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कत्ले गारत 14

3 जनवरी 2023

14 बार देखा गया 14
आज शहर में आए हुए तीसरा दिन था। पुष्प लता लगभग ठीक हो गई थी। मेरे इकरारेईश्क के बाद उसका बुखार धीरे-धीरे कमता  चला गया था। या यूं कहें कि दोनों की एकरार के बाद बुखार लगभग उसी, समय कम हो गया था।
मुझे समझ में नहीं आया था। कि मैं क्या कहता ।
 मैंने भी पुष्प लता की बातों पर अपने आप को सहमति जता ली थी ।क्योंकि, मुझे पता  था। जिंदगी अगर जीना है -तो कोई न हीं कोई एक सहारे की जरूरत होती है। मगर मुझे जिस रास्ते पर चलना था । वो रास्ता भयानक था, खतरनाक था, दर्दनाक था, जिसमें जलजले थे। उन रास्तों पर मैं पुष्प लता को साथ लेकर चल नहीं सकता था। पुष्प लता की वजह से मुझे और ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता था। या फिर मेरी वजह से पुष्प लता को ज्यादा दिक्कत  आन पड़ सकता था।
जिसमें दुख था। मगर फिर भी न जाने दिल के हाथों मैं मजबूर हो गया था।
इंसान सच में दिल के हाथों से मजबूर होता है ।तो वही करता है। जो कायनात उसे कराती है। कभी-कभी लगता कि हम भी कायनात के हाथों के  कठपुतली है। कभी-कभी लगता  कि मैं मनमानी कर रहा हूं। कभी-कभी लगता नहीं जो भी हो रहा है कायनात करा रह है, कुदरत करा रहा है।

हम दूसरे दिन सुबह सुबह शहर से चल पड़े थे। अगर सुबह-सुबह नहीं चल पड़ते तो ।शाम तक गांव में  पहुंचना मुश्किल हो जाता।
पहले हमें जीप या  छोटी बस की सवारी करनी थी। उसके खत्म होने के बाद फिर गांव में जिनके पास मैंने अपने घोड़े को बांध रखा था उनके पास से अपने घोड़े को लेकर फिर पैदल चलना था।
पुष्प लता कुश थी, खुश तो मैं भी था ।मगर मुझे भृगु चाचा भी खुश ही नजर आए थे। शायद उनको हमारे बारे में पता था ।सारे गांव को जब पता था। तो उनको पता ना होने की बात तो दूर ही थी।
जहां मेरा घोड़ा बधा हुआ था ,वहां आने पर फिर रिश्तेदार वहीं रुकने के लिए जोर जबरजस्ती करने लगे थे ।मगर मेरे को चाचा और मेरे कहने पर फिर दूसरी  बार आने पर रुकने की बात कह कर हम चल पड़े थे।
पुष्प लता यू भी कमजोर हुई थी।
 तो उसको हमने घोड़े पर सवार करवाया था। फिर हम धीरे-धीरे लगाम पकड़कर आगे आगे चलते रहे। घोड़ा भी पुष्प लता को अच्छी तरह पहचानता था। इसलिए उसने भी आनाकानी नहीं की थी। 
घोड़े ने भी शायद मेरी दिल की बात समझ ली थी ।इसलिए भी बार-बार वह टेडी नजर से मेरी ओर देख रहा था। जैसे कह रहा हो -बच्चू तूने तो बाजी मार ली, तीन दिन के अंदर।
और घोड़े की दिल की बात समझ कर मैं बार-बार उसके कंधे को सहला देता ।
तीन दिन तक घोड़ा अनजान इंसान के घर में बधे रहने से शायद बोर भी हो गया था। मैंने उससे पूछा कि, तुम्हारी ठीक-ठाक देखभाल हुई कि नहीं ?
उसने सिर हिलाकर मेरा  अभिवादन करता हुआ सा उसने मेरे पीठ पर सहला दिया था। जैसे कह रहा हो, तुमने तो मौज मार लिया बेटा। और मुझे छोड़ दिया यहां पर।
उनके घर से हमने खाना पीना खाकर उसके बाद घोड़े को भी अच्छी तरह पाली सानी करके यहां से निकल पड़े  , चल पड़े थे।
रास्ता लंबा था। इसीलिए रास्ते में खाने के लिए कुछ रोटी और सब्जी सूखी सब्जी और अचार मेजबान ने एक पोटली में बांध दिया था।
क्योंकि पैदल के रास्ते में हमें खाने के लिए कोई भी होटल या दुकान मिलने से रहा। 6,7 घंटे का पैदल का रास्ता था ।नदी पहाड़ झरने होते हुए हमें अपने गांव पहुचना था।
मौसम बारिश का था। लेकिन गनीमत थी कि दो दिन से धूप दिखाई दे रही थी ।बारिश के बादल कहीं आसमान पर दिखाई नहीं दे रहे थै।
यूं तो रास्ते में कोई भी गांव ,कोई भी दुकान,  कोई भी होटल, मिलने वाला नहीं था। फिर भी रास्ते में जंगल झाड जंगलों से हम पार होते  भी चले तो ।खाने के लिए फ्रूट्स , जंगली फ्रूट्स, जिसे मैं पहचानता था भृगु चाचा भी जानते थे ।और पुष्पलता भी पहचानती थी। खाने लायक फ्रूट्स हमें बहुत मिले थे। जो हम इकट्ठा करते हुए भी चल रहे थे,खाते भी चले थे।
ईन मौसमों में जंगलों में कई तरह के फ्रूट्स मिल जाते थे ।जो खाने में स्वादिष्ट और बहुत स्वादिष्ट होते थे।
 कई बार तो हम जंगल की और खुद निकल पड़ते थे। उन फ्रुट खोजने और   अपने थैले में भरकर लाते थे । खुद खाते और गांव में बांटते थे।
और फ्रूट डोने के लिए। अपने पास अपना घोड़ा जो था। इसीलिए ढोने की भी कोई दिक्कत नहीं हो रही थी।
सफर इतना खुशनुमा था, भले पैदल सफर था। मगर ऐसा लगता था ।जैसे हम पिकनिक में आए हो ।हम बीच में रुक कर एक चबूतरा सा बना हुआ था वहां पर पुष्प लता ने पोटली खोली थी ।खाने की पोटली ,हम तीनों बैठकर रोटियां तोड़ने लगे थे।
पैदल चलने के बाद किसी चबूतरे के पास पहाड़ की तलहटी में छोटा सा गड्ढा सा बना हुआ था। जिसमें पहाड़ से पानी रिस कर उस पर जमा होता था। जो रास्ते से गुजरते थे बड़ा सा पत्ता लेकर  लौटे की तरह ,गहरा बनाकर पानी निकालते, और पी जाते।
 पानी ऐसा लगता जैसे पानी कितनी मिठास भरा हो ।और ऐसे जंगलों के रास्ते पैदल चलते वक्त खाने को दो रोटी मिल जाए ?और फ्रूट मिल जाए तो ,ऐसा लगता इससे बढ़िया जन्नत और क्या होगी! खाने के स्वाद में चार चांद लग जाते!
दो रोटी की भूख हो तो इंसान चार रोटी खा लेता।
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रचनाएँ
कत्ले गारत
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बदले और खून से सनी खूनी सफर सफर का इतिहास है ।जिसे हम कत्ले गारत का नाम देकर यहां प्रस्तुत करना चाहते हैं।
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कत्ले गारत 1

28 दिसम्बर 2022
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यह उपन्यास काल्पनिक है ।जिसका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं ।या फिर किसी वास्तविक व्यक्ति या समुदाय को चोट पहुंचाने के लिए कतई लिखी गई नहीं है। &n

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अब मैं अपने आप को सुरक्षित महसूस कर रहा था। हवा में ठंडक बढ़ चुकी थी। हवा इतनी ठंड थी। कि ठिठुरन सी हो रही थी ।मगर यह ठिठुरन भी उस कत्ले गारत से कई गुना अच्छी थी। मैं खौफ़ के साऐ से बहुत दू

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जब वह गांव वाला अपने हाथों में गिलास जैसा कुछ सामान लेकर आया था ।वह छोटा सा लौटा था ।और उसने बैटते ही पूछा -क्या तुम लाओ पानी खाओगे?मैं समझ गया था लाव पानी एक तरह की शराब होती है। जो चावल से बनती है ।

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31 दिसम्बर 2022
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टेंडर किसी व्यापारी के नाम पर छूट चुका था। व्यापारी क्या वह अपने आप को बहुत बड़ा इंडस्ट्रियलिस्ट समझता था। वह चाहता था। किसी तरह भी इस गांव को खाली कर दिया जाए ।क्योंकि ,उस गांव से ही होकर वह रास्ता प

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गांव के लोगों की खासियत होती है- वह जो थोड़े में संतुष्ट हो जाते हैं। वह नहीं सोचते कि वह कार पर चले। वे यह नहीं सोचते कि बहुत बड़ा बंगला बने, वे नहीं सोचते कि बहुत बड़ी कोठी हो ।बस दो वक्त की रोटी बी

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1 जनवरी 2023
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शायद कुछ साल यूं ही गुजर ग्ए थे। इस घर ने इस गांव में मुझे अपनापन और प्यार मोहब्बत मिला था। इस बात को लेकर मुझे किसी से शिकायत नहीं है। इस बात को लेकर मुझे किसी से शिकायत नहीं है।इन्होंने मुझे इतना मो

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2 जनवरी 2023
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मेरी जिंदगी में सिर्फ एक ही लक्ष्य बचा हुआ था। और वो लक्ष्य था किसी तरह भी उन खूनियों का खात्मा करना। क्योंकि मुझे पता था। कि यह सारा सरकारी नुमाइंदों की मिलीभगत में हुई थी। इसलिए कानून का सहारा लेना

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2 जनवरी 2023
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अब बापी भी बड़ी हो चुकी थी। 10:11 साल की हो चुकी थी। दीदी के गोद में दूसरा एक बच्चा भी आ चुका था। उसकी भी उम्र अभी 4 साल की हो चुकी थी। मैं अग्निपुत्र- इस परिवार का एक अभिन्न अंग बन चुका था ।परिवार का

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3 जनवरी 2023
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यह वक्त नहीं था। कि मैं पंडित जी के साथ जाउं। गांव पहुंच कर खोजबीन करूं! जहां गांव के बारे में गांव की आबादी के बारे में नोटेड होता है ।क्योंकि ,अभी हम पुष्पलता के इलाज के लिए आए हुए थे। और जरूरी था,

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4 जनवरी 2023
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पुष्पा को समझ आ चुका था। जिंदगी के बारे में। पुष्पा को इस बात की समझ आ गई थी। जो जिंदगी में जीने के लिए पैसे की भी जरूरत होगी। जो मैं शहर जाकर ही कमा सकता था। गांव में रहकर तो हम सिर्फ खा पी सकते थे।

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कत्ले गारत 16

4 जनवरी 2023
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मैं जिस रास्ते से इस गांव में आया था। उसी रास्ते से ही मुझे लौटना था। इतने सालों के बाद भी मैं वो रास्ता कभी भूल नहीं पाया था। वह नदी पार करना ,नदी पार करके फिर इस गांव में आना ,जब मैं कभी भूला नहीं प

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कत्ले गारत 17

6 जनवरी 2023
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वे चार लोग थे ।और मैं उनके बीच में एक अकेला लेटा हुआ था। और मेरी नींद को देखते हुए उन लोगों ने जागाने के लिए एक ने मुझे छू करा आवाज लगाया था।उनकी आवाजों से मेरी आंखें खुल गई थी। मैंने नजर इधर-उधर घुमा

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कत्ले गारत 18

7 जनवरी 2023
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मुझे पता था ।मेरा रास्ता आसान नहीं था। मुझे यह भी पता था। जिन चार लोगों पर मैंने हमला किया था। वह लोग यकीनन कोई न कोई मेरे पीछे आने वाले थे। उन के मुताबिक वह सिर्फ चार नहीं थे ।पूरा कुनबा था। उन

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कत्ले गारत 19

8 जनवरी 2023
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बीच में आए इन सब लोगों से मैं खुद को बचाना चाहता था।। मेरा मकसद अपने गांव तक पहुंचना था। यह देखना था ,उस कत्ले गारत में कोई बचा तो नहीं ।या यह जानना था -कि कत्ले गारत के बाद वहां इंडस्ट्री बसा है

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कत्ले गारत 20

8 जनवरी 2023
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मुझे बहुत आगे निकलना था। वक्त बहुत जाया हो चुका था।मैंने आसमान की ओर देखा। सूरज क्षितिज पे कहीं छुपने की तैयारी कर रहा था। मुझे अपने गांव आगे बढ़ना था। और रात के रुकने की व्यवस्था भी करना था। मेरा घोड

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कत्ले गारत 21

10 जनवरी 2023
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मकान के बाहर सारागांव जमा हो गया था। सारा गांव ही एक कुनबा था। गांव के लोग में एकता थी एक स्वर बद्धता थी ।जो वहां जमा होने पर दिखती थी।गांव के बड़े बुजुर्ग की आंखों में आंसू थे। बच्चे भूल से गए थे। उस

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कत्ले गारत 22

11 जनवरी 2023
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उन के अंदर की ज्वाला को मैंने भड़काने की कोशिश की। उनके अंदर की ज्वाला शायद शांत हो चुकी थी ।या कुछ न कर पाने की वजह से वह चुपचाप हो गए थे।शायद वह नहीं चाहते थे ,कि जो बचे खुचे हैं, उनको कोई नुकसान पह

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कत्ले गारत 23

13 जनवरी 2023
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मुझे अब भटकने की जरूरत नहीं थी। गांव वालों को पता था । वह पुराना गांव हमारा कहां पर है.. किस रास्ते से वहां पर जा सकते हैं!मैं अकेला ही उस ओर जाने के लिए तैयार था। मैं सबसे पहले उस धरती का दर्शन चाहता

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कत्ले गारत 24

14 जनवरी 2023
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जब मेरी आंखें खुली, चट्टानों में बैठे-बैठे मुझे नशा सा छा गया था। जिसकी वजह से मैं वहीं पर लुढ़क गया था। करीब चार-पांच घंटे यूं ही मैं बेहोश सा पड़ा रहा। जब मेरे घोड़े ने मुझे

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कात्ले गारत 25

17 जनवरी 2023
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मैं पानी पीकर और हाथ मुंह धो कर अपने गांव की ओर मुड़ा। चारों तरफ बाउंड्री लगी हुई, बीच में कोई इंडस्ट्री बसी हुई थी। बाउंड्री पत्थरों से दीवार बनाई गई थी इस पार से उस पार देख पाना मुमकिन नहीं था

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कत्ले गारत 26

18 जनवरी 2023
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मैं अपने गांव में था। जो अभी फिलहाल इंडस्ट्री में तब्दील हो गई थी। और मेरे अपने लोग यहां कोई नहीं था। मेरा अपना मकान भी नहीं था।मैंने गांव की मिट्टी को अपनी मुट्ठी में लिया दिल से लगा लिया। सच म

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20 जनवरी 2023
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कामदारों से मुझे सिर्फ इतना ही पता चल सका था, कि वह अरबों पति लोग थे ।उनके पास पहुंचना मुश्किल काम था। मैं साइबर में बैठकर,इन लोगों का रिहायश, ऑफिस पता लगाना चाहता था। यूं तो वे लोग यहां भी

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कत्ले गारत 28

23 जनवरी 2023
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मार्गरेटा से टोपला बस्ती, ज्यादा दूर नहीं था। करीब 20 किलोमीटर का रास्ता था । ऑन द रोड।अगर मैं अपने घोड़े पर ही टोपला बस्ती पहुंचता तो, लोग यही समझते ,कि कोई बैंड बाजा बारात वाला ही होगा। जो किस

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कत्ले गारत 29

24 जनवरी 2023
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अंधेरी रात थी। आसमान में तारे चमक रहे थे। मगर टोपला बस्ती का यह एरिया ,रोशनी से जगमग आ रहा था। ऐसा लगता था जैसे आसमान के सारे तारे जमीन पर उतर आए हो। और कोठियों में जगमगा रहे हो।जहां मैं ठहरा था , रिस

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कत्ले गारत 30

25 जनवरी 2023
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मौसम इतना ठंडा नहीं था। फिर भी मैं अपने घोड़े को खुले छत में नहीं रख सकता था। रात को रुकने के लिए उसे भी छत चाहिए थी । घास चाहिए था ।और खाने के लिए दाना भी चाहिए था ।पानी भी चाहिए था। उसकी फिकर मुझे अ

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कत्ले गारत 31

29 जनवरी 2023
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अभिषेक ने जो कार्ड दिया था। उसमें सिर्फ उसका नाम और फोन नंबर लिखा हुआ था।और कहा था ।दो दिन बाद कॉल कर लेना। आज तीसरा दिन था। मैंने अभिषेक को कॉल किया था।अभिषेक निहायत ही शरीफ और ईमानदार शख्सियत था। और

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कत्ले गारत 32

30 जनवरी 2023
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मैंने ,अपने घोड़े को अस्तबल में ला के बांध दिया था। अस्तबल में घोड़े के लिए चारे की भी परेशानी नहीं थी।घोड़ा मवेशियों के साथ खुश रह सकता था। मैंने अपने कमरे की सफाई के लिए चाची को बोल दिया था। कमरा सा

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कत्ले गारत 33

31 जनवरी 2023
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कहते हैं - गुनाह कभी छुपता नहीं ।कभी न कभी गुनाह, नासूर बन के दिल को ,कचोटने लगती है।यह कुदरत का न्याय है। बदला लेने के लिए कुदरत ही तैयार करती है। मजलूम पर किया गया जुल्म कभी खाली नहीं जाता। उभ

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