घर पर कई काम हो सकते थे। जानवर पाल रखे हो तो जानवर के लिए ।चराना चलाना आदि काम रखरखाव का काम हो सकता था। गाय भैंस हो तो इसको रखरखाव के लिए उससे दूध दुहने के लिए, उसको पानी सानी करने के लिए, कई काम हो सकते थे।
यहां मकान बनाने के लिए किसी को जमीन खरीदने की जरूरत नहीं थी। यहां किसी भी सरकार का हस्तक्षेप नहीं था। यहां तक कोई सवारी आती जाती नहीं थी। यहां पर कोई जमीन पर टैक्स लगाने वाले आते जाते नहीं थे। सरकार के पहुंच से बहुत दूर समझ से बाहर थी।
आज के आधुनिक जमाने में भी यह गांव शहर से कटा हुआ ।और आधुनिकता की यह कोई लहर नहीं थी ।इन्हें आधुनिकता ने छू नहीं रखा था ।डिजिटलाइजेशन का कोई इनको अर्थ नहीं था। बस दो वक्त की रोटी कमाने के लिए खेती-बाड़ी करना ।गाय वस्तुओं को पालना। यही इनका काम था।
बच्चों के शिक्षा के लिए कोई स्कूल नहीं था। कोई गुरुकुल नहीं था ।कोई शिक्षा की व्यवस्था नहीं थी।
न जाने कैसी जिंदगी जी रहे थे लोग। सरकार का कहना कि गांव गांव में बिजली की पहुंच हो गई है ।गांव गांव में सड़के पहुंच गई है। गांव गांव में लोग डिजिटलाइज हो रहा है ।लेकिन इस गांव को देखकर नहीं लगता था कि हम 2016 के किसी गांव में रह रहे हैं। पौराणिक गाव सा लगता था। कोई फोन नहीं कोई टीवी नहीं ।किसी प्रकार की कंप्यूटराइज्ड सिस्टम नहीं। यहां तक एजुकेशन ही नहीं। तो फिर कंप्यूटर सिस्टम की तो बात बहुत दूर की थी।
यहां जिंदगी बड़ी आसान सी थी ।मगर इसे टिपिकल भी कह सकते हैं। क्योंकि रोजगार की कोई व्यवस्था नहीं। जीवन यापन का वही पुराना ढर्रा।
उन्नति की बातें तो इनको पता ही नहीं था। उनको यह भी पता नहीं था- कि लोग फोन पर दूर-दूर इलाके से बात कर लेते हैं !इनको यह भी पता नहीं था -कि टीवी कंप्यूटर जैसी कोई सिस्टम भी होती है! उनको यह भी पता नहीं था -कि सीनेमा जैसी कोई चीज होती है ।
आज के जमाने में मैं भी ऐसा गांव ?अजीब सी बात थी!
मैं जब सो कर उठा ,तो सुबह हो चुकी थी। चारों ओर उजाला फाइल चुका था। मेरा घोड़ा पास में ही खूंटी पर बंधा हुआ था। मुझे उसके चिंता होने लगी थी।
उसके लिए किसी छात की जरूरत थी। अगर इस तरीके से कई दिन तक उसे खुला रखा जाए तो बीमार पड़ सकता था।
इस वक्त मुझे अपनी मां बाबा की याद आ रही थी। उस कत्ले गारत में मरे हुए लोगों की याद आ रही थी।
कई दिनों से शहरी लोग हमारे गांव में आने जाने लगे थे। जबकि हमारे गांव की जमीन के पट्टे बने हुए थे। हमारे गांव की उस जमीन को हथियाने के लिए कई दिनों से बातें चल रही थी। मगर मेरे बाबा गांव के मुखिया होने के नाते उस जमीन को किसी के हाथ में पडना नहीं देना चाहते थे ।
क्योंकि ,पता था कि ईसी जमीन से लोग अन्न उपज करके कमाते हैं। खाते और उसको शहरी इलाकों में लेकर बेचते हैं।
और इस जमीन को हथियाने के लिए कई बार बैठक बुलाई गई ।लेकिन मेरे बाबा ने उसे इनकार कर दिया ।
क्योंकि शहरी लोग कई बार आए थे। उनको पता था
कि सामने की पहाड़ी में प्लैटिनम प्रचुर मात्र में उपलब्ध है ।और उसके लिए वह इस पहाड़ी को खदान में बदलना चाहते थे ।और उसकी फैक्ट्री के लिए हमारे गांव को चुना गया था।
प्लेटिनम के पहाड़ के पास हमारा ही एक छोटा सा गांव था। और दूर-दूर तक सारे बिहड थे। कोई भी जगह ऐसी नहीं थी जहां पर फैक्ट्री लगाई जा सके। गांव वालों ने जो खेत खलियान जो बनाए थे वह पहाड़ों के तलहटी पर बना हुआ था।
तीन और पहाड़ियों से घिरा हुआ। हमारा गांव था पहाड़ियों के बीच समतल सी जमीन थी। जहां पर खेत खलियान बने हुए थे ।जहां हमारे गांव के खेत खलियान गांव खत्म होते ही पहाडियों की शुरुआत हो जाती थी।
तीन और ऊंची ऊंची पहाड़ियों से घिरी हुई नदी पहाड़ियों के तलहटी में से बहता हुआ नदी यकीनन खूबसूरत सी जगह थी हमारा गांव। करीब 200 मकानों से बना हुआ हमारा गांव सारे मकान कच्चे मकान थे लक्कड़ से बने हुए घास फूस से छत बना हुआ।
हंसता खेलता हुआ खूबसूरत गांव। भाई चारा और प्यार मोहब्बत से भरा हुआ हमारा गांव।
गांव में बिजली की व्यवस्था सरकार ने कर दी थी ।पानी की व्यवस्था डी सरकार कर रही थी घर घर में पानी सप्लाई की व्यवस्था सरकार कर ही । यूं तो पहाड़ी नदियां और झरने मीठे पानी के स्रोत थे। फिर भी उन्हीं नदियों के पानी को टंकी में भरकर घर-घर में पहुंचाने के लिए वाटर सप्लाई कि भी व्यवस्था थी ।
और सड़के भी बनने की बात चल रही थी। इसी बीच कई लोग हमारे गांव के पाहाड़ी में ट्रेकिंग के बहाने ट्रैकिंग करने के लिए आने जाने लगे।खुद गांव के बच्चे उन्हें पाहाडियो में लेके जाते, वह पहाड़ों में घूमते तस्वीर लेते ।और न जाने क्या क्या करते। हमें तो इस बात की समझ में नहीं थी।
गांव वाले गांव के बड़े बुजुर्ग भी इस बात से खुश थे। कि बिजली पानी की व्यवस्था हो रही थी। और सबसे बड़ी बात यह थी की बड़े बुजुर्ग यह सोच रहे थे कि ट्रैकरों कै आने के बाद, गांव में ट्रैकिग और पर्यटन की वजह से बच्चों की आमदनी शुरू हो गई थी। एक रोजगार मिलना शुरू हो गया था। यह सिलसिला कई दिनों तक कई सालों तक चलता रहा।
पहाड़ों की तलहटी में बसा हुआ यह गांव खुशहाल गांव बना हुआ था। गांव के ही कुछ पढ़े-लिखे लोगों ने ट्रेकिंग के लिए छोटे-छोटे ऑफिस डाल दिए थे ट्रेकिंग सेंटर के नाम से।
गांव के ट्रेकिंग के नाम पर कई रिसर्चर लोग आए गांव के पहाड़ियों पर चढ़ने के बाद उन्होंने कोई मसला प्राप्त करा ।शायद उन्हें बहुत बेशकीमती प्लेटिनम उन्हें पहाड़ों में होने की आशंका हुई ।कई बार सरकार के नुमाइंदे भी इस पहाड़ियों पर आकर ट्रैकिंग करके प्लेटिनम होने की बात को पुख्ता करने के लिए वहां से मिट्टी और कई चीज लेकर परीक्षण भी करने लगे।
परीक्षण के बाद उन पहाड़ियों में प्लेटिनम होने की बात पुख्ता हो चुकी थी ।अब मसला यह था। कि उस प्लेटिनम धातु को निकालने के लिए और उससे उसे रो प्लैटिनम से प्लैटिनम में बदलने के लिए,चेंज करने के लिए ,पास ही एक इंडस्ट्री का होना जरूरी था।
इस बात का समझौता करने के लिए ,कई बार सरकार के नुमाइंदे और बड़े-बड़े व्यापारी भी आकर बाबा से सलाह मशविरा करने लगे। बाबा से यह बातें मनवाने की कोशिश की जा रही थी ।कि वह गांव छोड़कर चले जाएं। उसके एवज में वह जितना मांगते हैं उतना उनको मुआवजा दिया जाएगा ।
और किसी दूसरी जगह पर उन्हें जमीन भी दी जाएगी।मगर बाबा इस बात से सहमत न थे। और गांव के सारे लोग भी इस बात से कोई सहमत ना था। गांव छोड़ने के लिए अपनी जमीन को बेचने के लिए कोई भी इंसान कोई भी किसान तैयार नहीं था।
उनका कहना था कि वह कई सालों से यहां पर रह रहे हैं ।
वह यह इनकी मातृभूमि है ।मातृभूमि को छोड़कर वह यहां से जा नहीं सकते। इस बात को लेकर सालों से बैठक होती रही। बाबा को कई बार शहरों में बुलाया गया। शहरों में मैं भी बाबा के साथ कई बार गया। मगर बाबा की एक ही बात थी ।एक ही कहना था। कि यह जमीन हमारी है ।हम इस जमीन को किसी हाल में भी छोड़कर नहीं जा सकते।
गांव वाले भी इस बात को लेकर टस से मस नहीं हुए ।वे नहीं चाहते थे कि कहीं और जाकर बसें। इतना खूबसूरत गांव। इतनी खूबसूरत जगह ,और रोजगार में कोई परेशानी नहीं । कोई भूखमरी नहीं थी ।छोटे से गांव में सभी भाईचारे से रहते थे ।एक दूसरे से मिलकर रहते थे। कोई किसी से दुश्मनी नहीं। कोई किसी से बैर नहीं।
सरकारी मशीनरी तो शायद चुप हो गई थी। मगर और सारी व्यवस्थाऐ जो गैर सरकारी थी। जो चाहती थी कि उस पारियों के प्लेटिनम निकालने का ठेका उनको मिल जाए ।और शायद उन्हें इस बात का इल्म भी था ।कि ठेका उनको मिल जाता। वह गांव के लोगों को भगाने के कई कोशिश करते रहे।
वह व्यपारी जिनकी पहुंच सरकारी महकुमे तक थी , जिन्हें पूरा विश्वास था। कि प्लैटिनम निकालने का ठेका उन्हें ही मिल जाना था। शायद सरकारी नुमाइंदे की ओर से प्लैटिनम निकालने का ठेका खुल्ला टेंडर जारी किया भी गया था ।और इस टेंडर को कई नामी-गिरामी व्यापारियों ने भरा था। और इसी सिलसिले में किसी एक के नाम पर ठेका छूट भी गया था।
ठेका छूटने के बाद 5 साल के अंदर कार्रवाई शुरू करके 25% प्लेटिनम निकालने का लक्ष्य बनाया गया था। और उस लक्ष्य को पार करने पर ही आगे काम जारी रहता ।वरना फिर ठेका किसी और के नाम पर ट्रांसफर होना था।
और जिसके नाम से ठेका छूटा हुआ था। वह बार-बार गांव में आकर गांव वालों से बातें करते रहे ।बाबा को छोड़कर और से भी बातें होती रही ।और यह बातें होती रही कि दूसरी जगह जमीन के साथ में मुआवजा और बच्चों को रोजगार भी दिए जाने की बात की जाने लगी।
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