आज शहर में आए हुए तीसरा दिन था। पुष्प लता लगभग ठीक हो गई थी। मेरे इकरारेईश्क के बाद उसका बुखार धीरे-धीरे कमता चला गया था। या यूं कहें कि दोनों की एकरार के बाद बुखार लगभग उसी, समय कम हो गया था।
मुझे समझ में नहीं आया था। कि मैं क्या कहता ।
मैंने भी पुष्प लता की बातों पर अपने आप को सहमति जता ली थी ।क्योंकि, मुझे पता था। जिंदगी अगर जीना है -तो कोई न हीं कोई एक सहारे की जरूरत होती है। मगर मुझे जिस रास्ते पर चलना था । वो रास्ता भयानक था, खतरनाक था, दर्दनाक था, जिसमें जलजले थे। उन रास्तों पर मैं पुष्प लता को साथ लेकर चल नहीं सकता था। पुष्प लता की वजह से मुझे और ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता था। या फिर मेरी वजह से पुष्प लता को ज्यादा दिक्कत आन पड़ सकता था।
जिसमें दुख था। मगर फिर भी न जाने दिल के हाथों मैं मजबूर हो गया था।
इंसान सच में दिल के हाथों से मजबूर होता है ।तो वही करता है। जो कायनात उसे कराती है। कभी-कभी लगता कि हम भी कायनात के हाथों के कठपुतली है। कभी-कभी लगता कि मैं मनमानी कर रहा हूं। कभी-कभी लगता नहीं जो भी हो रहा है कायनात करा रह है, कुदरत करा रहा है।
हम दूसरे दिन सुबह सुबह शहर से चल पड़े थे। अगर सुबह-सुबह नहीं चल पड़ते तो ।शाम तक गांव में पहुंचना मुश्किल हो जाता।
पहले हमें जीप या छोटी बस की सवारी करनी थी। उसके खत्म होने के बाद फिर गांव में जिनके पास मैंने अपने घोड़े को बांध रखा था उनके पास से अपने घोड़े को लेकर फिर पैदल चलना था।
पुष्प लता कुश थी, खुश तो मैं भी था ।मगर मुझे भृगु चाचा भी खुश ही नजर आए थे। शायद उनको हमारे बारे में पता था ।सारे गांव को जब पता था। तो उनको पता ना होने की बात तो दूर ही थी।
जहां मेरा घोड़ा बधा हुआ था ,वहां आने पर फिर रिश्तेदार वहीं रुकने के लिए जोर जबरजस्ती करने लगे थे ।मगर मेरे को चाचा और मेरे कहने पर फिर दूसरी बार आने पर रुकने की बात कह कर हम चल पड़े थे।
पुष्प लता यू भी कमजोर हुई थी।
तो उसको हमने घोड़े पर सवार करवाया था। फिर हम धीरे-धीरे लगाम पकड़कर आगे आगे चलते रहे। घोड़ा भी पुष्प लता को अच्छी तरह पहचानता था। इसलिए उसने भी आनाकानी नहीं की थी।
घोड़े ने भी शायद मेरी दिल की बात समझ ली थी ।इसलिए भी बार-बार वह टेडी नजर से मेरी ओर देख रहा था। जैसे कह रहा हो -बच्चू तूने तो बाजी मार ली, तीन दिन के अंदर।
और घोड़े की दिल की बात समझ कर मैं बार-बार उसके कंधे को सहला देता ।
तीन दिन तक घोड़ा अनजान इंसान के घर में बधे रहने से शायद बोर भी हो गया था। मैंने उससे पूछा कि, तुम्हारी ठीक-ठाक देखभाल हुई कि नहीं ?
उसने सिर हिलाकर मेरा अभिवादन करता हुआ सा उसने मेरे पीठ पर सहला दिया था। जैसे कह रहा हो, तुमने तो मौज मार लिया बेटा। और मुझे छोड़ दिया यहां पर।
उनके घर से हमने खाना पीना खाकर उसके बाद घोड़े को भी अच्छी तरह पाली सानी करके यहां से निकल पड़े , चल पड़े थे।
रास्ता लंबा था। इसीलिए रास्ते में खाने के लिए कुछ रोटी और सब्जी सूखी सब्जी और अचार मेजबान ने एक पोटली में बांध दिया था।
क्योंकि पैदल के रास्ते में हमें खाने के लिए कोई भी होटल या दुकान मिलने से रहा। 6,7 घंटे का पैदल का रास्ता था ।नदी पहाड़ झरने होते हुए हमें अपने गांव पहुचना था।
मौसम बारिश का था। लेकिन गनीमत थी कि दो दिन से धूप दिखाई दे रही थी ।बारिश के बादल कहीं आसमान पर दिखाई नहीं दे रहे थै।
यूं तो रास्ते में कोई भी गांव ,कोई भी दुकान, कोई भी होटल, मिलने वाला नहीं था। फिर भी रास्ते में जंगल झाड जंगलों से हम पार होते भी चले तो ।खाने के लिए फ्रूट्स , जंगली फ्रूट्स, जिसे मैं पहचानता था भृगु चाचा भी जानते थे ।और पुष्पलता भी पहचानती थी। खाने लायक फ्रूट्स हमें बहुत मिले थे। जो हम इकट्ठा करते हुए भी चल रहे थे,खाते भी चले थे।
ईन मौसमों में जंगलों में कई तरह के फ्रूट्स मिल जाते थे ।जो खाने में स्वादिष्ट और बहुत स्वादिष्ट होते थे।
कई बार तो हम जंगल की और खुद निकल पड़ते थे। उन फ्रुट खोजने और अपने थैले में भरकर लाते थे । खुद खाते और गांव में बांटते थे।
और फ्रूट डोने के लिए। अपने पास अपना घोड़ा जो था। इसीलिए ढोने की भी कोई दिक्कत नहीं हो रही थी।
सफर इतना खुशनुमा था, भले पैदल सफर था। मगर ऐसा लगता था ।जैसे हम पिकनिक में आए हो ।हम बीच में रुक कर एक चबूतरा सा बना हुआ था वहां पर पुष्प लता ने पोटली खोली थी ।खाने की पोटली ,हम तीनों बैठकर रोटियां तोड़ने लगे थे।
पैदल चलने के बाद किसी चबूतरे के पास पहाड़ की तलहटी में छोटा सा गड्ढा सा बना हुआ था। जिसमें पहाड़ से पानी रिस कर उस पर जमा होता था। जो रास्ते से गुजरते थे बड़ा सा पत्ता लेकर लौटे की तरह ,गहरा बनाकर पानी निकालते, और पी जाते।
पानी ऐसा लगता जैसे पानी कितनी मिठास भरा हो ।और ऐसे जंगलों के रास्ते पैदल चलते वक्त खाने को दो रोटी मिल जाए ?और फ्रूट मिल जाए तो ,ऐसा लगता इससे बढ़िया जन्नत और क्या होगी! खाने के स्वाद में चार चांद लग जाते!
दो रोटी की भूख हो तो इंसान चार रोटी खा लेता।