आसमान की ओर मैंने नजरें उठाकर देखा। क्षितिज में मुझे कहीं लाली सी ऊभरती दिखी। ऐसा लग रहा था। कुछ देर में उजाला होने वाला ही था। इसीलिए भी वह छोटी सी नदी मुझे साफ सी नजर आ रही थी।
मैं भागते -भागते आसमान की ओर जब नजर उठा कर देखा था ।मुझे लगा था ।कि आसमान में ध्रुव तारा दिख रहा है ।और ध्रुव तारे की स्थिति को देखकर मुझे लगा था। कि मैं पश्चिम की ओर चल रहा हूं।
जिसे मैं ध्रुव तारा समझ रहा था वह ध्रुवतारा नहीं था ।वह शायद कोई दूसरा ग्रह था ।अब आसमान में सूरज उगने वाला था ,तो मुझे लगा कि मैं पूरब की ओर भागे जा रहा था।
फिलहाल अभी मैं किसी नदी के पास छोटे से गांव के पास ही खड़ा था। जो नदी मुझे दिख रही थी बिल्कुल साफ पानी का छिछली पहाड़ी नदी थी।
मैंने नदी में उतर कर पेट भर कर मैंने पानी पी ली थी। पानी से तो मेरा पेट भर गया था। लेकिन खाने का भूख पानी से मिट नहीं सकता था। उसके लिए मुझे खाने की ही जरूरत थी। जब सामने एक गांव दिख रही थी। तो मुझे लग रहा था ।कि कुछ ना कुछ खाने को इस गांव से मिल सकता है।
अब मैं पौ फटते-फटते उस गांव की ओर जाने वाला था। जाने वाला क्या था, मैं उस गांव की ओर निकल ही पड़ा था।
घोड़े ने भरपेट पानी पीने के बाद मेरी ओर देखा, और पानी फुर फुर करके मेरी और उड़ाया ।जैसे कह रहा हो कि पानी बिल्कुल पीने लायक है।
सबसे पहले तो मैं ऊपर वाले का शुक्र अदा कर रहा था ।और मैंने अपने घोड़े को लाख-लाख धन्यवाद दिया था ।जिसने मुझे आज यहां तक जिंदा पहुंचाया था। घोड़ा ना होता तो शायद मैं यहां तक जिंदा पहुंच न पाता।
क्योंकि उस कत्ले गारत में अगर मैं भी मारा जाता तो कोई बड़ी बात नहीं थी। दहशतगर्दो ने पूरे गांव को जला डाला था ।सारे लोगों को मार डाला था। शायद दो-चार मेरे अलावा भी किसी तरह बचकर भाग गए हो ।यह मेरे समझ के बाहर थी ।मैं तो सिर्फ अपनी जान बचाने के लिए अपने घोड़े पर सवार भागता रहा।
जब इतने लोग मारे गए ,मेरा भी मारा जाना कोई बड़ी बात नहीं थी। क्योंकि मैं कोई सुपरमैन तो नहीं था। मैं भी एक साधारण सा इंसान था।
अब जिस गांव में प्रवेश करने जा रहा था। अपनी भूख मिटाने के लिए किसी घर के द्वार को खटखटा रहा था। तो मैं समझ नहीं पा रहा था। कि मैं क्या परिचय दूं अपना।
सबसे बढ़िया बात यह थी, कि मेरे शरीर में किसी प्रकार के चोट ना आई थी। ना ही किसी प्रकार के चोट के निशान थे ।और भागते वक्त मेरे हाथ में कोई हथियार भी नहीं था। मैंने सिर्फ जान बचाने के लिए घोड़े पर सवार भागता रहा।
मैं अगर हथियारबंद होता ,तो लोग मुझे शायद लुटेरा या अपराधी समझ सकते थे। और हथियार न होने की वजह से मुझे लोग बेचारा समझ सकते थे।
मैंने अपने परिवार के साथ हुई दुर्घटना को या किसी से जिक्र नहीं करना और अपने साथ भी हुई बातों को किसी से जिक्र न करने की ठान ली थी।
शायद तब जाकर मुझे मुझ पर कोई विश्वास करता, इस वक्त तो मुझे किसी तरह अपनी भूख मिटाने थे।
अगर मैं अपने कबीले का सही-सही ठिकाना बताता। मेरे साथ हुई दुर्घट इस घटना को बताता ,मुझे डर था ।कि मेरे बचके भागने में और कोई ऐसा ना हो किसी गांव के लोग भी वह कत्ले गारत में शामिल हो ।और मुझे बचता हुआ देखकर यही पर मेरी समाधि न बना दें।
इस वक्त में नदी को पार कर चुका था ।और थोड़ी सी चढ़ाई चढ़कर फिर मैं गांव की ओर जा रहा था ।अपनी भूख मिटाने के लिए किसी के दरवाजे को खटखटाना था मुझे।
क्योंकि इस वक्त मुझे जोर की भूख लगी थी। और मुझे खाने की जरूरत थी। मैं घोड़े को लगाम से पकड़े पैदल ही घोड़े को लिए मैं उस गांव की ओर चल पड़ा था। मैंने देखा था कि दो चार घरों में से अभी धुआं उड़ रहा था। इसका मतलब -घर के अंदर खाने का सामान बन रहा था। मैं उन्हीं धुएं उडते मकानों के ओर चल पड़ा था।
मैं घोड़े को लगाम थाने थामें पैदल ही गांव के उन मकानों की ओर चल पड़ा था। कुछ कुछ लोग गांव में इधर उधर आते जाते भी दिखे थे। लेकिन किसी ने मेरी और खास तवज्जो नहीं दी।
ईस बात से मुझे कोई ताज्जुब नहीं हुआ। क्योंकि ,मैं भी उन्हीं लोगों में से एक लग रहा था। कोई दूसरे ग्रह से आया हुआ एलियन तो दिख नहीं रहा था।
एक मकान के आगे मैं अपने घोड़े को लिए खड़ा आवाज लगा रहा था --घर पर कोई है? घर पर कोई है क्या?
मेरी आवाज लगाने पर एक छोटी सी बच्ची ने जिसकी उम्र 5 सात साल की रही होगी ।दर्शन दिया ।और मुझसे पूछा -क्या चाहिए आपको, कौन हो आप?
उस बच्ची को सामने देखकर मैंने बोला- घर पर कोई तुमसे बड़े लोग नहीं हैं क्या?
बच्ची अजनबी निगाहों से देखते हुए बड़े मासूमियत से बोली -है ना! मां है बाबा है! आपको किससे बात करनी है?
मैं बोला- किसी को भी बुला लो बेटा ,कोई भी तुम्हारी मां या बाबा!
मेरी बातें सुनकर वह बच्ची बोली- ठहर जाओ! मैं बाबा को बुलाती हूं !कहती हुई और भागती हुई झोपड़ी के अंदर घुस गई।
घर के अंदर से एक मर्द बाहर निकला और पूछा- क्या चाहिए आपको?
मैं उस व्यक्ति से हाथ जोड़ता हुआ सा बोला। मैं बहुत दूर से आया हूं ।2 दिन के सफ़र से ।मैं 2 दिन से कुछ खाया पिया नहीं हूं ,भूखा हूं। आपके पास आया हूं ।आपके शरण में ।क्या कुछ खाने पीने के लिए मिल सकता है?
उस व्यक्ति ने मुझे बड़े ध्यान से ऊपर से नीचे तक देखा। मेरे घोड़े को देखा ।फिर बोला- थोड़ा सा समय दे दो !मैं आपको भरपेट खाना खिलाता हूं!
मैं बोला मैं इंतजार कर लूंगा ,क्योंकि मैं 2 दिन से भूखा हूं। कुछ न कुछ मेरे को खाने को दे दो।
वह व्यक्ति घोड़े की ओर देखता हुआ बोला- आप अपने इस घोड़े को इस खुटी पर बांध सकते हैं ।और आवाज लगाता हुआ उस बच्ची को बुलाया। बोला -भाई साहब के लिए यहां चटाई बिछा दो ।भाई साहब आराम जब तक करेंगे खाना बन जाएगा। कहता हुआ वह सख्श झोपड़ी के अंदर चला गया।
मुझे तसल्ली हो गई थी। कि अब मुझे यहां खाना मिलने वाला है ।क्योंकि मेरी भूख बढ़ती जा रही थी ।पेट में चूहे कूदने लग चुके थे।
कुछ देर के बाद छोटी बच्ची हाथ में चटाई लेकर अंदर से बाहर आई। और उसके बाबा भी हाथ में एक लोटा और गिलास नुमा कोई दूसरा बर्तन साथ में लेकर बाहर आया।
वह व्यक्ति बोला- अगर आपके घोड़े को पानी पिलाना हो तो बता दो!
मैं बोला घोड़े ने पास के नदी से पानी खूब ली मैंने भी उसी नदी से पानी से पेट भर लिया है। मगर भूख का क्या करूं ?नदी में उपलब्ध नहीं था !इसीलिए मैं आपके दरवाजे पर आ गया।
उसने मुझसे सवाल पूछा -क्या आप कहां से आए हो ,और किस लिए आए हो?
मैं बोला -रोजगार की तलाश में घर से निकला था। मगर मैं राह भटक गया हूं ।मुझे कोई राह दिखाई नहीं दे रहा ।कल से मैं इस घोड़े के साथ चला जा रहा हूं ।मुझे कोई छोर मिल नहीं रहा।
मैं बोला रोजगार की तलाश में दिशा विहिन में चलता रहा .चलता रहा ।और मैं भटक गया ।मेरे साथ मेरा यही घोड़ा है ।इसके तो खाने के लिए कुछ भी मिल जाता है ।घांस चर लेता है ।मगर इंसान क्या करें, क्या खाएं?
वह बोला- यहां दूर-दूर तक कोई भी शहर नहीं है !जहां आप को रोजगार मिले ।ऐसे छोटे-छोटे गांव तो आपको बहुत मिलेंगे गांव में ही रोजगार करना हो तो आप कर सकते हो। लेकिन गांव में रोजगार करने के लिए आपको अपनी जेब से पैसे लगाने होंगे।
मैं गरीब इंसान हूं। मेरे जेब में कुछ भी नहीं है। खाली हाथ हुआ। पैसे कहां से ला पाऊंगा मैं!
यहां तो हम जंगलों को काट काट कर खेती की जमीन बनाकर गाय वस्तु को पालकर या खेती करके अपनी रोजगार चलाते हैं ।किसी तरह यहां कोई स्कूल नहीं है ।यहां कोई पढ़ाई नहीं है। यहां किसी प्रकार की सुविधा नहीं है ।बस किसी तरह जी रहे।
उस शख्स ने ठीक कहा थ
दूर-दूर तक सिर्फ बिहाड़ जंगल ,पहाड़ ,पर्वत दिखते थे। कोई बीच में दूर कहीं एकाध मकान दिख जाती थी ।यहां किसी प्रकार का रोजगार नहीं था ।रोजगार के नाम पर खेती की जमीन थी ।जिसे खुद इंसान ने जंगलों को काटकर अपने रहने लायक और खेती करने लायक जमीन बना ली थी। और गाय बकरी मुर्गियां पालकर अपने रोजगार चला रहा था।
मैंने सोचा एकाध दिन तो गांव के लोग मुझे यहां खिला पिला भी दे। मगर कई दिनों तक यह मुझे मेरा हेल्प नहीं कर सकते थे। क्योंकि यह लोग खुद गरीब थे। खुद रोजगार नहीं था। फिर किसी का सहयोग कैसे कर लेते?
मैं अभी तक निश्चित नहीं था कि मैं कहां पर था? किस मूल्क के जमीन पर था?
मैं कहां पर था? किस जमीन पर था? मेरा अपना पड़ाव क्या था ?मैं दिशा बिहिन कहां तक निकल सकता था?
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