शायद कुछ साल यूं ही गुजर ग्ए थे। इस घर ने इस गांव में मुझे अपनापन और प्यार मोहब्बत मिला था। इस बात को लेकर मुझे किसी से शिकायत नहीं है। इस बात को लेकर मुझे किसी से शिकायत नहीं है।
इन्होंने मुझे इतना मोहब्बत दिया शायद मुझे अपने गांव से भी न मिल पाता। जिस घर में मैंने सबसे पहले भोजन किया था। जिस औरत ने मुझे अपने छोटे भाइयों के रूप में स्वीकार किया था। उसने अपने छोटे भाई से भी बढ़कर मुझे प्यार मोहब्बत दिया था।
मैं गांव वाले के अपनेपन को बयान भी नहीं कर सकता। हरगांव वाला मुझसे यूं मोहब्बत करता ,जैसे अपने घर का ही कोई सदस्य हो।
मैं संपूर्णता इस गांव का होकर रह गया था। मैं अपने गांव को भूल ही जाता। मगर जो हादसा वह कत्ले गारत, वह जल- जला मै कभी भूला नहीं सकता था।
जब भी मैं अपने गांव के बारे में सोचता हूं। मैं मायूस हो जाता। मेरे अंदर ऑग सी लग जाती।
इतने सालों में मैं एक बार भी अपने गांव पहुंचा न था। मैं अपने घोड़े को लेकर पश्चिम दिशा की ओर दो चार बार गया भी। मगर फिर लौट आया था। मैं अपने गांव तक पहुंच न पाया था।
शायद मैं अपने इस कार्य के लिए हिम्मत जुटा नहीं पा रहा था। मुझे आगे क्या कदम उठाना है ।मैं सोच नहीं पा रहा था ।दिल में दिमाग में आग तो सुलग रही थी। मगर, मेरे पास कोई साधन संसाधन ऐसा कुछ नहीं था। कि किसी पर मैं घात लगा सकूं।
मगर मैं अब अपने आप को इस बात के लिए दिल से तैयार करने लगा था। मैंने अपने आप को सफल करने के लिए कई तरह की तैयारी शुरू कर दी थी।
मैं नहीं चाहता था ।कि मैं अपने मकसद में नाकामयाब रहूं। म चाहता था अगर मौत भी आए तो उन दरिंदों को दोजख में भेजने के बाद।
मैं अपने शारीरिक को लेकर हर हथियार को लेकर सतर्क हो गया था। अपने भुजाओं को अपने शरीर को बलशाली बनाने के लिए दी मैंने बहुत मेहनत करना शुरू कर दिया था।
इस गांव मे रहा रहा था। वह करीब 75 मकानों का एक छोटा सा गांव था। बहुत प्यारा सा गांव। मैं सोच में पड़ गया था ।मैंने तो अभी तक उस गांव को जाकर देखा न था। क्या उस जलजले के बाद सारे गांव के मकानों को जलाने के बाद- क्या वहा कई इंडस्ट्री बनी थी।
सबसे पहले तो मेरा यह काम था ।कि जाकर देखें कि उस गांव की हालत क्या हुई होगी? जाकर देखें उस जलजले के बाद उस गांव में कोई इंडस्ट्री बिठाई गई होगी?
जो भी होना था जो भी पता करना था ।वही जाकर पता हो सकता था ।मेरे अनुमान लगाने से कुछ होने वाला न था।
मैं खुद को तैयार तो कर रहा था। उस कत्ले गारत का बदला लेने के लिए ,अगर बदला लेता मैं, किस से लेता ! सबसे पहले तो मुझे उसी गांव का पता करना था !उसी जगह पर पहुंचना था! कौन हैवान था जिसने यह सारे काम किए थे। क्या कोई गांव का भी इंसान उस कत्ले गारत का मास्टरमाइंड था?
क्या मैं यह इंसान था जो इस कत्ले गारत से बच कर निकलना था। या बचके निकलने वालों में से और भी कोई था।
इस बात का पता तो मुझे ही लगाना था अगर कोई बच के निकला होगा तो यकीनन उसको नेस्तनाबूद करने के लिए वह भी मेरे साथ हो सकता था। मगर मैं इस बात के लिए खुद को अकेला ही समझ रहा था। और मैं अकेला ही उन से लड़ सकूं। खुद को इस तरीके से तैयारी कर रहा था। मैं सिंगल मैन आर्मी की तरह खुद को तैयार कर रहा था ।मगर मुझ में कुछ कमियां थी ।मेरे पास घातक हथियार नहीं थे।
और घातक हथियार के बगैर मैं ।अपने हाथ पैरों से किसी को चोट तो पहुंचा सकता था ।लेकिन उनको खत्म नहीं कर सकता था।
जिस गांव में मरा रहा थ
उस गांव में रुपए पैसे की कमी थी। प्यार मोहब्बत तो बहुत था। आप मुझे लड़ने के लिए हथियार चाहिए थे ।और उन हत्यारों से ट्रेनिंग भी चाहिए थी। या फिर सिर्फ तलवार चाकू से लड़ा जाना बड़ा मुश्किल काम था। मुझे पता था जमाना डिजिटल है। फिर भी मैंने अपने आप को तलवार और चाकू से ही तैयार किया था।
मैं शिवाजी महाराज से प्रभावित था। बचपन में मेरी माता मुझे शिवाजी के बारे में पढ़ाती। उनके शौर्य के बारे में ।उनके वीरता के बारे में। उनके छापामार युद्ध के बारे में ।
और मैं भी चाहता था ।कि जो भी हो छापामार युद्ध की तरह हो। क्योंकि मेरे पास हथियार नहीं थे। इसीलिए मुझे जिन से भी लड़ना था। छापामार युद्ध लड़ना था।
मुझे जोश में होश खोने वाली बात नहीं करनी थी। क्योंकि, मैं अकेला वह शख्स था जो कत्ले गारत का बदला लेने के लिए खड़ा होना था। मुझे 700 से ज्यादा लोगों की मौत का बदला लेना था।
मुझे कुछ भी ऐसा काम नहीं करना था। जो मुझे खुद के लिए घातक हो। मुझे लोगों की मौत का बदला लेना था। उनकी चीखें , उनकी आवाजे , उनकी तड़प। मेरे दिल को यूं ही तड़पा रहे थे।
मुझे याद आ रहे थे ।बचपन की वे गांव के खेल। गांव की दोस्तों के साथ खेलना। गांव के सहेलियों के साथ खेलना। गांव की दीदियों के साथ खेलना। बहनों के साथ खेलना ।
चाचा को नमस्कार !मामा को नमस्कार !कहते हुए प्यार से रहना !
सब कुछ खत्म कर दिया था ।
सब कुछ वह सपनों सा लगता था ।
नदि में कूदना फादना, नदि में तैरना। पहाड़ों के तलहटी से बस बहती हुई नदी।
स्वच्छ पानी के नदी में हम मछली पकड़ते। नदी में हम तैरते रहते। जब तक जी चाहे। फिर पहाड़ों में दौड़ लगाते ।
वह पहाड़ी अभी भी याद है -जो पहाड़ के सबसे ऊपर टिले पर शिवजी का मंदिर बना हुआ था। हम एक सास में उपर चढ़ते । यहां के लोग कहते हैं -कि जो बिना रुके, बिना पीछे देखे ,एक ही सांस में ऊपर चढ़ जाएगा !उसकी मन की मुरादे पूरी हो जाएगी।
लोग बाहर -बाहर से भी आते थे ।उस मंदिर के दर्शन के। लिएप्लेटिनम होने के पता लगने के बाद गांव को जैसे दीमक की तरह अंदर ही अंदर ,खोखला करने की कोशिश करने लगे।
बिजनेसमैन आकर तड़पाने लगे ।कहने लगे गांव छोड़ दो -तुम इतना पैसा देंगे ।गांव छोड़ दो तो हमको फलाना देंगे। गांव छोड़ दो तो तुम्हें हम नौकरी भी देंगे। सब कुछ देंगे।
मगर बाबा और कुछ बुजुर्ग लोग इस बात से कतई सहमत ना हो सके ।और उनकी सहमत ना होना ही पूरे गांव के लिए बर्बादी का सबब बन गया।
मुझे याद है वह 15 अगस्त की रात थी।
15 अगस्त हिंदुस्तान की आज़ादी का दिन। जिस रात उन दहशतगर्दों ने ,पूरे गांव को मौत की नींद सुला डाला। रात के गहन निद्रा में सोए हुए मासूम गांव वालों को । निहत्थे, बेगुनाह, मासूम गांव वालों को उन्होंने मौत की नींद सुला दी ।जिन्हें यह भी नहीं पता -कि ऐसा क्यों किया गया !?मौत के बाद भी शायद उनको या पता नहीं चला होगा,कि यह किस किस की कारस्तानी थी ।उन्होंने मौत की नींद सुला दी।
पूरे के पुरे गांव को बर्बादी के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया ।
पूरे गांव को खाकसार कर दिया ।पूरे गांव में कत्ले गारत मचा दी। जो भाग सकते थे। एकाध शायद भाग गये हों।
जो नहीं भाग सकते थे ।या जिन को भागने का मौका न मिला हो। वे उसी गारत में उसी जलजले में झुलस के खाक हो गए।
और भागते लोगों को भी पकड़ पकड़ कर उन गुंडों ने आग में झोंक दिया।
जिस गांव में में जन्मा था। उस गांव का नाम सोनितपुर था। सोनितपुर गांव जहां मखानी 200 से कम नहीं थी ज्यादा ही रहूगी
मकानी ज्यादातर लक्कड़ और बांस के मकान इथे घास फूस से छाया हुआ बड़े-बड़े मकान एसपी लक्कड़ के थ
यह हमारा गांव सोनितपुर एक कबीला था और कभी लेकर चार हिस्से थे सारे शो को अगर एक साथ जोड़ दिया जाए तो एक ही का मिला थ
और इतना बढ़िया सिस्टम कर रखा था कि चारों काबिले को एक साथ जोड़ने का जब भी कोई बात होती सारे कवियों के मुख्य एक साथ एक ही जगह जमा हो जाते और गांव की भलाई के लिए बातें होती यह आम कभी लो साधन नहीं था कि वह खानाबदोश कबीले की तरह नहीं थे यह बसें भी कभी लेते हैं हम कभी खानाबदोश हुआ करते थे मगर कहीं भाग दौड़ के बाद हमने यहां आकर बस ना ही ठीक समझा फिर मेरे जन्म से पहले की बात है बाबा कहते हैं यहां पर आकर बस आने के बाद किसी को बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ी सारे इसी गांव के होकर रह गए।
पहाड़ों की तलहटी में बसा हुआ यह गांव तीन तरफ से पहाड़ से पूछे ऊंचे पहाड़ से घिरा हुआ । गांव वालों के तलहटी में बहती हुई नदी। और गांव में सभी प्रकार की सुविधा उपलब्ध थी। बिजली पानी और बच्चों को पढ़ाई के लिए भी काबिले वालों ने मिलकर स्कूल खोल रखा था।
गांव में छोटा सा एक बाजार सा भी था कुछ दुकानें गांव वालों ने मिलकर बना रखा था। गांव वालों के बाहर ,किसी लोगों को या दुकान खोलने की यहां पर यहां रहने की गांव वाली जारत नहीं देते थे।
गांव वाले चाहते नहीं थे -कोई भी दूसरा कुनबा या दूसरी कोई खानाबदोश यहां इंट्री करें ।और उनके रहन-सहन पर हस्तक्षेप करें । उनसे शांति को भंग करें। उन लोगों के जिंदगी में हस्तक्षेप करें। 4 कबीलों में आपस में ब्याह शादी विवाह भी हो जाया करती थी। इन्हें कहीं बाहर से शादी ब्याह के लिए लड़की के लिए लड़का या लड़की के लिए लड़कियां ढूंढने की जरूरत नहीं होती थी।
सारी टुकड़िया आपस में एक दूसरे का खूब सम्मान करती ।और एक दूसरे की बातों का भी समर्थन करते थे। इन कबिलो में बाहर से ब्याह करने की इजाजत भी नहीं थी। ब्याह करना होता तो ।वह तीन कबिलों में ही लड़कियां ढूंढना पड़ता ।यह उनके आपसी समझौते की बातें।
एक दूसरे कविले में इनकी रिश्तेदारी चलती थी। इसीलिए भी यह एक दूसरे का सम्मान और एक दूसरे कबिले से प्यार करते थे।
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