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कत्ले गारत 2

28 दिसम्बर 2022

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अब मैं अपने आप को सुरक्षित महसूस कर रहा था। हवा में ठंडक बढ़ चुकी थी। हवा इतनी ठंड थी। कि  ठिठुरन सी हो रही थी ।मगर यह ठिठुरन भी उस कत्ले गारत से कई गुना अच्छी थी।
 मैं खौफ़ के साऐ से बहुत दूर निकल चुका था । गिनती के कुछ घंटो पहले मेरे आंखों के आगे से जो खौफनाक मंजर गुजर चुका था उससे भयानक तो ,और कुछ हो ही नहीं सकता था।

मुझे अब सूरज निकलने का इंतजार था। क्योंकि, उससे मुझे पता चलता कि मैं किस दिशा की ओर जा रहा हूं। मगर फिर भी मैं बड़ी शिद्दत से आसपास से आती हुई आवाजों को सुनने की कोशिश कर रहा था। मैं अभी भी चौकन्ना था। मैं कोशिश कर रहा था ,कि मेरे पीछे कोई ना हो ।शायद कोई दुश्मन मेरे पीछे-पीछे यहां तक आ न गया हो? और मुझे घात करके मार न डाले!
कभी-कभी पक्षियों की आवाजें भी आ जाती थी। और ऐसा लगता था जैसे कि अब भोर होने वाली है। पौ फटने वाला है ।पंक्षिया जागने लगी थी।
शायद कोई और समय होता !तो उन पंछियों की आवाजों से मैं खुश होता! मगर इस वक्त मेरी हालात सही नहीं थी। इसलिए पक्षियों की आवाजें भी मुझे अजीब से लगने लगे थे।
आसपास से आती हुई आवाजों से मुझे एहसास होने लगा था कि कहीं ना कहीं आसपास पानी का सोर्स है। कहीं आसपास पानी का स्रोत अगर मुझे मिल जाता! तो यकीनन यह सब यह था कि आसपास के किसी इलाके में कोई आबादी होने की संभावना थी। अक्सर जहां पानी का स्रोत होता है। वहीं पर आबादी आकर बस जाती है।

पुरानी पुरानी जितनी भी सभ्यताएं थी ।वे अक्सर बड़ी-बड़ी पानी के स्रोत के आसपास बसी हुई मिली थी ।और ऐसा सिर्फ बड़ी सभ्यताओं की बात नहीं, छोटे-छोटे नदियों के आसपास भी लोग इसी तरह आबादी बसा लेते हैं ।क्योंकि आदमी की सबसे पहली और मौलिक आवश्यकता वायु और जल है। वायु तो कहीं भी मिल जाती है ।लेकिन पानी के स्रोत को ढूंढना पड़ता है।

जल स्रोत की बातें पानी के आवाज कल कल की आवाज कहीं से आसी रही थी। मैंने झाड़ जंगलों में झांकने की कोशिश की ,मगर कुछ अंधकार होने की वजह से मुझे वह दिखा ना था ।फिर आवाज के दिशा में ही हम आगे बढ़ गए थे ।और आगे बढ़ते ही धीरे-धीरे जैसे ही पौ फटी थी ।तो मुझे आगे मैदान ,और मैदान के बीच से बहती हुई नदी की धारा दिखी थी।
नदी के पार दूर मुझे 2,4 प्रकाश पुंज दिखे थे। यानी कि वहां वहा आबादी बसी हुई थी। कुछ अच्छे मकान भी दिख रहे थे। जो अंधेरे की वजह से सिर्फ काली छाया की तरह दिख रहे थे। मगर जैसे-जैसे हम नदी की और बड़े धीरे-धीरे वह भी स्पष्ट हो गया था। कि वे मकाने थी। कच्ची मकाने।
मैं घोड़े को लगाम पकड़कर नदी के दिशा में आगे धीरे-धीरे बढ़ रहा था ।मैंने महसूस किया। साफ पानी का यह छोटा सा दरिया था।
दरिया को देखकर लगता था यह छिचला सा दरिया था। मैंने घोड़े को लगाम पकड़कर ही पानी पर उतार दिया था। पानी पिलाने की इरादे से।
घोड़ा मेरा खुश था। कि इतनी लंबी भागदौड़ के बाद ,उसे पीने के लिए साफ पानी मिला था।
मेरे हमसफ़र मेरे घोड़े ने दम भर के पानी पिया था। एक बार उसने दम भर के पानी पीने के बाद, मेरी ओर देखा था ।वह तसल्ली कर लेना चाहता था। कि पानी उसने दबाकर पी ली है। फिर उसने पानी मुंह पर लेकर मेरी और फुर्र करके उड़ाया था। जैसे मुझसे अटखेलियां   कर रहा हो। मैंने घोड़े के पीठ को तसल्ली  देता हुआ थप थपाया था।
भूख और प्यास से मेरी भी हालत पतली होती जा रही थी। घोड़े को पानी पिलाने के बाद मैंने भी पानी पिलाने के लिए जैसे पानी में हाथ मारा, तो मुझे ऐसे लगा ।कहीं आस-पास ही बर्फ के श्रोत से बर्फ पिघल कर पानी बनकर भर के आ रहा हो।
मेरे अनुमान के मुताबिक नदी के कुछ दूर पर ही 1 आबादी बसी हुई थी। छोटी सी गांव बसी हुई थी। जहां कई घर कच्चे मकान  दिख रहे थे। और उन मकानों में रोशनी भी हो रही थी।

यानी कि मैं अपने आपको अपनी जान को किसी तरह बचाते हुए, इस आबादी क्षेत्र के पास आ पहुंचा था।
अभी तय करना मुश्किल था। कि यह आबादी क्षेत्र में मुझे पनाह मिलती है, कुछ खाने के लिए खाना मिल जाता है! या फिर यह भी मेरे दुश्मन साबित हो सकते हैं!
मगर इस समय, इस परिस्थिति में, इन सारी बातों का मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता था। क्योंकि, मैं किसी का दुश्मन नहीं हो सकता था। क्योंकि, मेरे पास कोई हथियार नहीं था। और यहां के कोई भी लोग मेरी जान पहचान के नहीं थे। मेरे पहचान वाले होते तो शायद कोई बात होती।
इस वक्त मैं, सिर्फ यही सोच रहा था ।कि गांव वालों के रहमो  कर्म से मुझे कुछ भूख मिटाने के लिए कुछ खाने को मिल जाता। यही बहुत बड़ी बात थी।
लगभग 7 घंटे तक लंबी वैसे भागता हुआ, रात के अंधेरे में जान बचाकर भागता हुआ यह इंसान कौन था? ऐसे इंसान को अपनी जान बचा कर इस तरह भागने की जरूरत क्यों पड़ी थी?
कौन सा ऐसा हादसा उसके साथ पेस आया था ।जिसकी वजह से उसे जान बचाकर इतनी लंबी दौड़ ,अपने कबिले के लोग को छोड़कर भागने की जरूरत पड़ी थी?
कत्ले गारत क्या था?

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रचनाएँ
कत्ले गारत
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बदले और खून से सनी खूनी सफर सफर का इतिहास है ।जिसे हम कत्ले गारत का नाम देकर यहां प्रस्तुत करना चाहते हैं।
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कत्ले गारत 1

28 दिसम्बर 2022
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यह उपन्यास काल्पनिक है ।जिसका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं ।या फिर किसी वास्तविक व्यक्ति या समुदाय को चोट पहुंचाने के लिए कतई लिखी गई नहीं है। &n

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जब वह गांव वाला अपने हाथों में गिलास जैसा कुछ सामान लेकर आया था ।वह छोटा सा लौटा था ।और उसने बैटते ही पूछा -क्या तुम लाओ पानी खाओगे?मैं समझ गया था लाव पानी एक तरह की शराब होती है। जो चावल से बनती है ।

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मैंने अपने घोड़े का रकाब निकाल कर, उसे चरने के लिए छोड़ दिया था। और पीठ थपथपाता हुआ मैंने उससे बोला -जब तक मैं सो लेता हूं !तू चरके जल्दी ही यहीं पर आ जाना ।समझ गया। घोड़े ने सर हिलाया जैसे कि उसने सा

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टेंडर किसी व्यापारी के नाम पर छूट चुका था। व्यापारी क्या वह अपने आप को बहुत बड़ा इंडस्ट्रियलिस्ट समझता था। वह चाहता था। किसी तरह भी इस गांव को खाली कर दिया जाए ।क्योंकि ,उस गांव से ही होकर वह रास्ता प

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गांव के लोगों की खासियत होती है- वह जो थोड़े में संतुष्ट हो जाते हैं। वह नहीं सोचते कि वह कार पर चले। वे यह नहीं सोचते कि बहुत बड़ा बंगला बने, वे नहीं सोचते कि बहुत बड़ी कोठी हो ।बस दो वक्त की रोटी बी

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शायद कुछ साल यूं ही गुजर ग्ए थे। इस घर ने इस गांव में मुझे अपनापन और प्यार मोहब्बत मिला था। इस बात को लेकर मुझे किसी से शिकायत नहीं है। इस बात को लेकर मुझे किसी से शिकायत नहीं है।इन्होंने मुझे इतना मो

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मैंने पढ़ाई अपने कबीले की स्कूल में थोड़ी बहुत की थी ।जिसे पढ़ाई कह नहीं सकते थे।इस गांव में आने के बाद ,मैंने गांव में छोटे-छोटे बच्चों को जितना आता था। पढ़ाने की कोशिश की थी।हिंदी इंग्लिश की अक

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मेरी जिंदगी में सिर्फ एक ही लक्ष्य बचा हुआ था। और वो लक्ष्य था किसी तरह भी उन खूनियों का खात्मा करना। क्योंकि मुझे पता था। कि यह सारा सरकारी नुमाइंदों की मिलीभगत में हुई थी। इसलिए कानून का सहारा लेना

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अब बापी भी बड़ी हो चुकी थी। 10:11 साल की हो चुकी थी। दीदी के गोद में दूसरा एक बच्चा भी आ चुका था। उसकी भी उम्र अभी 4 साल की हो चुकी थी। मैं अग्निपुत्र- इस परिवार का एक अभिन्न अंग बन चुका था ।परिवार का

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यह वक्त नहीं था। कि मैं पंडित जी के साथ जाउं। गांव पहुंच कर खोजबीन करूं! जहां गांव के बारे में गांव की आबादी के बारे में नोटेड होता है ।क्योंकि ,अभी हम पुष्पलता के इलाज के लिए आए हुए थे। और जरूरी था,

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आज शहर में आए हुए तीसरा दिन था। पुष्प लता लगभग ठीक हो गई थी। मेरे इकरारेईश्क के बाद उसका बुखार धीरे-धीरे कमता चला गया था। या यूं कहें कि दोनों की एकरार के बाद बुखार लगभग उसी, समय कम हो गया था।मु

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4 जनवरी 2023
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पुष्पा को समझ आ चुका था। जिंदगी के बारे में। पुष्पा को इस बात की समझ आ गई थी। जो जिंदगी में जीने के लिए पैसे की भी जरूरत होगी। जो मैं शहर जाकर ही कमा सकता था। गांव में रहकर तो हम सिर्फ खा पी सकते थे।

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4 जनवरी 2023
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मैं जिस रास्ते से इस गांव में आया था। उसी रास्ते से ही मुझे लौटना था। इतने सालों के बाद भी मैं वो रास्ता कभी भूल नहीं पाया था। वह नदी पार करना ,नदी पार करके फिर इस गांव में आना ,जब मैं कभी भूला नहीं प

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कत्ले गारत 17

6 जनवरी 2023
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वे चार लोग थे ।और मैं उनके बीच में एक अकेला लेटा हुआ था। और मेरी नींद को देखते हुए उन लोगों ने जागाने के लिए एक ने मुझे छू करा आवाज लगाया था।उनकी आवाजों से मेरी आंखें खुल गई थी। मैंने नजर इधर-उधर घुमा

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मुझे पता था ।मेरा रास्ता आसान नहीं था। मुझे यह भी पता था। जिन चार लोगों पर मैंने हमला किया था। वह लोग यकीनन कोई न कोई मेरे पीछे आने वाले थे। उन के मुताबिक वह सिर्फ चार नहीं थे ।पूरा कुनबा था। उन

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8 जनवरी 2023
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बीच में आए इन सब लोगों से मैं खुद को बचाना चाहता था।। मेरा मकसद अपने गांव तक पहुंचना था। यह देखना था ,उस कत्ले गारत में कोई बचा तो नहीं ।या यह जानना था -कि कत्ले गारत के बाद वहां इंडस्ट्री बसा है

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मुझे बहुत आगे निकलना था। वक्त बहुत जाया हो चुका था।मैंने आसमान की ओर देखा। सूरज क्षितिज पे कहीं छुपने की तैयारी कर रहा था। मुझे अपने गांव आगे बढ़ना था। और रात के रुकने की व्यवस्था भी करना था। मेरा घोड

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मकान के बाहर सारागांव जमा हो गया था। सारा गांव ही एक कुनबा था। गांव के लोग में एकता थी एक स्वर बद्धता थी ।जो वहां जमा होने पर दिखती थी।गांव के बड़े बुजुर्ग की आंखों में आंसू थे। बच्चे भूल से गए थे। उस

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11 जनवरी 2023
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उन के अंदर की ज्वाला को मैंने भड़काने की कोशिश की। उनके अंदर की ज्वाला शायद शांत हो चुकी थी ।या कुछ न कर पाने की वजह से वह चुपचाप हो गए थे।शायद वह नहीं चाहते थे ,कि जो बचे खुचे हैं, उनको कोई नुकसान पह

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मुझे अब भटकने की जरूरत नहीं थी। गांव वालों को पता था । वह पुराना गांव हमारा कहां पर है.. किस रास्ते से वहां पर जा सकते हैं!मैं अकेला ही उस ओर जाने के लिए तैयार था। मैं सबसे पहले उस धरती का दर्शन चाहता

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14 जनवरी 2023
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जब मेरी आंखें खुली, चट्टानों में बैठे-बैठे मुझे नशा सा छा गया था। जिसकी वजह से मैं वहीं पर लुढ़क गया था। करीब चार-पांच घंटे यूं ही मैं बेहोश सा पड़ा रहा। जब मेरे घोड़े ने मुझे

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17 जनवरी 2023
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मैं पानी पीकर और हाथ मुंह धो कर अपने गांव की ओर मुड़ा। चारों तरफ बाउंड्री लगी हुई, बीच में कोई इंडस्ट्री बसी हुई थी। बाउंड्री पत्थरों से दीवार बनाई गई थी इस पार से उस पार देख पाना मुमकिन नहीं था

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कत्ले गारत 26

18 जनवरी 2023
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मैं अपने गांव में था। जो अभी फिलहाल इंडस्ट्री में तब्दील हो गई थी। और मेरे अपने लोग यहां कोई नहीं था। मेरा अपना मकान भी नहीं था।मैंने गांव की मिट्टी को अपनी मुट्ठी में लिया दिल से लगा लिया। सच म

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20 जनवरी 2023
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कामदारों से मुझे सिर्फ इतना ही पता चल सका था, कि वह अरबों पति लोग थे ।उनके पास पहुंचना मुश्किल काम था। मैं साइबर में बैठकर,इन लोगों का रिहायश, ऑफिस पता लगाना चाहता था। यूं तो वे लोग यहां भी

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23 जनवरी 2023
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मार्गरेटा से टोपला बस्ती, ज्यादा दूर नहीं था। करीब 20 किलोमीटर का रास्ता था । ऑन द रोड।अगर मैं अपने घोड़े पर ही टोपला बस्ती पहुंचता तो, लोग यही समझते ,कि कोई बैंड बाजा बारात वाला ही होगा। जो किस

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24 जनवरी 2023
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अंधेरी रात थी। आसमान में तारे चमक रहे थे। मगर टोपला बस्ती का यह एरिया ,रोशनी से जगमग आ रहा था। ऐसा लगता था जैसे आसमान के सारे तारे जमीन पर उतर आए हो। और कोठियों में जगमगा रहे हो।जहां मैं ठहरा था , रिस

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25 जनवरी 2023
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मौसम इतना ठंडा नहीं था। फिर भी मैं अपने घोड़े को खुले छत में नहीं रख सकता था। रात को रुकने के लिए उसे भी छत चाहिए थी । घास चाहिए था ।और खाने के लिए दाना भी चाहिए था ।पानी भी चाहिए था। उसकी फिकर मुझे अ

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29 जनवरी 2023
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अभिषेक ने जो कार्ड दिया था। उसमें सिर्फ उसका नाम और फोन नंबर लिखा हुआ था।और कहा था ।दो दिन बाद कॉल कर लेना। आज तीसरा दिन था। मैंने अभिषेक को कॉल किया था।अभिषेक निहायत ही शरीफ और ईमानदार शख्सियत था। और

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कत्ले गारत 32

30 जनवरी 2023
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मैंने ,अपने घोड़े को अस्तबल में ला के बांध दिया था। अस्तबल में घोड़े के लिए चारे की भी परेशानी नहीं थी।घोड़ा मवेशियों के साथ खुश रह सकता था। मैंने अपने कमरे की सफाई के लिए चाची को बोल दिया था। कमरा सा

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कत्ले गारत 33

31 जनवरी 2023
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कहते हैं - गुनाह कभी छुपता नहीं ।कभी न कभी गुनाह, नासूर बन के दिल को ,कचोटने लगती है।यह कुदरत का न्याय है। बदला लेने के लिए कुदरत ही तैयार करती है। मजलूम पर किया गया जुल्म कभी खाली नहीं जाता। उभ

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