मकान के बाहर सारागांव जमा हो गया था। सारा गांव ही एक कुनबा था। गांव के लोग में एकता थी एक स्वर बद्धता थी ।जो वहां जमा होने पर दिखती थी।
गांव के बड़े बुजुर्ग की आंखों में आंसू थे। बच्चे भूल से गए थे। उस रात ज्यादा बातें नहीं हुई। मैं भी थका हुआ था ।
मामा बोले -अब सब अपने अपने घर चले जाओ। अग्नि लम्बा सफर तय करके आया हुआ है। बहुत दूर से आया हुआ है ।थका हुआ है ।खा पी के सो लेगा।कल बातें करेंगे।
मेरे घोड़े को पीछे ले जाकर जहां पर गाय बंधे थे वहां पर मामा ने बाध दिया था।
और घोड़े को भी चारा डाल दिया था। उसको घास और पानी सानी कर देने के लिए मैंने मामा को कह दिया था।
मैं कहां पनाह मांगने की सोच रहा था। मुझे अपना ही घर मिल गया था। मेरे रिश्तेदार मुझे मिल गए थे। जो भी हो मगर वह जलजला वह कत्ले गारत भूल नहीं सकता था मैं।
और मेरे जिंदगी का मकशद अभी बहुत दूर था।
मामी के हाथ के बनाए हुए खाना खाकर मैं सो गया था। मैं खुश था, मामा और मामी दोनों खुश थे।
उनका कोई बच्चा नहीं था ।बच्चे भी उस गारत में मारे गए थे। जल गए थे ,जला दिए गए थे।
भागने में मामा और मामी कामयाब हो गए थे। गांव के कई लोग भागने के बाद इकट्ठे हुए थे। फिर यहां गांव बसाने के लिए उन्होंने सोचा था। उस समय उनके हाथ में कुछ नहीं था। खाने तक, पहनने तक का कोई सामान नहीं था ।कैसे बसाया होगा?
क्या खाया होगा? और अपने बच्चों को क्या खिलाया होगा?
सोच कर ही दिल दहल जाती थी। जंगल पेड़ पौधे। को काटकर फिर से खेती की जमीन बनाई थी। पहाड़ों में सीढ़ीदार खेत बना हुआ था। और रिहायश कुछ समतल भूमि पर बनाया गया था।
कूल 31कच्चे मकान थे। सभी ने मिलकर पहाड़ों को काट काट कर खेती लायक जमीन बनाया था ।पानी की व्यवस्था तो पहाड़ों से झर्ने झरते थे ।उसी के पानी पिया जाता था।
उसी झरने पर पाइप लगाकर गांव में पानी लाया गया था। झरना सालों भर चलता रहता था। फिर भी झरने के पानी को इकट्ठा करने के लिए पहाड़ में ही एक बहुत बड़ा टंकी का निर्माण किया गया था। अगर कभी झरने का स्रोत खत्म हो जाता तो ,यह लोग पानी के बिना मर जाते।
या फिर पानी के लिए दूसरा कोई व्यवस्था करने की जरूरत पड़ती।
आरंभिक स्थिति में हालत खराब थी ।मगर अब सुधर गया था। पहाड़ों में अनानास , अदरक ,और हल्दी , संतरे की खेती खूब होती थी।पहाड़ों में अक्सर मक्के, मड़ुवा और एक प्रकार के धान होते थे ।जो बिना पानी के भी हो जाते थे। बोया जाता था।
जिंदगी को फिर से पटरी में लाने के लिए, न जाने कितने जद्दोजहद करनी पड़ी होगी। बच्चों का भूख मिटाने के लिए न जाने क्या-क्या करना पड़ा होगा ।जबकि उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं था।
सबसे पहले तो पानी और खाने की जरूरत पड़ती है। कपड़े और रिहायश तो बाद की बात होती है।
क्या वहां से निकलते वक्त उनके पास कुछ पैसे पड़े हो? या फिर पैसे लेकर ही पलायन करें हो।
जलजले से निकलते वक्त कत्ल गारत से बचकर भागते वक्त यकीनन जो भी निकला होगा। उन्होंने और नहीं तो पैसे ,गहने ,जेवरात लेकर निकले होंगे ।उसी से कुछ गुजारा चला होगा ।मगर, यहां से भी शहर दूर था। उनकी नजरों में उनकी जानकारी में ही नौगांव में फैक्ट्री बसी होगी।
मैंने मामा से पूछा था। कि हमारा वह पुराना गांव। यहां से कितनी दूरी पर होगी?
मामा ने बताया था यहां से सवारी तो होती नहीं है ।सिर्फ घोड़े पर जा सकता है। छोटी सी पगडंडी वाला रास्ता है ।जाने के लिए यहां से एक घंटा करीब पैदल चलने के बाद, हम गाड़ी पकड़ने के लिए रास्ते पर निकलते हैं। फिर वहां से कोई सवारी पकड़कर शहर में जाकर अपना सामान बेचते हैं। यहां से रास्ते तक ले जाने के लिए मुश्किल ही होता है। मगर क्या करें। ले जाना जरूरी है।
सामान लाने ले जाने के लिए खच्चर पाल रखे हैं। घोड़े की नस्ल के होते हैं। खच्चर -गधे पर लादकर शहरी आबादी को छूने के लिए सड़क पर पहुंचना जरूरी होता है। उसके बाद कुछ सामान तो वही सड़क के आस-पास ही बिक जाती है। और ज्यादा सामान हो तो फिर वहां से बस में लादकर शहर ले जाना होता है।
जब तक गांव के अंदर तक चौड़ी सड़क नहीं आ जाती। तब तक के लिए दिक्कत तो है, लेकिन बच्चों को पालना है ।जिंदगी गुजारनी है। तो दिक्कतों का सामना तो करना ही पड़ेगा।
मगर मैं इन सब बातों से दूर था। खेती किसानी मैं तो उस कत्ले गारत का बदला चाहता था।
अब इस बात के लिए मुझे गांव वालों को भी तैयार करना था। मामा को भी तैयार करना था। क्योंकि बदले की कहानी अब लिखी जाने आने वाली थी। अब फिर से वही कत्ले गारत की कहानी दोहराई जाने वाली थी।
आगले दिन सुबह से ही जैसे पंचायत लग गई थी। सभी लोग चबूतरे में ईकट्टा हो गए थे।
सुबह ही मधेसियों को पानी सानी करके सभी इकट्ठा हो गए थे। सुबह से ही जैसे पंचायत बैठ गई थी।
31 मकानों के लोग औरतें बच्चे सारे एक ही जगह इकट्ठे हो गए थे। पूरा का पूरा घर खाली करके सारे यहीं पर इकट्ठा हो गए थे। मेरी बातों को सुनने के लिए।
शहर से दूर होने की वजह से ,चोर उचक्के डकैती का डर नहीं था। सभी लोग चबूतरे पर कट्ठा हो गए थे। घरों से बैठने के लिए मूडा , कुर्सियां भी आ गई थी ।सभी मिलजुल कर बैठ गए थे ।बच्चे आसपास खेलने लग गए थे।
गांव के सभी लोगों को एक जगह इकट्ठा कराने का मेरा ही विचार था। मामा से बोलकर मैंने गांव वालों को इकट्ठा चबूतरे पर बुलाने के लिए कह दिया था। मामा ने सुबह ही सभी के घरों में यह बात बताई थी कि सभी
पानी सानी करने के बाद, दोपहर को, दोपहर से पहले ही, चबूतरे पर इकट्ठा हो जाएंगे। बैठकर कुछ बातें होंगी। विचार-विमर्श होगा। कुछ हल निकलेगा ,कुछ आगे के बारे में सोचा जाए।
भविष्य की योजनाएं बनाई जाएगी। अभी मैं यहां पर नया था; लेकिन इतना भी नया नहीं कि ,कोई मुझे पहचाने ही न। सभी अपने गांव के लोग थे। सभी को मेरी बातें पसंद आनी थी।
क्योंकि, मैं जो भी करने,कहने वाला था, वह सिर्फ गांव के लिए नहीं। उन बर्वाद हुए लोगों के लिए भी करना था मुझे।
भविष्य की योजना तैयार करनी थी मुझे। भविष्य में क्या करना है, उसका लेखा-जोखा सबको बताना था।
मुझसे बड़े तो यहां कई लोग थे। आधी आबादी से ज्यादा लोग तो मुझसे बड़े थे, बुजुर्ग थे। कुछ बच्चे थे ,कुछ औरते थी।
मेरे मामा ही यहां के मुखिया जैसे थे ।सभी उनके बातों को मानते थे ,सुनते थे।
पंचायत सी बैठी हुई थी। मामा ने सब को संबोधित करते हुए कहा। कि भाइयों हम सारे किसी घटना के मारे हुए हैं। वह घटना प्राकृतिक ना होकर ,वह घटना इंसानों द्वारा लाई गई घटना है। वह घटना दुर्घटना हमारे पर थोपी गई है ।वह दर्दनाक हादसा, दर्दनाक जलजला ,दर्दनाक कत्ले गारत हमारी जिंदगी का सबसे भयानक हादसा ।
मगर ,अब मैं यह सोचता हूं। कि हमें उन सबको पीछे छोड़, आगे बढ़ना होगा हमें अपने बच्चों के भविष्य के बारे में भी सोचना होगा।
हम लोगों ने जिन जिन को खोया है। हमने जिन लोगों को खोया है। हमने जो खोया है। उसके बारे में भी सोचना होगा। हमें फिर से एक बार बैठ कर इस बारे में सोचना होगा।
मैं मामा की बातों को काटता हुआ बोला-हमारा एक बसा बसाया गांव था ।हंसते खेलते लोग थे । खुशहल बच्चे थे।बढ़िया उपज होती थी। बढ़िया काम चलता था ।बच्चे भी खुश थे। बड़े भी ,अपने काम पर खेती-बाड़ी पर लगे हुए थे ।हमारा सामान शहरों में जाता था। हमारी पैदावार शहर में जाती थी ।बिकता था और उससे हमारी रोजी-रोटी चलती थी। हमें किसी तरह की दिक्कत नहीं थी।
हमें, उस मुकाम पर पहुंचने के लिए, हमने, हमारे पुरखों ने ,हमारे बाप दादाओं ने खूब मेहनत की; मगर हमने कभी किसी का कुछ बिगाड़ा! न हीं हमने कभी किसी का खाया। सरकार ने हमारी सहूलियत के लिए कुछ नहीं की ।फिर भी हमारा सब कुछ लूट लिया।
मगर ,कुछ दहशत गर्दो ने ,कुछ लालची लोगों ने ।प्लैटिनम के नाम में जब हमने अपने गांव को वहां फैक्ट्री बसाने के लिए ,हमारे बुजुर्गो ने इनकार किया ,तो उन्होंने उस पर गांव को भी तहस-नहस करने का योजन बनाया ।और गांव में टैंकर लाकर। टैंकर से पेट्रोल छिड़ककर पूरे गांव को ही उन्होंने, तहस-नहस कर दिया। जो भागने की कोशिश कर रहे थे ।उनको कत्ल कर दिया ।और उसी आग में झोंक दी।
मैं चाहता हूं -वह जो भी थे ,जिन्होंने हमें ऐसी स्थिति में पहुंचाया। हमारे लोगों का कत्ल किया । हमारे लोगों को मारा ।हमारे मकान को जलाएं। हमारे सुख सुविधा संपन्न गांव को, राख में तब्दील कर दिया। हमारे अपने रिश्तेदार भाई- बंद ,बेटे ,मामा ,चाचा जो भी थे सबको कत्ल कर दिया।
जो हम बचे हुए हैं ।उनको एक कसम लेनी है। कि उनको हमने धूल चटा नी है। नेस्तनाबूद करनी है। उन्हें उनकी किए की सजा देनी है। मैं यही कहना चाहता हूं। मैं बदले के बिना जिंदा नहीं रह सकता । और उन्हें जिंदा देख भी नहीं सकता। शायद कुदरत ने मुझे बचाया भी ईसी लिए है।
मेरी बातों को सुनकर सभी गांव वाले खामोश हो गए थे। धधकती हुई ज्वालामुखी तो उनके सीने में दहक रही होगी।
मगर शायद किसी में इतनी हिम्मत नहीं थी ।इस बात को खुलकर कह सके। खुल कर जंग का ऐलान कर सकें।
मैंने सभी के चेहरे में एक एक बारी नजर दौड़ाने लगा। सबके चेहरे में आग था
सबके चेहरे खामोश थे ।कोई बोल नहीं रहा था। *******