। मुझे हर काम फुक फुक कर करना था।

 क्योंकि ,गरीबों की मौत कानून के लिए कोई मायने नहीं रखती। मगर अमीरों को छींक भी आ जाए ,कानून के नुमाइंदे ,प्रेस सारे भौंकने लगते हैं।
 आज साइन इंडिया कंपनी के मालिक को छींक आ गई ।साइन इंडिया कंपनी के मालिक "फलाने" ने सापिंग की, ऐसे समाचार से भरा होता था। समाचार पत्र।
अमीरों को छिंक आ जाए तो समाचार ,अमीर लोग घर से निकले तो समाचार ,अमीर लोग किसी से मिले तो समाचार ,अमीर लोग कहीं पर किसी गरीब को दो रोटी बांट रहे हैं ,सुबह की समाचार।
मैं उसी लॉज पर फिर लौट आया था। जहां पर मैंने अपनी सामान रखे थे। होटल का किराए को भी मैंने होटल मालिक को दे दी थी ।मैं घोड़ा बाहर ही रख कर उसे खड़े होने के लिए कहा कर, मैं खाना खाने के लिए अंदर घुसा।

इस वक्त मुझे खुब जोड़ की भूख लग रही थी।
मुझे हर जानकारी हासिल करनी थी। प्लैटिनम सिटी के बारे में, प्लेटिनम फैक्ट्री के मालिक कान के बारे में, वह मुझे शायद होटल के मालिक आन से मिल सकती थी।
शायद मुझे पूरी जानकारी गूगल से मिल सकती थी। फिर भी हल्की फुल्की जानकारी मुझे यहां की आबादी से मिल सकती थी। मुझे इन लोगों से इंटिमेट होना था।
 मुझे इन लोगों से घुल मिल जाना था। तो जाकर मुझे सारी जानकारी हासिल हो सकती थी ।फिर मैं यह मन बना रहा था ,कि किसी तरह मैं कुछ दिन के लिए काम पर ही लग जाऊं। जिससे मुझे मालीकान के बारे में जानकारी लेते वक्त किसी को शक और सुबहा न  होगा।
क्योंकि जब उन लोगों की मौत होगी !वह लोग मारे जाएंगे, यकीनन कानून के नुमाइंदे मुझे ढूंढेंगे, तक शक जाहिर किया जा सकता है।  नए आदमी यहां आकर मालिक के बारे में जानकारी हासिल कर रहा था !क्यों?
 जानकारी हासिल कर रहा था? फिर मुझे ढूंढा जाएगा ,इसीलिए मुझे कोई भी जानकारी हासिल करने के लिए यूं पेश आना होगा, जैसे कि साधारण लोग जानकारी हासिल करते हैं।

मैं जानबूझकर उस टेबल के आगे जाकर बैठ गया था ।जहां 2 लोग और बैठे हुए थे। और चावल खा रहे थे।
मैंने होटल वाले से पूछा -रोटी मिल जाएगी क्या? उसने मेरे को बताया -जो चाहो वह मिल जाएगी। यहां पर मगर ,रोटी के लिए इंतजार करना पड़ेगा आपको।
मैं बोला- मैं रोटी के लिए भी इंतजार कर लूंगा। कोई परेशानी नहीं मुझे। मैं जानबूझकर ज्यादा समय उन लोगों के पास रुकना चाहता था। और उन लोगों के  मुंह से कुछ बातें निकलवाना चाहता था। टेबल पर पानी रखा हुआ था। मैं गिलास में पानी डालकर हल्का हल्का सिप करने लगा। जब उनका ध्यान मेरी और गया, तो मैंने एक से पूछ लिया- क्या आप यहीं पर रहते हो ?
वह मेरे को देखकर बोला। जी हां हम यहीं पर काम करते हैं। इसीलिए ही पर रहते हैं। शाम को खाना खाने के लिए यहीं पर आ जाते हैं।
मैंने पूछा- क्या यहां पर मुझे काम मिल सकता है?
यहां काम के लिए अखबारों में वैकेंसी निकलती है ।फिर लोग आते हैं-साक्षात्कार के लिए!
लेकिन मैं अभी आ गया हूं। मुझे किसी भी प्रकार से यह काम की जरूरत है ।क्या मिल नहीं सकता?
देखो मैं यहां पर सुपरवाइजर हुं।काम पर लगाना मेरा काम नहीं है ।हां !मैं अगर तुम कहते हो ,तो एक आध दिन में बता सकता हूं। खबर करके। मैं रोज शाम को यहीं पर खाना खाने के लिए आ जाता हूं ।कल भी मैं यहीं पर मिल जाऊंगा ।मेरा फोन नंबर ले लो ।तुम्हारा नंबर हो तो मुझे दे दो।
मैं बोला मैं बहुत दूर गांव से आया हूं। रोजी की तलाश में। कृपया करके किसी तरह मुझे यहां पर नौकरी पर रखवा दो ।तुम्हारी बड़ी मेहरबानी होगी।
मैं फिर बोला-इस इंडस्ट्री के मालिक क्या यह पर रहते हैं? या कहीं और रहते हैं ।अगर पता हो तो बता दो। मैं उनसे जाकर मिलता हूं। नौकरी के लिए रिक्वेस्ट करता हूं।
इस इंडस्ट्री के मालिक यहां पर नहीं रहते हैं। और तुम डायरेक्ट उनसे मिल भी नहीं पाओगे! यह बहुत बड़े लोग हैं। इनका एक अकेला यह इंडस्ट्री नहीं है कई जगह उनके इंडस्ट्री आर हैं। उनसे मिलना बहुत मुश्किल वाली बातें हैं ।हम जैसे छोटे लोगों के लिए।
मैंने पूछ ही लिया- तुम जैसे इंडस्ट्री में काम करते हो! उस इंडस्ट्री के मालिक का नाम याद है ?पता है तुम्हें?
दूसरा बंदा जो खाना खा रहा था वह बोला- मालिक का नाम जानकर क्या करोगे? इतना बड़ा एरिया जो इंडस्ट्री का एरिया, दुकानों का एरिया, सब उन्होंने ही खरीदा है !और इंडस्ट्री बसाने के लिए उन्होंने करोड़ों की मशीन लगाई है। तो छोटे आदमी तो होंगे नहीं। बहुत बड़े लोग हैं ओ।
मैंने अनजान बनते हुए पूछा- पहले तो यहां बहुत बड़ा गांव बसा हुआ था। नौगांव। तुम्हें पता है, उनको  लोग कहां पर शिफ्ट हो गए?
या जो भी लोग थे। यह जो झोपड़ियां थी, उनकी तो नसीब ही बदल गई ।उनको सरकार ने, हमारे मालिक ने शहर में जगह देकर ,शहर में बसाया ।और मुआवजा भी दिलाया।
मैंने पूछा- आपको पता है ?उन्हें कहां पर किस शहर पर बसाया?
वह फिर बोला। इतनी जानकारी हासिल करने की हमें जरूरत ही क्या है ?बस यह जानकारी है। कि गांव के सारे लोगों को मुआवजा देकर, किसी शहर में बसाया गया। उन्हें शहर में पक्का मकान  बना कर दिया गया ।और उन्हें मुआवजा इतना दिया गया ,कि उनको नौकरी करने की जरूरत ही नहीं। इनके आने वाली 3 पुस्तें आराम से बैठ  कर खा सकती है ।इतना मुआवजा दिया गया है।
मैं मन ही मन दोहोराया- मुआवजा! शहर! मकान! कहां पर..!?
कभी उन सरकारी मशीनरी ने पता करने की भी कोशिश की, कि वह लोग कहां चले गए? किसको मुआवजा दिया? कहां उन्हें बसाया?

खास बात तो यह थी! कि या सुदूर पूर्व का गांव, किसी वोटर लिस्ट पर नहीं आता था !कोई नेता यहां पर वोट मांगने नहीं आता था। किसी को यहां से वोट मिलने कि आश भी नहीं थी ।क्योंकि कई घंटे पैदल चलकर आना पड़ता था ।या आने के लिए छोटी छोटी गाड़ियां आ सकती थी। मगर बड़ी गाड़ियां नहीं आती थी।
कच्ची सड़क बारिश के मौसम में और मुश्किलात हो जाती थी। किचड़ जम जाता था। यहां पर कोई पार्टी बाद नहीं था । किसी भी पार्टी का यहां बोलबाला नहीं था ।सरकार की नजर इस पर नहीं थी।
यहां पर बसे लोगों के, हिंदुस्तान के नक्शे में कोई चिन्ह नहीं था।
कहने के लिए हम हिंदुस्तान में थे। हिंदुस्तानी थे ।मगर कोई भी सरकारी व्यवस्था, सरकारी सहूलियत ,यहां पर उपलब्ध नहीं था। ऐसा क्यों था? यह सोचने वाली बात थी। पगडंडियां   पैदल चलकर कई घंटे का रास्ते तय करके  लोग यहां से शहर जा पाते थे।








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रचनाएँ
कत्ले गारत
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बदले और खून से सनी खूनी सफर सफर का इतिहास है ।जिसे हम कत्ले गारत का नाम देकर यहां प्रस्तुत करना चाहते हैं।
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कत्ले गारत 1

28 दिसम्बर 2022
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यह उपन्यास काल्पनिक है ।जिसका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं ।या फिर किसी वास्तविक व्यक्ति या समुदाय को चोट पहुंचाने के लिए कतई लिखी गई नहीं है। &n

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कत्ले गारत 2

28 दिसम्बर 2022
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अब मैं अपने आप को सुरक्षित महसूस कर रहा था। हवा में ठंडक बढ़ चुकी थी। हवा इतनी ठंड थी। कि ठिठुरन सी हो रही थी ।मगर यह ठिठुरन भी उस कत्ले गारत से कई गुना अच्छी थी। मैं खौफ़ के साऐ से बहुत दू

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कत्ले गारत 3

29 दिसम्बर 2022
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आसमान की ओर मैंने नजरें उठाकर देखा। क्षितिज में मुझे कहीं लाली सी ऊभरती दिखी। ऐसा लग रहा था। कुछ देर में उजाला होने वाला ही था। इसीलिए भी वह छोटी सी नदी मुझे साफ सी नजर आ रही थी।मैं भागते -भागते आसमान

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कत्ले गारत 4

29 दिसम्बर 2022
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जब वह गांव वाला अपने हाथों में गिलास जैसा कुछ सामान लेकर आया था ।वह छोटा सा लौटा था ।और उसने बैटते ही पूछा -क्या तुम लाओ पानी खाओगे?मैं समझ गया था लाव पानी एक तरह की शराब होती है। जो चावल से बनती है ।

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कत्ले गारत 5

30 दिसम्बर 2022
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मैंने अपने घोड़े का रकाब निकाल कर, उसे चरने के लिए छोड़ दिया था। और पीठ थपथपाता हुआ मैंने उससे बोला -जब तक मैं सो लेता हूं !तू चरके जल्दी ही यहीं पर आ जाना ।समझ गया। घोड़े ने सर हिलाया जैसे कि उसने सा

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कत्ले गारत 6

30 दिसम्बर 2022
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घर पर कई काम हो सकते थे। जानवर पाल रखे हो तो जानवर के लिए ।चराना चलाना आदि काम रखरखाव का काम हो सकता था। गाय भैंस हो तो इसको रखरखाव के लिए उससे दूध दुहने के लिए, उसको पानी सानी करने के लिए

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कत्ले गारत 7

31 दिसम्बर 2022
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टेंडर किसी व्यापारी के नाम पर छूट चुका था। व्यापारी क्या वह अपने आप को बहुत बड़ा इंडस्ट्रियलिस्ट समझता था। वह चाहता था। किसी तरह भी इस गांव को खाली कर दिया जाए ।क्योंकि ,उस गांव से ही होकर वह रास्ता प

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कत्ले गारत 8

31 दिसम्बर 2022
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गांव के लोगों की खासियत होती है- वह जो थोड़े में संतुष्ट हो जाते हैं। वह नहीं सोचते कि वह कार पर चले। वे यह नहीं सोचते कि बहुत बड़ा बंगला बने, वे नहीं सोचते कि बहुत बड़ी कोठी हो ।बस दो वक्त की रोटी बी

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कत्ले गारत 9

1 जनवरी 2023
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शायद कुछ साल यूं ही गुजर ग्ए थे। इस घर ने इस गांव में मुझे अपनापन और प्यार मोहब्बत मिला था। इस बात को लेकर मुझे किसी से शिकायत नहीं है। इस बात को लेकर मुझे किसी से शिकायत नहीं है।इन्होंने मुझे इतना मो

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कत्ले गारत 10

1 जनवरी 2023
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मैंने पढ़ाई अपने कबीले की स्कूल में थोड़ी बहुत की थी ।जिसे पढ़ाई कह नहीं सकते थे।इस गांव में आने के बाद ,मैंने गांव में छोटे-छोटे बच्चों को जितना आता था। पढ़ाने की कोशिश की थी।हिंदी इंग्लिश की अक

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कत्ले गारत 11

2 जनवरी 2023
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मेरी जिंदगी में सिर्फ एक ही लक्ष्य बचा हुआ था। और वो लक्ष्य था किसी तरह भी उन खूनियों का खात्मा करना। क्योंकि मुझे पता था। कि यह सारा सरकारी नुमाइंदों की मिलीभगत में हुई थी। इसलिए कानून का सहारा लेना

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कत्ले गारत 12

2 जनवरी 2023
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अब बापी भी बड़ी हो चुकी थी। 10:11 साल की हो चुकी थी। दीदी के गोद में दूसरा एक बच्चा भी आ चुका था। उसकी भी उम्र अभी 4 साल की हो चुकी थी। मैं अग्निपुत्र- इस परिवार का एक अभिन्न अंग बन चुका था ।परिवार का

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कत्ले गारत 13

3 जनवरी 2023
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यह वक्त नहीं था। कि मैं पंडित जी के साथ जाउं। गांव पहुंच कर खोजबीन करूं! जहां गांव के बारे में गांव की आबादी के बारे में नोटेड होता है ।क्योंकि ,अभी हम पुष्पलता के इलाज के लिए आए हुए थे। और जरूरी था,

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कत्ले गारत 14

3 जनवरी 2023
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आज शहर में आए हुए तीसरा दिन था। पुष्प लता लगभग ठीक हो गई थी। मेरे इकरारेईश्क के बाद उसका बुखार धीरे-धीरे कमता चला गया था। या यूं कहें कि दोनों की एकरार के बाद बुखार लगभग उसी, समय कम हो गया था।मु

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कत्ले गारत 15

4 जनवरी 2023
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पुष्पा को समझ आ चुका था। जिंदगी के बारे में। पुष्पा को इस बात की समझ आ गई थी। जो जिंदगी में जीने के लिए पैसे की भी जरूरत होगी। जो मैं शहर जाकर ही कमा सकता था। गांव में रहकर तो हम सिर्फ खा पी सकते थे।

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कत्ले गारत 16

4 जनवरी 2023
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मैं जिस रास्ते से इस गांव में आया था। उसी रास्ते से ही मुझे लौटना था। इतने सालों के बाद भी मैं वो रास्ता कभी भूल नहीं पाया था। वह नदी पार करना ,नदी पार करके फिर इस गांव में आना ,जब मैं कभी भूला नहीं प

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कत्ले गारत 17

6 जनवरी 2023
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वे चार लोग थे ।और मैं उनके बीच में एक अकेला लेटा हुआ था। और मेरी नींद को देखते हुए उन लोगों ने जागाने के लिए एक ने मुझे छू करा आवाज लगाया था।उनकी आवाजों से मेरी आंखें खुल गई थी। मैंने नजर इधर-उधर घुमा

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कत्ले गारत 18

7 जनवरी 2023
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मुझे पता था ।मेरा रास्ता आसान नहीं था। मुझे यह भी पता था। जिन चार लोगों पर मैंने हमला किया था। वह लोग यकीनन कोई न कोई मेरे पीछे आने वाले थे। उन के मुताबिक वह सिर्फ चार नहीं थे ।पूरा कुनबा था। उन

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कत्ले गारत 19

8 जनवरी 2023
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बीच में आए इन सब लोगों से मैं खुद को बचाना चाहता था।। मेरा मकसद अपने गांव तक पहुंचना था। यह देखना था ,उस कत्ले गारत में कोई बचा तो नहीं ।या यह जानना था -कि कत्ले गारत के बाद वहां इंडस्ट्री बसा है

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कत्ले गारत 20

8 जनवरी 2023
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मुझे बहुत आगे निकलना था। वक्त बहुत जाया हो चुका था।मैंने आसमान की ओर देखा। सूरज क्षितिज पे कहीं छुपने की तैयारी कर रहा था। मुझे अपने गांव आगे बढ़ना था। और रात के रुकने की व्यवस्था भी करना था। मेरा घोड

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कत्ले गारत 21

10 जनवरी 2023
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मकान के बाहर सारागांव जमा हो गया था। सारा गांव ही एक कुनबा था। गांव के लोग में एकता थी एक स्वर बद्धता थी ।जो वहां जमा होने पर दिखती थी।गांव के बड़े बुजुर्ग की आंखों में आंसू थे। बच्चे भूल से गए थे। उस

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कत्ले गारत 22

11 जनवरी 2023
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उन के अंदर की ज्वाला को मैंने भड़काने की कोशिश की। उनके अंदर की ज्वाला शायद शांत हो चुकी थी ।या कुछ न कर पाने की वजह से वह चुपचाप हो गए थे।शायद वह नहीं चाहते थे ,कि जो बचे खुचे हैं, उनको कोई नुकसान पह

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कत्ले गारत 23

13 जनवरी 2023
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मुझे अब भटकने की जरूरत नहीं थी। गांव वालों को पता था । वह पुराना गांव हमारा कहां पर है.. किस रास्ते से वहां पर जा सकते हैं!मैं अकेला ही उस ओर जाने के लिए तैयार था। मैं सबसे पहले उस धरती का दर्शन चाहता

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कत्ले गारत 24

14 जनवरी 2023
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जब मेरी आंखें खुली, चट्टानों में बैठे-बैठे मुझे नशा सा छा गया था। जिसकी वजह से मैं वहीं पर लुढ़क गया था। करीब चार-पांच घंटे यूं ही मैं बेहोश सा पड़ा रहा। जब मेरे घोड़े ने मुझे

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कात्ले गारत 25

17 जनवरी 2023
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मैं पानी पीकर और हाथ मुंह धो कर अपने गांव की ओर मुड़ा। चारों तरफ बाउंड्री लगी हुई, बीच में कोई इंडस्ट्री बसी हुई थी। बाउंड्री पत्थरों से दीवार बनाई गई थी इस पार से उस पार देख पाना मुमकिन नहीं था

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कत्ले गारत 26

18 जनवरी 2023
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मैं अपने गांव में था। जो अभी फिलहाल इंडस्ट्री में तब्दील हो गई थी। और मेरे अपने लोग यहां कोई नहीं था। मेरा अपना मकान भी नहीं था।मैंने गांव की मिट्टी को अपनी मुट्ठी में लिया दिल से लगा लिया। सच म

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कत्ले गारत 27

20 जनवरी 2023
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कामदारों से मुझे सिर्फ इतना ही पता चल सका था, कि वह अरबों पति लोग थे ।उनके पास पहुंचना मुश्किल काम था। मैं साइबर में बैठकर,इन लोगों का रिहायश, ऑफिस पता लगाना चाहता था। यूं तो वे लोग यहां भी

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कत्ले गारत 28

23 जनवरी 2023
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मार्गरेटा से टोपला बस्ती, ज्यादा दूर नहीं था। करीब 20 किलोमीटर का रास्ता था । ऑन द रोड।अगर मैं अपने घोड़े पर ही टोपला बस्ती पहुंचता तो, लोग यही समझते ,कि कोई बैंड बाजा बारात वाला ही होगा। जो किस

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कत्ले गारत 29

24 जनवरी 2023
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अंधेरी रात थी। आसमान में तारे चमक रहे थे। मगर टोपला बस्ती का यह एरिया ,रोशनी से जगमग आ रहा था। ऐसा लगता था जैसे आसमान के सारे तारे जमीन पर उतर आए हो। और कोठियों में जगमगा रहे हो।जहां मैं ठहरा था , रिस

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कत्ले गारत 30

25 जनवरी 2023
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मौसम इतना ठंडा नहीं था। फिर भी मैं अपने घोड़े को खुले छत में नहीं रख सकता था। रात को रुकने के लिए उसे भी छत चाहिए थी । घास चाहिए था ।और खाने के लिए दाना भी चाहिए था ।पानी भी चाहिए था। उसकी फिकर मुझे अ

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29 जनवरी 2023
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अभिषेक ने जो कार्ड दिया था। उसमें सिर्फ उसका नाम और फोन नंबर लिखा हुआ था।और कहा था ।दो दिन बाद कॉल कर लेना। आज तीसरा दिन था। मैंने अभिषेक को कॉल किया था।अभिषेक निहायत ही शरीफ और ईमानदार शख्सियत था। और

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कत्ले गारत 32

30 जनवरी 2023
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मैंने ,अपने घोड़े को अस्तबल में ला के बांध दिया था। अस्तबल में घोड़े के लिए चारे की भी परेशानी नहीं थी।घोड़ा मवेशियों के साथ खुश रह सकता था। मैंने अपने कमरे की सफाई के लिए चाची को बोल दिया था। कमरा सा

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कत्ले गारत 33

31 जनवरी 2023
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कहते हैं - गुनाह कभी छुपता नहीं ।कभी न कभी गुनाह, नासूर बन के दिल को ,कचोटने लगती है।यह कुदरत का न्याय है। बदला लेने के लिए कुदरत ही तैयार करती है। मजलूम पर किया गया जुल्म कभी खाली नहीं जाता। उभ

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