मेरी जिंदगी में सिर्फ एक ही लक्ष्य बचा हुआ था। और वो लक्ष्य था किसी तरह भी उन खूनियों का खात्मा करना। क्योंकि मुझे पता था। कि यह सारा सरकारी नुमाइंदों की मिलीभगत में हुई थी। इसलिए कानून का सहारा लेना बेमानी बातें थी।
और कानून मेरी दलील को विश्वास करने से रहा ।क्योंकि उनके सारे नुमाइंदे बिके हुए थे। वरना इतना बड़ा कत्ले गारत अंजाम दिया गया। और इसकी हवा किसी को लगी भी नहीं। यह संभव कैसे हो सकता था?
मेरा पूरा का पूरा गांव श्मशान में तब्दील हो गया। जल जलें में जलाकर खाक कर दिया गया ।फिर भी किसी को हवा तक नहीं लगी।
न किसी मीडिया को पता लगा ,किसी चैनल को पता लगा । अचानक इस तरह से गायब होने के पीछे ;मीडिया ने भी कोई जिक्र नहीं छेड़ा! कहां गये यह लोग ?क्या हो गया इन सब का ?अचानक इतने सारे मकान राख में कैसे तब्दील हो गए?
बस विश्व के नक्शे से यह सारे मकाने जैसे-- बच्चे कैनवस में चित्र बनाते हैं !और रबड़ से मिटा देते हैं !उसी तरह यह सारे कैनवस में बने हुए चित्र की तरह मिटा दिए गए! न कोई मीडिया का रिएक्शन हुआ,न कोई मीडिया पर्सन यहां पर आया।
कभी किसी न्यूज़ मीडिया ने, कभी किसी डिजिटल मीडिया ने, उस गांव ,इस गांव के लोगों को इस गांव में बसे उन इंसानों को, कीड़े मकोड़े की तरह सोच लिया ।
न कभी ढूंढने की कोशिश की गई, सरकारी खाते में सारा डब्बा बंद कर दिया गया।
जिसकी वजह क्या थी ?सरकारी नुमाइंदों की की घुसपैठ ।सरकारी नुमाइंदों का कत्ले गारत में सामिल होना ।और डाटा को ही गायब कर देना।
एक पूरा का पूरा गांव जिसमें करीब 200 मकानें थी ।जलकर खाक में तब्दील हो जाते हैं। उन में रह रहे इंसान सारे जलकर खाक हो जाते हैं। और सरकार की कानों में जूं तक नहीं रेंगती ,इसकी वजह क्या थी ?
सरकारी नुमाइंदे भी इसमें शामिल थे। उन्होंने भी ईस कत्ले गारत में लगी आग में अपनी रोटी सेकी ।
बदनसीब गांव वाले जलकर खाक हो गए। जैसे कभी कुछ था ही नहीं , विश्व के मानचित्र से उनका,उनके गांव का नामोनिशान मिट गया । इनके दर्दनाक मौत पर ,दर्दनाक क़त्ल पर , रोने के लिए कोई एक भी इंसान बचा नहीं --सिर्फ अग्नि पुत्र के सिवा ।
रोने के लिए ,दो बूंद आंसू बहाने के लिए ,भी कोई बचा नहीं। बदनसीबी उनके जिंदगी में यूं तारी हुई ,कि उनको चिता भी नसीब ना हुआ। बदनसीब उन गांव वालों की जिन्होंने अपने सब कुछ उस आगजनी में खो दिया ।अपनी जिंदगी तक कोई बच ना पाए। उस आगजनी में पूरे गांव वालों को जिंदा जला दिया गया।
अब !?
अग्नि पुत्र को इस कत्ले गारत का बदला लेना था।
उसका दारोमदार वही था। कत्ले गारत का गिन-गिन के बदला लेने के लिए ही अग्निपुत्र को कायनात ने शायद जिंदा रखा था।
और कायनात उसे तैयार कर रहा था ।सारी कायनात मिलकर उसे उस कत्ले गारत के बदला लेने के लिए तैयार कर रहे थे। कायनात चाहता था ,गारत के दोषियों को तड़पा तड़पा कर मारना। इसीलिए उसने अग्निपत्र को जिंदा रखा था। अग्नि पुत्र को इसलिए तैयार कर रहा था।
अग्नि पुत्र के दिल में इसीलिए उसन आग सुलगा दी थी।
"याद रहे कायनात किसी को बख्शती नहीं। कायनात किसी को किए हुए गुनाह के लिए, माफ नहीं करती। उसे जरूर सजा देती है ।यहीं, इसी धरती पर ,उसे सजा भुगतना ही पड़ता है। यही कायनात का कानून है। यही कायनात का इंसाफ है। यही कायनात की खासियत है। जिसने भी कायनात के कानून को छेड़ा है। जिसने भी कायनात के कानून से गलत किया है। जिसने भी कायनात के खिलाफ इंसानियत को नेस्तनाबूद किया है। उसे कायना जरूर सजा देगी। कायनात खुद नहीं आती उसके लिए, वजह पैदा करती है। और वह वजह वजह है --अग्निपुत"
अग्नि पुत्र की दिल की बातें किसी को पता नहीं था ।ना ही कभी किसी को अग्निपुत्र ने बताया भी नहीं ।
कथित दीदी को भी नहीं ।कथित जीजा को भी नहीं ।
वहां गांव के किसी लोगों को अग्नि पुत्र के असलियत के बारे में , उसके साथ गुजरी हादसे के बारे में, किसी को पता नहीं था।
न हीं भृगु चाचा को ,उसने बताया था। बस भृगु चाचा उसे तैयार कर रहे थे ।
किस लिए तैयार कर रहे थे ?उनको कुछ पता नहीं था !मगर कायनात उनसे सब कुछ करा रही थी।
कायनात के मंसूबे के आगे सारा खेल बेकार था।
कायनात ने उसे मजबूती से तैयार कर लिया था। कायनात ने अग्नि पुत्र के ह्रदय में आग लगा दिया था। कायनात ने जो भी किया था, कायनात की बातें थी ।हम आप कुछ नहीं कर सकते।
अग्नि पुत्र ने अपने दिल में आग ली थी। अग्नि पुत्र ने बदले की आग को अंदर ही अंदर दबा रखा था।
अग्नि पुत्र ने अपने आप को तैयार करने में कई साल लगा दिए ।
जब उसने कत्ले गारत से अपने आप को बचा कर भाग निकला था। जिसके मां बाबा आग में जल रहे थे ।और उनकी आवाज आ रही थी... भाग अग्नी.. भाग…. भाग खुद को बचा ले। भाग अग्नी.. भाग.. खुद को बचाले।
हमारे पीछे मत आ.…! किसी के पीछे मत आ.. भाग भाग अग्नि भाग!
अपने बाबा की आवाजें , अभी तक उसके कानों में गूंज रही थी ।
अपनी मां की आवाजें उसके कानों में अभी तक गूंज रहे थे।
उन मरते हुए लोगों की चीख पुकारें.. करहाते हुए लोगों की चीख पुकारें। लोगों की चीख-पुकार ।लोगों के हा…हा कार ओ क्रनदन ।अभी भी उसके दिल में आग बनकर सुलग रही थी।
और गांव वालों की मौत की चीख-पुकार के बीच अग्निपुत्र ने अपने को तपाया।
उस बदले की आग में खुद को तील-तील करके जलाया।
बदले की आग को अपने सीने में छुपाए रखा। और सही वक्त का इंतजार करता रहा।
और बदले के लिए
खुद को तैयार कर लिया। उसने अपने आपको सबल कर लिया ।
मगर अभी भी कुछ चीज बाकी थी ।अभी भी उसके पास साधन न थे। मगर फिर भी उसने अपने जिस्म को अपने अंदर के आगको यूं भड़का लिया था। कि बदले की आग अब उनके खून से ही बुझने वाली थी। उन जालिम इंसानों के खून से बुझने वाली थी। उन जालिम इंसानों की मौत से ही शांत होने वाली थी।
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