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कत्ले गारत 6

30 दिसम्बर 2022

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घर पर कई काम हो सकते थे। जानवर पाल रखे हो तो जानवर के लिए  ।चराना चलाना आदि काम रखरखाव का काम हो सकता था। गाय भैंस  हो तो इसको रखरखाव के लिए उससे दूध दुहने के लिए, उसको पानी सानी करने के लिए, कई काम हो सकते थे।
यहां मकान बनाने के लिए किसी को जमीन खरीदने की जरूरत नहीं थी। यहां किसी भी सरकार का हस्तक्षेप नहीं था। यहां तक कोई सवारी आती जाती नहीं थी। यहां पर कोई जमीन पर टैक्स लगाने वाले आते जाते नहीं थे। सरकार के पहुंच से बहुत दूर समझ से बाहर थी।
आज के आधुनिक जमाने में भी यह गांव शहर से कटा हुआ ।और आधुनिकता की यह कोई लहर नहीं थी ।इन्हें आधुनिकता ने छू नहीं रखा था ।डिजिटलाइजेशन का कोई इनको अर्थ नहीं था। बस दो वक्त की रोटी कमाने के लिए खेती-बाड़ी करना ।गाय वस्तुओं को पालना। यही इनका काम था।
बच्चों के शिक्षा के लिए कोई स्कूल नहीं था। कोई गुरुकुल नहीं था ।कोई शिक्षा की व्यवस्था नहीं थी।
न जाने कैसी जिंदगी जी रहे थे लोग। सरकार का कहना कि गांव गांव में बिजली की पहुंच हो गई है ।गांव गांव में सड़के पहुंच गई है। गांव गांव में लोग डिजिटलाइज हो रहा है ।लेकिन इस गांव को देखकर नहीं लगता था कि हम 2016 के किसी गांव में रह रहे हैं। पौराणिक गाव सा लगता था। कोई फोन नहीं कोई टीवी नहीं ।किसी प्रकार की कंप्यूटराइज्ड सिस्टम नहीं। यहां तक एजुकेशन ही नहीं। तो फिर कंप्यूटर सिस्टम की तो बात बहुत दूर की थी।

यहां जिंदगी बड़ी आसान सी थी ।मगर इसे  टिपिकल भी कह सकते हैं। क्योंकि रोजगार की कोई व्यवस्था नहीं। जीवन यापन का वही पुराना ढर्रा।
उन्नति की बातें तो इनको पता ही नहीं था। उनको यह भी पता नहीं था- कि लोग फोन पर दूर-दूर इलाके से बात कर लेते हैं !इनको यह भी पता नहीं था -कि टीवी कंप्यूटर जैसी कोई सिस्टम भी होती है! उनको यह भी पता नहीं था -कि सीनेमा जैसी कोई चीज होती है ।
आज के जमाने में मैं भी ऐसा गांव ?अजीब सी बात थी!
मैं जब सो कर उठा ,तो सुबह हो चुकी थी। चारों ओर उजाला फाइल चुका था। मेरा घोड़ा पास में ही खूंटी पर बंधा हुआ था।  मुझे उसके चिंता होने लगी थी।
 उसके लिए किसी छात की जरूरत थी। अगर इस तरीके से कई दिन तक उसे खुला रखा जाए तो बीमार पड़ सकता था।
इस वक्त मुझे अपनी मां बाबा की याद आ रही थी। उस कत्ले गारत में मरे हुए लोगों की याद आ रही थी।
कई दिनों से शहरी लोग हमारे गांव में आने जाने लगे थे। जबकि हमारे गांव की जमीन के पट्टे बने हुए थे। हमारे गांव की उस जमीन को हथियाने के लिए कई दिनों से बातें चल रही थी। मगर मेरे बाबा गांव के मुखिया होने के नाते उस जमीन को किसी के हाथ में पडना नहीं देना चाहते थे ।
क्योंकि ,पता था कि ईसी जमीन से लोग अन्न उपज करके कमाते हैं। खाते और उसको शहरी इलाकों में लेकर बेचते हैं।
और इस जमीन को हथियाने के लिए कई बार बैठक बुलाई गई ।लेकिन मेरे बाबा ने उसे इनकार कर दिया ।
क्योंकि शहरी लोग कई बार आए थे। उनको पता था 
कि सामने की पहाड़ी में प्लैटिनम प्रचुर मात्र में उपलब्ध है ।और उसके लिए वह इस पहाड़ी को खदान में बदलना चाहते थे ।और उसकी फैक्ट्री के लिए हमारे गांव को चुना गया था।

प्लेटिनम के पहाड़ के पास हमारा ही एक छोटा सा गांव था। और दूर-दूर तक सारे बिहड थे। कोई भी जगह ऐसी नहीं थी जहां पर फैक्ट्री लगाई जा सके। गांव वालों ने जो खेत खलियान जो बनाए थे वह पहाड़ों के तलहटी पर बना हुआ था।
तीन और पहाड़ियों से घिरा हुआ। हमारा गांव था पहाड़ियों के बीच समतल सी जमीन थी। जहां पर खेत खलियान बने हुए थे ।जहां हमारे गांव के खेत खलियान गांव खत्म होते ही पहाडियों  की शुरुआत हो जाती थी।
तीन और ऊंची ऊंची पहाड़ियों से घिरी हुई नदी पहाड़ियों के तलहटी में से बहता हुआ नदी यकीनन खूबसूरत सी जगह थी  हमारा गांव। करीब 200 मकानों से बना हुआ हमारा गांव सारे मकान कच्चे मकान थे लक्कड़ से बने हुए घास फूस से छत बना हुआ।
हंसता खेलता हुआ खूबसूरत गांव। भाई चारा और प्यार मोहब्बत से भरा हुआ हमारा गांव।

गांव में बिजली की व्यवस्था सरकार ने कर दी थी ।पानी की व्यवस्था डी सरकार कर रही थी घर घर में पानी सप्लाई की व्यवस्था सरकार कर ही । यूं तो पहाड़ी नदियां और झरने मीठे पानी के स्रोत थे। फिर भी उन्हीं नदियों के पानी को टंकी में भरकर घर-घर में पहुंचाने के लिए वाटर सप्लाई कि भी व्यवस्था थी ।
और सड़के भी बनने की बात चल रही थी। इसी बीच कई लोग हमारे गांव के पाहाड़ी में ट्रेकिंग के बहाने ट्रैकिंग करने के लिए आने जाने लगे।खुद गांव के बच्चे उन्हें पाहाडियो में लेके जाते, वह पहाड़ों में घूमते तस्वीर लेते ।और न जाने क्या क्या करते। हमें तो इस बात की समझ में नहीं थी।
गांव वाले गांव के बड़े बुजुर्ग भी इस बात से खुश थे। कि बिजली पानी की व्यवस्था हो रही थी। और सबसे बड़ी बात यह थी की बड़े बुजुर्ग यह सोच रहे थे कि ट्रैकरों कै आने के बाद, गांव में ट्रैकिग और पर्यटन  की वजह से  बच्चों की आमदनी शुरू हो गई थी। एक रोजगार मिलना शुरू हो गया था। यह सिलसिला कई दिनों तक कई सालों तक चलता रहा।
पहाड़ों की तलहटी में बसा हुआ यह गांव खुशहाल गांव बना हुआ था। गांव के ही कुछ पढ़े-लिखे लोगों ने ट्रेकिंग के लिए छोटे-छोटे ऑफिस डाल दिए थे ट्रेकिंग सेंटर के नाम से।
गांव के ट्रेकिंग के नाम पर कई रिसर्चर लोग आए गांव के पहाड़ियों पर चढ़ने के बाद उन्होंने कोई मसला प्राप्त करा ।शायद उन्हें बहुत बेशकीमती प्लेटिनम उन्हें पहाड़ों में होने की आशंका हुई ।कई बार सरकार के नुमाइंदे भी इस पहाड़ियों पर आकर ट्रैकिंग करके प्लेटिनम होने की बात को पुख्ता करने के लिए वहां से मिट्टी और कई चीज लेकर परीक्षण भी करने लगे।
परीक्षण के बाद उन पहाड़ियों में प्लेटिनम होने की बात पुख्ता हो चुकी थी ।अब मसला यह था। कि उस प्लेटिनम धातु को निकालने के लिए और उससे उसे रो प्लैटिनम से प्लैटिनम में बदलने के लिए,चेंज करने के लिए ,पास ही एक इंडस्ट्री का होना जरूरी था।
इस बात का समझौता करने के लिए ,कई बार सरकार के नुमाइंदे और बड़े-बड़े व्यापारी भी आकर बाबा से सलाह  मशविरा करने लगे। बाबा से यह बातें मनवाने की कोशिश की जा रही थी ।कि वह गांव छोड़कर चले जाएं। उसके एवज में वह जितना मांगते हैं उतना उनको मुआवजा दिया जाएगा ।
और किसी दूसरी जगह पर उन्हें  जमीन भी दी जाएगी।मगर बाबा इस बात से सहमत न थे। और गांव के सारे लोग भी इस बात से कोई सहमत ना था। गांव छोड़ने के लिए अपनी जमीन को बेचने के लिए कोई भी इंसान कोई भी किसान तैयार नहीं था।
उनका कहना था कि वह कई सालों से यहां पर रह रहे हैं ।
वह यह इनकी मातृभूमि है ।मातृभूमि को छोड़कर वह यहां से जा नहीं सकते। इस बात को लेकर सालों से बैठक होती रही। बाबा को कई बार शहरों में बुलाया गया। शहरों में मैं भी बाबा के साथ कई बार गया। मगर बाबा की एक ही बात थी ।एक ही कहना था। कि यह जमीन हमारी है ।हम इस जमीन को किसी हाल में भी छोड़कर नहीं जा सकते।


गांव वाले भी इस बात को लेकर टस से मस नहीं हुए ।वे नहीं चाहते थे कि कहीं और जाकर बसें। इतना खूबसूरत गांव। इतनी खूबसूरत जगह ,और रोजगार में कोई परेशानी नहीं । कोई भूखमरी नहीं थी ।छोटे से गांव में सभी भाईचारे से रहते थे ।एक दूसरे से मिलकर रहते थे। कोई किसी से दुश्मनी नहीं। कोई किसी से बैर नहीं।

सरकारी मशीनरी तो शायद चुप हो गई थी। मगर और सारी व्यवस्थाऐ जो गैर सरकारी थी। जो चाहती थी कि उस पारियों के प्लेटिनम निकालने का ठेका उनको मिल जाए ।और शायद उन्हें इस बात का इल्म भी था ।कि ठेका उनको मिल जाता। वह गांव के लोगों को भगाने के कई कोशिश करते रहे।
वह व्यपारी जिनकी पहुंच सरकारी महकुमे तक थी , जिन्हें पूरा विश्वास था। कि प्लैटिनम निकालने का ठेका उन्हें ही मिल जाना था। शायद सरकारी नुमाइंदे की  ओर से प्लैटिनम निकालने का ठेका खुल्ला टेंडर जारी किया भी गया था ।और इस टेंडर को कई नामी-गिरामी व्यापारियों ने भरा था। और इसी सिलसिले में किसी एक के नाम पर ठेका छूट भी गया था।

ठेका छूटने के बाद 5 साल के अंदर कार्रवाई शुरू करके 25% प्लेटिनम निकालने का लक्ष्य बनाया गया था। और उस लक्ष्य को पार करने पर ही आगे काम जारी रहता ।वरना फिर ठेका किसी और के नाम पर ट्रांसफर होना था।

और जिसके नाम से ठेका छूटा हुआ था। वह बार-बार गांव में आकर गांव वालों से बातें करते रहे ।बाबा को छोड़कर और से भी बातें होती रही ।और यह बातें होती रही कि दूसरी जगह जमीन के साथ में मुआवजा और बच्चों को रोजगार भी दिए जाने की बात की जाने लगी।

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रचनाएँ
कत्ले गारत
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बदले और खून से सनी खूनी सफर सफर का इतिहास है ।जिसे हम कत्ले गारत का नाम देकर यहां प्रस्तुत करना चाहते हैं।
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कत्ले गारत 1

28 दिसम्बर 2022
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यह उपन्यास काल्पनिक है ।जिसका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं ।या फिर किसी वास्तविक व्यक्ति या समुदाय को चोट पहुंचाने के लिए कतई लिखी गई नहीं है। &n

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28 दिसम्बर 2022
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अब मैं अपने आप को सुरक्षित महसूस कर रहा था। हवा में ठंडक बढ़ चुकी थी। हवा इतनी ठंड थी। कि ठिठुरन सी हो रही थी ।मगर यह ठिठुरन भी उस कत्ले गारत से कई गुना अच्छी थी। मैं खौफ़ के साऐ से बहुत दू

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29 दिसम्बर 2022
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आसमान की ओर मैंने नजरें उठाकर देखा। क्षितिज में मुझे कहीं लाली सी ऊभरती दिखी। ऐसा लग रहा था। कुछ देर में उजाला होने वाला ही था। इसीलिए भी वह छोटी सी नदी मुझे साफ सी नजर आ रही थी।मैं भागते -भागते आसमान

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29 दिसम्बर 2022
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जब वह गांव वाला अपने हाथों में गिलास जैसा कुछ सामान लेकर आया था ।वह छोटा सा लौटा था ।और उसने बैटते ही पूछा -क्या तुम लाओ पानी खाओगे?मैं समझ गया था लाव पानी एक तरह की शराब होती है। जो चावल से बनती है ।

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30 दिसम्बर 2022
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मैंने अपने घोड़े का रकाब निकाल कर, उसे चरने के लिए छोड़ दिया था। और पीठ थपथपाता हुआ मैंने उससे बोला -जब तक मैं सो लेता हूं !तू चरके जल्दी ही यहीं पर आ जाना ।समझ गया। घोड़े ने सर हिलाया जैसे कि उसने सा

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30 दिसम्बर 2022
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कत्ले गारत 7

31 दिसम्बर 2022
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टेंडर किसी व्यापारी के नाम पर छूट चुका था। व्यापारी क्या वह अपने आप को बहुत बड़ा इंडस्ट्रियलिस्ट समझता था। वह चाहता था। किसी तरह भी इस गांव को खाली कर दिया जाए ।क्योंकि ,उस गांव से ही होकर वह रास्ता प

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31 दिसम्बर 2022
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गांव के लोगों की खासियत होती है- वह जो थोड़े में संतुष्ट हो जाते हैं। वह नहीं सोचते कि वह कार पर चले। वे यह नहीं सोचते कि बहुत बड़ा बंगला बने, वे नहीं सोचते कि बहुत बड़ी कोठी हो ।बस दो वक्त की रोटी बी

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1 जनवरी 2023
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शायद कुछ साल यूं ही गुजर ग्ए थे। इस घर ने इस गांव में मुझे अपनापन और प्यार मोहब्बत मिला था। इस बात को लेकर मुझे किसी से शिकायत नहीं है। इस बात को लेकर मुझे किसी से शिकायत नहीं है।इन्होंने मुझे इतना मो

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1 जनवरी 2023
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मैंने पढ़ाई अपने कबीले की स्कूल में थोड़ी बहुत की थी ।जिसे पढ़ाई कह नहीं सकते थे।इस गांव में आने के बाद ,मैंने गांव में छोटे-छोटे बच्चों को जितना आता था। पढ़ाने की कोशिश की थी।हिंदी इंग्लिश की अक

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2 जनवरी 2023
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मेरी जिंदगी में सिर्फ एक ही लक्ष्य बचा हुआ था। और वो लक्ष्य था किसी तरह भी उन खूनियों का खात्मा करना। क्योंकि मुझे पता था। कि यह सारा सरकारी नुमाइंदों की मिलीभगत में हुई थी। इसलिए कानून का सहारा लेना

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2 जनवरी 2023
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अब बापी भी बड़ी हो चुकी थी। 10:11 साल की हो चुकी थी। दीदी के गोद में दूसरा एक बच्चा भी आ चुका था। उसकी भी उम्र अभी 4 साल की हो चुकी थी। मैं अग्निपुत्र- इस परिवार का एक अभिन्न अंग बन चुका था ।परिवार का

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कत्ले गारत 13

3 जनवरी 2023
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यह वक्त नहीं था। कि मैं पंडित जी के साथ जाउं। गांव पहुंच कर खोजबीन करूं! जहां गांव के बारे में गांव की आबादी के बारे में नोटेड होता है ।क्योंकि ,अभी हम पुष्पलता के इलाज के लिए आए हुए थे। और जरूरी था,

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3 जनवरी 2023
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आज शहर में आए हुए तीसरा दिन था। पुष्प लता लगभग ठीक हो गई थी। मेरे इकरारेईश्क के बाद उसका बुखार धीरे-धीरे कमता चला गया था। या यूं कहें कि दोनों की एकरार के बाद बुखार लगभग उसी, समय कम हो गया था।मु

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4 जनवरी 2023
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पुष्पा को समझ आ चुका था। जिंदगी के बारे में। पुष्पा को इस बात की समझ आ गई थी। जो जिंदगी में जीने के लिए पैसे की भी जरूरत होगी। जो मैं शहर जाकर ही कमा सकता था। गांव में रहकर तो हम सिर्फ खा पी सकते थे।

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कत्ले गारत 16

4 जनवरी 2023
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मैं जिस रास्ते से इस गांव में आया था। उसी रास्ते से ही मुझे लौटना था। इतने सालों के बाद भी मैं वो रास्ता कभी भूल नहीं पाया था। वह नदी पार करना ,नदी पार करके फिर इस गांव में आना ,जब मैं कभी भूला नहीं प

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कत्ले गारत 17

6 जनवरी 2023
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वे चार लोग थे ।और मैं उनके बीच में एक अकेला लेटा हुआ था। और मेरी नींद को देखते हुए उन लोगों ने जागाने के लिए एक ने मुझे छू करा आवाज लगाया था।उनकी आवाजों से मेरी आंखें खुल गई थी। मैंने नजर इधर-उधर घुमा

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कत्ले गारत 18

7 जनवरी 2023
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मुझे पता था ।मेरा रास्ता आसान नहीं था। मुझे यह भी पता था। जिन चार लोगों पर मैंने हमला किया था। वह लोग यकीनन कोई न कोई मेरे पीछे आने वाले थे। उन के मुताबिक वह सिर्फ चार नहीं थे ।पूरा कुनबा था। उन

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8 जनवरी 2023
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बीच में आए इन सब लोगों से मैं खुद को बचाना चाहता था।। मेरा मकसद अपने गांव तक पहुंचना था। यह देखना था ,उस कत्ले गारत में कोई बचा तो नहीं ।या यह जानना था -कि कत्ले गारत के बाद वहां इंडस्ट्री बसा है

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कत्ले गारत 20

8 जनवरी 2023
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मुझे बहुत आगे निकलना था। वक्त बहुत जाया हो चुका था।मैंने आसमान की ओर देखा। सूरज क्षितिज पे कहीं छुपने की तैयारी कर रहा था। मुझे अपने गांव आगे बढ़ना था। और रात के रुकने की व्यवस्था भी करना था। मेरा घोड

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10 जनवरी 2023
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मकान के बाहर सारागांव जमा हो गया था। सारा गांव ही एक कुनबा था। गांव के लोग में एकता थी एक स्वर बद्धता थी ।जो वहां जमा होने पर दिखती थी।गांव के बड़े बुजुर्ग की आंखों में आंसू थे। बच्चे भूल से गए थे। उस

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कत्ले गारत 22

11 जनवरी 2023
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उन के अंदर की ज्वाला को मैंने भड़काने की कोशिश की। उनके अंदर की ज्वाला शायद शांत हो चुकी थी ।या कुछ न कर पाने की वजह से वह चुपचाप हो गए थे।शायद वह नहीं चाहते थे ,कि जो बचे खुचे हैं, उनको कोई नुकसान पह

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कत्ले गारत 23

13 जनवरी 2023
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मुझे अब भटकने की जरूरत नहीं थी। गांव वालों को पता था । वह पुराना गांव हमारा कहां पर है.. किस रास्ते से वहां पर जा सकते हैं!मैं अकेला ही उस ओर जाने के लिए तैयार था। मैं सबसे पहले उस धरती का दर्शन चाहता

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कत्ले गारत 24

14 जनवरी 2023
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जब मेरी आंखें खुली, चट्टानों में बैठे-बैठे मुझे नशा सा छा गया था। जिसकी वजह से मैं वहीं पर लुढ़क गया था। करीब चार-पांच घंटे यूं ही मैं बेहोश सा पड़ा रहा। जब मेरे घोड़े ने मुझे

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17 जनवरी 2023
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मैं पानी पीकर और हाथ मुंह धो कर अपने गांव की ओर मुड़ा। चारों तरफ बाउंड्री लगी हुई, बीच में कोई इंडस्ट्री बसी हुई थी। बाउंड्री पत्थरों से दीवार बनाई गई थी इस पार से उस पार देख पाना मुमकिन नहीं था

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कत्ले गारत 26

18 जनवरी 2023
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मैं अपने गांव में था। जो अभी फिलहाल इंडस्ट्री में तब्दील हो गई थी। और मेरे अपने लोग यहां कोई नहीं था। मेरा अपना मकान भी नहीं था।मैंने गांव की मिट्टी को अपनी मुट्ठी में लिया दिल से लगा लिया। सच म

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कत्ले गारत 27

20 जनवरी 2023
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कामदारों से मुझे सिर्फ इतना ही पता चल सका था, कि वह अरबों पति लोग थे ।उनके पास पहुंचना मुश्किल काम था। मैं साइबर में बैठकर,इन लोगों का रिहायश, ऑफिस पता लगाना चाहता था। यूं तो वे लोग यहां भी

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कत्ले गारत 28

23 जनवरी 2023
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मार्गरेटा से टोपला बस्ती, ज्यादा दूर नहीं था। करीब 20 किलोमीटर का रास्ता था । ऑन द रोड।अगर मैं अपने घोड़े पर ही टोपला बस्ती पहुंचता तो, लोग यही समझते ,कि कोई बैंड बाजा बारात वाला ही होगा। जो किस

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24 जनवरी 2023
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अंधेरी रात थी। आसमान में तारे चमक रहे थे। मगर टोपला बस्ती का यह एरिया ,रोशनी से जगमग आ रहा था। ऐसा लगता था जैसे आसमान के सारे तारे जमीन पर उतर आए हो। और कोठियों में जगमगा रहे हो।जहां मैं ठहरा था , रिस

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कत्ले गारत 30

25 जनवरी 2023
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मौसम इतना ठंडा नहीं था। फिर भी मैं अपने घोड़े को खुले छत में नहीं रख सकता था। रात को रुकने के लिए उसे भी छत चाहिए थी । घास चाहिए था ।और खाने के लिए दाना भी चाहिए था ।पानी भी चाहिए था। उसकी फिकर मुझे अ

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29 जनवरी 2023
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अभिषेक ने जो कार्ड दिया था। उसमें सिर्फ उसका नाम और फोन नंबर लिखा हुआ था।और कहा था ।दो दिन बाद कॉल कर लेना। आज तीसरा दिन था। मैंने अभिषेक को कॉल किया था।अभिषेक निहायत ही शरीफ और ईमानदार शख्सियत था। और

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कत्ले गारत 32

30 जनवरी 2023
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मैंने ,अपने घोड़े को अस्तबल में ला के बांध दिया था। अस्तबल में घोड़े के लिए चारे की भी परेशानी नहीं थी।घोड़ा मवेशियों के साथ खुश रह सकता था। मैंने अपने कमरे की सफाई के लिए चाची को बोल दिया था। कमरा सा

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कत्ले गारत 33

31 जनवरी 2023
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कहते हैं - गुनाह कभी छुपता नहीं ।कभी न कभी गुनाह, नासूर बन के दिल को ,कचोटने लगती है।यह कुदरत का न्याय है। बदला लेने के लिए कुदरत ही तैयार करती है। मजलूम पर किया गया जुल्म कभी खाली नहीं जाता। उभ

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