मौसम इतना ठंडा नहीं था। फिर भी मैं अपने घोड़े को खुले छत में नहीं रख सकता था। रात को रुकने के लिए उसे भी छत चाहिए थी । घास चाहिए था ।और खाने के लिए दाना भी चाहिए था ।पानी भी चाहिए था। उसकी फिकर मुझे अपने से ज्यादा थी। उस बेजुबान को मैं ,यूंही बांध के रख नहीं सकता था। इसीलिए घोड़े को चराने के लिए ,मैं कोठी के बाउंड्री के बाहर घास के मैदान जहां छोटे-छोटे घास लगे हुए थे ।वहां पर ले आया था। इसी बहाने मैं उन कोठियों का जायजा भी ले सकता था।
कई कोठियों को बाउंड्री से घेर रखा था। और एक मेन गेट बनाया गया था। ऐसा लगता था जैसे कोई सोसाइटी अंदर डिभलप कर रखा हो।
यह एरिया कोठियों का ही था। अंदर एक से बढ़कर एक कोठियां थी। मगर रामेश्वर धनवार की कोठी सबसे बड़ी और बड़ी एरिया पर बनाया गया था।
नेता जो था। प्लैटिनम इंडस्ट्री का मालिक जो था। हमारे देश में जो भी नेता आता है। वह करोड़ों रुपए कमा ले जाता है ।अपनी पुस्तो को सुरक्षित कर लेता है । पैसे के मामले में। और ऐसे नेताओं के बच्चे गलत रास्ते पर निकल पड़ते हैं। क्योंकि उनके पास खर्च करने के लिए बहुत कुछ होता है ।मगर ,काम उनके पास कुछ भी नहीं होता है। या जानबूझकर वह काम करना नहीं चाहते। काम करने की जरूरत ही क्या है? जब घर में पैसे कीअम्बार लगी हो तो।
सुबह का वक्त था। मैंने अपने घोड़े को वहीं पर चरने के लिए छोड़ दिया था। घोड़ा चरता हुआ पीछे निकल गया था। कहीं देर तक जब मैंने अपने घोड़े को नहीं देखा ,तो उसके तलाश में बाउंड्री से सटे, उस उस पिछले भाग की ओर निकल गया था।
बाउंड्री वॉल से ,बिल्कुल कोठियों का पिछला भाग सटा हुआ था। इसका अर्थ बाउंड्री वॉल फांद करके सीधे कोठी के अंदर जाया जा सकता था।
बाउंड्री वॉल यूं ही फांदा जाए ,तब भी कोठी के अंदर घुसा जा सकता था। मगर अंदर की सिक्योरिटी सिस्टम को वाच करना बहुत जरूरी था ।
अंदर के सिक्योरिटी सिस्टम का पता करने के बाद ही , मैं रामेश्वर धनवार के बेडरूम तक पहुंच सकता था। और फिर मैं अपने मिशन को अंजाम दे सकता था।
अभी मुझे रामेश्वर धनवार के कोठी के किसी हिस्से के बारे में मालूमात नहीं थी। न ही मुझे फिलहाल वहां पर कोई नौकरी लग रही थी।
मगर, मुझे तसल्ली थी। कि मैं रामेश्वर धनवार को देख चुका था ।और मैं पीछे हटने वालों में से नहीं था ।क्योंकि मेरे अंदर जो ज्वाला भड़क रही थी ।वह ज्वाला सिर्फ ज्वाला नहीं थी। वह बदले की आग सिर्फ बदले की आग नहीं थी। पूरे गांव वालों के ,बर्बाद लोगों की दिल से निकली हुई आह थी। जो यकीनन धनवार को बर्बाद करने वाला था।
आज मैंने एहसास किया ,की बाउंड्री में लगा हुआ गेट चौपट खुला हुआ था। आने जाने के लिए। सिर्फ एक गार्ड खड़ा हुआ था।
आज के दिन मैं रामेश्वर के रूबरू होना चाहता था ।क्योंकि चाय वाले से मुझे पता चला था। कि आज शनिवार के दिन ,रामेश्वर धनवार के कोठी पर दरबार लगता है। रामेश्वर धनवार दुखियों का दुःख दूर करने के लिए ,सबकी बातें सुनता है ।सब की समस्याओं को सुनकर हल करने की कोशिश करता है। क्यों न मैं आज फरियादी बनकर ही उसके दरबार में पहुंचू! और उसके कोठी के अंदर का हल्का सा जायजा ले लूं।
यह बात सही भी थी। मैं अपनी घोड़े को लेकर ही चाय वाले के पास आया पहुंचा।
घोड़े को मैं चाय वाले की दुकान के पास ही खड़ा किया, घोड़े को बोला -तू ठहर ले यही पर मैं चाय पी लेता हूं। कहता हुआ उसका मैंने गर्दन थपथपाया। और मैं चाय वाले की दुकान में घुसा ।
चायवाला मुझे देखते ही बोला- तुम्हारे पास घोड़ा भी है?
मैं बोला-मैं बोला- हां! यह मेरा घोड़ा नहीं मेरा दोस्त है।
चाय वाला चाय बनाते हुए बोला -दोस्त!
मैं बोला- हा!मेरा खास दोस्त है! जानवर से ज्यादा वफादार इंसान नहीं होता!
इसका मतलब है ,तुम घुड़सवारी भी जानते हो? चाय वाला बोला
मेरे पास घोड़ा है, तो घुड सवारी तो करूंगा ही ना।
चायवाला-तुम इसे अपने गांव से साथ में लेकर आये हो?
मैं -इतनी दूर पैदल का रास्ता! फिर रोड का रास्ता। सारा, इसी घोड़े पर तय करके आया हूं!
चायवाला-अच्छा!?
मैं -अभी मैं इसी घोड़े को घास चराने के लिए लेकर आया हूं। आपने मेरी नौकरी की बात पक्की नहीं करी, लगता है?
चायवाला फिर से बोला- नौकरी तो पक्की हो जाती, तुम्हारी, मगर गारंटर मांग रहा है। कोई पहचानने वाला हो ,जो तुम्हारी गारंटी दे सकें।
कोठी का अंदर का काम नहीं तो ,बाहर का ही दिला दो ।जैसे माली हो गया ,इधर-उधर साफ-सफाई का हो गया।-मैं बोला।
चाय वाला -तुम माली का काम कर लोगे?
गांव का रहने वाला हूं। खेती किसानी करने वाला हूं ।तो माली का काम क्यों नहीं कर लूंगा? मैं तो खुशी खुशी कर लूंगा!
चाय वाला बोला -मैं बात कर दूंगा ।बाकी तुम्हारी किस्मत।
मैं बोला -आज शायद दरबार लगती है ।मैं भी फरियादी बन कर चला जाऊं! तो कैसा रहेगा ?
चाय वाला बोला-चले जाओ! फरियादी बनकर शायद वही पर नेताजी के कोठी पर ही, तुम्हें रख ले। या फिर उनकी इतनी बड़ी फैक्ट्री है। फैक्ट्री में ही, तुम्हें अपॉइंटमेंट मिल जाए।
चाय वाले चाचा ने , मुझे डबल चाय ला के रख दी। साथ में दो बंद बिस्कुट ला के रख दिया।
मैं चाय पी कर उठा। बोला-मैं फरियादी बनकर जाता हूं ।शायद आपके कहे मुताबिक कहीं, काम मिल जाए। मेरा घोड़ा यहीं पर रहेगा। जरा ध्यान दीजिएगा ,कोई खींच कर ना ले जाए। कहता हुआ उठा ।और घोड़े को पास में खूंटी पर मैंने बांध दिया ।और घोड़े को सहलाते हुए बोला ।आ रहा हूं। थोड़ी देर में, यही पर रहना, जाना मत कहीं।
मैं कोठियो के सिलसिले की ओर बढ़ गया था। कुछ ही देर में मैं फरियादियों के लाइन पर खड़ा था। मिनिस्टर का पीए ने मुझे अंदर जाने के लिए कहा।
मैं एक फरियादी बनकर अंदर जा रहा था। बड़ा सा हॉल था। चारों और सोफे बिछे हुए थे। बीच में कालीन था। जूते चप्पल बाहर उतार कर मैं अंदर घुसा। हार्डिंग बोर्ड में जैसा तस्वीर लगा था। देखने में वैसा ही इंसान था। रामेश्वर धनवार। मगर सावला कुछ ज्यादा ही था।
जी तो मेरा कर रहा था- उछल कि उसके पास पहुंचूं, और उसका गला रेत दूं। उसे देखते ही मेरे आंखों में खून उतर आया था।
मैं अपने दुश्मन के सामने खड़ा था। मेरे अंदर की ज्वाला धधक रही थी। मगर, इस वक्त शांति रहना था, क्योंकिमैं अगर मैं कोई हरकत करता तो यहां से बचकर जाना बड़ा मुश्किल थ। क्योंकि बाहर गन धारी गार्ड्स खड़े थे। कुछ हरकत करने के बाद , मेरे यहां से भागने के लिए भी कोई सवारी नहीं थी।
मगर प्रत्यक्षत मैं यह बोला- मैं यहां नौकरी के लिए आया हूं। मुझे कोई गारंटी दे नहीं रहा। अगर आप कोई नौकरी दिला दें, आपकी मेहरबानी होगी। मेरे पास रहने उठने- बैठने खाने का कोई,, व्यवस्था नहीं है?
पहली बार रामेश्वर धनवार ने मुह खोला-तुम यहां कहां से आए हो?
मैं आज जोड़कर बोला- ढेकियाजुली एक गांव है ।जहां सड़के नहीं है। गाड़ियां जाती नहीं ।वहीं से आया हूं ।वहां कोई रोजगार नहीं है खेती के सिवा।
मेरी पर्सनैलिटी कुछ ऐसी थी। जो भी इंसान मुझे देखता । तो देखता रह जाता।
रामेश्वर धनवार ने मुझे ऊपर से नीचे तक देखा, कुछ देर तक तो उसके नजर मेरे जिस्म पर टिक गई थी।
पूछा- क्या काम कर सकते हो?
मैं -पढ़ा लिखा कम हूं ।क्योंकि हमारे गांव में कोई भी स्कूल नहीं था। बस कुछ किताबें खुद लाकर पढ़ा हूं। मेहनत का कोई भी काम कर सकता हूं।
रामेश्वर धनवार सोचता रहा।
फिर एक को आवाज लगाया- अभिषेक! इन्हें कहीं काम पर लगवा दो। जिस तरीके का काम यह कर सकें!
एक पीए सा दिखने वाला व्यक्ति ,जो उनके पास ही खड़ा था। बोला जैसा आप कहेंगे?
अभिषेक ने मुझे एक साइड में ले गया, और अपना कार्ड दिया, मेरा नाम लिखा। फिर बोला- ठीक है; मुझे फोन कर लेना! मैं तुम्हें यहीं- कहीं एडजेस्ट करा दूंगा। ठीक है?इधर से जाओ! चाय और नाश्ता करते जाना! ठीक है?
मैं एक निहायत ही शरीफ इंसान सा बना। उसके बताए दरवाजे से बाहर निकला।
बाहर निकलते ही ,एक व्यक्ति मेरा अगुवाई करने के लिए खड़ा था। मुझे अगुवाई करता हुआ वहां ले गया । जहां कुछ लोग बैठ कर चाय नाश्ता कर रहे थे। वह आग्रह करता हुआ सा बोला-यहां पर बैठ जाएं!
मैं मंत्रमुग्ध सा उसके बताए स्थान पर बैठ गया। मेरे बैठते ही एक शख्स जो वोटर सा लग रहा था।मेरे लिए शीशे का चमचमाता गिलास में पानी भर कर ले आया , और मेरे आगे टेबल पर रख दिया।
इन सारी व्यवस्थाओं को देखकर तो यूं लगता था जैसे आप बहुत शरीफ ईमानदार और जनता के प्रति लगाव रखने वाला नेता था।
मेरे मन में एक बात ही कौध रही थीं -नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली! मैं मन ही मन सोचने लगा- जितना भी अच्छा बन के दिखा ले, मगर, तू मेरे हाथों से बचने वाला नहीं। एक दिन तेरे गर्दन पर खंजर रखकर पूछूंगा। क्या गुनाह किया था, उन गांव वालों ने? जिनको तूने जलाकर राख कर दिया। जिनको 1-1 को मौत के घाट उतार दिया?
तू रहम की भीख मांगेगा, लेकिन मैं तुझे तड़पा तड़पा कर मारूंगा । तेरी इस सल्तनत को मैं जलजले में तब्दील कर दूंगा।
मैं चाय पी रहा था। चाय के साथ समोसे भी आ रहे थे ।चाय समोसे यूं भी मुझे अच्छे लगते थे।
मैं यकीनन फरियाद के लिए नहीं गया था मैं तो उस कोठी का जायजा लेने के लिए गया था। फरियाद के बहाने ही मुझे कोठी का हल्का सा नजारा मिल गया था।
रात के वक्त पिछवाड़े से दिवार फांद कर अंदर घुसा जा सकता था।
मगर, इतनी बड़ी कोठी में उसका कमरा कहां ढूंढ लेता मैं?
किसी भी बेगुनाह के खून बहाने के पक्ष में, मैं कतई नहीं था। इसीलिए मुझे सीधे रामेश्वर के बेडरूम, या रामेश्वर को ही टारगेट करना था। जो रात के वक्त संभव हो सकता था।
यूं तो मेरे गांव को नेस्तनाबूद करने के लिए कई लोग आए थे। टैंकर में पेट्रोल भरकर पाइप के सहारे घरों में पेट्रोल डाला गया था। आग लगा दी गई थी।
जो भागने की कोशिश कर रहे थे। जो उनकी नजर में आ गए थे उनको उन लोगों ने मारकर उसी आग में झोंक दिया था। वह एक बंदा तो हो नहीं सकता था ।उन दरिंदों को भी मुझे ढूंढना था।
गुंडों का एक प्लाटून आया होगा। दो सवा दो सौ घरों को जलाने के लिए, उन इंसान को भागने से रोकने के लिए ,चारों ओर से घेर कर जलाने वाले लोग, दो चार नहीं कई थे।
उन्हें ढूंढना था मुझे ।उन्हें ढूंढने में रामेश्वर की बयान बाजी ही काम आ सकती थी।
मैं चाय पी चुका था। फिर मैं उठा ।उसी शख्स ने मेरे को बाहर जाने का रास्ता दिखाया मुस्कुराकर। मैंने भी मुस्कुरा कर उसका अभिवादन किया ।उसने कहा चिंता ना करें आपका काम हो जाएगा। आप सही जगह आए हो। हमारे नेता जी आपको कहीं ना कहीं लगा सकते हैं।
मैं मन ही मन बोला- मुझे कहीं ना कहीं नहीं, बल्कि इसी कोठी में चाहिए था। रामेश्वर धनवार के पास।
मुझे पता था इतने सारे लोगों की आहें, इतने सारे लोगों की तड़पती हुई रूहे.. और कुदरत का साथ यही रोक लेगा।
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