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कत्ले गारत 18

7 जनवरी 2023

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मुझे पता था ।मेरा रास्ता आसान  नहीं था। मुझे यह भी पता था। जिन चार लोगों पर मैंने हमला किया था। वह लोग यकीनन कोई न कोई मेरे पीछे आने वाले थे। उन के मुताबिक वह सिर्फ चार नहीं थे ।पूरा कुनबा था। उनका लुटेरों का कुनबा।
शायद लुटेरों का कुनबा अपने पर हुए हमले पर बर्दाश्त नहीं कर पाता। और पूरा  ग्रुप मेरे पीछे लग सकता था। क्योंकि जिनको मैंने पहले जख्मी किया था ।वह पहले ही वहां से भाग चुके थे।
और वह अपने कुनबे को, मेरे पीछे लगाने के लिए बुला कर ला सकते थे। अगर उनका अड्डा कहीं पास होता तो ,यकीनन वहां तक आ चुके होते।  उनका अड्डा या उनका रहने का ठिकाना घटनास्थल से दूर रहा होगा। इसलिए उनको आने में देर हुई होगी।
मैं यही सोच रहा था। कि आज के मॉडर्न जमाने में भी यह लोग। यह लुटेरे पौराणिक काल के लुटेरों की तरह क्यों रहते थे। डीजिटल  जमाने में भी हो इस तरह से क्यों रहते थे। क्या उनके पास कोई डिजिटल साधन नहीं था। फोन ..मोबाइल?
फिर मैंने अपने बारे में सोचा। सही में मेरे पास भी तो कोई ऐसा साधन नहीं है। डिजिटल साधन मोबाइल या कोई लैपटॉप। ऐसा तो कुछ मेरे पास भी नहीं था। इसका मुख्य कारण था पैसा।
 पैसे के बगैर तो कुछ होता नहीं था। और मैं भी ऐसी जगह रह रहा था ।जहां पर पैसे की कमाई ना के बराबर होती थी। एग्रीकल्चर जो भी सामान पैदा होता था। उसे बेचने के लिए बहुत दूर ले जाना पड़ता था।
 जिससे मेहनत और खर्चा ज्यादा बढ़ जाता था। इसीलिए भी गांव के लोग इस बात पे जादा जोर नहीं देते थे ।कुछ सामान आसपास के गांव में लेकर बदल के आते थे ।और कुछ थोड़े बहुत पैसे कभी कभी मिलते थे । वह घर के कुछ सामान नमक कपड़े लत्ते आदि खरीदने में लग जाते थे।
घर की औरतें कई सामान कई कपड़े ,जैसे चादर हो गए, साड़ियां हो गई, आदि घर में ही बुन लेती थी ।और बाकी के मर्दों के कपड़े शहर से ही लाना पड़ता था। शहर से लाने के लिए सामान शहरों में लेकर बेचना पड़ता था। जो बहुत मेहनत का काम था।
सरकार ने अभी तक कोई सड़के नहीं बनाई थी। ना गाड़ी चलती थी ।कहीं दूर तक कई घंटों के रास्ते पैदल चलकर फिर आगे गाड़ी पकड़नी पड़ती थी ,शहर जाने के लिए।
मेरा घोड़ा सरपट आगे दौड़ रहा था। और उसी के साथ मेरे दिमाग में कई ख्याल आते जाते रहे थे।
मैं घटनास्थल से कहीं दूर निकल चुका था। मुझे अब लगता था ,कि वह मेरे पीछे आ नहीं सकते थे। मगर मेरी यह गलतफहमी थी ।मैंने कुछ लोगों को अपने आगे ही आते देख लिया था। मैं उन सब से बच के निकल जाना चाहता था ।मैं नहीं चाहता था ,कि मैं उनसे बेवजह भिड़ू।
मैं घोड़े पर था। और मैं उनसे रास्ता बदलकर, आगे निकल जाना चाहता था। क्योंकि मैंने देखा वह अब गिनती में 7,8 के करीब थे ।और उनके हाथों पर किसी के हाथ में तलवार किसी के हाथ में भाले से दिख रहे थे।
मैंने अपना रुख चेंज करना चाहा, बदलना चाहा ।मैं उनकी और ना बढ़कर दूसरी और आगे निकल चुका था। झाड़ियों में होते हुए आगे निकल जाना चाहता था।
मैं आगे किसी मकसद से निकला हुआ था ।और उस मकसद को पूरा करने के लिए मुझे यहां से पार होना जरूरी था। सबसे पहले मैं अपने उस पुराने गांव पर जाकर मुआयना करना चाहता था। क्या हुआ था? क्या अब बचा हुआ है ,और क्या हो रहा है? यह सबसे पहले जरूरी था!
इन सब से भिड़कर मैं अपना जरूरी वक्त, खराब करना नहीं चाहता था। अपनी शक्ति यहीं पर खत्म करना नहीं चाहता था ।क्योंकि मुझे आगे धौर्य और शक्ति की जरूरत थी। और पैसे की भी शख्त जरूरत थी।
मुझे उनसे भिडने की जगह ,बचकर निकलने में ही अपनी भलाई लगी थी। चलते चलते मैंने घोड़े की गर्दन को थपथपाया  और उससे बोला। हमें यहां से बचकर निकलना है। जल्दी आगे दौड़ लगाले, मुझे यह किसी से भिड़ना नहीं है। मेरे घोड़े को इशारा मिल चुका था।
 इतना कहते ही वह हवा में बातें करने लगा। इतनी तेज रफ्तार कर दी उसने कि पीछे आने वाले सोच भी नहीं सकते थे। कि पैदल कोई हमारा पीछा करें।
हम भागे जा रहे थे, भागे जा रहे थे ।भागते भागते एक छोटी सी पथरिली नदी  थी। उस नदी को हमने पार कर लिया था।
पहाड़ी नदियां कही कही छिचली हो जाती थी। और कहीं कहीं 
 बहुत गहरी हो जाती थी। छिचली भाग से हमने नदी को पार कर लिया था। मगर यह क्या यह लोग ,तो यहां पर पहुंच गए थे। शायद उन्होंने ठान ली थी ।मुझे घेर कर किसी तरह मार डालने की उनकी मंशा थी। क्योंकि उनके 3 लोगों को, मैंने चोट पहुंचाई थी। और उनके लिए यह इज्जत और आबरू की बात हो गई थी।
फिर भी मैंने उनसे बचने की बहुत कोशिश की थी। कि मैं उनसे दो चार हाथ करना ना पड़े। इसलिए मैं घोड़े को एड लगाकर तेज भग रहा था। मगर उसी समय भाले को आगे रखे हुए 3 लोग आगे आ गए थे।
और उनमें से एक चीख पड़ा था। अब तुम हमारे हाथों से बचके नहीं जा सकते। और मेरे पीछे ही तीन चार लोग आ गए थे।
मुझे डर था, कि वह लोग मुझ पर पीछे से ही भाले का प्रहार कर देते तो मैं  बेमौत मारा जाता।
उनमें से एक चिखता हुआ मेरे से बोला- घोड़े से तू उतार ले, तेरी तो बस अब हम बोटी बोटी करने वाले हैं। उनमें से दो के हाथ में तलवार भी था।नंगी तलवार।
सबके पास तलवार भी थी। कमर पर लगी हुई। मैं खौफ जदा नहीं था।
मेरे हाथ में भी तलवार थी। और मुझे अपने तलवार पर पूरा भरोसा था। मैं अकेले 10,12 हथियारबंद लोगों को धराशाई कर सकता था। मगर मैं उन लोगों की दुर्गति पर मातम भी नहीं बना सकता था। क्योंकि, यह लोग इस वक्त मेरे दुश्मन बन के सामने खड़े हुए थे। और मैं अपने दुश्मन की सलामती की दुवाएं क्यों कर देने लगा , मैं तो उसकेसांसे उखाड़ने की सोच ने लगा।
तभी उनमें से एक फिर से चीखा , बोला -नीचे उतर जा। और आज तेरी हम बोटी- बोटी करने वाले हैं।
बोटी बोटी तुम करोगे या मैं करूंगा यह तो वक्त ही बताएगा मैं बोला।मैंने दो धारी तलवार निकाल लिया था। 
 यह हमारी इज्जत का सवाल है ।इसको खत्म करो। हमारे इलाके में ,आ के हमें जख्मी करके बचकर भाग जाए, यह हो नहीं सकता।टुक पड़ो।
सर मेरी ओर यूं  बढ़े , जैसे अब तो मार ही डालेंगे।
फिर वही सख्श बोला- घेर  लो इसको।
जब तक वह मुझ पर झपट पड़ते।  मैंने अपने दो धारी तलवार को यूं घुमाया फिर तो इंसान जख्मी हो गए।
एक्शन में तो वे थे,ज़ख्मी भी वही हो गए। बाकी बचे लोग मुझ पर जैसे झपट पडते घोड़े ने हिना हिना  कर दो पैरों में खड़ा हो गया।  और एक के छाती में दो पैरो से सिने में  बार किया। मेरे घोड़े को भी सायद समझ आ गई थी। वे लुटेरे थे ,और मुझे मेरे घोड़े को अलग करना चाहते थे।
जिसके सीने पर घोड़े  के दो लात पड़ी थी। वह इंसान वही  पर धराशाई हो गया। एक लुटेरा जो मेरे सीने में अपना वाला भोकना चाहता था। उसकी ओर तवज्जो जाते ही मैंने अपना तलवार को यूं  घुमाया कि उसका भाला दो टुकड़ों में बट गया।  उसी समय मैंने फिर  फिर तलवार चला दी। 
मेरी तलवार के बार से वह इंसान फिर से जख्मी हो गया था। चौथा पांचवा मुझ पर टूट पड़ना चाहता था। मगर मैंने किसी को भी अपने ऊपर हावी होने का मौका नहीं दिया।  लुटेरे उस जमीन पर धराशाई हो गए थे।
मेरी तलवारबाजी के आगे  आठों का एक भी बस न चला था।
वे अपना हथियार- वथियार फैक कर भाग खड़े हुए थे । मैं उन पर चीख पड़ा था। अरे कायरों,।! क्यों भागे जा रहे हो! आओ दो-दो हाथ और कर लो, जिंदगी की अगर तुम्हें कोई अभिलाषा नहीं है तो!
मगर वे सुनने वाले नहीं थे। उनकी खौफ़ की सीमा नहीं थी। वह समझ गए थे- कि किसी भारी चीज से टकरा रहे हैं! जिसे उन्होंने हल्का समझ रखा था !वह हल्का नहीं उनसे भी भारी था! वह कोई मामूली इंसान नहीं था! जो इंसान 8 लोगों के, आठ हथियारबंद लोगों के काबू में नहीं आ रहा था। वह सच में किसी लड़ाके से कम नहीं था।
बिजली के बराबर चुस्त फुर्त और तेज तर्रार
 था। वह समझ चुके थे, कि वह उनके काबू में आने वाला नहीं था। उससे पार पाना उनके लिए मुश्किल काम था। इसीलिए उन्होंने खुद भाग जाने में ही अपनी भलाई समझी, और वहां से पलायन कर गए थे।
जान बची लाखों पाए, घर को बुद्धू लौट के आए।

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रचनाएँ
कत्ले गारत
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बदले और खून से सनी खूनी सफर सफर का इतिहास है ।जिसे हम कत्ले गारत का नाम देकर यहां प्रस्तुत करना चाहते हैं।
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कत्ले गारत 1

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यह उपन्यास काल्पनिक है ।जिसका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं ।या फिर किसी वास्तविक व्यक्ति या समुदाय को चोट पहुंचाने के लिए कतई लिखी गई नहीं है। &n

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घर पर कई काम हो सकते थे। जानवर पाल रखे हो तो जानवर के लिए ।चराना चलाना आदि काम रखरखाव का काम हो सकता था। गाय भैंस हो तो इसको रखरखाव के लिए उससे दूध दुहने के लिए, उसको पानी सानी करने के लिए

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टेंडर किसी व्यापारी के नाम पर छूट चुका था। व्यापारी क्या वह अपने आप को बहुत बड़ा इंडस्ट्रियलिस्ट समझता था। वह चाहता था। किसी तरह भी इस गांव को खाली कर दिया जाए ।क्योंकि ,उस गांव से ही होकर वह रास्ता प

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गांव के लोगों की खासियत होती है- वह जो थोड़े में संतुष्ट हो जाते हैं। वह नहीं सोचते कि वह कार पर चले। वे यह नहीं सोचते कि बहुत बड़ा बंगला बने, वे नहीं सोचते कि बहुत बड़ी कोठी हो ।बस दो वक्त की रोटी बी

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2 जनवरी 2023
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मेरी जिंदगी में सिर्फ एक ही लक्ष्य बचा हुआ था। और वो लक्ष्य था किसी तरह भी उन खूनियों का खात्मा करना। क्योंकि मुझे पता था। कि यह सारा सरकारी नुमाइंदों की मिलीभगत में हुई थी। इसलिए कानून का सहारा लेना

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अब बापी भी बड़ी हो चुकी थी। 10:11 साल की हो चुकी थी। दीदी के गोद में दूसरा एक बच्चा भी आ चुका था। उसकी भी उम्र अभी 4 साल की हो चुकी थी। मैं अग्निपुत्र- इस परिवार का एक अभिन्न अंग बन चुका था ।परिवार का

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यह वक्त नहीं था। कि मैं पंडित जी के साथ जाउं। गांव पहुंच कर खोजबीन करूं! जहां गांव के बारे में गांव की आबादी के बारे में नोटेड होता है ।क्योंकि ,अभी हम पुष्पलता के इलाज के लिए आए हुए थे। और जरूरी था,

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आज शहर में आए हुए तीसरा दिन था। पुष्प लता लगभग ठीक हो गई थी। मेरे इकरारेईश्क के बाद उसका बुखार धीरे-धीरे कमता चला गया था। या यूं कहें कि दोनों की एकरार के बाद बुखार लगभग उसी, समय कम हो गया था।मु

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4 जनवरी 2023
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पुष्पा को समझ आ चुका था। जिंदगी के बारे में। पुष्पा को इस बात की समझ आ गई थी। जो जिंदगी में जीने के लिए पैसे की भी जरूरत होगी। जो मैं शहर जाकर ही कमा सकता था। गांव में रहकर तो हम सिर्फ खा पी सकते थे।

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मैं जिस रास्ते से इस गांव में आया था। उसी रास्ते से ही मुझे लौटना था। इतने सालों के बाद भी मैं वो रास्ता कभी भूल नहीं पाया था। वह नदी पार करना ,नदी पार करके फिर इस गांव में आना ,जब मैं कभी भूला नहीं प

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6 जनवरी 2023
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वे चार लोग थे ।और मैं उनके बीच में एक अकेला लेटा हुआ था। और मेरी नींद को देखते हुए उन लोगों ने जागाने के लिए एक ने मुझे छू करा आवाज लगाया था।उनकी आवाजों से मेरी आंखें खुल गई थी। मैंने नजर इधर-उधर घुमा

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8 जनवरी 2023
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बीच में आए इन सब लोगों से मैं खुद को बचाना चाहता था।। मेरा मकसद अपने गांव तक पहुंचना था। यह देखना था ,उस कत्ले गारत में कोई बचा तो नहीं ।या यह जानना था -कि कत्ले गारत के बाद वहां इंडस्ट्री बसा है

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8 जनवरी 2023
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मुझे बहुत आगे निकलना था। वक्त बहुत जाया हो चुका था।मैंने आसमान की ओर देखा। सूरज क्षितिज पे कहीं छुपने की तैयारी कर रहा था। मुझे अपने गांव आगे बढ़ना था। और रात के रुकने की व्यवस्था भी करना था। मेरा घोड

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10 जनवरी 2023
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मकान के बाहर सारागांव जमा हो गया था। सारा गांव ही एक कुनबा था। गांव के लोग में एकता थी एक स्वर बद्धता थी ।जो वहां जमा होने पर दिखती थी।गांव के बड़े बुजुर्ग की आंखों में आंसू थे। बच्चे भूल से गए थे। उस

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11 जनवरी 2023
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उन के अंदर की ज्वाला को मैंने भड़काने की कोशिश की। उनके अंदर की ज्वाला शायद शांत हो चुकी थी ।या कुछ न कर पाने की वजह से वह चुपचाप हो गए थे।शायद वह नहीं चाहते थे ,कि जो बचे खुचे हैं, उनको कोई नुकसान पह

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कत्ले गारत 23

13 जनवरी 2023
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मुझे अब भटकने की जरूरत नहीं थी। गांव वालों को पता था । वह पुराना गांव हमारा कहां पर है.. किस रास्ते से वहां पर जा सकते हैं!मैं अकेला ही उस ओर जाने के लिए तैयार था। मैं सबसे पहले उस धरती का दर्शन चाहता

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कत्ले गारत 24

14 जनवरी 2023
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जब मेरी आंखें खुली, चट्टानों में बैठे-बैठे मुझे नशा सा छा गया था। जिसकी वजह से मैं वहीं पर लुढ़क गया था। करीब चार-पांच घंटे यूं ही मैं बेहोश सा पड़ा रहा। जब मेरे घोड़े ने मुझे

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कात्ले गारत 25

17 जनवरी 2023
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मैं पानी पीकर और हाथ मुंह धो कर अपने गांव की ओर मुड़ा। चारों तरफ बाउंड्री लगी हुई, बीच में कोई इंडस्ट्री बसी हुई थी। बाउंड्री पत्थरों से दीवार बनाई गई थी इस पार से उस पार देख पाना मुमकिन नहीं था

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कत्ले गारत 26

18 जनवरी 2023
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मैं अपने गांव में था। जो अभी फिलहाल इंडस्ट्री में तब्दील हो गई थी। और मेरे अपने लोग यहां कोई नहीं था। मेरा अपना मकान भी नहीं था।मैंने गांव की मिट्टी को अपनी मुट्ठी में लिया दिल से लगा लिया। सच म

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20 जनवरी 2023
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कामदारों से मुझे सिर्फ इतना ही पता चल सका था, कि वह अरबों पति लोग थे ।उनके पास पहुंचना मुश्किल काम था। मैं साइबर में बैठकर,इन लोगों का रिहायश, ऑफिस पता लगाना चाहता था। यूं तो वे लोग यहां भी

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23 जनवरी 2023
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मार्गरेटा से टोपला बस्ती, ज्यादा दूर नहीं था। करीब 20 किलोमीटर का रास्ता था । ऑन द रोड।अगर मैं अपने घोड़े पर ही टोपला बस्ती पहुंचता तो, लोग यही समझते ,कि कोई बैंड बाजा बारात वाला ही होगा। जो किस

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कत्ले गारत 29

24 जनवरी 2023
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अंधेरी रात थी। आसमान में तारे चमक रहे थे। मगर टोपला बस्ती का यह एरिया ,रोशनी से जगमग आ रहा था। ऐसा लगता था जैसे आसमान के सारे तारे जमीन पर उतर आए हो। और कोठियों में जगमगा रहे हो।जहां मैं ठहरा था , रिस

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कत्ले गारत 30

25 जनवरी 2023
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मौसम इतना ठंडा नहीं था। फिर भी मैं अपने घोड़े को खुले छत में नहीं रख सकता था। रात को रुकने के लिए उसे भी छत चाहिए थी । घास चाहिए था ।और खाने के लिए दाना भी चाहिए था ।पानी भी चाहिए था। उसकी फिकर मुझे अ

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कत्ले गारत 31

29 जनवरी 2023
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अभिषेक ने जो कार्ड दिया था। उसमें सिर्फ उसका नाम और फोन नंबर लिखा हुआ था।और कहा था ।दो दिन बाद कॉल कर लेना। आज तीसरा दिन था। मैंने अभिषेक को कॉल किया था।अभिषेक निहायत ही शरीफ और ईमानदार शख्सियत था। और

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कत्ले गारत 32

30 जनवरी 2023
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मैंने ,अपने घोड़े को अस्तबल में ला के बांध दिया था। अस्तबल में घोड़े के लिए चारे की भी परेशानी नहीं थी।घोड़ा मवेशियों के साथ खुश रह सकता था। मैंने अपने कमरे की सफाई के लिए चाची को बोल दिया था। कमरा सा

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कत्ले गारत 33

31 जनवरी 2023
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कहते हैं - गुनाह कभी छुपता नहीं ।कभी न कभी गुनाह, नासूर बन के दिल को ,कचोटने लगती है।यह कुदरत का न्याय है। बदला लेने के लिए कुदरत ही तैयार करती है। मजलूम पर किया गया जुल्म कभी खाली नहीं जाता। उभ

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