जब वह गांव वाला अपने हाथों में गिलास जैसा कुछ सामान लेकर आया था ।वह छोटा सा लौटा था ।और उसने बैटते ही पूछा -क्या तुम लाओ पानी खाओगे?
मैं समझ गया था लाव पानी एक तरह की शराब होती है। जो चावल से बनती है ।और पीने में स्वादिष्ट भी होता है ।शरीर के अंदर के दर्द को खत्म करता है। प्यास को बुझाता है। थकान को मिटाता है। और थोड़ा बहुत नशा भी करता है।
वह फिर बोला -अगर नहीं पीना है तो कोई बात नहीं !इसे मैं पी लूंगा। मैं सोच रहा था। जब तक खाना बन जाता- तब तक तुम इसे पी कर लोटे रहो।
मैंने उससे इनकार करने से अच्छा पी लेना ही ठीक समझा। मैं बोला -कोई बात नहीं ,दे दो!
फिर वह भर-भर कर मुझे देता रहा और मैं पीता गया। कुछ देर में सच में मेरे को झबकि लगने लगी थी। रात भर का मैं सोया न था। मेरे चेहरे से थकान टपक रही थी। मुझे बहुत अच्छा महसूस हो रहा था। मैं उसे बोला-क्या मेरे घोड़े को भी मिल सकता है?
वह बोला हां मिल जाएगा ।घोड़े के लिए भी है। वह भी थका होगा, वह भी ठीक है आराम कर लेगा।
मैंने महसूस किया, उसने फिर अपनी बेटी को आवाज लगाई। बापी!बापी!
छोटी लड़की भागती बाहर आई पुछी- क्या बात है बाबा?
वह बोला- छिक्कल जो बचे हुए हैं ,उसे घोड़े को डाल दो।
वह लड़की अंदर भागती हुई गई और भागती अंदर से बाहर आई। उसके हाथ में एक कढ़ाई था। जिसमें कुछ भरा हुआ था। लाकर अपने पापा को दे दी। बोली -बाबा मुझे घोड़े के पास जाने से डर लगता है।
कोई बात नहीं बेटा मुझे दे दो! कहता हुआ उसने कढ़ाई खुद पकड़ ली। और घोड़े के आगे लेकर उसके पास ही रख दी।
मेरा घोड़ा छिक्कल को बड़े स्वाद से खाने लगा।
मुझे खुशी थी कि मेरे घोड़े को भी कुछ आराम मिल जाता। क्योंकि इतनी लंबी दौड़ तेज रफ्तार में भागने के बाद ,यु भी मेरा घोड़ा काफी थक चुका था।
बैठे-बैठ जब मुझे झबकी आने लगी तो ,वह मुझसे बोला -कोई बात नहीं ,आप लेट लो। मैं आपको एक तकिया मंगवा देता हूं। कहता हुआ लड़की से बोला- वापी! भाई साहब के लिए एक तकिया ला दे ।जब तक खाना बन जाता है भाई साहब यहीं पर लेटे रहेंगे।
सच में मैं वहां लेट गया था ।और छोटी बच्ची ने अंदर से तकिया लेकर मेरे सिरहाने रख दिया था ।मैंने तकिया आपने सिर के नीचे लगा लिया था ।फिर मैं खर्राटे भरने लगा।
जब मैं जागा तब लगभग सुबह के 9:00 बज चुके होंगे ।क्योंकि सूरज की रोशनी कुछ तेज हो गई थी। ठंडक भी कम हो गया था। और बच्ची मुझे जगा रही थी। वह बोल रही थी- अंकल! अंकल! जाग जाओ खाना बन गया है!
मैंने आंखें खोली तो बच्ची मुझे जगा रही थी। और मेरे सामने एक औरत खड़ी थी। जिसके हाथ में एक तश्तरी और कुछ और बर्तन थे। उसने मेरे आगे वह बर्तन और तश्तरीया सजा दी ।जिनमें सब्जियां और चावल बना हुआ चावल रख दिया था ।और हाथ धोने के लिए उसने मुझे पानी का लोटा थमा दिया था। बोली- पहले हाथ धो लो !फिर खा लेना।
भूख से मेरी हालत खराब थी। इसीलिए मैं हाथ में जरा सा पानी डालकर धोने के बाद खाने पर टूट पड़ा था। खाना इतना स्वादिष्ट मुझे जिंदगी में कभी नहीं लगा था। मुझे आज पता चला था। खाने का स्वाद भूख से होता है ।ना कि खाने के बनाने के तरीके से। सच में इतना स्वादिष्ट मुझे आज तक कोई भोजन नहीं लगा था।
मैं खाता रहा। और वह औरत मेरे सामने बैठकर मुझे देखती रही ।जब तक मैं खाता रहा मेरे खाना खत्म होने से पहले। वह फिर मुझे चावल परोसती रही।
इतना खाना तो मैंने शायद 2 दिन में खाया होगा। लेकिन ,आज मैं इतना खाना एक समय में खा रहा था। जब मैंने खाना पूरा खा लिया तब मैंने अपने घोड़े की ओर देखा। घोड़ा मुझे देख कर हिनहिना रहा था। जैसे कह रहा हो- बच्चू तुमने तो खाना मार लिया। मेरे लिए तुमने कुछ भी नहीं छोड़ा।
मैं घोड़े की ओर देखकर बोला ।अभी तुझे मैं छोड़ता हूं ।मैदान में। बहुत बड़ी मैदान है वहां घास चरकार पेट भरने पर फिर वापस आना- समझा! दूर मत जाना! समझ गया ?तब तक आराम कर लेता हूं ।उसके बाद फिर चलेंगे। घोड़े के पास पहुंचा -और उसके पीठ पर लगा हुआ सारा सामान मैंने खोल कर रख ली ।और घोड़े को थपथपा कर बोला 1 घंटे के अंदर आ जाना।
मेरा घोड़ा बहुत समझदार था। कही हुई बातों को समझ जाता था ।और मेरा मुरीद था। मैंने घोड़े को चरने के लिए छोड़ दिया था ।मैंने गलती करी थी। जब मैं
सो गया था ।तब उसे छोड़ देना चाहिए था। जब मैं सो रहा था घोड़ा आराम से चरके वापस आ जाता । मेरा घोड़ा मेरी कही गई बातों को समझ जाता था। जैसे छोटे बच्चे को समझाने पर समझ जाते हैं ।वैसे ही वह सारी बातों को समझ लेता।मगर अब क्या करें ?समय तो गुजर चुका था।
मुझे नींद बहुत आ रही थी। शायद चावल पर भी नशा था। लाव पानी में भी नशा था। और रात भर का ना सोया होने की वजह से भी मुझे नींद ज्यादा आ रही थी।
कुछ दिन पहले मेरे पास मेरे साथ जो घटना घटित हुई थी! ऐसे में इंसान या तो रो रो के पागल हो जाता है। या फिर सोच सोच कर पागल हो जाता है। लेकिन मैं अपने पर धौर्य भरा हुआ था। मैं सोच रहा था, मैंने अपनी कुछ समस्याओं को सुलझा लूं फिर देखता हूं क्या करना है।
उस समय मेरी सबसे बड़ी समस्या यह थी। कि दुश्मनों से बच के निकलना फिर मेरे को भूख लगी, फिर भूख को निपटाना, अब जब मुझे नींद आ रही थी तो मुझे अभी सोना था। जब नींद पूरी हो जाएगी। फिर मैं सोचने के लिए तैयार होऊंगा कि मुझे आगे क्या करना है।
मुझे पता था। मेरी आगे की जिंदगी बहुत कठिन होने वाली थी। मुझे हर पग फूंक-फूंक कर चलना था।
हर इंसान को मुझे परखकर अपने दोस्त या दुश्मन जानकर ही उस से दो चार होना था।
मैं इतना भी सक्षम नहीं था। कि मैं हर इंसान से लड़ पडूं। मैं अपनी क्षमता को समझता था। मैं अपनी क्षमता को अंडर एस्टीमेट भी नहीं कर रहा था । मेरी आगे की जिंदगी कांटे ही कांटे भरे थे।
मुझे अपनी बीती जिंदगी के बारे में सोचने का भी अभी वक्त मिला नहीं था।
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