मैं अपने गांव में था। जो अभी फिलहाल इंडस्ट्री में तब्दील हो गई थी। और मेरे अपने लोग यहां कोई नहीं था। मेरा अपना मकान भी नहीं था।
मैंने गांव की मिट्टी को अपनी मुट्ठी में लिया दिल से लगा लिया। सच में मेरी गांव की मिट्टी की खुशबू ,मेरे रग -रग में बसी हुई थी। मेरी आंखें गीली हो गई थी। आंसुओं को बहने से मैं रोक न पाया था। मेरी जमीन, मेरी मिट्टी, मेरा गांव।
बाबा कहते थे-जब कुछ भी समझ में नहीं आए। अपने लक्ष्य के बारे में कुछ पता ना चले! अगर दिल कोई गलत रास्ते पर चले जाए !तो यह एक मुट्ठी मिट्टी अपने गांव की ,लेकर उसे सीने से लगाकर ,आंखें बंद कर लेना ,सच में तुम्हें सच्चा रास्ता अपने आप दिखने लगेगा।
जिसे अपनी जमीन से प्यार ना हो। उसे जिंदगी में किसी से प्यार हो ही नहीं सकता किसी के प्रति सम्मान हो ही नहीं सकता।
जिसने जिस धरती पर जन्म लिया, उस धरती को वह प्यार नहीं कर सकता! तो अपनी मां को भी प्यार नहीं कर सकता। जो अपनी मां को प्यार नहीं कर सकता। वह जिंदगी में किसी को प्यार कर ही नहीं सकता ।किसी और को सम्मान नहीं कर सकता!
मेरे दिल में कैतुहल था। अविश्वास था। अपनी जमीन पर बसे, इस फैक्ट्री के प्रति।
मैंने ,उसी शाम फैक्ट्री के चारों ओर चक्कर लगा ली थी।
फैक्ट्री के चारों ओर चक्कर लगाने में ,मुझे किसी मुश्किलात का सामना करना ना पड़ा था।
ना ही मुझे चक्कर लगाते हुए किसी ने टोका। ना ही किसी गार्ड ने मेरे को रोका । मैंने अपने घोड़े पर सवार फैक्ट्री के चक्कर लगाई। फैक्ट्री पर दो बड़े- बड़े गेट थे ।एक छोटा सा गेट था। फैक्ट्री की सुरक्षा की व्यवस्था पुख्ता की गई थी।
क्योंकि, जो चारों ओर सड़के बनी हुई थी ।वह किसी न किसी गेट पर जाकर अंदर हो लेती थी।
फिर भी मैंने फैक्ट्री के चारों ओर चक्कर लगा लिया था। जिस गांव में कभी बिजली की सुविधा नहीं थी। आज फैक्ट्री में चारों ओर स्ट्रीट लाइट झिलमिला रही थी। ऐसा लगता था जैसे खूबसूरत कोई शहर बसाया गया हो।
फैक्ट्री के चारों ओर ,स्ट्रीट लाइटें लगी हुई थी। अंधेरा कहीं नहीं था। और फैक्ट्री के चारों और गार्ड्स ससस्त्र गार्ड चक्कर लगाते रहते थे।
फैक्ट्री के सुरक्षा की इतनी पुख्ता व्यवस्था क्यों की गई थी?
प्लेटिनम धातु, सोने से भी कीमती धातु था। इसे प्राप्त करने के लिए खून की नदियां बहाए गए थे। पूरे एक बसे बसाए गांव को तहस-नहस कर दिया गया था। उस गांव का नामो निशान हिंदुस्तान के मानचित्र से मिटा दिया गया था।
यह जो बसी हुई थी ।यह फिर से बसाई गई थी। फैक्ट्रियां फिर से डाली गई थी। जो लोग इतिहास काल से बसे हुए थे ।उनको खत्म कर दिया गया था ।जैसे बच्चे मानचित्र पर लिखे हुए पेंसिल के चिन्ह को रबड़ से मिटा देते हैं। उसी तरह इंसानी जिंदगियों को मिटा दिया गया था।
अब बसी बसाई शहर को फिर से उजाड़ना था। लेकिन मेरे पास इतने साधन नहीं थे ।मगर, मन में एक लक्ष्य था।
जिन्होंने भी नौगांव को नेस्तनाबूद किया था। जिन लालची लोगों ने इस फैक्ट्री को बसाने के लिए इन लोगों को गांव के लोगों को खत्म करने की ठानी थी ।
उन्हीं लोगों ने यहां फैक्ट्री बसाई थी। इसलिए मेरा पहला टारगेट फैक्ट्री के मालिकान थे।
मैं फैक्ट्री के चारों ओर चक्कर लगाने के बाद, फिर उन्हीं होटलों के पास आ गया था ।जहां पर मुझे गरमा- गरम खाना मिल सकता था ।लोगों की भीड़ थी। लोग आ जा रहे थे ।कोई किसी के प्रति ध्यान नहीं दे रहा था।
क्योंकि यह अब शहर था ।और यहां पर ऐसे होटल कुछ ही गिनती के थे ।शायद इसीलिए भी जो होटल थे ,उन पर भीड़ लगती थी।
सूरज कब का क्षितिज के दूसरे पार छुप गया था। शहर के बाहर अंधेरा था। मगर शहर रोशनियों से जगमग आ रहा था।
कभी का ओ "नौगांव" अब प्लेटिनम सिटी के नाम से लोग जानने लगे थे। जहां पर प्लेटिनम के लिए पहाड़ों को तोड़ा जा रहा था। और शायद प्लेटिनम निकालने के बाद उसे ट्रीट करने के लिए, उसे प्लैटिनम में तब्दील करने के लिए के लिए, यहां फैक्ट्री डाली गई थी। क्योंकि रा मटेरियल खदानों से निकलती थी ।वह रो प्लेटिनम होता था। उसको प्रशोधित करना पड़ता था। उसे प्लेटिनम धातु में कन्वर्ट करना पड़ता था।
प्रशोधन के लिए ही यहां पर फैक्ट्री डाली गई थी। बसी बसाई आबादी को तहस-नहस करके नौगांव को प्लैटिनम सिटी में कन्वर्ट कर दिया गया था।
मुझे प्लैटिनम सिटी में ही रहना था। शायद मुझे काम करने के लिए भी, या फिर "द साइन इंडिया लिमिटेड के मालिकान को पता करने के लिए भी मुझे कुछ, दिन इंतजार करना था। मुझे हर काम फुक फुक कर करना था।
क्योंकि ,गरीबों की मौत कानून के लिए कोई मायने नहीं रखती। मगर अमीरों को छींक भी आ जाए ,कानून के नुमाइंदे ,प्रेस सारे भौंकने लगते हैं।
आज साइन इंडिया कंपनी के मालिक को छींक आ गई ।साइन इंडिया कंपनी के मालिक "फलाने" ने सापिंग की, ऐसे समाचार से भरा होता था। समाचार पत्र।
अमीरों को छिंक आ जाए तो समाचार ,अमीर लोग घर से निकले तो समाचार ,अमीर लोग किसी से मिले तो समाचार ,अमीर लोग कहीं पर किसी गरीब को दो रोटी बांट रहे हैं ,सुबह की समाचार।
मैं उसी लॉज पर फिर लौट आया था। जहां पर मैंने अपनी सामान रखे थे। होटल का किराए को भी मैंने होटल मालिक को दे दी थी ।मैं घोड़ा बाहर ही रख कर उसे खड़े होने के लिए कहा कर, मैं खाना खाने के लिए अंदर घुसा।
इस वक्त मुझे खुब जोड़ की भूख लग रही थी।
मुझे हर जानकारी हासिल करनी थी। प्लैटिनम सिटी के बारे में, प्लेटिनम फैक्ट्री के मालिक कान के बारे में, वह मुझे शायद होटल के मालिक आन से मिल सकती थी।
शायद मुझे पूरी जानकारी गूगल से मिल सकती थी। फिर भी हल्की फुल्की जानकारी मुझे यहां की आबादी से मिल सकती थी। मुझे इन लोगों से इंटिमेट होना था।
मुझे इन लोगों से घुल मिल जाना था। तो जाकर मुझे सारी जानकारी हासिल हो सकती थी ।फिर मैं यह मन बना रहा था ,कि किसी तरह मैं कुछ दिन के लिए काम पर ही लग जाऊं। जिससे मुझे मालीकान के बारे में जानकारी लेते वक्त किसी को शक और सुबहा न होगा।
क्योंकि जब उन लोगों की मौत होगी !वह लोग मारे जाएंगे, यकीनन कानून के नुमाइंदे मुझे ढूंढेंगे, तक शक जाहिर किया जा सकता है। नए आदमी यहां आकर मालिक के बारे में जानकारी हासिल कर रहा था !क्यों?
जानकारी हासिल कर रहा था? फिर मुझे ढूंढा जाएगा ,इसीलिए मुझे कोई भी जानकारी हासिल करने के लिए यूं पेश आना होगा, जैसे कि साधारण लोग जानकारी हासिल करते हैं।
मैं जानबूझकर उस टेबल के आगे जाकर बैठ गया था ।जहां 2 लोग और बैठे हुए थे। और चावल खा रहे थे।
मैंने होटल वाले से पूछा -रोटी मिल जाएगी क्या? उसने मेरे को बताया -जो चाहो वह मिल जाएगी। यहां पर मगर ,रोटी के लिए इंतजार करना पड़ेगा आपको।
मैं बोला- मैं रोटी के लिए भी इंतजार कर लूंगा। कोई परेशानी नहीं मुझे। मैं जानबूझकर ज्यादा समय उन लोगों के पास रुकना चाहता था। और उन लोगों के मुंह से कुछ बातें निकलवाना चाहता था। टेबल पर पानी रखा हुआ था। मैं गिलास में पानी डालकर हल्का हल्का सिप करने लगा। जब उनका ध्यान मेरी और गया, तो मैंने एक से पूछ लिया- क्या आप यहीं पर रहते हो ?
वह मेरे को देखकर बोला। जी हां हम यहीं पर काम करते हैं। इसीलिए ही पर रहते हैं। शाम को खाना खाने के लिए यहीं पर आ जाते हैं।
मैंने पूछा- क्या यहां पर मुझे काम मिल सकता है?
यहां काम के लिए अखबारों में वैकेंसी निकलती है ।फिर लोग आते हैं-साक्षात्कार के लिए!
लेकिन मैं अभी आ गया हूं। मुझे किसी भी प्रकार से यह काम की जरूरत है ।क्या मिल नहीं सकता?
देखो मैं यहां पर सुपरवाइजर हुं।काम पर लगाना मेरा काम नहीं है ।हां !मैं अगर तुम कहते हो ,तो एक आध दिन में बता सकता हूं। खबर करके। मैं रोज शाम को यहीं पर खाना खाने के लिए आ जाता हूं ।कल भी मैं यहीं पर मिल जाऊंगा ।मेरा फोन नंबर ले लो ।तुम्हारा नंबर हो तो मुझे दे दो।
मैं बोला मैं बहुत दूर गांव से आया हूं। रोजी की तलाश में। कृपया करके किसी तरह मुझे यहां पर नौकरी पर रखवा दो ।तुम्हारी बड़ी मेहरबानी होगी।
मैं फिर बोला-इस इंडस्ट्री के मालिक क्या यह पर रहते हैं? या कहीं और रहते हैं ।अगर पता हो तो बता दो। मैं उनसे जाकर मिलता हूं। नौकरी के लिए रिक्वेस्ट करता हूं।
इस इंडस्ट्री के मालिक यहां पर नहीं रहते हैं। और तुम डायरेक्ट उनसे मिल भी नहीं पाओगे! यह बहुत बड़े लोग हैं। इनका एक अकेला यह इंडस्ट्री नहीं है कई जगह उनके इंडस्ट्री आर हैं। उनसे मिलना बहुत मुश्किल वाली बातें हैं ।हम जैसे छोटे लोगों के लिए।
मैंने पूछ ही लिया- तुम जैसे इंडस्ट्री में काम करते हो! उस इंडस्ट्री के मालिक का नाम याद है ?पता है तुम्हें?
दूसरा बंदा जो खाना खा रहा था वह बोला- मालिक का नाम जानकर क्या करोगे? इतना बड़ा एरिया जो इंडस्ट्री का एरिया, दुकानों का एरिया, सब उन्होंने ही खरीदा है !और इंडस्ट्री बसाने के लिए उन्होंने करोड़ों की मशीन लगाई है। तो छोटे आदमी तो होंगे नहीं। बहुत बड़े लोग हैं ओ।
मैंने अनजान बनते हुए पूछा- पहले तो यहां बहुत बड़ा गांव बसा हुआ था। नौगांव। तुम्हें पता है, उनको लोग कहां पर शिफ्ट हो गए?
या जो भी लोग थे। यह जो झोपड़ियां थी, उनकी तो नसीब ही बदल गई ।उनको सरकार ने, हमारे मालिक ने शहर में जगह देकर ,शहर में बसाया ।और मुआवजा भी दिलाया।
मैंने पूछा- आपको पता है ?उन्हें कहां पर किस शहर पर बसाया?
वह फिर बोला। इतनी जानकारी हासिल करने की हमें जरूरत ही क्या है ?बस यह जानकारी है। कि गांव के सारे लोगों को मुआवजा देकर, किसी शहर में बसाया गया। उन्हें शहर में पक्का मकान बना कर दिया गया ।और उन्हें मुआवजा इतना दिया गया ,कि उनको नौकरी करने की जरूरत ही नहीं। इनके आने वाली 3 पुस्तें आराम से बैठ कर खा सकती है ।इतना मुआवजा दिया गया है।
मैं मन ही मन दोहोराया- मुआवजा! शहर! मकान! कहां पर..!?
कभी उन सरकारी मशीनरी ने पता करने की भी कोशिश की, कि वह लोग कहां चले गए? किसको मुआवजा दिया? कहां उन्हें बसाया?
खास बात तो यह थी! कि या सुदूर पूर्व का गांव, किसी वोटर लिस्ट पर नहीं आता था !कोई नेता यहां पर वोट मांगने नहीं आता था। किसी को यहां से वोट मिलने कि आश भी नहीं थी ।क्योंकि कई घंटे पैदल चलकर आना पड़ता था ।या आने के लिए छोटी छोटी गाड़ियां आ सकती थी। मगर बड़ी गाड़ियां नहीं आती थी।
कच्ची सड़क बारिश के मौसम में और मुश्किलात हो जाती थी। किचड़ जम जाता था। यहां पर कोई पार्टी बाद नहीं था । किसी भी पार्टी का यहां बोलबाला नहीं था ।सरकार की नजर इस पर नहीं थी।
यहां पर बसे लोगों के, हिंदुस्तान के नक्शे में कोई चिन्ह नहीं था।
कहने के लिए हम हिंदुस्तान में थे। हिंदुस्तानी थे ।मगर कोई भी सरकारी व्यवस्था, सरकारी सहूलियत ,यहां पर उपलब्ध नहीं था। ऐसा क्यों था? यह सोचने वाली बात थी। पगडंडियां पैदल चलकर कई घंटे का रास्ते तय करके लोग यहां से शहर जा पाते थे।