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कत्ले गारत 12

2 जनवरी 2023

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अब बापी भी बड़ी हो चुकी थी। 10:11 साल की हो चुकी थी। दीदी के गोद में दूसरा एक बच्चा भी आ चुका था। उसकी भी उम्र अभी 4 साल की हो चुकी थी। मैं अग्निपुत्र- इस परिवार का एक अभिन्न अंग बन चुका था ।परिवार का ही एक हिस्सा बन चुका था। परिवार की हर अच्छाई- बुराई- भलाई  में मेरी बातों को ध्यान दिया जाता।
कथित दिदी मुझे अपने सगे भाई से भी ज्यादा प्यार करती। और बच्चे भी मुझे मामा- मामा कहते थकते नहीं थे।जीजा भी मुझ पर ज्यादा ध्यान देते थे ।क्योंकि, मैं संपूर्ण गांव की भलाई के लिए जो भी काम करता उन पर खुश रहते।

गांव के बच्चों के लिए मै एक आईकौन सा बन गया था। हर बच्चा मुझ सा बनना चाहता था। गांव की भलाई के लिए काम करना चाहता था।
गांव के लोगों में आपस में सौहाद्र प्यार मोहब्बत खूब थी। गांव के लोग एक आपस में बड़े प्यार से मिलते। बड़ों का सम्मान करते । बच्चों के भी मैंन उनके अंदर सुसंस्कृत होने की आदत डाल दी थी। उन्हें भी पता था। बड़ों का कैसे सम्मान करते हैं। बड़ों को किस तरह से अभिवादन करते हैं। इस तरीके से पुरा का पुरा गांव मुझसे खुश था।
मैं गांव वाले सब का सम्मान करता था। क्योंकि यही गांव था -जब मुझे ऐसी हालत में पनाह दिया था ।इसी गांव ने मुझे दो वक्त की रोटी दी थी। इसी गांव वालों ने मुझे अपनाया था। और मुझे फिर से जीने की हिम्मत दी थी।

गांव वालों की वजह से ही मैं आज अग्निपुत्र अग्नि पुत्र बना था। गांव वालों की वजह से मुझ में लड़ने की हिम्मत आई थी।
 गांव वालों की ही वजह से मुझ में बदले की आग फिर से सुलग उठी थी ।वरना मैं तो एक दिल से हारा हुआ, जिंदगी से लूटा हुआ इंसान  छोटा सा अदना सा इंसान।ईन की झोली में आ गिरा था।
जन्म भूमि के बाद मुझे और कोई प्यारा था- तो यह गांव प्यारा था। मुझे जन्म देने वाली माता के अलावा प्यारा था, मुझे कोई प्यारा था तो  मेरी दीदी थी। कोई प्यारा था तो यह परिवार था। कोई प्यारा था तो मुझे यह  गांव प्यारा था।

और भृगु चाचा की बेटी। प्यारी सी गुड़िया।
मेरे दिल के अंदर घुसी बैठी हुई थी। मैं चाह कर भी उसे नजरअंदाज नहीं कर सकता था। और इस बात का यह सिर्फ मुझे ही नहीं भिर्गु चाचा को भी था। पूरे गांव वालों को भी था।
जिसका नाम कुसुमलता था।
कुसुमलता भी दिन भर अक्सर मेरे आगे पीछे ही रहती। मुझे पता ही नहीं चला ,कब मेरे दिल के अंदर समा गई !कब वह मेरे दिल के अंदर घर कर गई? मुझे पता ही नहीं चला।

मुझे पता था ।जिंदगी गुजारने के लिए एक सहारे की जरूरत होती है। मुझे नहीं पता था। कि मेरी जिंदगी में भी सहारे की जरूरत होगी। या नहीं। क्योंकि, मेरा लक्ष्य कुछ और था। मेरा लक्ष्य शादी करके ब्याह करके बच्चे पैदा करके जिंदगी गुजारना नहीं था। मेरा लक्ष्य था गारत में कत्ल हुए लोगों का बदला लेना। मेरा लक्ष्य था सिर्फ. बदला.. बदला ..बदला..!

शायद बदले की आग में जलता हुआ मैं भी उस आग में जल जाऊं.. मर जाऊं? तब कुसुमलता का क्या होगा? इसलिए भी मैं यह प्यार की ईस आग को ज्यादा भड़काना नहीं चाहता था। मैं कुसुमलता को ज्यादा छोड़ना नहीं चाहता था।
मैं ईस आगको यूं ही जलाना भी नहीं चाहता था ।और बुझाना भी नहीं चाहता था ।पता नहीं मेरा क्या होगा? मेरा लक्ष्य, मेरे लक्ष्य के मार्ग में सिर्फ मेरी मौत लिखी हुई थी। मेरी बर्बादी लिखी हुई थी। मगर मुझे वह बर्बाद ही मंजूर थी ।बदले की आग में झुलस ते हुए बर्बाद होना मुझे मंजूर था। मगर बिना बदला लिए चुपचाप पड़े रहना, मुझे यह मंजूर नहीं था।

धीरे-धीरे बारिश का मौसम आ रहा था। नदी मैं स्थिति बाढ़ की स्थिति सी हो गई थी। बारिश का यह हाल था कि कई कई दिनों तक लगातार मूसलाधार बारिश हो रही थी।

अबकी बार मुझे निकलना ही था। बारिश खत्म होते ही। मैं अपने घोड़े के साथ अपनी गांव के ओर निकलने की मन ही मन सोच लिया था।
मुझे पता था बारिश के मौसम में सारी नदियां नाले बढ जाया करती। और मुझे अपने गांव की ओर जाने वाले रास्ते में मैं भटक सकता था। और बारिश के मौसम मुझे अपने लक्ष्य की ओर रोकने में कामयाबी हो सकती थी। इसीलिए मैंने बारिश के मौसम को गुजर जाने दिया।
इसी बीच एक घटना घटित हो गई। बारिश की मौसम में पानी भरने गई  कुसुमलता बारिश में ज्यादा भिगने की वजह से ,अचानक बीमार पड़ गई ।बुखार से उसकी हालत खराब हो गई। और बिरजू चाचा के साथ मुझे कुसुमलता के पास रुकना पड़ा।
गांव के बैद्ध ने उसे दवा देने की कोशिश की। मगर जड़ी बूटी वाली दवा काम नहीं आ रही थी ।उसे शहर ले जाना है मुनासिब समझा गया।
और कुसुमलता को लिए, मैं और भृगु चाचा शसर की और रवानगी कर गए। 10 घंटे की पगडंडियों में चलते हुए हम किसी तरह शहर पहुंचे मेरे साथ मेरा अपना दोस्त घोड़ा भी था।

माजुली में रोककर हमने अपनी घोड़े को किसी जान पहचान वाले के घर पर घोड़े को बाध कर हम वहां से फिर जीप पकड़कर शहर की ओर पांच आली के लिए रवाना हुए। पांचाली पहुंचने के बाद हमने कुसुमलता को डॉक्टर के पास ले गए।
डॉक्टर के मुताबिक हमे शहर में और दो-तीन दिन रूकना पड़ सकता था। क्योंकि डॉक्टर ने कुसुमलता के ब्लड टेस्ट के बारे में बताया। ब्लड टेस्ट किए बगैर हम इसके बारे में बता नहीं सकते।
डॉक्टर को बीमारी के बारे में बारे में जानना जरूरी था। क्योंकि डॉक्टर ब्लड टेस्ट के बाद ही उसके बीमारी के बारे में पता करके बता सकता था। अन्यथा उसकी बीमारी हमें पता ही नहीं चलती।
डॉक्टर के पास चक्कर लगाने के चक्कर में  वहां ठहरना पड़ा ।और हम पांचाली के ही एक शिवालय  में डेरा डाल के दो-चार दिन के लिए रहने लगे।
उसी वक्त शिवालय के पंडित से मेरी जान पहचान हुई। पंडित ने मुझे देखकर यह कहने लगा कि तुम्हारे पापा को तो मैं जानता हूं ।वह आप कहां है!?
पापा और मम्मी के अब नहीं रहने की बात मैंने उनसे बताया।
उन्होंने मुझे बताया कि उनके मेरे पिता धर्मपुत्र को अच्छी तरह से जानते हैं। उन्हें क्या बीमारी हो गई थी ?इतनी जल्दी स्वर्गवासी हो गए और तुम्हारी मम्मी भी ऐसी तो थी नहीं फिर दोनों का इस तरीके से स्वर्ग वासन होना कुछ मुझे समझ में नहीं आया !?
मैंने उसने बताया बहुत बड़ा अग्निकांड हो गया था ।जैसे अग्निकांड में सारा का सारा गांव जलकर खाक हो गया। कुछ लोग जान बचाकर वहां से भाग निकले ।उनमें से मैं भी एक था।
वह बोले कि ऐसे कैसे हो सकता है?सारा का सारा गांव एक साथ जल मरना ऐसा हो ही नहीं सकता ।यकीनन यह किसी के शाजिस रही होगी।
मैं बोला उस वक्त तो मैं छोटा था। साजिश होना ना होना ।यह तो मेरे दिमाग में नहीं आ रहा।
एक छोटा मोटा सा गांव था ।छोटा मोटा क्या बड़ा ही गांव था ।इतने बड़े गांव का एक साथ जल जाना लोगों का जल मरना यह संभव तब हो सकता है ।जब पूरा गांव का गांव ही साजिश का शिकार हो गया हो। वरना इतना बड़ा गांव यू जलकर खाक हो नहीं सकता ।तुम मेरे साथ रहो इसके बारे में मैं तुम्हें किसी और से मिलाऊंगा।
मैं कतई मान ही नहीं सकता। कि ईतना बड़ा गांव ।इतनी बड़ी आबादी ।एक साथ जलकर खाक हो गई हो। आज तक किसी ने इस सिलसिले में खोजबीन क्यों नहीं की? क्या माजरा है किसीने पता क्यों नहीं किया!? क्या सरकारी कानून!? सरकारी नुमाइंदे मर गए थे!?
मैंने उन्हें बताया कि गांव के पास ही पहाड़ी में प्लेटिनम होने की सरकार को पता चला था। और इसी सिलसिले में कई लोग हमारे गांव में आए थे ।गांव खाली करवाने के लिए कई बार गांव वालों की बैठक भी बिठाई थी। मगर गांव वालों ने गांव खाली करने से साफ मना कर दिया था। शायद इसीलिए हो सकता है साजिशन पूरे गांव को जलजले के हवाले कर दिया हो।
इसका मतलब साजिश का हाथ है ।मगर इसका पता लगाना और दोषियों को सजा देना तो कानून का काम है ।हम इस बारे में तुम्हें मैं किसी नेता के पास ले चलता हूं ।मिनिस्ट्री लेवल के नेता के पास ।जिन से सारी जानकारियां हासिल करके उन लोगों के खिलाफ कार्यवाही की जा सकती है।

मैं बोला -कोई नेता हमें क्यों कर जानकारी देने लगा?
देगा उसका बाप भी देगा ।और मैं इस बात को यहां नहीं सेंटर तक ले जाऊंगा।
मगर मैं बोला -जब से मैं गांव से पलायन करा  हूं ,उसके बाद मैं उस जगह पर लौटकर अभी तक गया नहीं हूं ।मैं एक बार उस गांव की स्थिति को देखना चाहता हूं ।उस गांव में अभी क्या गुजर रहा है ?या वहां पर लोग हैं या नहीं है ?या फिर सही में वहां पर कोई इंडस्ट्री लग चुकी है? यह जानकारी हासिल करना चाहता हूं ।उसके बाद फिर मैं आपके पास पहुंचूंगा और फिर इस बात को लेकर हम आगे तक जाएंगे।
पंडित जी जो उस मठ के महंत थे बोले- यकीनन वहां पर इंडस्ट्री लग चुकी होगी ।वहां के गांव के लोग वहां पर अभी कोई नहीं होगा। इस सिलसिले में सारी जानकारी हासिल करने के लिए यकीनन ,एक बार उस गांव का चक्कर लगाना तो जरूरी है ।मगर मुश्किलात तो यह है। कि वहां तक जाने के लिए बाय रोड सिस्टम भी खराब है ।बारिश की वजह से।
 बारिश के खत्म होते इस काम को अंजाम देना जरूरी है। मैं यह कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता, कि इतने सारे लोग !इतना बड़ा गांव! को जलाकर खाकसार कर दिया गया? कत्ले गारत में सब को मार डाला गया ।और पूरा सिस्टम चुपचाप क्यों बैठे हुई है!?

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रचनाएँ
कत्ले गारत
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बदले और खून से सनी खूनी सफर सफर का इतिहास है ।जिसे हम कत्ले गारत का नाम देकर यहां प्रस्तुत करना चाहते हैं।
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28 दिसम्बर 2022
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यह उपन्यास काल्पनिक है ।जिसका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं ।या फिर किसी वास्तविक व्यक्ति या समुदाय को चोट पहुंचाने के लिए कतई लिखी गई नहीं है। &n

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अब मैं अपने आप को सुरक्षित महसूस कर रहा था। हवा में ठंडक बढ़ चुकी थी। हवा इतनी ठंड थी। कि ठिठुरन सी हो रही थी ।मगर यह ठिठुरन भी उस कत्ले गारत से कई गुना अच्छी थी। मैं खौफ़ के साऐ से बहुत दू

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मैंने अपने घोड़े का रकाब निकाल कर, उसे चरने के लिए छोड़ दिया था। और पीठ थपथपाता हुआ मैंने उससे बोला -जब तक मैं सो लेता हूं !तू चरके जल्दी ही यहीं पर आ जाना ।समझ गया। घोड़े ने सर हिलाया जैसे कि उसने सा

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घर पर कई काम हो सकते थे। जानवर पाल रखे हो तो जानवर के लिए ।चराना चलाना आदि काम रखरखाव का काम हो सकता था। गाय भैंस हो तो इसको रखरखाव के लिए उससे दूध दुहने के लिए, उसको पानी सानी करने के लिए

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टेंडर किसी व्यापारी के नाम पर छूट चुका था। व्यापारी क्या वह अपने आप को बहुत बड़ा इंडस्ट्रियलिस्ट समझता था। वह चाहता था। किसी तरह भी इस गांव को खाली कर दिया जाए ।क्योंकि ,उस गांव से ही होकर वह रास्ता प

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गांव के लोगों की खासियत होती है- वह जो थोड़े में संतुष्ट हो जाते हैं। वह नहीं सोचते कि वह कार पर चले। वे यह नहीं सोचते कि बहुत बड़ा बंगला बने, वे नहीं सोचते कि बहुत बड़ी कोठी हो ।बस दो वक्त की रोटी बी

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1 जनवरी 2023
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शायद कुछ साल यूं ही गुजर ग्ए थे। इस घर ने इस गांव में मुझे अपनापन और प्यार मोहब्बत मिला था। इस बात को लेकर मुझे किसी से शिकायत नहीं है। इस बात को लेकर मुझे किसी से शिकायत नहीं है।इन्होंने मुझे इतना मो

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मैंने पढ़ाई अपने कबीले की स्कूल में थोड़ी बहुत की थी ।जिसे पढ़ाई कह नहीं सकते थे।इस गांव में आने के बाद ,मैंने गांव में छोटे-छोटे बच्चों को जितना आता था। पढ़ाने की कोशिश की थी।हिंदी इंग्लिश की अक

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मेरी जिंदगी में सिर्फ एक ही लक्ष्य बचा हुआ था। और वो लक्ष्य था किसी तरह भी उन खूनियों का खात्मा करना। क्योंकि मुझे पता था। कि यह सारा सरकारी नुमाइंदों की मिलीभगत में हुई थी। इसलिए कानून का सहारा लेना

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यह वक्त नहीं था। कि मैं पंडित जी के साथ जाउं। गांव पहुंच कर खोजबीन करूं! जहां गांव के बारे में गांव की आबादी के बारे में नोटेड होता है ।क्योंकि ,अभी हम पुष्पलता के इलाज के लिए आए हुए थे। और जरूरी था,

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आज शहर में आए हुए तीसरा दिन था। पुष्प लता लगभग ठीक हो गई थी। मेरे इकरारेईश्क के बाद उसका बुखार धीरे-धीरे कमता चला गया था। या यूं कहें कि दोनों की एकरार के बाद बुखार लगभग उसी, समय कम हो गया था।मु

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4 जनवरी 2023
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पुष्पा को समझ आ चुका था। जिंदगी के बारे में। पुष्पा को इस बात की समझ आ गई थी। जो जिंदगी में जीने के लिए पैसे की भी जरूरत होगी। जो मैं शहर जाकर ही कमा सकता था। गांव में रहकर तो हम सिर्फ खा पी सकते थे।

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4 जनवरी 2023
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मैं जिस रास्ते से इस गांव में आया था। उसी रास्ते से ही मुझे लौटना था। इतने सालों के बाद भी मैं वो रास्ता कभी भूल नहीं पाया था। वह नदी पार करना ,नदी पार करके फिर इस गांव में आना ,जब मैं कभी भूला नहीं प

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6 जनवरी 2023
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वे चार लोग थे ।और मैं उनके बीच में एक अकेला लेटा हुआ था। और मेरी नींद को देखते हुए उन लोगों ने जागाने के लिए एक ने मुझे छू करा आवाज लगाया था।उनकी आवाजों से मेरी आंखें खुल गई थी। मैंने नजर इधर-उधर घुमा

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कत्ले गारत 18

7 जनवरी 2023
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मुझे पता था ।मेरा रास्ता आसान नहीं था। मुझे यह भी पता था। जिन चार लोगों पर मैंने हमला किया था। वह लोग यकीनन कोई न कोई मेरे पीछे आने वाले थे। उन के मुताबिक वह सिर्फ चार नहीं थे ।पूरा कुनबा था। उन

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8 जनवरी 2023
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बीच में आए इन सब लोगों से मैं खुद को बचाना चाहता था।। मेरा मकसद अपने गांव तक पहुंचना था। यह देखना था ,उस कत्ले गारत में कोई बचा तो नहीं ।या यह जानना था -कि कत्ले गारत के बाद वहां इंडस्ट्री बसा है

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कत्ले गारत 20

8 जनवरी 2023
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मुझे बहुत आगे निकलना था। वक्त बहुत जाया हो चुका था।मैंने आसमान की ओर देखा। सूरज क्षितिज पे कहीं छुपने की तैयारी कर रहा था। मुझे अपने गांव आगे बढ़ना था। और रात के रुकने की व्यवस्था भी करना था। मेरा घोड

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10 जनवरी 2023
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मकान के बाहर सारागांव जमा हो गया था। सारा गांव ही एक कुनबा था। गांव के लोग में एकता थी एक स्वर बद्धता थी ।जो वहां जमा होने पर दिखती थी।गांव के बड़े बुजुर्ग की आंखों में आंसू थे। बच्चे भूल से गए थे। उस

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11 जनवरी 2023
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उन के अंदर की ज्वाला को मैंने भड़काने की कोशिश की। उनके अंदर की ज्वाला शायद शांत हो चुकी थी ।या कुछ न कर पाने की वजह से वह चुपचाप हो गए थे।शायद वह नहीं चाहते थे ,कि जो बचे खुचे हैं, उनको कोई नुकसान पह

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13 जनवरी 2023
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मुझे अब भटकने की जरूरत नहीं थी। गांव वालों को पता था । वह पुराना गांव हमारा कहां पर है.. किस रास्ते से वहां पर जा सकते हैं!मैं अकेला ही उस ओर जाने के लिए तैयार था। मैं सबसे पहले उस धरती का दर्शन चाहता

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कत्ले गारत 24

14 जनवरी 2023
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जब मेरी आंखें खुली, चट्टानों में बैठे-बैठे मुझे नशा सा छा गया था। जिसकी वजह से मैं वहीं पर लुढ़क गया था। करीब चार-पांच घंटे यूं ही मैं बेहोश सा पड़ा रहा। जब मेरे घोड़े ने मुझे

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कात्ले गारत 25

17 जनवरी 2023
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मैं पानी पीकर और हाथ मुंह धो कर अपने गांव की ओर मुड़ा। चारों तरफ बाउंड्री लगी हुई, बीच में कोई इंडस्ट्री बसी हुई थी। बाउंड्री पत्थरों से दीवार बनाई गई थी इस पार से उस पार देख पाना मुमकिन नहीं था

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कत्ले गारत 26

18 जनवरी 2023
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मैं अपने गांव में था। जो अभी फिलहाल इंडस्ट्री में तब्दील हो गई थी। और मेरे अपने लोग यहां कोई नहीं था। मेरा अपना मकान भी नहीं था।मैंने गांव की मिट्टी को अपनी मुट्ठी में लिया दिल से लगा लिया। सच म

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20 जनवरी 2023
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कामदारों से मुझे सिर्फ इतना ही पता चल सका था, कि वह अरबों पति लोग थे ।उनके पास पहुंचना मुश्किल काम था। मैं साइबर में बैठकर,इन लोगों का रिहायश, ऑफिस पता लगाना चाहता था। यूं तो वे लोग यहां भी

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कत्ले गारत 28

23 जनवरी 2023
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मार्गरेटा से टोपला बस्ती, ज्यादा दूर नहीं था। करीब 20 किलोमीटर का रास्ता था । ऑन द रोड।अगर मैं अपने घोड़े पर ही टोपला बस्ती पहुंचता तो, लोग यही समझते ,कि कोई बैंड बाजा बारात वाला ही होगा। जो किस

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24 जनवरी 2023
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अंधेरी रात थी। आसमान में तारे चमक रहे थे। मगर टोपला बस्ती का यह एरिया ,रोशनी से जगमग आ रहा था। ऐसा लगता था जैसे आसमान के सारे तारे जमीन पर उतर आए हो। और कोठियों में जगमगा रहे हो।जहां मैं ठहरा था , रिस

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कत्ले गारत 30

25 जनवरी 2023
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मौसम इतना ठंडा नहीं था। फिर भी मैं अपने घोड़े को खुले छत में नहीं रख सकता था। रात को रुकने के लिए उसे भी छत चाहिए थी । घास चाहिए था ।और खाने के लिए दाना भी चाहिए था ।पानी भी चाहिए था। उसकी फिकर मुझे अ

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कत्ले गारत 31

29 जनवरी 2023
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अभिषेक ने जो कार्ड दिया था। उसमें सिर्फ उसका नाम और फोन नंबर लिखा हुआ था।और कहा था ।दो दिन बाद कॉल कर लेना। आज तीसरा दिन था। मैंने अभिषेक को कॉल किया था।अभिषेक निहायत ही शरीफ और ईमानदार शख्सियत था। और

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कत्ले गारत 32

30 जनवरी 2023
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मैंने ,अपने घोड़े को अस्तबल में ला के बांध दिया था। अस्तबल में घोड़े के लिए चारे की भी परेशानी नहीं थी।घोड़ा मवेशियों के साथ खुश रह सकता था। मैंने अपने कमरे की सफाई के लिए चाची को बोल दिया था। कमरा सा

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कत्ले गारत 33

31 जनवरी 2023
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कहते हैं - गुनाह कभी छुपता नहीं ।कभी न कभी गुनाह, नासूर बन के दिल को ,कचोटने लगती है।यह कुदरत का न्याय है। बदला लेने के लिए कुदरत ही तैयार करती है। मजलूम पर किया गया जुल्म कभी खाली नहीं जाता। उभ

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