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कत्ले गारत 22

11 जनवरी 2023

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उन के अंदर की ज्वाला को मैंने भड़काने की कोशिश की। उनके अंदर की ज्वाला शायद शांत हो चुकी थी ।या कुछ न कर पाने की वजह से वह चुपचाप हो गए थे।
शायद वह नहीं चाहते थे ,कि जो बचे खुचे हैं, उनको कोई नुकसान पहुंचे। वास्तव में खौफ़जदा  थे। अपने बच्चों को लेकर , अपनी बची खुची जिंदगी को लेकर। जैसा जल जल  गुजरा था। उसको याद करते ही लोग सिहर उठते। वे उस हादसे को याद करना ही, नहीं चाहते शायद। मगर यह बात सबको पता थी यह हादसा ,जल जला कुदरती नहीं था।
कुछ लालची लोगों द्वारा किया गया यह हादसा था। समंदर की बड़ी मछलियों ने छोटी मछलियों को तबाह कर दिया था। उन्हें उस तबाही का हिसाब तो देना ही था।

 मेरे गांव वाले चाहते थे। कि ऐसा फिर से कभी ना हो।
  वे समाजिक जिंदगी जी रहे थे। उनकी जिंदगी में खून खराबे ,बदले की जैसी कोई भावना नहीं थी।लेकिन मैंने आकर उनके जीवन में फिर से आग सुलगा दी थी।बदले की आग।
मुझे पता था। इतने लोगों की मौत, इतने लोगों  का कत्ले गारत ,में मारा जाना, यह सब जाया नहीं जाएगा। 
कुदरत खुद इसका बदला लेना चाहेगा।
 उसका बदला हर इंसान चाहेगा। उस बदले की आग को भड़काने में, मैंने  आग में घी का काम किया।
 उनके अंदर की ज्वाला फिर से सुलगने लगी थी। क्योंकि, उनके चेहरे से पता चलता था। उनकी आंखों में भर आई ज्वाला देखते बनती थी।
मैंने तो अपने बच निकलने की वजह ,कत्ले गारत  का बदला लेना ही समझ लिया था। इसीलिए मैंने खुद को उसके लिए तैयार कर लिया था। मैं किसी भी अंजाम को भुगतने  के लिए भी तैयार था।
 मगर यह गांव वालों ने ,इसके बारे में कभी शायद सोचा भी ना होगा। इस सिलसिले में कोई तैयारी की न होगी। बेशक एक दुर्घटना की तरह समझ कर उसे भूल गए होंगे!

मगर यह न कोई भूलने वाली बात थी। न ही उनको माफ करने वाली बात थी। यह तो ऐसा जल जला था ।जो फिर से आना ही था।

 फिर से इस धरती पर जिसने भी जन्म लिया है। उसे यही भुगत कर जाना ही है। और कुदरत शायद इस होने वाले जलजले का  दारोमदार हमें बनाना चाहता था। क्योंकि हम ही उस जल जले का, उस कत्ले गारत  के मारे थे।
सबके चेहरे में मैंने खामोशी देखी थी। और जलजले भी देखे थे। उस जलजले को मुझे कैस करना था।
इसलिए नहीं कि मैं उनका बुरा चाहता था। बल्कि इसलिए कि उनकी दिलों में जो आग फड़क रही थी,  आगको बुझाना जरूरी था। कायनात के इस फैसले को मुकम्मल करना हमारा काम था।
कायनात उसका वदला जरूर लेती। हम न लेते जब भी कयनात इसकी सजा जरूर देती।
ऊपर वाले के दरबार में ,देर जरूर है । अंधेर नहीं।
सभी बुजुर्ग, माता- बहने बैठी हुई थी। सब को संबोधित करते हुए कहा था- हमे इसका बदला जरूर लेना है ।इस के लिए हमें कोई भी कीमत अदा करने से पीछे नहीं हटना है।
मैंने सब की राय जाननी चाही। क्या इस बात से सभी लोग सहमत हैं?
कुछ देर तक चुप्पी छाई रही।
फिर एक बुजुर्ग बोले -हम उन से किस तरह से बदला ले सकते हैं? हम कमजोर पड़ गए हैं! सबसे कमजोर !हमारे पास किसी प्रकार के साधन नहीं है ।हमारे पास उनसे भिडने के लिए कोई भी ताकत नहीं है। किसी भी प्रकार की ताकत नहीं है। हम कमजोर हैं ,और वह ताकतवर है। उनकी ताकत अपरंपार है। उन से भिडने का मतलब आत्महत्या करना होगा।

मैं बोला -इरादे मजबूत हो,तो चींटी भी हाथी को मार गिरा सकता है। हमारे इरादे मजबूत है। हम अपराध के खिलाफ लड़ रहे हैं। जब कोई अपराध के खिलाफ लड़ता है ,तो उसकी ताकत अपराधी से डबल हो जाती है।
एक बुजुर्ग बोला -यह  बातें किस्से कहानियों में ही अच्छे लगते हैं ।वास्तविक जिंदगी में इसका कोई मायने नहीं रखता।
हम कोई युद्ध लड़ने जा रहे हैं! उनसे ,हम उनसे युद्ध लड़ेंगे ही नहीं? हम तो छापामार युद्ध लड़ेंगे !उनसे धीरे-धीरे उनको दीमक की तरह खत्म कर देंगे!  दिमाग‌ से युद्ध लड़ना है।

दिमक धीरे धीरे  लक्कड़ को खा जाता है। बर्बाद कर देता है। बस वही कहानी दोह रानी है। दिमक वाली। और मौका मिलते ही हमला कर देना।
एक- एक उन  हैवानों को चुन-चुन कर गिराना है। हमारा बसा- बसाया, वह गांव हमें फिर से वापस चाहिए। जो इंसानी जिंदगी  खत्म हुई, मार डाले गए ,जला दिए गए ,उनको तो हम वापस ला नहीं सकते। मगर इस हादसे के अपराधियों  को सजा तो दे सकते हैं। तभी जाकर उनकी आत्मा को शांति मिल सकती है।
एक बुजुर्ग बर बोला-
 यह संभव कैसे हो सकता है?
यह संभव है, बिल्कुल संभव है।।
 मैंने खुद को इसके लिए तैयार किया है। हर तरह की लड़ाई पर खरे उतरने के लिए ,इतने सालों तक मैं खुद को तैयार करता रहा।
 फिर सही मौके की तलाश में; मैं जिस गांव में पला , जिस गांव के लोगों ने मुझे सहयोग किया ,उस गांव को छोड़कर मैं चल पड़ा था। मैंने कभी सोचा भी न था! इस तरीके से मुझे फिर से अपने लोग मिल जाएंगे। आप लोगों के मिलते ही मेरी ताकत डबल हो गई। मेरी इच्छाओं को हवा मिल गई। मुझे लगा जैसे मैं पुनर्जीवित हो गया हूं।
इतने सालों तक मैं अपने सीने में बदले की आग को सुलगाता रहा हूं। खुद को बदले के लिए तैयार करता हुआ, आज इस मुकाम पर पहुंचा हूं ।और मुझे बहुत खुशी हो रही है, कि मैं आप लोगों के सामने हूं। मेरे अपने लोगों के सामने हूं।
मैं अकेला काफी हूं। उन लोगों के लिए। उन्हें नेस्तनाबूद करने के लिए। मगर मैं आप लोगों से यह सहयोग चाहता हूं। कि मुझे जरूरत के मुताबिक सहयोग करें। इस काम के लिए मुझे पता है, कई अड़चनें आ सकती हैं। उन अटचनों को पार करनें में मेरी मदद करें।
एक साथ पीछे से कई आवाजें आई -हम तुम्हारे हर कदम से कदम मिलाकर चलने के लिए तैयार है।
जो भी तुम कहोगे, उसे करने के लिए, उस काम को पूरा करने के लिए हम भी कटिबद्ध हैं।
कई ऐसे साधन थे, जो मेरे पास नहीं था। गांव वाले उसे मुहैया करा सकते थे। कई ऐसी चीजें थी। जो मेरे पास नहीं था। गांव के लोगों के पास था, तो मिल सकता था। वह कुछ भी हो सकता था।
अब मुझे गांव वालों का सहयोग मिल चुका था। या मिलने के लिए आश्वासन मिल चुका था। मुझे अपनी हर कदम पर कामयाबी नजर आ रही थी ।उस जल जले के दारोमदार अपराधियों को ।सजा देने के लिए जो भी कर सकता था ।मैं करने के लिए तैयार था ।
वह तो  खुद मैंने अपने आप को कई सालों से तैयार किया था। मगर कुछ कमियां थी !कुछ आर्थिक, कुछ और भी कमियां थी। जो मेरे गांव वाले पूरा कर सकते थे।
मगर इन सब चीजों के लिए मुझे जद्दोजहद करनी पड़ती। मगर अब मेरी उस जद्दोजहद को अंजाम देने वाले थे- मेरे गांव वाले!
सबने सहमति जताई कि इस कत्ले गारत का बदला जरूर लिया जाएगा। और उसके लिए मुझे जो भी सहयोग चाहिए वह देने के लिए तैयार थे। अपनी हैसियत के मुताबिक।


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रचनाएँ
कत्ले गारत
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बदले और खून से सनी खूनी सफर सफर का इतिहास है ।जिसे हम कत्ले गारत का नाम देकर यहां प्रस्तुत करना चाहते हैं।
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वे चार लोग थे ।और मैं उनके बीच में एक अकेला लेटा हुआ था। और मेरी नींद को देखते हुए उन लोगों ने जागाने के लिए एक ने मुझे छू करा आवाज लगाया था।उनकी आवाजों से मेरी आंखें खुल गई थी। मैंने नजर इधर-उधर घुमा

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मुझे पता था ।मेरा रास्ता आसान नहीं था। मुझे यह भी पता था। जिन चार लोगों पर मैंने हमला किया था। वह लोग यकीनन कोई न कोई मेरे पीछे आने वाले थे। उन के मुताबिक वह सिर्फ चार नहीं थे ।पूरा कुनबा था। उन

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बीच में आए इन सब लोगों से मैं खुद को बचाना चाहता था।। मेरा मकसद अपने गांव तक पहुंचना था। यह देखना था ,उस कत्ले गारत में कोई बचा तो नहीं ।या यह जानना था -कि कत्ले गारत के बाद वहां इंडस्ट्री बसा है

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मुझे बहुत आगे निकलना था। वक्त बहुत जाया हो चुका था।मैंने आसमान की ओर देखा। सूरज क्षितिज पे कहीं छुपने की तैयारी कर रहा था। मुझे अपने गांव आगे बढ़ना था। और रात के रुकने की व्यवस्था भी करना था। मेरा घोड

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मकान के बाहर सारागांव जमा हो गया था। सारा गांव ही एक कुनबा था। गांव के लोग में एकता थी एक स्वर बद्धता थी ।जो वहां जमा होने पर दिखती थी।गांव के बड़े बुजुर्ग की आंखों में आंसू थे। बच्चे भूल से गए थे। उस

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जब मेरी आंखें खुली, चट्टानों में बैठे-बैठे मुझे नशा सा छा गया था। जिसकी वजह से मैं वहीं पर लुढ़क गया था। करीब चार-पांच घंटे यूं ही मैं बेहोश सा पड़ा रहा। जब मेरे घोड़े ने मुझे

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कामदारों से मुझे सिर्फ इतना ही पता चल सका था, कि वह अरबों पति लोग थे ।उनके पास पहुंचना मुश्किल काम था। मैं साइबर में बैठकर,इन लोगों का रिहायश, ऑफिस पता लगाना चाहता था। यूं तो वे लोग यहां भी

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अंधेरी रात थी। आसमान में तारे चमक रहे थे। मगर टोपला बस्ती का यह एरिया ,रोशनी से जगमग आ रहा था। ऐसा लगता था जैसे आसमान के सारे तारे जमीन पर उतर आए हो। और कोठियों में जगमगा रहे हो।जहां मैं ठहरा था , रिस

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25 जनवरी 2023
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मौसम इतना ठंडा नहीं था। फिर भी मैं अपने घोड़े को खुले छत में नहीं रख सकता था। रात को रुकने के लिए उसे भी छत चाहिए थी । घास चाहिए था ।और खाने के लिए दाना भी चाहिए था ।पानी भी चाहिए था। उसकी फिकर मुझे अ

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29 जनवरी 2023
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अभिषेक ने जो कार्ड दिया था। उसमें सिर्फ उसका नाम और फोन नंबर लिखा हुआ था।और कहा था ।दो दिन बाद कॉल कर लेना। आज तीसरा दिन था। मैंने अभिषेक को कॉल किया था।अभिषेक निहायत ही शरीफ और ईमानदार शख्सियत था। और

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कत्ले गारत 32

30 जनवरी 2023
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मैंने ,अपने घोड़े को अस्तबल में ला के बांध दिया था। अस्तबल में घोड़े के लिए चारे की भी परेशानी नहीं थी।घोड़ा मवेशियों के साथ खुश रह सकता था। मैंने अपने कमरे की सफाई के लिए चाची को बोल दिया था। कमरा सा

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कत्ले गारत 33

31 जनवरी 2023
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कहते हैं - गुनाह कभी छुपता नहीं ।कभी न कभी गुनाह, नासूर बन के दिल को ,कचोटने लगती है।यह कुदरत का न्याय है। बदला लेने के लिए कुदरत ही तैयार करती है। मजलूम पर किया गया जुल्म कभी खाली नहीं जाता। उभ

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