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कत्ले गारत 10

1 जनवरी 2023

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मैंने पढ़ाई अपने कबीले की स्कूल में थोड़ी बहुत की थी ।जिसे पढ़ाई कह नहीं सकते थे।
इस गांव में आने के बाद ,मैंने गांव में छोटे-छोटे बच्चों को जितना आता था। पढ़ाने की कोशिश की थी।
हिंदी इंग्लिश की अक्षर ज्ञान और थोड़ी बहुत मैं यहां के बच्चों के अपनी ज्ञान के मुताबिक पढ़ाया भी करता । जिसकी वजह से गांव के लोग मुझसे खुश थे।
गांव के लोगों में मेरी साख बढ़ गई थी। गांव के बच्चे मुझे मास्टर जी, गुरु जी के नाम से पुकारने लगे थे ।
गांव के बड़े बूढ़े भी मेरा ईस गांव में आना उनके लिए एक अच्छा सा सबब बन गया था। जिससे गांव के बच्चे कुछ नहीं तो अक्षर ज्ञान अंकगणित गणित का ज्ञान मुझसे ले रहे थे। 

मैं उस करके बरांडे पर ही बच्चों को चटाई बिछाकर पढ़ाया करता ।जब कोई गांव से शहर में जाता ,तो उनको पर्ची लिखकर दे देता। कि यह सामान लाओ करके। और वह बच्चों के पढ़ाई के लिए सारा सामान देहाती और गांव का सामान बेच आते ।इस तरीके से मैंने गांव में एक छोटा मोटा स्कूल सा खोल दिया था।
बच्चों की पढ़ाई कराने की वजह से गांव वाले रोज कुछ न कुछ घर में दे जाते थे ।जिससे मेरी खाने का खर्च चल जाता था ।और ज्यादातर खेतों में काम करने की या फिर लकड़ी चुनने के जैसे हार्ड वर्क कम ही करना पड़ता।

मैं, यहां अंधों में काना राजा था। मैं भी अपने लिए भी कुछ किताबें उनसे मंगा लेता था। जिनकी मैं बैठकर पढ़ाई करता ।कोशिश करता कि उनसे कुछ सीख लूं।
लेकिन स्कूल जा कर पढ़ाई करना। कॉलेज जाकर पढ़ाई करना ।और सिर्फ किताबें लेकर उनका अध्ययन करना ।यह में जमीन आसमान का फर्क था।
मैं सीख तो रहा था। मगर इतना परफेक्ट नहीं हो पाया था। मैं अपनी नजर में अपने आप को परफेक्ट बनाने की कोशिश करता।  उन बच्चों के लायक बनाने की कोशिश करता। कि उन बच्चों को मैं अच्छी तरह से शिक्षा दे सकूं।

मैं शिवाजी के बारे में पढ़ाता तो मेरे खून में जैसे उबाल आने लगता। मैं राणा प्रताप के बारे में पढ़ाता।तो मुझे लगता कि मैं कहीं आपने आपने गलत कर रहा हूं ।मुझे इस वक्त बदले के लिए मैदान में उतर जाना चाहिए था। लेकिन मैं सही वक्त का इंतजार कर रहा था।

 जिस वक्त मेरे हाथ में कुछ हथियार भी हो। और करने की ताकत भी हो। मैं आत्महत्या करना  नहीं चाहता था। कुदरत ने मुझे बचाया था- तो सिर्फ उन लोगों के तबाही के लिए। मुझे इस बात का ईल्म था।
और मैं इस वक्त को यूं ही जोश में आकर खत्म करना नहीं चाहता था।
कुदरत ने मेरी जिंदगी बचाई थी। तो किसी मकसद के लिए ।और उस मकसद को कामयाब करने के लिए मुझे, किसी भी हद तक जाना पड़े, मैं जाने के लिए तैयार था।

ईस वक्त भी मेरा घोड़ा, मेरा दोस्त- मेरे साथ में ही था। उसे पालने में मुझे ज्यादा दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ता था ।
क्योंकि यहां झाड ,जंगल घांस के मैदान पेड़ पत्ते खूब थे। मेरे घोड़े के खाने के लिए ।और मैं उसे नदी में लेकर आ जाता  उसे पूचकारता उसे  नहलाता  उसे धोता। फिर घुड़सवारी करता और घोड़े को दौड़ाता  ,फिर वापस  आता। मगर इस दरमिन अपने गांव में कभी नहीं पहुंचा। क्योंकि मुझे पता था यह सही वक्त नहीं था।
ईस दरमियान ,मेरे कथित जीजा जी कई बार शहर गए थे। उनके साथ तीन बार मैं भी शहर गया था। मगर शहरों में जाने के बावजूद भी मुझे हथियारों के बारे में जब दुकान में जाकर मैंने जिक्र किया तो ,मुझे अपनी हैसियत का पता चला। क्योंकि, हथियार बहुत सारे महंगे थे। महंगे हथियार खरीदना मेरे हैसियत के बाहर थी। मैं खरीद ही नहीं सकता था।

मुझे शहरों में रहना ही था। या फिर कोई ऐसा काम करना था। जिससे मुझे ढेर सारा पैसा मिले ,रुपए मिले ।अन्यथा मैं अपने इस बदले की भावना को दिल में लिए ही मर जाता। जैसे मेरे सारे गांव वाले मर गए। मैं भी मर जाता तो किसी को फर्क थोड़ी पढ़ने वाला था।

मगर मैं इस तरीके से मरना नहीं चाहता था। अपने दिल की भड़ास बुझाए बिना  उन कातिलो को नेस्तनाबूद किए बिना मैं मरना नहीं चाहता था। मुझे इंतजार था। सही वक्त का ।जब मुझे अपने आप में आत्मविश्वास हो जाए ।कि मैं अब यह कर सकता हूं। तो फिर मैं आगे अपना कदम बढ़ाने वाला था।
उसके लिए मैंने सारे शारीरिक सिस्टर को बढ़ाने की तो खूब जद्दोजहद की थी मगर मुझे उनका दिलों को ढूंढ निकालना भी था सिर्फ हथियार लेकर मैं कहां चला जाता? किसे ढूंढता ,किसे मारता?
 जिसके लिए मुझे खुद अपने गांव जाना जरूरी था! अपने गांव जहां पर मुझे यह विश्वास था? कि कोई बहुत बड़ी इंडस्ट्री लगी होगी !मुझे वहां पर अपने लिए काम ढूंढना था! उनका पता ठिकाना ढूंढना था!
उनसे मुझे घुल मिल जाना था। उनको पता भी नहीं होने देना था। कि मैं कौन हूं ?मैं किस लिए आया हूं ?किस मकसद से आया हूं? मेरा असली मकसद क्या है?
मैं अपने आप को शारीरिक रूप से सक्षम समझने लगा था। मैं शारीरिक रूप से अपने आप में आत्मविश्वास पैदा करना चाहता था। बिना हथियार के भी दो-चार लोगों को मार गिराने के अपने ऊपर ताकत पैदा करना चाहता था।
इस सिलसिले में मेरा  सहयोग करा। गांव के चाचा भिर्गु ने। भिर्गु चाचा में बहुत वैसे गुण थे। मार्शल आर्ट की और तलवारबाजी के उनके जैसा पूरे गांव में नहीं था ।
छोटा गांव ही सही मगर उनके तलवारबाजी और मार्शल आर्ट के लोग फिदा थे ।अगर वह कहीं किसी बड़े शहर में जाकर अपना मार्शल आर्ट का भी ट्रेनिंग कोचिंग करते तो अच्छा पैसा कमाते।
मगर न जाने किस लिए वैसे गुमनाम गांव में आकर बस गए थे। उनके साथ उनकी एक बेटी रहती थी ।उनकी पत्नी कब की गुजर चुकी थी।
 चाचा से मार्शल आर्ट सीखते वक्त कभी उन्होंने इस बारे की जिक्र नहीं किया ,कि इतने अच्छे मार्शल आर्ट के ज्ञाता होने के बावजूद भी, क्यों इस गुमनाम गांव में आकर बस गए? क्या उनकी मजबूरी थी ?
रही होगी उनकी कोई ना कोई मजबूरी! रही होगी वरना ऐसे गुणी लोग ,ऐसे गुमनाम गांव में आकर, गुमनाम जिंदगी बसर कर नहीं रहे होते।
एक दिन गांव में अचानक मैंने उन्हें देख लिया था ।मार्शल आर्ट के उल्टे छलांग लगाते हुए। पानी में छलांग लगाते हुए।  फिर मैंने उनसे पूछने लगा । आपकी मार्शल आर्ट के गुण में पारंगत कर देते हैं तो आपका मैं  जिंदगी भर आभारी रहूंगा।
गांव के सभी लोग मुझे चाहने लगे थे। क्योंकि मैं गांव के बच्चों को स्कूल की तरह रोज पढ़ाया करता था ।और मेरा व्यवहार गांव वालों के प्रति देखकर सभी मुझसे प्रभावित थे। और गांव वालों के बच्चों की उन्नति के लिए जैसे मैं उन को पढ़ाता था। उससे खुद भिर्गु चाचा भी प्रभावित थे ।इसीलिए शायद वह मेरी बातों पर गौर करने लगे। उन्होंने  कहा बेटा इसमें मेहनत बहुत है। लेकिन ,याद रखना किसी गलत काम के लिए प्रयोग में नहीं लाना।

अपनी मार्शल आर्ट का घमण्ड में  गुंडागर्दी मे ना उतरना। किसी भी बेगुनाह को बचाने के लिए इसे प्रयोग में ला सकते हो। अपनी सुरक्षा के लिए ऐसे प्रयोग में ला सकते हो। लेकिन किसी की जान लेने के लिए या किसी और को परेशान करने के लिए कभी भी उसे प्रयोग में मत लेना।
मैंने उन कसम उठाई थी कि मैं कभी मैं किसी बेगुनाह इंसान को मारने के लिए। या फिर अपनी ताकत के रौ जमाने के लिए, या गुंडागर्दी के लिए, मैं किसी पर इस मार्शल आर्ट का प्रयोग नहीं करूंगा।
मैं जब भी इसका प्रयोग करूंगा। अपने आप में सुरक्षा के लिए, मैं जब भी उसे  प्रयोग मे लाऊंगा  गुनहगार को नेस्तनाबूद करने के लिए। वरना मैं कभी भी किसी सीधे- साधे इंसान के प्रति इसका प्रयोग नहीं करूंगा!

मुझे अब विश्वास हो गया था। कुदरत ने मुझे इसलिए बचाया था कि मैं उन 700 बेगुनाह लोगों की मौत का बदला ले सकूं। कुदरत ने मुझे इसीलिए जिंदा रखा था- कि मैं उनकी वोटीवोटी कर सकूं ।उन्हें उनकी औकात बता सकूं।
कहते हैं ना किसी चीज को अगर इंसान तहे दिल से किसी की भलाई के लिए चाहता है ।तो पूरी कायनात उसको सहयोग करने के लिए सामने खड़ा हो जाता है। यही मेरे साथ हो रहा था। मुझे जिंदा रखा कायनात ने! मुझे इस गांव में भेजा कायनात ने! मुझे अब भिर्गु चाचा जैसे लोगों से मिलाया इस कायनात ने!
अब मुझे लगने लगा था कि मैं अपने मकसद में जरूर कामयाब हो जाऊंगा।
अब मुझे अपने मकसद में कामयाब होने के लिए कोई रोक नहीं सकता। इन सातसौ लोगों की मौतें जाया नहीं जाएगी। उन 700 लोगों की चीख पुकार मेरे, घरवाले, मेरे मां-बाबा की चीख-पुकार जाया नहीं जाएंगी। उन्होंने मुझे भागने के लिए कहा था ,बचकर भागने के लिए। शायद इसलिए भी हो सकता था।

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रचनाएँ
कत्ले गारत
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बदले और खून से सनी खूनी सफर सफर का इतिहास है ।जिसे हम कत्ले गारत का नाम देकर यहां प्रस्तुत करना चाहते हैं।
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पुष्पा को समझ आ चुका था। जिंदगी के बारे में। पुष्पा को इस बात की समझ आ गई थी। जो जिंदगी में जीने के लिए पैसे की भी जरूरत होगी। जो मैं शहर जाकर ही कमा सकता था। गांव में रहकर तो हम सिर्फ खा पी सकते थे।

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मैं जिस रास्ते से इस गांव में आया था। उसी रास्ते से ही मुझे लौटना था। इतने सालों के बाद भी मैं वो रास्ता कभी भूल नहीं पाया था। वह नदी पार करना ,नदी पार करके फिर इस गांव में आना ,जब मैं कभी भूला नहीं प

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वे चार लोग थे ।और मैं उनके बीच में एक अकेला लेटा हुआ था। और मेरी नींद को देखते हुए उन लोगों ने जागाने के लिए एक ने मुझे छू करा आवाज लगाया था।उनकी आवाजों से मेरी आंखें खुल गई थी। मैंने नजर इधर-उधर घुमा

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मुझे पता था ।मेरा रास्ता आसान नहीं था। मुझे यह भी पता था। जिन चार लोगों पर मैंने हमला किया था। वह लोग यकीनन कोई न कोई मेरे पीछे आने वाले थे। उन के मुताबिक वह सिर्फ चार नहीं थे ।पूरा कुनबा था। उन

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बीच में आए इन सब लोगों से मैं खुद को बचाना चाहता था।। मेरा मकसद अपने गांव तक पहुंचना था। यह देखना था ,उस कत्ले गारत में कोई बचा तो नहीं ।या यह जानना था -कि कत्ले गारत के बाद वहां इंडस्ट्री बसा है

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मुझे बहुत आगे निकलना था। वक्त बहुत जाया हो चुका था।मैंने आसमान की ओर देखा। सूरज क्षितिज पे कहीं छुपने की तैयारी कर रहा था। मुझे अपने गांव आगे बढ़ना था। और रात के रुकने की व्यवस्था भी करना था। मेरा घोड

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मकान के बाहर सारागांव जमा हो गया था। सारा गांव ही एक कुनबा था। गांव के लोग में एकता थी एक स्वर बद्धता थी ।जो वहां जमा होने पर दिखती थी।गांव के बड़े बुजुर्ग की आंखों में आंसू थे। बच्चे भूल से गए थे। उस

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उन के अंदर की ज्वाला को मैंने भड़काने की कोशिश की। उनके अंदर की ज्वाला शायद शांत हो चुकी थी ।या कुछ न कर पाने की वजह से वह चुपचाप हो गए थे।शायद वह नहीं चाहते थे ,कि जो बचे खुचे हैं, उनको कोई नुकसान पह

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मुझे अब भटकने की जरूरत नहीं थी। गांव वालों को पता था । वह पुराना गांव हमारा कहां पर है.. किस रास्ते से वहां पर जा सकते हैं!मैं अकेला ही उस ओर जाने के लिए तैयार था। मैं सबसे पहले उस धरती का दर्शन चाहता

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जब मेरी आंखें खुली, चट्टानों में बैठे-बैठे मुझे नशा सा छा गया था। जिसकी वजह से मैं वहीं पर लुढ़क गया था। करीब चार-पांच घंटे यूं ही मैं बेहोश सा पड़ा रहा। जब मेरे घोड़े ने मुझे

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मैं पानी पीकर और हाथ मुंह धो कर अपने गांव की ओर मुड़ा। चारों तरफ बाउंड्री लगी हुई, बीच में कोई इंडस्ट्री बसी हुई थी। बाउंड्री पत्थरों से दीवार बनाई गई थी इस पार से उस पार देख पाना मुमकिन नहीं था

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मैं अपने गांव में था। जो अभी फिलहाल इंडस्ट्री में तब्दील हो गई थी। और मेरे अपने लोग यहां कोई नहीं था। मेरा अपना मकान भी नहीं था।मैंने गांव की मिट्टी को अपनी मुट्ठी में लिया दिल से लगा लिया। सच म

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कामदारों से मुझे सिर्फ इतना ही पता चल सका था, कि वह अरबों पति लोग थे ।उनके पास पहुंचना मुश्किल काम था। मैं साइबर में बैठकर,इन लोगों का रिहायश, ऑफिस पता लगाना चाहता था। यूं तो वे लोग यहां भी

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मार्गरेटा से टोपला बस्ती, ज्यादा दूर नहीं था। करीब 20 किलोमीटर का रास्ता था । ऑन द रोड।अगर मैं अपने घोड़े पर ही टोपला बस्ती पहुंचता तो, लोग यही समझते ,कि कोई बैंड बाजा बारात वाला ही होगा। जो किस

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24 जनवरी 2023
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अंधेरी रात थी। आसमान में तारे चमक रहे थे। मगर टोपला बस्ती का यह एरिया ,रोशनी से जगमग आ रहा था। ऐसा लगता था जैसे आसमान के सारे तारे जमीन पर उतर आए हो। और कोठियों में जगमगा रहे हो।जहां मैं ठहरा था , रिस

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कत्ले गारत 30

25 जनवरी 2023
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मौसम इतना ठंडा नहीं था। फिर भी मैं अपने घोड़े को खुले छत में नहीं रख सकता था। रात को रुकने के लिए उसे भी छत चाहिए थी । घास चाहिए था ।और खाने के लिए दाना भी चाहिए था ।पानी भी चाहिए था। उसकी फिकर मुझे अ

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कत्ले गारत 31

29 जनवरी 2023
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अभिषेक ने जो कार्ड दिया था। उसमें सिर्फ उसका नाम और फोन नंबर लिखा हुआ था।और कहा था ।दो दिन बाद कॉल कर लेना। आज तीसरा दिन था। मैंने अभिषेक को कॉल किया था।अभिषेक निहायत ही शरीफ और ईमानदार शख्सियत था। और

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कत्ले गारत 32

30 जनवरी 2023
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मैंने ,अपने घोड़े को अस्तबल में ला के बांध दिया था। अस्तबल में घोड़े के लिए चारे की भी परेशानी नहीं थी।घोड़ा मवेशियों के साथ खुश रह सकता था। मैंने अपने कमरे की सफाई के लिए चाची को बोल दिया था। कमरा सा

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कत्ले गारत 33

31 जनवरी 2023
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कहते हैं - गुनाह कभी छुपता नहीं ।कभी न कभी गुनाह, नासूर बन के दिल को ,कचोटने लगती है।यह कुदरत का न्याय है। बदला लेने के लिए कुदरत ही तैयार करती है। मजलूम पर किया गया जुल्म कभी खाली नहीं जाता। उभ

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