अब मैं अपने आप को सुरक्षित महसूस कर रहा था। हवा में ठंडक बढ़ चुकी थी। हवा इतनी ठंड थी। कि ठिठुरन सी हो रही थी ।मगर यह ठिठुरन भी उस कत्ले गारत से कई गुना अच्छी थी।
मैं खौफ़ के साऐ से बहुत दूर निकल चुका था । गिनती के कुछ घंटो पहले मेरे आंखों के आगे से जो खौफनाक मंजर गुजर चुका था उससे भयानक तो ,और कुछ हो ही नहीं सकता था।
मुझे अब सूरज निकलने का इंतजार था। क्योंकि, उससे मुझे पता चलता कि मैं किस दिशा की ओर जा रहा हूं। मगर फिर भी मैं बड़ी शिद्दत से आसपास से आती हुई आवाजों को सुनने की कोशिश कर रहा था। मैं अभी भी चौकन्ना था। मैं कोशिश कर रहा था ,कि मेरे पीछे कोई ना हो ।शायद कोई दुश्मन मेरे पीछे-पीछे यहां तक आ न गया हो? और मुझे घात करके मार न डाले!
कभी-कभी पक्षियों की आवाजें भी आ जाती थी। और ऐसा लगता था जैसे कि अब भोर होने वाली है। पौ फटने वाला है ।पंक्षिया जागने लगी थी।
शायद कोई और समय होता !तो उन पंछियों की आवाजों से मैं खुश होता! मगर इस वक्त मेरी हालात सही नहीं थी। इसलिए पक्षियों की आवाजें भी मुझे अजीब से लगने लगे थे।
आसपास से आती हुई आवाजों से मुझे एहसास होने लगा था कि कहीं ना कहीं आसपास पानी का सोर्स है। कहीं आसपास पानी का स्रोत अगर मुझे मिल जाता! तो यकीनन यह सब यह था कि आसपास के किसी इलाके में कोई आबादी होने की संभावना थी। अक्सर जहां पानी का स्रोत होता है। वहीं पर आबादी आकर बस जाती है।
पुरानी पुरानी जितनी भी सभ्यताएं थी ।वे अक्सर बड़ी-बड़ी पानी के स्रोत के आसपास बसी हुई मिली थी ।और ऐसा सिर्फ बड़ी सभ्यताओं की बात नहीं, छोटे-छोटे नदियों के आसपास भी लोग इसी तरह आबादी बसा लेते हैं ।क्योंकि आदमी की सबसे पहली और मौलिक आवश्यकता वायु और जल है। वायु तो कहीं भी मिल जाती है ।लेकिन पानी के स्रोत को ढूंढना पड़ता है।
जल स्रोत की बातें पानी के आवाज कल कल की आवाज कहीं से आसी रही थी। मैंने झाड़ जंगलों में झांकने की कोशिश की ,मगर कुछ अंधकार होने की वजह से मुझे वह दिखा ना था ।फिर आवाज के दिशा में ही हम आगे बढ़ गए थे ।और आगे बढ़ते ही धीरे-धीरे जैसे ही पौ फटी थी ।तो मुझे आगे मैदान ,और मैदान के बीच से बहती हुई नदी की धारा दिखी थी।
नदी के पार दूर मुझे 2,4 प्रकाश पुंज दिखे थे। यानी कि वहां वहा आबादी बसी हुई थी। कुछ अच्छे मकान भी दिख रहे थे। जो अंधेरे की वजह से सिर्फ काली छाया की तरह दिख रहे थे। मगर जैसे-जैसे हम नदी की और बड़े धीरे-धीरे वह भी स्पष्ट हो गया था। कि वे मकाने थी। कच्ची मकाने।
मैं घोड़े को लगाम पकड़कर नदी के दिशा में आगे धीरे-धीरे बढ़ रहा था ।मैंने महसूस किया। साफ पानी का यह छोटा सा दरिया था।
दरिया को देखकर लगता था यह छिचला सा दरिया था। मैंने घोड़े को लगाम पकड़कर ही पानी पर उतार दिया था। पानी पिलाने की इरादे से।
घोड़ा मेरा खुश था। कि इतनी लंबी भागदौड़ के बाद ,उसे पीने के लिए साफ पानी मिला था।
मेरे हमसफ़र मेरे घोड़े ने दम भर के पानी पिया था। एक बार उसने दम भर के पानी पीने के बाद, मेरी ओर देखा था ।वह तसल्ली कर लेना चाहता था। कि पानी उसने दबाकर पी ली है। फिर उसने पानी मुंह पर लेकर मेरी और फुर्र करके उड़ाया था। जैसे मुझसे अटखेलियां कर रहा हो। मैंने घोड़े के पीठ को तसल्ली देता हुआ थप थपाया था।
भूख और प्यास से मेरी भी हालत पतली होती जा रही थी। घोड़े को पानी पिलाने के बाद मैंने भी पानी पिलाने के लिए जैसे पानी में हाथ मारा, तो मुझे ऐसे लगा ।कहीं आस-पास ही बर्फ के श्रोत से बर्फ पिघल कर पानी बनकर भर के आ रहा हो।
मेरे अनुमान के मुताबिक नदी के कुछ दूर पर ही 1 आबादी बसी हुई थी। छोटी सी गांव बसी हुई थी। जहां कई घर कच्चे मकान दिख रहे थे। और उन मकानों में रोशनी भी हो रही थी।
यानी कि मैं अपने आपको अपनी जान को किसी तरह बचाते हुए, इस आबादी क्षेत्र के पास आ पहुंचा था।
अभी तय करना मुश्किल था। कि यह आबादी क्षेत्र में मुझे पनाह मिलती है, कुछ खाने के लिए खाना मिल जाता है! या फिर यह भी मेरे दुश्मन साबित हो सकते हैं!
मगर इस समय, इस परिस्थिति में, इन सारी बातों का मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता था। क्योंकि, मैं किसी का दुश्मन नहीं हो सकता था। क्योंकि, मेरे पास कोई हथियार नहीं था। और यहां के कोई भी लोग मेरी जान पहचान के नहीं थे। मेरे पहचान वाले होते तो शायद कोई बात होती।
इस वक्त मैं, सिर्फ यही सोच रहा था ।कि गांव वालों के रहमो कर्म से मुझे कुछ भूख मिटाने के लिए कुछ खाने को मिल जाता। यही बहुत बड़ी बात थी।
लगभग 7 घंटे तक लंबी वैसे भागता हुआ, रात के अंधेरे में जान बचाकर भागता हुआ यह इंसान कौन था? ऐसे इंसान को अपनी जान बचा कर इस तरह भागने की जरूरत क्यों पड़ी थी?
कौन सा ऐसा हादसा उसके साथ पेस आया था ।जिसकी वजह से उसे जान बचाकर इतनी लंबी दौड़ ,अपने कबिले के लोग को छोड़कर भागने की जरूरत पड़ी थी?
कत्ले गारत क्या था?
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