गांव के लोगों की खासियत होती है- वह जो थोड़े में संतुष्ट हो जाते हैं। वह नहीं सोचते कि वह कार पर चले। वे यह नहीं सोचते कि बहुत बड़ा बंगला बने, वे नहीं सोचते कि बहुत बड़ी कोठी हो ।बस दो वक्त की रोटी बीवी बच्चों का प्यार ।बच्चों का मुस्कुराता चेहरा देखकर- खेतों के लहलहते धान और गेहूं को देखकर- अपने फसलों को देखकर -किसान खुश हो जाता है। किसान की खुशी उनकी बच्चों की मुस्कान और खेतों के लहलाते फसल होते है।
बला उनके सर से टल गई थी ।इंडस्ट्री वाली बात कही पंच सी गई थी। गांव वालों किसान चाहते तो यही थी।
वो रात बड़ी भयानक रात थी। गांव में खाना पीना खाने के बाद 9:00 बजे तक सभी सो जाते हैं। जो इतने दुखी होते हैं जो पढ़ाई करते हैं। वही थोड़ी देर तक जागकर रहते हैं। अन्यथा सारे थके हारे किसान 9:00 बजे तक सभी सो जाते हैं। करीब 10:00 बजे के बाद सारा गांव ऐसा हो जाता है, जैसे अंधकार में डूब गया हो। पहाड़ी की तलहटी में बसा हुआ वह गांव ,बड़ा खूबसूरत गांव ।रात के अंधेरे में उस दिन डूबा हुआ था।
जिस दिन कत्ले गारत हुई ।जिस दिन जलजला आया -उस दिन भी सारा गांव सो चुका था। कि किसी को पता भी नहीं था। कि आगे क्या होने वाला है ।आज की रात क्या होने वाला है ।हम भी सो चुके थे। बेफिक्र रोज की तरह।
अचानक कहीं गाड़ियां आई। चारों ओर से सड़कों से घिरा हुआ गांव, चारों ओर से गाड़ियों से घिर चुका था। उस समय यह किसी को पहचान में नहीं आया कि किसके गाड़ियों से गांव गिरा हुआ था?
बड़ी-बड़ी गाड़ियों में कौन लोग आए थे? क्या वह सरकारी नुमाइंदे थे? या फिर सर इंडस्ट्रियलिस्ट लोगों लोगों ने उस गांव को तहस-नहस करने के लिए, गुंडों की फौज भाड़े पर ले आए थे!
अचानक यूं लगा जैसे गर्मी बढ़ गई हो। यूं लगा जैसे घर के अंदर ही आग घुस गया हो! अचानक यूं लगा जैसे अंदर ही ज्वालामुखी फूट पड़ा हो।
मेरे बाबा अचानक चीख पड़े। आग ..आग.. आग ..आग । और सारे लोग गांव के लोगों में हाहाकार मच गई। बाबा आग में झुलस चुके थे। मैं बाबा बाबा मां मा चीखता रहा ।लेकिन पता नहीं आगने मेरे को क्यों नहीं पकड़ा। मैं न जाने क्यों कर बच गया। बाबा और मां चीखते रहे।
आग !भाग जा निकल जा। भाग जा निकल जा ।
मां भी चीख रही थी। मैं उनको बचा नहीं पा रहा था। बाबा बोले भाग जा। भाग जा। अग्नी भाग जा। अग्नि भाग जा तू। यहां से भाग जा।
मेरा ध्यान उस समय अचानक मेरे घोड़े की ओर गई। उस दिन गलती से मैं थकान की वजह से घोड़े के पीठ से रकांब उतार ना भूल गया था। और उस वक्त की वह मेरी भूल मेरे काम आ गई थी।
मैंने घोड़े को और बकरियों को भी खोल दिया । मगर घोड़े पे सवार होकर मैं घोड़ा जिधर ले आया उधर की और ही भगता रह गया।
मैंने महसूस किया। जो भाग रहे थे ।बाहर जो गुंडे खड़े थे गांव के बाहर होने मार-मार कर आग मे धकेल रहे थे। मगर मैं घोड़े में सवार होने की वजह से मेरे पीछे भी कई घुड़सवार पीछा करते रहे। मगर मेरे बहुत दूर निकल जाने के बाद वह मेरे पीछे आना छोड़ दिए थे। शायद।
ऐसा मेरा अनुमान था। इसके अलावा वहां क्या घटना घटित हुई है? मुझे और कुछ नहीं मालूम था!
मेरा गांव तीन ओर से पहाड़ियों से घिरा हुआ था। और एक और से रास्ता निकलता था नदी पहाडो की तलहटी तलहटी से होती हुई गांव का चक्कर लगाती हुई बाहर निकल जाती थी।
रास्ता भी नदी के साथ-साथ ही बाहर निकलती थी। बीच में कई रास्ते थे गांव के अंदर आने जाने के लिए।
रास्ता जो निकलता था वह पूरब की ओर निकलता था। पहाड़ों में जाने के लिए नदी और पार रास्ते के बीच में कई पुलें बनाई गई थी।
कई लोग जो बचकर निकले होंगे वह पहाड़ी की ओर चले गए होंगे कई लोग निकले होंगे जो पश्चिम की ओर भी निकल गए होंगे लेकिन मेरे घोड़े ने रास्ता रास्ता बिल्कुल पूरब की ओर दौड़ा दिया था।
गांव में हाहाकार मच गया था ।उन लोगों की जलने की बदबू सी आ गई थी ।मवेशियों की शरीर जल गई थी ।मकाने धूधू करके जल रही थी। ऐसा लग रहा था। जैसे पहाड़ों के बीच में अचानक सूरज आ गिर हो। पूरा गांव आग का गोला सा दिख रहा था।
मैं मां! मां! रो ता राहा बाबा! बाबा! रोता राहा और भागता राहा।
मैं भाग तो रहा था! और रो भी रहा था। मेरी अंतर आत्मा मुझे कचोट रही थी।
मगर मैं क्या करता? मैं कुछ नहीं कर सकता था? और मेरे पीछे मुझे पकड़ने के लिए या मुझे मारने के लिए 2,3 घुड़सवार भागे थे।
क्या वह मुझे मारने के लिए भागे थे ?
या फिर वह मेरे गांव के ही लोग थे! जो बचके मेरे पीछे पीछे भागे थे? मैं बहुत दूर निकल गया था!
मुझे कुछ समझ नहीं आया था। भागने के सिवा। मैं सिर्फ भागे ही जा रहा था।
मैंने अपनी आंखों से मां बाबा को जलकर मरते देखा था। गांव के कई लोग थे जो इस तरीके से झुलस झुलस कर मर गए थे ।200 मकानों का गांव था। 200 मकानों में कम से कम 700 लोग होंगे।
700 लोगों में मुश्किल से कुछ लोग भाग पाए होंगे। वरना सभी वही जल भुन गया होंगे! इतना बड़ा हादसा इतना बड़ा कत्ले गारत और क्या हो सकता था?दुश्मन आग बन के टूट पड़े थे। दुश्मनों ने सोते वक्त घर जलाया था।
सिर्फ जलाया नहीं गया था। उनके घरों पर पेट्रोल डाला गया था। उनके घरों में ज्वलनशील पदार्थों से पहले भिगोकर आग लगाई गई थी। और भाग न पाए इसलिए गुंडे भी लाए गए थे।
कई भागते लोगों को भी पकड़ पकड़ कर उन्होंने जान से मार डाला फिर उसी आग में झोक दिया।
कई जिंदगियां तबाह कर दी ।बूढ़े बच्चे औरत मर्द किसी को नहीं छोड़ा। 2,4 मुश्किल से एक मेरी तरफ भाग खड़े हुए होंगे। दो चार ही लोग बच पाए होंगे ।वह भी नजरें बचाकर जो भाग गए भाग गए। क्योंकि, उस वक्त किसी को इस बात का भी इल्म नहीं था। कि कोई इस तरीके से उनके घरों में पेट्रोल छिड़ककर पेट्रोल डालकर आग लगा देगा। और निकलने वालों का कत्ल करके उसी आग में झोंक देगा।
वह मौत मंजर भयानक था। चारों ओर चीख पुकार । 200 मकानों को एक साथ जब कोई जला देता है। उसमें जल रहे इंसानों की हालत क्या तो सकती है? हम कल्पना भी नहीं कर सकते। ऐसी स्थिति को मैंने भुगतना पड़ा। निकलना पड़ा मुझे।
इस बात ही कल्पना भी करता हूं ,तो मेरे अंदर कमीनो को नेस्तनाबूद करने के लिए मेरा दिल तड़प उठता है। उन्हें उसी तरह ही तबाह करने के लिए मैं तड़प रहा था।
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