अब बापी भी बड़ी हो चुकी थी। 10:11 साल की हो चुकी थी। दीदी के गोद में दूसरा एक बच्चा भी आ चुका था। उसकी भी उम्र अभी 4 साल की हो चुकी थी। मैं अग्निपुत्र- इस परिवार का एक अभिन्न अंग बन चुका था ।परिवार का ही एक हिस्सा बन चुका था। परिवार की हर अच्छाई- बुराई- भलाई में मेरी बातों को ध्यान दिया जाता।
कथित दिदी मुझे अपने सगे भाई से भी ज्यादा प्यार करती। और बच्चे भी मुझे मामा- मामा कहते थकते नहीं थे।जीजा भी मुझ पर ज्यादा ध्यान देते थे ।क्योंकि, मैं संपूर्ण गांव की भलाई के लिए जो भी काम करता उन पर खुश रहते।
गांव के बच्चों के लिए मै एक आईकौन सा बन गया था। हर बच्चा मुझ सा बनना चाहता था। गांव की भलाई के लिए काम करना चाहता था।
गांव के लोगों में आपस में सौहाद्र प्यार मोहब्बत खूब थी। गांव के लोग एक आपस में बड़े प्यार से मिलते। बड़ों का सम्मान करते । बच्चों के भी मैंन उनके अंदर सुसंस्कृत होने की आदत डाल दी थी। उन्हें भी पता था। बड़ों का कैसे सम्मान करते हैं। बड़ों को किस तरह से अभिवादन करते हैं। इस तरीके से पुरा का पुरा गांव मुझसे खुश था।
मैं गांव वाले सब का सम्मान करता था। क्योंकि यही गांव था -जब मुझे ऐसी हालत में पनाह दिया था ।इसी गांव ने मुझे दो वक्त की रोटी दी थी। इसी गांव वालों ने मुझे अपनाया था। और मुझे फिर से जीने की हिम्मत दी थी।
गांव वालों की वजह से ही मैं आज अग्निपुत्र अग्नि पुत्र बना था। गांव वालों की वजह से मुझ में लड़ने की हिम्मत आई थी।
गांव वालों की ही वजह से मुझ में बदले की आग फिर से सुलग उठी थी ।वरना मैं तो एक दिल से हारा हुआ, जिंदगी से लूटा हुआ इंसान छोटा सा अदना सा इंसान।ईन की झोली में आ गिरा था।
जन्म भूमि के बाद मुझे और कोई प्यारा था- तो यह गांव प्यारा था। मुझे जन्म देने वाली माता के अलावा प्यारा था, मुझे कोई प्यारा था तो मेरी दीदी थी। कोई प्यारा था तो यह परिवार था। कोई प्यारा था तो मुझे यह गांव प्यारा था।
और भृगु चाचा की बेटी। प्यारी सी गुड़िया।
मेरे दिल के अंदर घुसी बैठी हुई थी। मैं चाह कर भी उसे नजरअंदाज नहीं कर सकता था। और इस बात का यह सिर्फ मुझे ही नहीं भिर्गु चाचा को भी था। पूरे गांव वालों को भी था।
जिसका नाम कुसुमलता था।
कुसुमलता भी दिन भर अक्सर मेरे आगे पीछे ही रहती। मुझे पता ही नहीं चला ,कब मेरे दिल के अंदर समा गई !कब वह मेरे दिल के अंदर घर कर गई? मुझे पता ही नहीं चला।
मुझे पता था ।जिंदगी गुजारने के लिए एक सहारे की जरूरत होती है। मुझे नहीं पता था। कि मेरी जिंदगी में भी सहारे की जरूरत होगी। या नहीं। क्योंकि, मेरा लक्ष्य कुछ और था। मेरा लक्ष्य शादी करके ब्याह करके बच्चे पैदा करके जिंदगी गुजारना नहीं था। मेरा लक्ष्य था गारत में कत्ल हुए लोगों का बदला लेना। मेरा लक्ष्य था सिर्फ. बदला.. बदला ..बदला..!
शायद बदले की आग में जलता हुआ मैं भी उस आग में जल जाऊं.. मर जाऊं? तब कुसुमलता का क्या होगा? इसलिए भी मैं यह प्यार की ईस आग को ज्यादा भड़काना नहीं चाहता था। मैं कुसुमलता को ज्यादा छोड़ना नहीं चाहता था।
मैं ईस आगको यूं ही जलाना भी नहीं चाहता था ।और बुझाना भी नहीं चाहता था ।पता नहीं मेरा क्या होगा? मेरा लक्ष्य, मेरे लक्ष्य के मार्ग में सिर्फ मेरी मौत लिखी हुई थी। मेरी बर्बादी लिखी हुई थी। मगर मुझे वह बर्बाद ही मंजूर थी ।बदले की आग में झुलस ते हुए बर्बाद होना मुझे मंजूर था। मगर बिना बदला लिए चुपचाप पड़े रहना, मुझे यह मंजूर नहीं था।
धीरे-धीरे बारिश का मौसम आ रहा था। नदी मैं स्थिति बाढ़ की स्थिति सी हो गई थी। बारिश का यह हाल था कि कई कई दिनों तक लगातार मूसलाधार बारिश हो रही थी।
अबकी बार मुझे निकलना ही था। बारिश खत्म होते ही। मैं अपने घोड़े के साथ अपनी गांव के ओर निकलने की मन ही मन सोच लिया था।
मुझे पता था बारिश के मौसम में सारी नदियां नाले बढ जाया करती। और मुझे अपने गांव की ओर जाने वाले रास्ते में मैं भटक सकता था। और बारिश के मौसम मुझे अपने लक्ष्य की ओर रोकने में कामयाबी हो सकती थी। इसीलिए मैंने बारिश के मौसम को गुजर जाने दिया।
इसी बीच एक घटना घटित हो गई। बारिश की मौसम में पानी भरने गई कुसुमलता बारिश में ज्यादा भिगने की वजह से ,अचानक बीमार पड़ गई ।बुखार से उसकी हालत खराब हो गई। और बिरजू चाचा के साथ मुझे कुसुमलता के पास रुकना पड़ा।
गांव के बैद्ध ने उसे दवा देने की कोशिश की। मगर जड़ी बूटी वाली दवा काम नहीं आ रही थी ।उसे शहर ले जाना है मुनासिब समझा गया।
और कुसुमलता को लिए, मैं और भृगु चाचा शसर की और रवानगी कर गए। 10 घंटे की पगडंडियों में चलते हुए हम किसी तरह शहर पहुंचे मेरे साथ मेरा अपना दोस्त घोड़ा भी था।
माजुली में रोककर हमने अपनी घोड़े को किसी जान पहचान वाले के घर पर घोड़े को बाध कर हम वहां से फिर जीप पकड़कर शहर की ओर पांच आली के लिए रवाना हुए। पांचाली पहुंचने के बाद हमने कुसुमलता को डॉक्टर के पास ले गए।
डॉक्टर के मुताबिक हमे शहर में और दो-तीन दिन रूकना पड़ सकता था। क्योंकि डॉक्टर ने कुसुमलता के ब्लड टेस्ट के बारे में बताया। ब्लड टेस्ट किए बगैर हम इसके बारे में बता नहीं सकते।
डॉक्टर को बीमारी के बारे में बारे में जानना जरूरी था। क्योंकि डॉक्टर ब्लड टेस्ट के बाद ही उसके बीमारी के बारे में पता करके बता सकता था। अन्यथा उसकी बीमारी हमें पता ही नहीं चलती।
डॉक्टर के पास चक्कर लगाने के चक्कर में वहां ठहरना पड़ा ।और हम पांचाली के ही एक शिवालय में डेरा डाल के दो-चार दिन के लिए रहने लगे।
उसी वक्त शिवालय के पंडित से मेरी जान पहचान हुई। पंडित ने मुझे देखकर यह कहने लगा कि तुम्हारे पापा को तो मैं जानता हूं ।वह आप कहां है!?
पापा और मम्मी के अब नहीं रहने की बात मैंने उनसे बताया।
उन्होंने मुझे बताया कि उनके मेरे पिता धर्मपुत्र को अच्छी तरह से जानते हैं। उन्हें क्या बीमारी हो गई थी ?इतनी जल्दी स्वर्गवासी हो गए और तुम्हारी मम्मी भी ऐसी तो थी नहीं फिर दोनों का इस तरीके से स्वर्ग वासन होना कुछ मुझे समझ में नहीं आया !?
मैंने उसने बताया बहुत बड़ा अग्निकांड हो गया था ।जैसे अग्निकांड में सारा का सारा गांव जलकर खाक हो गया। कुछ लोग जान बचाकर वहां से भाग निकले ।उनमें से मैं भी एक था।
वह बोले कि ऐसे कैसे हो सकता है?सारा का सारा गांव एक साथ जल मरना ऐसा हो ही नहीं सकता ।यकीनन यह किसी के शाजिस रही होगी।
मैं बोला उस वक्त तो मैं छोटा था। साजिश होना ना होना ।यह तो मेरे दिमाग में नहीं आ रहा।
एक छोटा मोटा सा गांव था ।छोटा मोटा क्या बड़ा ही गांव था ।इतने बड़े गांव का एक साथ जल जाना लोगों का जल मरना यह संभव तब हो सकता है ।जब पूरा गांव का गांव ही साजिश का शिकार हो गया हो। वरना इतना बड़ा गांव यू जलकर खाक हो नहीं सकता ।तुम मेरे साथ रहो इसके बारे में मैं तुम्हें किसी और से मिलाऊंगा।
मैं कतई मान ही नहीं सकता। कि ईतना बड़ा गांव ।इतनी बड़ी आबादी ।एक साथ जलकर खाक हो गई हो। आज तक किसी ने इस सिलसिले में खोजबीन क्यों नहीं की? क्या माजरा है किसीने पता क्यों नहीं किया!? क्या सरकारी कानून!? सरकारी नुमाइंदे मर गए थे!?
मैंने उन्हें बताया कि गांव के पास ही पहाड़ी में प्लेटिनम होने की सरकार को पता चला था। और इसी सिलसिले में कई लोग हमारे गांव में आए थे ।गांव खाली करवाने के लिए कई बार गांव वालों की बैठक भी बिठाई थी। मगर गांव वालों ने गांव खाली करने से साफ मना कर दिया था। शायद इसीलिए हो सकता है साजिशन पूरे गांव को जलजले के हवाले कर दिया हो।
इसका मतलब साजिश का हाथ है ।मगर इसका पता लगाना और दोषियों को सजा देना तो कानून का काम है ।हम इस बारे में तुम्हें मैं किसी नेता के पास ले चलता हूं ।मिनिस्ट्री लेवल के नेता के पास ।जिन से सारी जानकारियां हासिल करके उन लोगों के खिलाफ कार्यवाही की जा सकती है।
मैं बोला -कोई नेता हमें क्यों कर जानकारी देने लगा?
देगा उसका बाप भी देगा ।और मैं इस बात को यहां नहीं सेंटर तक ले जाऊंगा।
मगर मैं बोला -जब से मैं गांव से पलायन करा हूं ,उसके बाद मैं उस जगह पर लौटकर अभी तक गया नहीं हूं ।मैं एक बार उस गांव की स्थिति को देखना चाहता हूं ।उस गांव में अभी क्या गुजर रहा है ?या वहां पर लोग हैं या नहीं है ?या फिर सही में वहां पर कोई इंडस्ट्री लग चुकी है? यह जानकारी हासिल करना चाहता हूं ।उसके बाद फिर मैं आपके पास पहुंचूंगा और फिर इस बात को लेकर हम आगे तक जाएंगे।
पंडित जी जो उस मठ के महंत थे बोले- यकीनन वहां पर इंडस्ट्री लग चुकी होगी ।वहां के गांव के लोग वहां पर अभी कोई नहीं होगा। इस सिलसिले में सारी जानकारी हासिल करने के लिए यकीनन ,एक बार उस गांव का चक्कर लगाना तो जरूरी है ।मगर मुश्किलात तो यह है। कि वहां तक जाने के लिए बाय रोड सिस्टम भी खराब है ।बारिश की वजह से।
बारिश के खत्म होते इस काम को अंजाम देना जरूरी है। मैं यह कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता, कि इतने सारे लोग !इतना बड़ा गांव! को जलाकर खाकसार कर दिया गया? कत्ले गारत में सब को मार डाला गया ।और पूरा सिस्टम चुपचाप क्यों बैठे हुई है!?
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