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कत्ले गारत 20

8 जनवरी 2023

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मुझे बहुत आगे निकलना था। वक्त बहुत जाया हो चुका था।
मैंने आसमान की ओर देखा। सूरज क्षितिज पे कहीं छुपने की तैयारी कर रहा था। मुझे अपने गांव आगे बढ़ना था। और रात के रुकने की व्यवस्था भी करना था। मेरा घोड़ा सरपट दौड़े जा रहा था।
मेरी आंखों के आगे कुछ कच्छी मकाने दिखने को शुरू हो चुके थे। मगर यह मेरा गांव नहीं था।  25,30 मकान दिख रही थी । रात का अंधेरा होने वाला था ।मुझे किसी एक  मकान पर पनाह लेना जरूरी था।
मैं उन कच्चे मकानों की ओर  चल रहा था। ऐसे गांव में अभी तक आधुनिकता की लहर दौड़ी नहीं थी। लोग अभी भी एक दूसरे पर विश्वास करते थे। इसीलिए छोटे गांव में पनाह मिल जाया करती थी।
मैंने अपने  घोड़े को थपथपाते हुए बोला- आज इसी गांव में ,किसी के पास पनाह लेनी पड़ेगी। मुझे लगता है ,कि हम अपने गांव के रास्ते से कहीं और भटक गए हैं।
मेरे कहते ही मेरे घोड़े ने, अपना चाल धीमा कर दिया था। क्योंकि अब धीरे-धीरे अंधकार बढ़ने वाला था ।अब  अंधकार में बिना रोशनी के कहीं आगे नहीं बढ़ सकते थे।
मुझे झोपड़ियों में टिमटिमाती रोशनी  भी दिखने लगी थी। अंधेरा भी पूरा फैला नहीं था। सूरज आसमान से कही  अंदर कहीं विलुप्त हो गया था। क्योंकि ,उसे भी कहीं विश्राम  करना था।
चलते -दौड़ते मेरा घोड़ा भी थक सा गया था। उसे भी अब पानी-सानी की जरूरत थी। उसे भी विश्राम की जरूरत थी ।और मुझे भी, जरूरत थी। इसलिए नहीं कि ,मैं थक गया था।  इसलिए कि रात के वक्त हम फिर रास्ता भटक सकते थे। कहीं और निकल जा सकते थे ।और रात के अंधेरे में घोड़ा साथ चलने से मना भी कर सकता था। मुझे अपने घोड़े का खास ख्याल रखना था। वह बेचारा मूक जानवर बोल नहीं पाता था। इसका मतलब यह नहीं था, कि मैं उसको पेलता रहा हूं। उसे जरूरत से ज्यादा काम लेता रहूं ।
वह जीव था इसलिए उसकी भी एक लिमिट थी। इसलिए मुझे उसका प्रयोग भी सोच समझ कर करना था। उसका आराम और खाने पीने का ध्यान रखते हुए करना था।
और हम बगैर दिशा का ज्ञान हुए, अपने गांव का पता किए, हम यूं ही चले आ रहे थे। बस बचपन में भागे हुए उस रास्ते का अनुमान लगाता हुआ, मैं ईस ओर आ रहा था। मेरा गांव- "नौगांव" पता नहीं कहां होगा ,कैसा होगा?
अभी अंधेरा पूरा फैला नहीं था। मैं गांव के बीचोबीच  पहुंच गया था। गांव के बीच में एक चबूतरा सा बना हुआ था। जो एक बड़े से पेड के नीचे पत्थर डालकर बनाया गया था। और मुझे यह चबूतरा साफ सुथरा सा लगा।
पुरा अंधेरा नहीं हुआ था। इसीलिए गांव के बच्चे अभी भी बाहर खेल रहे थे। कुछ लोग लकड़ियां काट रहे थे। कुछ लोग इधर उधर जा रहे थे। झांक रहे थे।
गांव की बसावट से लगता था ,यह कोई पुराना गांव होगा। गांव के लोग साफ-सुथरे से लगे मुझे, कपड़े पहने हुए।
किसी घुड सवार को चबूतरे में ठहरते देखकर, कुछ बच्चे मेरे सामने आ गए थे।
मुझे चबुतरे पे उतरते  देख दो-तीन बच्चे मेरे पास आ गए थे। फिर एक बच्चे ने मुझ से सवाल किया -किसके पास जाना आपको?

क्या जवाब देता मैं ?किसके पास जाना है?
मैं बोला - बेटा मैं राहगिर हूं, भटक गया हूं।मुझे आज की रात यहीं ठहरना है ।कल मैं यहां से निकल जाऊंगा।
यहां पर रात के वक्त जानवर भी आते हैं। आप कैसे ठहर सकते हो?
दूसरा बोला- हां !भेडिए आते हैं ,चीते भी आते हैं ,और भी कई छोटे-मोटे जानवर आ जाते हैं। आप यहां ठहरोगे तो भेडिए आप को खा जाएंगे।
मैं उनकी बातों से सचमुच खौफ जदा हो गया था ।क्योंकि, एक चीता जो काला सा था। उससे तो मेरा पहले ही आमना-सामना हो चुका था ।वह तो गनीमत थी उसने मुझ पर हमला नहीं किया था। वरना वह अगर मुझे मार भी नहीं पाता तो घायल जरूर कर सकता था।
मैं बोला- क्या करूं बेटा !मेरा कोई रहने का ठिकाना नहीं है ।मुझे आज रात यहां ठहरना है। क्योंकि अंधेरे में ,मैं और मेरा घोड़ा कहां भटकते रहेंगे जंगलों में। इसीलिए तुम्हारे गांव को देख कर इस ओर आया हूं ,मैं।
मैं उन बच्चों से बातें कर ही रहा था ।2,4 बड़े लोग भी आ गए थे।
मुझे लगता था ,वह बंदा गांव का मुखिया था। उसने आते ही पूछा मुझसे -आप कौन हो ,और यहां क्या करने आए हो?
मैं बोला -मैं मुसाफिर हूं !मुझे नौगांव जाना है। और शायद नौगांव यही- कहीं आस-पास ही होगा ।मगर अंधेरे में ,मैं और मेरा घोड़ा जा नहीं पाएंगे ।जंगलों में ही भटकते रह जाएंगे। इसलिए जब इधर से गुजर रहा था। तो आपका गांव देखा ,सोचा यहीं पर पनाह ले लूं ,आज की रात के लिए ।इसलिए मैं यहां पर आ गया।

नौगांव का नाम सुनते ही वो इंसान खामोश सा हो गया था।  नौगांव यहां से काफी दूर है।- उसने मुझे बताया।
फिर पूछा -नौगांव आप किस सिलसिले में जा रहे हैं? क्या, नौकरी की तलाश में जा रहे हैं? क्योंकि, अब वह गांव रहा नहीं।

मैं बोला -कई साल हो गए। नौगांव से बिछड़े हुए। मैं नौगांव गांव का ही रहने वाला हूं ।मगर कई साल पहले जलजला ऐसा आया। उस गांव के ऊपर , ऐसा कहर टूटा उस गांव के ऊपर,कि गांव का गांव पूरा जलकर खाक में तब्दील हो गया ।मगर मैं उस वक्त छोटा था।न जाने कैसे बच के निकल गया। अब उसी गांव में ,मैं वापस जा रहा हूं।
उसने मुझे ध्यान से देखा, फिर बोला -तुम धर्मपुत्र के बेटे अग्निपुत्र तो नहीं हो?
मेरे हृदय स्थल पर बैठा हुआ मर्म जैसे फूट पड़ा। मेरी आंखों से आंसू छलछला पड़े ।
मैं बोला- हां! मैं धर्मपुत्र का बेटा ही हूं !अग्निपुत्र!
उस शख्सियत ने मुझे ,अचानक पास आकर मुझे सीने से चिपका लिया, बोला बेटा -मैं भी उसी गांव का रहने वाला हूं!राय खंड का रहनेवाला हूं।
राय खंड मेरा ननिहाल? मेरी मां का मायका। मेरे आंसू रोके से रुक नहीं रहे थे।
उसकी ,आंखों से भी आंसू यूं बह रहे थे। जैसे आंखों से नलके फिट कर दिए हो।
तुम्हारी मां मेरी बहन थी। तुम मेरे भांजे हो। माहौल गमगीन हो गया था। कोई जलती हुई लालटेन ले आया था। क्योंकि उस वक्त तक अंधेरा बढ चुका था।
एक लालटेन को उसी चबूतरे के बीचो -बीच रख दिया  था।
 लोगों का जमावड़ा बढ़ गया था। माहौल में जैसे नमी आ गई थी। जो बुजुर्ग आए थे। सबकी आंखों से आंसू बह रहे थे।
मुझे लग रहा था, कि सारे लोग नौगांव से बच के निकले हुए हो सकते थे।
मैंने पूछा मामा -क्या सारे लोग ,क्या नौगांव के बचे हुए लोग हैं?
मामा ने रोत हुए गले से कहा
 हां बेटा! यही सारे  नौगांव के लोग हैं! जो उस जल जले में बच गए थे । कत्ले गारत से बच के निकल गए थे ।उन लोगों ने तो पेट्रोल टैंक भरकर  ले आए थे।  पाईप से मकानों में पेट्रोल डाल डाल कर के आग लगा रहे थे।
 जो भाग रहे थे, उनको मार रहे थे। और उसी आग में झोंक रहे थे। मगर इसी जलजले में कुछ लोग जैसे तुम मैं और कई लोग वहां से निकल पड़े थे। और यहां आ कर बस गए थे।

यहां आकर बसना भी कोई मामूली बात नहीं थी। भूखमरी  बेरोजगारी से हम परेशान हो गए थे ।
मगर अब हमने खेत बना लिया। अब हम उपज भी करते हैं ।शहर में लेकर बेचते भी हैं। गांव में एकाध दुकानें भी बना रखी है ।गांव में सभी प्रकार की सुविधा  उपलब्ध तो है नहीं। मगर, फिर भी हमने बहुत कुछ यहां पर कर रखा है।
 कई सालों बाद अपने लोगों को पाने की खुशी मरे जेहन में थी।
 तो दुख था -कि अपने परिवार अपने माता- पिता अपने गांव को खोने का।
अब तुम यहीं रहो, कहां जाओगे तुम? इतने सालों तक तुम कहां रह रहे थे?
यहां से कहीं दूर -ढेकियाजुली नाम की एक गांव है। जिसके आसपास कोई शहर नहीं है ।किसी प्रकार की आधुनिक सुविधा नहीं है। लोग अपने पैदावार को बेच नहीं पाते ।पास के ही गांव में ले जाकर उसे बदलते हैं।
पास के गांव के लोग इस गांव में आकर बदलते हैं ।पास के गांव में एकाध  दुकानें भी 
है ।मगर सामान बहुत महंगा पड़ता है ।क्योंकि वह सामान लाने के लिए उन्हें भी बहुत लंबा सफर तय करना पड़ता है ।ढोकर लाना पड़ता है ।कई लुटेरे भी हैं ,जो बीच में लूट लेते हैं।

उसी ढेकियाजुली ने मुझे पनाह दिया । मुझे  अपनापन दिया ।मुझे पाला ,मुझे अपनों का एहसास होने तक नहीं दिया ।मुझे किसी प्रकार का दुख होने नहीं दिया। वे लोग महान है ।बहुत महान।
उस गांव में किसी प्रकार का कभी झगड़ा होते मैंने नहीं देखा। उस गांव में किसी को मैंने एक दूसरे से लड़ते भी नहीं देखा। उस गांव में लोग दारू भी पीते हैं, तो बड़े शान से पीते हैं। एक दूसरे से मिलकर रहते हैं। गांव में स्कूल नहीं था- तो मैंने छोटा-मोटा एक स्कूल का संचालन किया था! जहां पर मैं छोटे बच्चों को प्राथमिक शिक्षा ,अक्षर ज्ञान देता था!
शहर से किताबें मंगा कर, मैं भी पढ़ता था।

 मेरे मामा बोले -तुमने बहुत दुख झेले हैं ;मेरे बच्चे! अब तुम यहीं  पर रहोगे ,इसी गांव में  रहोगे। यह सारे लोग नौगांव के ही लोग हैं। तुम अब यही रह कर कुछ भी कर सकते हो। हम तुम्हारे साथ हैं।
उन में से कोई बोला -काका भैया को यहीं पर चबूतरे में ही बिठा रखोगे ?कहीं दूर से आया होगा !खाना -पीना करो ,उसे अपने घर पर ले जाओ!
मेरे मामा बोले- इसे देखकर तो मैं सब कुछ भूल गया था !मुझे अपनी बहन याद आ गई थी।
लालटेन को वहीं पर छोड़कर सभी मामा के मकान की ओर चले ।धीरे-धीरे सारा कुनबा मामा की मकान के बाहर जमा हो गया।
मामा अपने मकान पर पहुंचकर आवाज लगाते बोले- अरे छुटकी !बाहर आकर देखो ;कौन आया है? हमारा भांजा, अग्निपुत्र आया है!
बाहर ही लोग आकर जमा होने लगे। चटाईया बिछ गए। मामी अंदर से भागी दौड़ी आई।
पूरे गांव के लोग वहां पर जमा हो चुके थे। सभी की आंखों में जिज्ञासा था। सभी की आंखों में कैतुहल था। सभी देखना चाहते थे, अग्नि पुत्र को।
इन कई सालों में बिल्कुल अग्निपुत्र लौंडे से जवान हो गया था ।उसकी शारीरिक सैस्ठव  बदल गई थी ।उसका सिर्फ चेहरा ही वैसा ही मासूम सा चेहरा था। और शरीर के सारे बनावट बदल चुके थे । एक गबरू जवान सा हो गया था।
यह सारे लोग नौगांव के जलजले से उस कत्ले गारत  से बचकर निकलने वाले थे। कुछ बच्चे जो नवाजात थे। वह बड़े हो चुके थे ।जो उसे पहचानते नहीं थे। जो बड़े-बड़े थे उनके चेहरे में अग्नि को देखकर कैतुहल था। प्यार था, मोहब्बत थी, क्योंकि ,अग्नि के पिता धर्मपुत्र उनसे इसी तरह से पेश आते थे। कुछ लोग तो अग्नि के रिश्तेदार निकले ।कुछ लोग उसके पड़ोसी निकले ।कुछ लोग दूसरे खंड के निकले।
जो भागते हुए यहां आकर बस गए थे। यहीं उन्होंने अपना गांव बसा लिया था। क्या इस तरीके से कहीं और भी छोटे-मोटे गांव बसे हुए थे ?या नहीं !कमी लोग शहर की ओर चले गए होंगे! इसका अर्थ था गांव की कुछ आबादी इधर भाग कर बच गए होंगे, मगर जो भी था आधी से ज्यादा आबादी खत्म हो गयी थी।

उसे मालूम नहीं था ।लेकिन उन लोगों का कहना था ।कि उस कत्ले गारत से भागने वाले, बचने वाले सिर्फ यही लोग थे। बाद में और लोगों को भी तलाशने की कोशिश की गई। लेकिन, कोई बांकी नहीं बचा था। तुम ही बहुत दूर निकल गए थे। उन्होंने बताया।

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रचनाएँ
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बदले और खून से सनी खूनी सफर सफर का इतिहास है ।जिसे हम कत्ले गारत का नाम देकर यहां प्रस्तुत करना चाहते हैं।
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मुझे अब भटकने की जरूरत नहीं थी। गांव वालों को पता था । वह पुराना गांव हमारा कहां पर है.. किस रास्ते से वहां पर जा सकते हैं!मैं अकेला ही उस ओर जाने के लिए तैयार था। मैं सबसे पहले उस धरती का दर्शन चाहता

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मैं पानी पीकर और हाथ मुंह धो कर अपने गांव की ओर मुड़ा। चारों तरफ बाउंड्री लगी हुई, बीच में कोई इंडस्ट्री बसी हुई थी। बाउंड्री पत्थरों से दीवार बनाई गई थी इस पार से उस पार देख पाना मुमकिन नहीं था

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मैं अपने गांव में था। जो अभी फिलहाल इंडस्ट्री में तब्दील हो गई थी। और मेरे अपने लोग यहां कोई नहीं था। मेरा अपना मकान भी नहीं था।मैंने गांव की मिट्टी को अपनी मुट्ठी में लिया दिल से लगा लिया। सच म

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कामदारों से मुझे सिर्फ इतना ही पता चल सका था, कि वह अरबों पति लोग थे ।उनके पास पहुंचना मुश्किल काम था। मैं साइबर में बैठकर,इन लोगों का रिहायश, ऑफिस पता लगाना चाहता था। यूं तो वे लोग यहां भी

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अंधेरी रात थी। आसमान में तारे चमक रहे थे। मगर टोपला बस्ती का यह एरिया ,रोशनी से जगमग आ रहा था। ऐसा लगता था जैसे आसमान के सारे तारे जमीन पर उतर आए हो। और कोठियों में जगमगा रहे हो।जहां मैं ठहरा था , रिस

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मौसम इतना ठंडा नहीं था। फिर भी मैं अपने घोड़े को खुले छत में नहीं रख सकता था। रात को रुकने के लिए उसे भी छत चाहिए थी । घास चाहिए था ।और खाने के लिए दाना भी चाहिए था ।पानी भी चाहिए था। उसकी फिकर मुझे अ

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अभिषेक ने जो कार्ड दिया था। उसमें सिर्फ उसका नाम और फोन नंबर लिखा हुआ था।और कहा था ।दो दिन बाद कॉल कर लेना। आज तीसरा दिन था। मैंने अभिषेक को कॉल किया था।अभिषेक निहायत ही शरीफ और ईमानदार शख्सियत था। और

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कत्ले गारत 32

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