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कत्ले गारत 7

31 दिसम्बर 2022

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टेंडर किसी व्यापारी के नाम पर छूट चुका था। व्यापारी क्या वह अपने आप को बहुत बड़ा इंडस्ट्रियलिस्ट समझता था। वह चाहता था। किसी तरह भी इस गांव को खाली कर दिया जाए ।क्योंकि ,उस गांव से ही होकर वह रास्ता पहाड़ियों में जाती थी। और उस गांव के खाली किए बिना उस गांव में फैक्ट्री लगाए बिना उस पहाड़ों से प्लैटिनम निकालना नामुमकिन था।

सरकार की भी बड़ी भूल थी।  जब गांव वाले गांव खाली कर नहीं रह थे, तो फिर उस पहाड़ी का प्लेटिनम का टेंडर निकालने की वजह क्या थी ।या तो पहले गांव के अगल-बगल से या पहाड़ों में से प्लैटिनम निकालने के लिए रास्ता बनाए ।और पहाड़ों में ही कहीं किसी जगह पर फैक्ट्री डालने के लिए तैयारी करें ।जमीन तैयार करें, फिर जाकर टेंडर निकाले ।मगर, ऐसा नहीं था। ऐसा करने में ,और अरबों रुपए का खर्च आता ।जो व्यापारी वर्ग इंडस्ट्रियल  सहन नहीं कर सकता था।
वह तो चाहते थे ,कौड़ियों के भाव में गांव वाले जमीन छोड़कर चले जाएं। और वहां पर इंडस्ट्री डालकर अरबों रुपए की कमाई करें। मगर गांव वाले भी समझते थे जब तक सरकार नहीं चाहेगी तब तक वह वहां से हटेंगे नहीं ।क्योंकि ,वहां पर प्लैटिनम की खदान शुरू होने के बाद इंडस्ट्री डालने की जरूरत थी। और इंडस्ट्री डालने के लिए आसपास पहाड़ियों को पाटकर इंडस्ट्री डाला जा सकता था ।मगर ऐसा नहीं हो रहा था।
सरकार को इस बात से कोई फर्क पड़ने वाला नहीं था। वह सरकार के नुमाइंदे सरकार में जो मिनिस्टर बैठे हुए थे ।वह भी इस बात से कोई इंटरेस्ट नहीं दे रहे थे ।उन्होंने सारा कारनामा सारी बातों को इंडस्ट्रियलिस्ट लोगों के ऊपर छोड़ दिया था। और इंडस्ट्रीलिस्ट गुंडागर्दी पर उतर आए थे।
आम जनता की सुरक्षा करने वाली सरकार खुद आंखें मूंद कर बैठ गई थी। आम जनता की भलाई के लिए कोई सामने नहीं रहा था। आम जनता को प्रेशर दिया जा रहा था ।कि खाली करो -खाली करो -खाली करो ।मगर, आम जनता थी कि वह गांव खाली करने से रहे। 
उनकी यह जन्म भूमि थी ।उनकी यह मातृभूमि थी। और उन्हें अपनी जन्मभूमि से बेदखल किया जा रहा था। उन्हें अपनी जन्मभूमि से खदेड़ा जा रहा था। मगर गांव वाले थे,कि टस से मस नहीं हो रहे थे।
 गुंडागर्दी का भी सामना करने के लिए तैयार थे ।मगर उन्हें पता नहीं था -कि वह मामूली गुंडागर्दी नहीं थी।
यह गुंडागर्दी थी संपूर्ण गांव को खाली करने की ।और यह गुंडागर्दी कोई सड़कों का गुंडागर्दी नहीं था। कि डंडे लेकर आ जाते। यह गुंडागर्दी खुद को इंडस्ट्रियलिस्ट कहने वाले गुंडे करा रहे थे। इंडस्ट्रीलिस्टो का सपोर्ट करने के लिए सारे पुलिस मशीनरी ,सारे मिलिट्री फोर्स भी शामिल हो गई थी।
कई बार गांव वालों को वार्निंग भेजी गई थी। कि जल्द से जल्द गांव खाली कर दे।
बाबा और गांव के कई बुजुर्गों को बुलाकर बिठाकर समझाया गया था।
मगर बुजुर्गों को समझाना बड़ी तेरी खीर थी। बुजुर्ग इस बात से अडे थे ,कि उनकी उनकी भूमि से बेदखल करने का क्या मतलब है? इंडस्ट्री, लगाना है तो इतनी सारी पहाड़ियां है। किसी भी पाहाडी को पाटकर सरकार इंडस्ट्री लगा सकती है। या कोई व्यापार इंडस्ट्री लगा सकती है। हम यहां से जाने वाले नहीं है।
 यह अंतिम फैसला बुजुर्गों का था। और यह निर्णय सही भी था।
कई सालों से इस बात को लेकर सरकार और गांव वालों में खींचातानी होती रही थी ।जिस बात को लेकर, खींचा तानी में गांव वाले चिंतित थे।उनका यह मानना था ।कि सरकार उनकी ओर ध्यान नहीं दे रही है। उनका यह मानना था ।कि सरकार उन्हें जबरदस्ती खाली कराने के चक्कर में है। उनका यह मानना था। कि इंडस्ट्री से हाथ मिला कर सरकार उन्हें वहां से बेदखल करना चाहती है। जबकि इससे कम खर्चे में वह आस-पड़ोस के किसी पहाड़ी को पाट करें इंडस्ट्री लगा सकते थे।
और इस बात को लेकर खींचातानी चलती रही चलती रहीं ।गांव वाले टस से मस होने से रहे। और सरकार भी टससे मस हो नहीं रही थी।

कई सरकारी नुमाइंदे, कई सरकारी अफसर आन, कई मिनिस्टर आए ।और उन्हें समझाने की कोशिश की गई।
 गांव वालों को समझाने की कोशिश की गई। मगर गांव वालों का यही कहना था। अगर इंडस्ट्री लगाना है तो लगा सकते हो ।हम रोकने वाले कौन हो सकते हैं? मगर, हमारी जमीन हमारे पास ही रहेगी। 
मगर सरकारी मशीनरी को, पता नहीं इस बात से, कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। गांव वालों की सलाह से उन्हें कुछ फर्क नहीं पड़ रहा था। बस वह तो यह चाहते थे कि किसी तरह गांव खाली करवा ले ।पता नहीं गांव खाली करवाने में उनका क्या मंशा रहा होगा? समझ से बाहर की बात थी!
अब धीरे-धीरे स्थिति हो गई थी। कि सरकारी मशीनरियोने गांव वालों को प्रेशर डालने की कोशिश छोड़ दी। सरकारी मशीनरी कुछ दिन के लिए ठप से पड़ गये। ऐसा लगने लगा ।जैसे अब सरकार गांव वालों से हार गई है ।ऐसा सुनने में भी आया ,कि सामने की जो पहाड़ी है उस पहाड़ी को पाट कर इंडस्ट्री लगाई जाएगी। वहां से रास्ता खुलेगा ,वहां से रास्ता खुलने से गांव वालों को एक फायदा और होता ।कि वह शहर तक उस रास्ते के सहारे जा सकते थे।

गांव वाले अपने उत्पाद को अपने कृषि जन्य उत्पाद को शहरों में ले जा कर बेच सकते थे। और अच्छी कमाई कर सकते थे ।मगर ऐसी बातें सिर्फ बातें ही रह गई थी ।क्योंकि, न हीं सरकार ने कोई रास्ता खोलने का प्रोग्राम किया। ना ही पहाड़ी को पाटने का कोई प्रोग्राम किया।
 एक दो बार तो लगा था -कि सरकारी मशीनरी खुद पहाड़यों को पाटकर इंडस्ट्री लगाने के चक्कर में है। मगर यह बात जैसे उठी थी वैसे ही दब सी गई ।जैसे इंडस्ट्री लगाने की बात ही ठंडे बस्ते में चली गई।
क्या पता था कि या चुप्प अजीब सी थी सारे आने-जाने सारे
 मीटिंग और फसाने सारे बंद हो गए थे ।ऐसा लगने लगा था ।अब आगे कुछ होने वाला नहीं है ।सरकार गांव वालों से हार गई है। गांव वाले नहीं चाहते कि उन्हें हटाया जाए। और इंडस्ट्री लगाई जाए। और सरकार नहीं चाहती की दूसरी जगह किसी पाहाडी को पाटकर खर्च करके वाह इंडस्ट्री लायक जगह बनाई जाए।

दोनों तरफ से चुप्पी छा गई थी। किसे पता था कि अब चुप्पी चुप्पी नहीं यह तो आंधी से आंधी  आने से पहले की खामोशी थी।

फिर एक रोज कुछ ऐसा हुआ, जैसा कभी किसी ने सोचा ना था। ऐसा जलजला आया जो किसी ने सोचा ना था। ऐसा जलजला आया सारा गांव एक ही झटके में जलकर खाक हो गया। सारे गांव के लोगों की उसी मिट्टी ने समाधि बन गई ।जो बचकर भाग सकते थे शायद कई लोग भाग गए होंगे।मगर मुझे यह पता नहीं था कि मेरे अलावा कोई और भी बचकर निकला होगा या नहीं।
कैसा था वह जलजला?  कौन था जलजले  का मास्टरमाइंड?
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रचनाएँ
कत्ले गारत
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बदले और खून से सनी खूनी सफर सफर का इतिहास है ।जिसे हम कत्ले गारत का नाम देकर यहां प्रस्तुत करना चाहते हैं।
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यह उपन्यास काल्पनिक है ।जिसका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं ।या फिर किसी वास्तविक व्यक्ति या समुदाय को चोट पहुंचाने के लिए कतई लिखी गई नहीं है। &n

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गांव के लोगों की खासियत होती है- वह जो थोड़े में संतुष्ट हो जाते हैं। वह नहीं सोचते कि वह कार पर चले। वे यह नहीं सोचते कि बहुत बड़ा बंगला बने, वे नहीं सोचते कि बहुत बड़ी कोठी हो ।बस दो वक्त की रोटी बी

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मैंने पढ़ाई अपने कबीले की स्कूल में थोड़ी बहुत की थी ।जिसे पढ़ाई कह नहीं सकते थे।इस गांव में आने के बाद ,मैंने गांव में छोटे-छोटे बच्चों को जितना आता था। पढ़ाने की कोशिश की थी।हिंदी इंग्लिश की अक

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मेरी जिंदगी में सिर्फ एक ही लक्ष्य बचा हुआ था। और वो लक्ष्य था किसी तरह भी उन खूनियों का खात्मा करना। क्योंकि मुझे पता था। कि यह सारा सरकारी नुमाइंदों की मिलीभगत में हुई थी। इसलिए कानून का सहारा लेना

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अब बापी भी बड़ी हो चुकी थी। 10:11 साल की हो चुकी थी। दीदी के गोद में दूसरा एक बच्चा भी आ चुका था। उसकी भी उम्र अभी 4 साल की हो चुकी थी। मैं अग्निपुत्र- इस परिवार का एक अभिन्न अंग बन चुका था ।परिवार का

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यह वक्त नहीं था। कि मैं पंडित जी के साथ जाउं। गांव पहुंच कर खोजबीन करूं! जहां गांव के बारे में गांव की आबादी के बारे में नोटेड होता है ।क्योंकि ,अभी हम पुष्पलता के इलाज के लिए आए हुए थे। और जरूरी था,

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आज शहर में आए हुए तीसरा दिन था। पुष्प लता लगभग ठीक हो गई थी। मेरे इकरारेईश्क के बाद उसका बुखार धीरे-धीरे कमता चला गया था। या यूं कहें कि दोनों की एकरार के बाद बुखार लगभग उसी, समय कम हो गया था।मु

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4 जनवरी 2023
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पुष्पा को समझ आ चुका था। जिंदगी के बारे में। पुष्पा को इस बात की समझ आ गई थी। जो जिंदगी में जीने के लिए पैसे की भी जरूरत होगी। जो मैं शहर जाकर ही कमा सकता था। गांव में रहकर तो हम सिर्फ खा पी सकते थे।

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4 जनवरी 2023
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मैं जिस रास्ते से इस गांव में आया था। उसी रास्ते से ही मुझे लौटना था। इतने सालों के बाद भी मैं वो रास्ता कभी भूल नहीं पाया था। वह नदी पार करना ,नदी पार करके फिर इस गांव में आना ,जब मैं कभी भूला नहीं प

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6 जनवरी 2023
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वे चार लोग थे ।और मैं उनके बीच में एक अकेला लेटा हुआ था। और मेरी नींद को देखते हुए उन लोगों ने जागाने के लिए एक ने मुझे छू करा आवाज लगाया था।उनकी आवाजों से मेरी आंखें खुल गई थी। मैंने नजर इधर-उधर घुमा

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7 जनवरी 2023
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मुझे पता था ।मेरा रास्ता आसान नहीं था। मुझे यह भी पता था। जिन चार लोगों पर मैंने हमला किया था। वह लोग यकीनन कोई न कोई मेरे पीछे आने वाले थे। उन के मुताबिक वह सिर्फ चार नहीं थे ।पूरा कुनबा था। उन

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8 जनवरी 2023
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बीच में आए इन सब लोगों से मैं खुद को बचाना चाहता था।। मेरा मकसद अपने गांव तक पहुंचना था। यह देखना था ,उस कत्ले गारत में कोई बचा तो नहीं ।या यह जानना था -कि कत्ले गारत के बाद वहां इंडस्ट्री बसा है

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8 जनवरी 2023
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मुझे बहुत आगे निकलना था। वक्त बहुत जाया हो चुका था।मैंने आसमान की ओर देखा। सूरज क्षितिज पे कहीं छुपने की तैयारी कर रहा था। मुझे अपने गांव आगे बढ़ना था। और रात के रुकने की व्यवस्था भी करना था। मेरा घोड

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10 जनवरी 2023
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मकान के बाहर सारागांव जमा हो गया था। सारा गांव ही एक कुनबा था। गांव के लोग में एकता थी एक स्वर बद्धता थी ।जो वहां जमा होने पर दिखती थी।गांव के बड़े बुजुर्ग की आंखों में आंसू थे। बच्चे भूल से गए थे। उस

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11 जनवरी 2023
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उन के अंदर की ज्वाला को मैंने भड़काने की कोशिश की। उनके अंदर की ज्वाला शायद शांत हो चुकी थी ।या कुछ न कर पाने की वजह से वह चुपचाप हो गए थे।शायद वह नहीं चाहते थे ,कि जो बचे खुचे हैं, उनको कोई नुकसान पह

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13 जनवरी 2023
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मुझे अब भटकने की जरूरत नहीं थी। गांव वालों को पता था । वह पुराना गांव हमारा कहां पर है.. किस रास्ते से वहां पर जा सकते हैं!मैं अकेला ही उस ओर जाने के लिए तैयार था। मैं सबसे पहले उस धरती का दर्शन चाहता

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कत्ले गारत 24

14 जनवरी 2023
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जब मेरी आंखें खुली, चट्टानों में बैठे-बैठे मुझे नशा सा छा गया था। जिसकी वजह से मैं वहीं पर लुढ़क गया था। करीब चार-पांच घंटे यूं ही मैं बेहोश सा पड़ा रहा। जब मेरे घोड़े ने मुझे

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17 जनवरी 2023
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मैं पानी पीकर और हाथ मुंह धो कर अपने गांव की ओर मुड़ा। चारों तरफ बाउंड्री लगी हुई, बीच में कोई इंडस्ट्री बसी हुई थी। बाउंड्री पत्थरों से दीवार बनाई गई थी इस पार से उस पार देख पाना मुमकिन नहीं था

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कत्ले गारत 26

18 जनवरी 2023
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मैं अपने गांव में था। जो अभी फिलहाल इंडस्ट्री में तब्दील हो गई थी। और मेरे अपने लोग यहां कोई नहीं था। मेरा अपना मकान भी नहीं था।मैंने गांव की मिट्टी को अपनी मुट्ठी में लिया दिल से लगा लिया। सच म

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20 जनवरी 2023
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कामदारों से मुझे सिर्फ इतना ही पता चल सका था, कि वह अरबों पति लोग थे ।उनके पास पहुंचना मुश्किल काम था। मैं साइबर में बैठकर,इन लोगों का रिहायश, ऑफिस पता लगाना चाहता था। यूं तो वे लोग यहां भी

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23 जनवरी 2023
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मार्गरेटा से टोपला बस्ती, ज्यादा दूर नहीं था। करीब 20 किलोमीटर का रास्ता था । ऑन द रोड।अगर मैं अपने घोड़े पर ही टोपला बस्ती पहुंचता तो, लोग यही समझते ,कि कोई बैंड बाजा बारात वाला ही होगा। जो किस

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24 जनवरी 2023
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अंधेरी रात थी। आसमान में तारे चमक रहे थे। मगर टोपला बस्ती का यह एरिया ,रोशनी से जगमग आ रहा था। ऐसा लगता था जैसे आसमान के सारे तारे जमीन पर उतर आए हो। और कोठियों में जगमगा रहे हो।जहां मैं ठहरा था , रिस

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कत्ले गारत 30

25 जनवरी 2023
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मौसम इतना ठंडा नहीं था। फिर भी मैं अपने घोड़े को खुले छत में नहीं रख सकता था। रात को रुकने के लिए उसे भी छत चाहिए थी । घास चाहिए था ।और खाने के लिए दाना भी चाहिए था ।पानी भी चाहिए था। उसकी फिकर मुझे अ

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कत्ले गारत 31

29 जनवरी 2023
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अभिषेक ने जो कार्ड दिया था। उसमें सिर्फ उसका नाम और फोन नंबर लिखा हुआ था।और कहा था ।दो दिन बाद कॉल कर लेना। आज तीसरा दिन था। मैंने अभिषेक को कॉल किया था।अभिषेक निहायत ही शरीफ और ईमानदार शख्सियत था। और

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कत्ले गारत 32

30 जनवरी 2023
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मैंने ,अपने घोड़े को अस्तबल में ला के बांध दिया था। अस्तबल में घोड़े के लिए चारे की भी परेशानी नहीं थी।घोड़ा मवेशियों के साथ खुश रह सकता था। मैंने अपने कमरे की सफाई के लिए चाची को बोल दिया था। कमरा सा

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कत्ले गारत 33

31 जनवरी 2023
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कहते हैं - गुनाह कभी छुपता नहीं ।कभी न कभी गुनाह, नासूर बन के दिल को ,कचोटने लगती है।यह कुदरत का न्याय है। बदला लेने के लिए कुदरत ही तैयार करती है। मजलूम पर किया गया जुल्म कभी खाली नहीं जाता। उभ

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