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कत्ले गारत 3

29 दिसम्बर 2022

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आसमान की ओर मैंने नजरें उठाकर देखा। क्षितिज में मुझे कहीं लाली सी ऊभरती दिखी। ऐसा लग रहा था। कुछ देर में उजाला होने वाला ही था। इसीलिए भी वह छोटी सी नदी मुझे साफ सी नजर आ रही थी।
मैं भागते -भागते आसमान की ओर जब नजर उठा कर देखा था ।मुझे लगा था ।कि आसमान में ध्रुव तारा दिख रहा है ।और ध्रुव तारे की स्थिति को देखकर मुझे लगा था। कि मैं पश्चिम की ओर चल रहा हूं।
जिसे मैं ध्रुव तारा समझ रहा था वह ध्रुवतारा नहीं था ।वह शायद कोई दूसरा ग्रह था ।अब आसमान में सूरज उगने वाला था ,तो मुझे लगा कि मैं पूरब की ओर भागे जा रहा था।
फिलहाल अभी मैं किसी नदी के पास छोटे से गांव के पास ही खड़ा था। जो नदी मुझे दिख रही थी बिल्कुल साफ पानी का छिछली पहाड़ी नदी थी।
मैंने नदी में उतर कर पेट भर कर मैंने पानी पी ली थी। पानी से तो मेरा पेट भर गया था। लेकिन खाने का भूख पानी से मिट नहीं सकता था। उसके लिए मुझे खाने की ही जरूरत थी। जब सामने एक गांव दिख रही थी। तो मुझे लग रहा था ।कि कुछ ना कुछ खाने को इस गांव से मिल सकता है।
अब मैं पौ फटते-फटते उस गांव की ओर जाने वाला था। जाने वाला क्या था, मैं उस गांव की ओर निकल ही पड़ा था।
घोड़े ने भरपेट पानी पीने के बाद मेरी ओर देखा, और पानी फुर फुर करके मेरी और उड़ाया ।जैसे कह रहा हो कि पानी बिल्कुल पीने लायक है।
सबसे पहले तो मैं ऊपर वाले का शुक्र अदा कर रहा था ।और मैंने अपने घोड़े को लाख-लाख धन्यवाद दिया था ।जिसने मुझे आज यहां तक जिंदा पहुंचाया था। घोड़ा ना होता तो शायद मैं यहां तक जिंदा पहुंच न पाता।
क्योंकि उस कत्ले गारत  में अगर मैं भी मारा जाता तो कोई बड़ी बात नहीं थी। दहशतगर्दो ने पूरे गांव को जला डाला था ।सारे लोगों को मार डाला था। शायद दो-चार मेरे अलावा भी किसी तरह बचकर भाग गए हो ।यह मेरे समझ के बाहर थी ।मैं तो सिर्फ अपनी जान बचाने के लिए अपने घोड़े पर सवार भागता रहा।
जब इतने लोग मारे गए ,मेरा भी मारा जाना कोई बड़ी बात नहीं थी। क्योंकि मैं कोई सुपरमैन तो नहीं था। मैं भी एक साधारण सा इंसान था।
अब जिस गांव  में प्रवेश करने जा रहा था। अपनी भूख मिटाने के लिए किसी घर के द्वार को खटखटा रहा था। तो मैं समझ नहीं पा रहा था। कि मैं क्या परिचय दूं अपना।
सबसे बढ़िया बात यह थी, कि मेरे शरीर में किसी प्रकार के चोट ना आई थी। ना ही किसी प्रकार के चोट के निशान थे ।और भागते वक्त मेरे हाथ में कोई हथियार भी नहीं था। मैंने  सिर्फ जान बचाने के लिए घोड़े पर सवार भागता रहा।
मैं अगर हथियारबंद होता ,तो लोग मुझे शायद लुटेरा या अपराधी समझ सकते थे। और हथियार न होने की वजह से मुझे लोग बेचारा समझ सकते थे।
मैंने अपने परिवार के साथ हुई दुर्घटना को या किसी से जिक्र नहीं करना और अपने साथ भी हुई बातों को किसी से जिक्र न करने की ठान ली थी।
शायद तब जाकर मुझे मुझ पर कोई विश्वास करता, इस वक्त तो मुझे किसी तरह अपनी भूख मिटाने थे।
अगर मैं अपने कबीले का सही-सही ठिकाना बताता। मेरे साथ हुई दुर्घट इस घटना को बताता ,मुझे डर था ।कि मेरे बचके भागने में और कोई ऐसा ना हो किसी गांव के लोग भी वह कत्ले गारत में शामिल हो ।और मुझे बचता हुआ देखकर यही पर मेरी समाधि न बना दें।

इस वक्त में  नदी को पार कर चुका था ।और थोड़ी सी चढ़ाई चढ़कर फिर मैं गांव की ओर जा रहा था ।अपनी भूख मिटाने के लिए किसी के दरवाजे को खटखटाना था मुझे।
क्योंकि इस वक्त मुझे जोर की भूख लगी थी। और मुझे खाने की जरूरत थी। मैं घोड़े को लगाम से पकड़े पैदल ही घोड़े को लिए मैं उस गांव की ओर चल पड़ा था। मैंने देखा था कि दो चार घरों में से अभी धुआं उड़ रहा था। इसका मतलब -घर के अंदर खाने का सामान बन रहा था। मैं उन्हीं धुएं उडते  मकानों के ओर चल पड़ा था।
मैं घोड़े को लगाम थाने थामें पैदल ही गांव के उन मकानों की ओर चल पड़ा था। कुछ कुछ लोग गांव में इधर उधर आते जाते भी दिखे थे। लेकिन किसी ने मेरी और खास तवज्जो नहीं दी।
ईस बात से मुझे कोई ताज्जुब नहीं हुआ। क्योंकि ,मैं भी उन्हीं लोगों में से एक लग रहा था। कोई दूसरे ग्रह से आया हुआ एलियन तो दिख नहीं रहा था।
एक मकान के आगे मैं अपने घोड़े को लिए खड़ा आवाज लगा रहा था --घर पर कोई है? घर पर कोई है क्या?
मेरी आवाज लगाने पर एक छोटी सी बच्ची ने जिसकी उम्र 5 सात साल की रही होगी ।दर्शन दिया ।और मुझसे पूछा -क्या चाहिए आपको, कौन हो आप?
उस बच्ची को सामने देखकर मैंने बोला- घर पर कोई तुमसे बड़े लोग नहीं हैं  क्या?
बच्ची अजनबी निगाहों से देखते हुए  बड़े मासूमियत से बोली -है ना! मां है बाबा है! आपको किससे बात करनी है?
मैं बोला- किसी को भी बुला लो बेटा ,कोई भी तुम्हारी मां या बाबा!
मेरी बातें सुनकर वह बच्ची बोली- ठहर जाओ! मैं बाबा को बुलाती हूं !कहती हुई और भागती हुई झोपड़ी के अंदर घुस गई।
घर के अंदर से एक मर्द बाहर निकला और पूछा- क्या चाहिए आपको?
मैं उस व्यक्ति से हाथ  जोड़ता हुआ सा बोला। मैं बहुत दूर से आया हूं ।2 दिन के सफ़र से ।मैं 2 दिन से कुछ खाया पिया नहीं हूं ,भूखा हूं। आपके पास आया हूं ।आपके शरण में ।क्या कुछ खाने पीने के लिए मिल सकता है?
उस व्यक्ति ने मुझे बड़े ध्यान से ऊपर से नीचे तक देखा। मेरे घोड़े को देखा ।फिर बोला- थोड़ा सा समय दे दो !मैं आपको भरपेट खाना खिलाता हूं!
मैं बोला मैं इंतजार कर लूंगा ,क्योंकि मैं 2 दिन से भूखा हूं। कुछ न कुछ मेरे को खाने को दे दो।
वह व्यक्ति घोड़े की ओर देखता हुआ बोला- आप अपने इस घोड़े को इस खुटी पर बांध सकते हैं ।और आवाज लगाता हुआ उस बच्ची को बुलाया। बोला -भाई साहब के लिए यहां चटाई बिछा दो ।भाई साहब आराम जब तक करेंगे खाना बन जाएगा। कहता हुआ वह सख्श झोपड़ी के अंदर चला गया।
मुझे तसल्ली हो गई थी। कि अब मुझे यहां खाना मिलने वाला है ।क्योंकि मेरी भूख बढ़ती जा रही थी ।पेट में चूहे कूदने लग चुके थे।
कुछ देर के बाद छोटी बच्ची हाथ में चटाई लेकर अंदर से बाहर आई। और उसके बाबा भी हाथ में एक लोटा और गिलास नुमा कोई दूसरा बर्तन साथ में लेकर बाहर आया।
वह व्यक्ति बोला- अगर आपके घोड़े को पानी पिलाना हो तो बता दो!
मैं बोला घोड़े ने पास के नदी से पानी खूब ली  मैंने भी उसी नदी से पानी से पेट भर लिया है। मगर भूख का क्या करूं ?नदी में उपलब्ध नहीं था !इसीलिए मैं आपके दरवाजे पर आ गया।
उसने मुझसे सवाल पूछा -क्या आप कहां से आए हो ,और किस लिए आए हो?
मैं बोला -रोजगार की तलाश में घर से निकला था। मगर मैं राह भटक गया हूं ।मुझे कोई राह दिखाई नहीं दे रहा ।कल से मैं इस घोड़े के साथ चला जा रहा हूं ।मुझे कोई छोर मिल नहीं रहा।
मैं बोला रोजगार की तलाश में दिशा विहिन में चलता रहा .चलता रहा ।और मैं भटक गया ।मेरे साथ मेरा यही घोड़ा है ।इसके तो खाने के लिए कुछ भी मिल जाता है ।घांस चर लेता है ।मगर इंसान क्या करें, क्या खाएं?
वह बोला- यहां दूर-दूर तक कोई भी शहर नहीं है !जहां आप को रोजगार मिले ।ऐसे छोटे-छोटे गांव तो आपको बहुत मिलेंगे गांव में ही रोजगार करना हो तो आप कर सकते हो। लेकिन गांव में रोजगार करने के लिए आपको अपनी जेब से पैसे लगाने होंगे।
मैं गरीब इंसान हूं। मेरे जेब में कुछ भी नहीं है। खाली हाथ हुआ। पैसे कहां से ला पाऊंगा मैं!
यहां तो हम जंगलों को काट काट कर खेती की जमीन बनाकर गाय वस्तु को पालकर या खेती करके अपनी रोजगार चलाते हैं ।किसी तरह यहां कोई स्कूल नहीं है ।यहां कोई पढ़ाई नहीं है। यहां किसी प्रकार की सुविधा नहीं है ।बस किसी तरह जी रहे।
उस शख्स ने ठीक कहा थ
 दूर-दूर तक सिर्फ बिहाड़ जंगल ,पहाड़ ,पर्वत दिखते थे। कोई बीच में दूर कहीं एकाध मकान दिख जाती थी ।यहां किसी प्रकार का रोजगार नहीं था ।रोजगार के नाम पर खेती की जमीन थी ।जिसे खुद इंसान ने जंगलों को काटकर अपने रहने लायक और खेती करने लायक जमीन बना ली थी। और गाय बकरी मुर्गियां पालकर अपने रोजगार चला रहा था।
मैंने सोचा एकाध दिन तो गांव के लोग मुझे यहां खिला पिला भी दे। मगर कई दिनों तक यह मुझे मेरा हेल्प नहीं कर सकते थे। क्योंकि यह लोग खुद गरीब थे। खुद रोजगार नहीं था। फिर किसी का सहयोग कैसे कर लेते?
मैं अभी तक निश्चित नहीं था कि मैं कहां पर था? किस मूल्क के जमीन पर था?
मैं कहां पर था? किस जमीन पर था? मेरा अपना पड़ाव क्या था ?मैं दिशा बिहिन कहां तक निकल सकता था? 
                                            
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रचनाएँ
कत्ले गारत
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बदले और खून से सनी खूनी सफर सफर का इतिहास है ।जिसे हम कत्ले गारत का नाम देकर यहां प्रस्तुत करना चाहते हैं।
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कत्ले गारत 1

28 दिसम्बर 2022
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यह उपन्यास काल्पनिक है ।जिसका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं ।या फिर किसी वास्तविक व्यक्ति या समुदाय को चोट पहुंचाने के लिए कतई लिखी गई नहीं है। &n

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कत्ले गारत 2

28 दिसम्बर 2022
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अब मैं अपने आप को सुरक्षित महसूस कर रहा था। हवा में ठंडक बढ़ चुकी थी। हवा इतनी ठंड थी। कि ठिठुरन सी हो रही थी ।मगर यह ठिठुरन भी उस कत्ले गारत से कई गुना अच्छी थी। मैं खौफ़ के साऐ से बहुत दू

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कत्ले गारत 3

29 दिसम्बर 2022
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आसमान की ओर मैंने नजरें उठाकर देखा। क्षितिज में मुझे कहीं लाली सी ऊभरती दिखी। ऐसा लग रहा था। कुछ देर में उजाला होने वाला ही था। इसीलिए भी वह छोटी सी नदी मुझे साफ सी नजर आ रही थी।मैं भागते -भागते आसमान

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कत्ले गारत 4

29 दिसम्बर 2022
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जब वह गांव वाला अपने हाथों में गिलास जैसा कुछ सामान लेकर आया था ।वह छोटा सा लौटा था ।और उसने बैटते ही पूछा -क्या तुम लाओ पानी खाओगे?मैं समझ गया था लाव पानी एक तरह की शराब होती है। जो चावल से बनती है ।

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कत्ले गारत 5

30 दिसम्बर 2022
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मैंने अपने घोड़े का रकाब निकाल कर, उसे चरने के लिए छोड़ दिया था। और पीठ थपथपाता हुआ मैंने उससे बोला -जब तक मैं सो लेता हूं !तू चरके जल्दी ही यहीं पर आ जाना ।समझ गया। घोड़े ने सर हिलाया जैसे कि उसने सा

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कत्ले गारत 6

30 दिसम्बर 2022
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घर पर कई काम हो सकते थे। जानवर पाल रखे हो तो जानवर के लिए ।चराना चलाना आदि काम रखरखाव का काम हो सकता था। गाय भैंस हो तो इसको रखरखाव के लिए उससे दूध दुहने के लिए, उसको पानी सानी करने के लिए

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कत्ले गारत 7

31 दिसम्बर 2022
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टेंडर किसी व्यापारी के नाम पर छूट चुका था। व्यापारी क्या वह अपने आप को बहुत बड़ा इंडस्ट्रियलिस्ट समझता था। वह चाहता था। किसी तरह भी इस गांव को खाली कर दिया जाए ।क्योंकि ,उस गांव से ही होकर वह रास्ता प

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कत्ले गारत 8

31 दिसम्बर 2022
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गांव के लोगों की खासियत होती है- वह जो थोड़े में संतुष्ट हो जाते हैं। वह नहीं सोचते कि वह कार पर चले। वे यह नहीं सोचते कि बहुत बड़ा बंगला बने, वे नहीं सोचते कि बहुत बड़ी कोठी हो ।बस दो वक्त की रोटी बी

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कत्ले गारत 9

1 जनवरी 2023
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शायद कुछ साल यूं ही गुजर ग्ए थे। इस घर ने इस गांव में मुझे अपनापन और प्यार मोहब्बत मिला था। इस बात को लेकर मुझे किसी से शिकायत नहीं है। इस बात को लेकर मुझे किसी से शिकायत नहीं है।इन्होंने मुझे इतना मो

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कत्ले गारत 10

1 जनवरी 2023
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मैंने पढ़ाई अपने कबीले की स्कूल में थोड़ी बहुत की थी ।जिसे पढ़ाई कह नहीं सकते थे।इस गांव में आने के बाद ,मैंने गांव में छोटे-छोटे बच्चों को जितना आता था। पढ़ाने की कोशिश की थी।हिंदी इंग्लिश की अक

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कत्ले गारत 11

2 जनवरी 2023
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मेरी जिंदगी में सिर्फ एक ही लक्ष्य बचा हुआ था। और वो लक्ष्य था किसी तरह भी उन खूनियों का खात्मा करना। क्योंकि मुझे पता था। कि यह सारा सरकारी नुमाइंदों की मिलीभगत में हुई थी। इसलिए कानून का सहारा लेना

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कत्ले गारत 12

2 जनवरी 2023
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अब बापी भी बड़ी हो चुकी थी। 10:11 साल की हो चुकी थी। दीदी के गोद में दूसरा एक बच्चा भी आ चुका था। उसकी भी उम्र अभी 4 साल की हो चुकी थी। मैं अग्निपुत्र- इस परिवार का एक अभिन्न अंग बन चुका था ।परिवार का

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कत्ले गारत 13

3 जनवरी 2023
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यह वक्त नहीं था। कि मैं पंडित जी के साथ जाउं। गांव पहुंच कर खोजबीन करूं! जहां गांव के बारे में गांव की आबादी के बारे में नोटेड होता है ।क्योंकि ,अभी हम पुष्पलता के इलाज के लिए आए हुए थे। और जरूरी था,

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कत्ले गारत 14

3 जनवरी 2023
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आज शहर में आए हुए तीसरा दिन था। पुष्प लता लगभग ठीक हो गई थी। मेरे इकरारेईश्क के बाद उसका बुखार धीरे-धीरे कमता चला गया था। या यूं कहें कि दोनों की एकरार के बाद बुखार लगभग उसी, समय कम हो गया था।मु

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कत्ले गारत 15

4 जनवरी 2023
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पुष्पा को समझ आ चुका था। जिंदगी के बारे में। पुष्पा को इस बात की समझ आ गई थी। जो जिंदगी में जीने के लिए पैसे की भी जरूरत होगी। जो मैं शहर जाकर ही कमा सकता था। गांव में रहकर तो हम सिर्फ खा पी सकते थे।

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कत्ले गारत 16

4 जनवरी 2023
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मैं जिस रास्ते से इस गांव में आया था। उसी रास्ते से ही मुझे लौटना था। इतने सालों के बाद भी मैं वो रास्ता कभी भूल नहीं पाया था। वह नदी पार करना ,नदी पार करके फिर इस गांव में आना ,जब मैं कभी भूला नहीं प

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कत्ले गारत 17

6 जनवरी 2023
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वे चार लोग थे ।और मैं उनके बीच में एक अकेला लेटा हुआ था। और मेरी नींद को देखते हुए उन लोगों ने जागाने के लिए एक ने मुझे छू करा आवाज लगाया था।उनकी आवाजों से मेरी आंखें खुल गई थी। मैंने नजर इधर-उधर घुमा

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कत्ले गारत 18

7 जनवरी 2023
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मुझे पता था ।मेरा रास्ता आसान नहीं था। मुझे यह भी पता था। जिन चार लोगों पर मैंने हमला किया था। वह लोग यकीनन कोई न कोई मेरे पीछे आने वाले थे। उन के मुताबिक वह सिर्फ चार नहीं थे ।पूरा कुनबा था। उन

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कत्ले गारत 19

8 जनवरी 2023
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बीच में आए इन सब लोगों से मैं खुद को बचाना चाहता था।। मेरा मकसद अपने गांव तक पहुंचना था। यह देखना था ,उस कत्ले गारत में कोई बचा तो नहीं ।या यह जानना था -कि कत्ले गारत के बाद वहां इंडस्ट्री बसा है

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कत्ले गारत 20

8 जनवरी 2023
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मुझे बहुत आगे निकलना था। वक्त बहुत जाया हो चुका था।मैंने आसमान की ओर देखा। सूरज क्षितिज पे कहीं छुपने की तैयारी कर रहा था। मुझे अपने गांव आगे बढ़ना था। और रात के रुकने की व्यवस्था भी करना था। मेरा घोड

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कत्ले गारत 21

10 जनवरी 2023
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मकान के बाहर सारागांव जमा हो गया था। सारा गांव ही एक कुनबा था। गांव के लोग में एकता थी एक स्वर बद्धता थी ।जो वहां जमा होने पर दिखती थी।गांव के बड़े बुजुर्ग की आंखों में आंसू थे। बच्चे भूल से गए थे। उस

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कत्ले गारत 22

11 जनवरी 2023
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उन के अंदर की ज्वाला को मैंने भड़काने की कोशिश की। उनके अंदर की ज्वाला शायद शांत हो चुकी थी ।या कुछ न कर पाने की वजह से वह चुपचाप हो गए थे।शायद वह नहीं चाहते थे ,कि जो बचे खुचे हैं, उनको कोई नुकसान पह

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कत्ले गारत 23

13 जनवरी 2023
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मुझे अब भटकने की जरूरत नहीं थी। गांव वालों को पता था । वह पुराना गांव हमारा कहां पर है.. किस रास्ते से वहां पर जा सकते हैं!मैं अकेला ही उस ओर जाने के लिए तैयार था। मैं सबसे पहले उस धरती का दर्शन चाहता

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कत्ले गारत 24

14 जनवरी 2023
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जब मेरी आंखें खुली, चट्टानों में बैठे-बैठे मुझे नशा सा छा गया था। जिसकी वजह से मैं वहीं पर लुढ़क गया था। करीब चार-पांच घंटे यूं ही मैं बेहोश सा पड़ा रहा। जब मेरे घोड़े ने मुझे

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कात्ले गारत 25

17 जनवरी 2023
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मैं पानी पीकर और हाथ मुंह धो कर अपने गांव की ओर मुड़ा। चारों तरफ बाउंड्री लगी हुई, बीच में कोई इंडस्ट्री बसी हुई थी। बाउंड्री पत्थरों से दीवार बनाई गई थी इस पार से उस पार देख पाना मुमकिन नहीं था

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कत्ले गारत 26

18 जनवरी 2023
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मैं अपने गांव में था। जो अभी फिलहाल इंडस्ट्री में तब्दील हो गई थी। और मेरे अपने लोग यहां कोई नहीं था। मेरा अपना मकान भी नहीं था।मैंने गांव की मिट्टी को अपनी मुट्ठी में लिया दिल से लगा लिया। सच म

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कत्ले गारत 27

20 जनवरी 2023
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कामदारों से मुझे सिर्फ इतना ही पता चल सका था, कि वह अरबों पति लोग थे ।उनके पास पहुंचना मुश्किल काम था। मैं साइबर में बैठकर,इन लोगों का रिहायश, ऑफिस पता लगाना चाहता था। यूं तो वे लोग यहां भी

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कत्ले गारत 28

23 जनवरी 2023
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मार्गरेटा से टोपला बस्ती, ज्यादा दूर नहीं था। करीब 20 किलोमीटर का रास्ता था । ऑन द रोड।अगर मैं अपने घोड़े पर ही टोपला बस्ती पहुंचता तो, लोग यही समझते ,कि कोई बैंड बाजा बारात वाला ही होगा। जो किस

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कत्ले गारत 29

24 जनवरी 2023
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अंधेरी रात थी। आसमान में तारे चमक रहे थे। मगर टोपला बस्ती का यह एरिया ,रोशनी से जगमग आ रहा था। ऐसा लगता था जैसे आसमान के सारे तारे जमीन पर उतर आए हो। और कोठियों में जगमगा रहे हो।जहां मैं ठहरा था , रिस

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कत्ले गारत 30

25 जनवरी 2023
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मौसम इतना ठंडा नहीं था। फिर भी मैं अपने घोड़े को खुले छत में नहीं रख सकता था। रात को रुकने के लिए उसे भी छत चाहिए थी । घास चाहिए था ।और खाने के लिए दाना भी चाहिए था ।पानी भी चाहिए था। उसकी फिकर मुझे अ

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कत्ले गारत 31

29 जनवरी 2023
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अभिषेक ने जो कार्ड दिया था। उसमें सिर्फ उसका नाम और फोन नंबर लिखा हुआ था।और कहा था ।दो दिन बाद कॉल कर लेना। आज तीसरा दिन था। मैंने अभिषेक को कॉल किया था।अभिषेक निहायत ही शरीफ और ईमानदार शख्सियत था। और

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कत्ले गारत 32

30 जनवरी 2023
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मैंने ,अपने घोड़े को अस्तबल में ला के बांध दिया था। अस्तबल में घोड़े के लिए चारे की भी परेशानी नहीं थी।घोड़ा मवेशियों के साथ खुश रह सकता था। मैंने अपने कमरे की सफाई के लिए चाची को बोल दिया था। कमरा सा

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कत्ले गारत 33

31 जनवरी 2023
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कहते हैं - गुनाह कभी छुपता नहीं ।कभी न कभी गुनाह, नासूर बन के दिल को ,कचोटने लगती है।यह कुदरत का न्याय है। बदला लेने के लिए कुदरत ही तैयार करती है। मजलूम पर किया गया जुल्म कभी खाली नहीं जाता। उभ

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