बीच में आए इन सब लोगों से मैं खुद को बचाना चाहता था।। मेरा मकसद अपने गांव तक पहुंचना था।
यह देखना था ,उस कत्ले गारत में कोई बचा तो नहीं ।या यह जानना था -कि कत्ले गारत के बाद वहां इंडस्ट्री बसा है ,कि नहीं ।अगर बसा है, तो किसने उस इंडस्ट्री को बसाया।
कौन था? उस कत्ले गारत का ,उस जलजले का मास्टरमाइंड?
कौन था उस कत्ले गारत के पीछे?
कत्ले गारत में मारे गए 700 लोगों का, मौत का जिम्मेदार, जो भी था ,उसने ही वहां पर प्लेटिनम इंडस्ट्री बसाया होगा।
मुझे यही पता लगाना था ।और उन दहसतगर्दों को मौत के घाट उतारना था।
मैं अग्निपुत्र,
उस गांव में मारे गए 700 लोगों का मौत का बदला लेना चाहता था।
उन्हें नेस्तनाबूद करना चाहता था। इसके लिए मुझे अगर कानून से भी टकराना पड़े, तो इसके लिए मैं तत्पर तैयार था।
मेरे जिंदगी का मकसद यहीं था ।इसीलिए कुदरत ने मेरे को जिंदा रखा था।
मैंने अपने घोड़े के कंधे को थपथपा कर बोला- चल जल्दी चल ,मैं नहीं चाहता ,कि कोई ऐसा वैसा फिर मेरे से टकरा है! और समय की बर्बादी से बचना चाहता था मैं!
मेरा घोड़ा दिन मेरी बातों को अच्छी तरह समझता था इसलिए भी उसने मेरे कहते सरपट दौड़ लगाना शुरू कर दिया। लेकिन रास्ता इतना साफ नहीं था, झाड, जंगल, पत्थर, कीचड़ ,पहाड़,नदी,नाले पार करके जाना था।
रास्ता इतना आसान नहीं था। फिर भी घोड़े ने दौड़ लगाना शुरू कर चुका था। सूखे से जमीन को पार करते हुए, जैसे हम झाड जंगलों वाले रास्ते पर पहुंचे.. मेरे घोड़े ने जैसे अपनी गति पर ब्रेक लगा लिया। और हिन हिना कर पिछले दो पैरों में ही खड़ा हो गया।
इसका सीधा सा अर्थ था ,कि आगे कोई खतरा है। मैंने खतरे को भांपते हुए अपने पीठ पर लगी हुई तलवार को खींचकर मैंने अपने हाथ में ले ली।
मैंने चौकन्ना हो कर ,आजू बाजू देखा ।मुझे कुछ नजर नहीं आया ।फिर घोड़े को ऐड लगाने की कोशिश की।
मगर मेरा घोड़ा टस से मस नहीं हुआ । फिर हिनहिना कर दो पैरौ में उसने खुद को खड़े कर दिए।
जब घोड़ा हिना हिना कर खड़ा हुआ, और टस से मस होने के लिए राजी नहीं हुआ, तो मैंने ध्यान से अपने आगे की ओर देखा। मैंने ध्यान से देखा- झाड़ियों पर अंधेरे पर एक काला चीता बैठा हुआ, हमें घूर रहा था!
उसकी आंखें बल्ब की तरह टीम टीम आ रहे थे ।और उसके दात चमक रहे थे ।जिस्म उसका बिल्कुल काला सा था। हमारी ओर घूर कर देखा रहा था ।और झपट पडने के लिए बिल्कुल तैयार था।
मैं ललकार था वह उससे बोला आना है तो आ जा तेरी भी शामत आ रखी होगी। तू भी आज बेटा ,या तो मरेगा ,या घायल होकर जाएगा।
जंगल का कानून है। जो बलवान होगा वही जी पाएगा। कमजोर जानवर बलवान जानवर का शिकार हो जाएगा।
जंगल में जीने के लिए बलवान होना, या फिर हमलावर होना जरूरी था।
मेरे चीखने पर वह आदमखोर जानवर मेरी ओर देखकर गुर्राया , यकीनन वह आदमखोर जानवर था ।वरना इंसान और घोड़े को एक साथ देख कर पलायन कर जाता, भागने को तैयार होता।
मैंने चेक कर बोला- या तो मेरे रास्ते से हट जा, या फिर मरने के लिए तैयार हो जा।
वह आदमखोर जानवर था। उसका मुंह इंसानी खून जरूर लग चुका था। वह इंसानी बातों को समझ नहीं सकता था।
मैं और मेरा घोड़ा थोड़ी देर ,अडे रहे। उसे देखते रहे ।वह हमें देखकर गुर्राता रहा।
अगर हम आगे बढ़ते ,तो वह शायद हम पर हमला कर सकता था। मगर हमारी अडे रहने पर ,उसने पता नहीं क्या सोच कर आपने आपको वापस करने में ही बेहतर समझा।
आदमखोर चुपचाप से पीछे की ओर मुड़ चला था। शायद वो हार मान चुका था।
उसे हमने आगे झाड़ी की ओर घुसते देखा तो हमें लगा सच में ओ हमसे दूर भाग रहा है। शायद उसे लगा था ।कि हम उस पर भारी पड़ रहे हैं। इसीलिए उसने ऐसा डिसीजन लिया होगा।
उसके पीछे मुड़ते ही घोड़े को मैंने ऐड लगाया घोड़ा थोड़ी देर तक टस से मस नहीं हुआ। फिर उसका गर्दन थपथपाया जैसे उसे शांतवाना दिया हो, कि मैं हूं ना। डर मत। आगे चल।
फिर मेरा घोड़ा चाहल कदमी के चाल में थोड़े थोड़े आगे बढ़ता रहा ।फिर थोड़ी देर बाद मैंने उसे सांत्वना देते हुए उसका कंधा थपथपाया और आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहन किया।