कहते हैं - गुनाह कभी छुपता नहीं ।कभी न कभी गुनाह, नासूर बन के दिल को ,कचोटने लगती है।
यह कुदरत का न्याय है। बदला लेने के लिए कुदरत ही तैयार करती है। मजलूम पर किया गया जुल्म कभी खाली नहीं जाता। उभर कर सामने आ ही जाता है। और कुदरत का बार कभी खाली नहीं जाता।
फिर इंसान आत्मा से कमजोर हो जाता है। जब इंसान खुद अपनी आत्मा से कमजोर हो जाए, तो सारी दुनिया से लड़ने की शक्ति उसकी क्षीण हो जाती है।
जो संगीन गुनाह कुदरत कभी माफ नहीं कर सकता। जब कुदरत माफ न करें तो, कुदरत इसके खात्मे के लिए धरातल तैयार करने लगती है।
मैं तैयार हो रहा था, दुश्मन के साए तले। और दुश्मन को कानो कान पता नहीं था। उसके आस्तीन में सांप पल रहा है।
अभिषेक ने मुझे शूटिंग रेंज पर ले गया था।
अभिषेक ने मुझे कहा था। जब तक तुम शूटिंग के सारे गुर सीख न लो, तब तक तुम्हें यहां पर पर हर रोज़ आना होगा।
लेकिन, यह कोई दिक्कत वाली बात नहीं है। मामूली सी बात है ।तुम्हें कोई वर्ल्ड चैंपियन तो बनना नहीं है। बस तुम्हें शूटिंग आनी चाहिए। बंदूक चलाने की नॉलेज होनी चाहिए। समझ गए। तुम्हें तैयार करने का जिम्मा नेता जी ने मुझे दिया है।
मैं बोला- मैं तो कुछ भी करने के लिए तैयार था। यह मेरे लिए बड़ी खुशी की बात होगी। कि नेता जी ने मुझे ,आपने साथ रखने का फैसला किया है।
अभिषेक बोला- तुम्हें अच्छी तनखा भी दी जाएगी। तुम्हारी जिंदगी यहां सेट कर दूंगा मैं। ठीक है? अब तुम्हें कभी भी ,कहीं भी, नौकरी के लिए, रोजगार के लिए भटकना नहीं पड़ेगा। यहां तुम्हारी परमानेंट ड्यूटी लग जाएगी।
यह सब आप लोगों की मेहरबानी है। मैं तो यहां छोटे मोटे काम की आया था। बगीचे में माली माली का काम मिल जाता। यह सोच कर आया था। क्योंकि, मेरे पास कोई आईडेंटिटी कार्ड नहीं है ।एजुकेशनल क्वालीफिकेशन भी नहीं है। फिर कोई क्यों मुझे अच्छी जगह पर तैनात करेगा? इसीलिए मैंने यह सोचा था ।की कोठी के आगे इतना बड़ा बगीचा है.। बगीचे में ही काम करने को अगर काम मिल जाता तो बहुत है ।
मगर अब मुझे इतनी अच्छी नौकरी मिल गई है ,इससे मैं बहुत खुश हूं।
अभिषेक ने माउजर पर मैगजीन डाला। और टारगेट पर एक फायर किया। धाय! की एक आवाज के साथ गोली छुटी और बनाए गए टारगेट के रिंग पर लगा। बीच में नहीं लग पाया। अभिषेक ने माउजर ओर बढ़ा दिया।
जैसे अभिषेक ने निशाना साधा था उसी तरह से मैंने भी फायर झोंक दिया, टारगेट पर ।
यह मेरी जिंदगी की पहली फायरिंग थी। पहली बार ही मैंने गन को पकड़ा था, गन को छुआ था। इसीलिए शायद मेरे हाथों को एक हल्का सा झटका लगा। हाथ ऊपर की ओर झटके से चला गया।
अभिषेक बोला -यह तो माउजर है ।ज्यादा झटका नहीं देती ।मॉडर्न टेक्नोलॉजी से बना हुआ है ।पुराने जो रिवाल्वर होते हैं। वह ज्यादा झटके देते हैं।
उसने फिर माउजर अपने हाथ में ली। और उसने फायर करने का टेक्निक समझाया। माउजर में मैगजीन कैसे डालना, कैसे निकालना मुझे दिखाया। मैंने दो-तीन बार मैगजीन डालना और निकालना किया। बड़ा आसान सा काम था।
उसने मुझे यह भी बताया- किस तरीके से लॉक कर दिया और सेफ्टी लॉक कैसे खोलना है! यह भी कोई ज्यादा दिमाग लगाने वाली बात नहीं थी ! किसी को भी एक बार दिखाने के बाद ,यह काम आराम से कर सकता था। इस तरीके से मेरे दुश्मन ने ही मुझे एक परफेक्ट योद्धा बनने की ट्रेनिंग दिलाई थी।
सातवें दिन मेरा हर एक गोली टारगेट पर लग रहा था।
अभिषेक खुश था। उसका शागिर्द जो गन चलाने में माहिर हो गया था। यह एक उस्ताद के लिए खुशी की ही बात थी।
अभी मुझे गन साथ में लाने दिया जा नहीं रहा था ।बस ट्रेनिंग के बाद वहीं पर छोड़ कर आना पड़ता। सभी तरह के छोटे गन वहां पर थे। सभी पर मैंने हाथ आजमा लिया था। अब गन चलाने में मुझे कोई दिक्कत नहीं होती।
अब बारी थी कार चलाने की। मुझे ड्राइविंग इंस्टीट्यूट नहीं ज्वाइन करवा लिया था। सुबह सुबह मुझे ड्राइविंग कॉलेज पहुंचना पड़ता। ड्राइविंग के गुर सीखने के बाद, फिर नाश्ता पानी करके ,मैं फिर अभिषेक के साथ शूटिंग रेंज में पहुंच जाता।
इतने व्यस्ततम रहने के बाद भी ,मैं सुबह आपने घोड़े को पानी-सानी और चारा डाल कर चला जाता। घोड़े से बोलता -तुम्हारे आराम करने के दिन है! आराम कर लो जब जरूरत पड़ेगी तब फिर चलेंगे। शाम- शाम को मैं घोड़े को अस्तबल से निकालकर घास के मैदान की ओर ले चलता।
आज यहां काम पर लगे हुए पच्चिसवा दिन था। और पांच दिन के बाद मुझे रामेश्वर धनवार के साथ ही रहना था। इस बात का जिक्र अभिषेक ने मुझसे किया था।
फिर मुझे धनवार की हर गतिविधि पता चलता। उसी हिसाब से मैं अपना प्लान सेट कर सकता था।
इस बीच मुझे सिर्फ एक बार हवेली के अंदरूनी भाग में जाने का मौका मिला था।
ऐसा भव्य कोठी कभी मैंने देखा न था। यह मेरे लिए एक अचरज की बात थी।
कोठी में कई कमरे थे ।जिनमें रामेश्वर धनवार का कौन सा कमरा था? मैंने किसी से पूछा नहीं ।और पूछने का औचित्य भी नहीं था। ज्यादा पूछताछ करने पर , कोई भी घटना होने पर ,मेरे ऊपर शक होना मामूली सी बात थी। इसीलिए भी मैंने सारा काम, वक्त के ऊपर छोड़ रखा था।
मुझे पता था जैसे ही मैं धनवार के गार्ड के रूप में लग जाऊंगा ।उसके बाद उसके कमरे में भी आना-जाना शुरू हो जाएगा। और यह भी पता चल जाएगा कि कौन-कौन प्लेटिनम इंडस्ट्री के मालिक हुआ करते हैं।
कौन-कौन से लोग जिन्होंने प्लेटिनम इंडस्ट्री को ।नौगांव को इंडस्ट्री में बदलने के लिए। गुनाह का सहारा लिया। लोगों का हत्या किया, सब का पता चल सकता था।
मेरे पास कार का कोई लाइसेंस नहीं था। लेकिन कार चलाने में मैं माहिर हो गया था। और बंदूक चलाना भी मुझे अच्छी तरह आ गया था। निशाने पर मैं एक ही झटके में गोली दाग सकता था।
रोज सुबह उठकर मुझे उसी ऑफिस पर पहुंचना होता था ।जिसमें पहली बार अभिषेक मुझे ले गया था ।वहीं से फिर आगे अभिषेक मुझे लेकर चलता था। यह मेरा रोज का काम था। वही से मुझे खाना खाने के लिए किचन में जाना होता था।
कुछ और पैसे मुझे अभिषेक ने एडवांस के तौर में ऑफिस से दिलवाया था। जिससे मुझे अपनी जेब खाली महसूस ना हो।
इन सबके बावजूद, मैं दिन में एक चक्कर चाय वाले चाचा के पास लगा आता था। चाय पी आता था। जब मैं अपने घोड़े को लेकर शाम के चक्कर में निकलता था। मेरे घोड़े की भी कुछ चक्कर लग जाती , वह भी मुझसे खुश रहता।(१३२)
जिंदगी के प्रत्येक पल मेरे लिए खास था। अहमियत रखता था। क्योंकि हर एक कदम रामेश्वर धनवार और प्लेटिनम इंडस्ट्री के मालिकान की ओर बढ़ रहा था ।यही उन लोगों के लिए कम- डाउन था।