मुझे अब भटकने की जरूरत नहीं थी। गांव वालों को पता था । वह पुराना गांव हमारा कहां पर है.. किस रास्ते से वहां पर जा सकते हैं!
मैं अकेला ही उस ओर जाने के लिए तैयार था। मैं सबसे पहले उस धरती का दर्शन चाहता था।और फिर आगे की कार्रवाई सुनिश्चित करना था।
यह तय था कि बचे खुचे लोगों ने ही, मिल कर इस गांव को बसाया था। क्योंकि, गांव के चारों ओर रास्ते नहीं थे। तीन ओर से पहाड़ियों और नदी से घिरा हुआ था। पहाड़ों में रास्ता था । मगर वह कठीनाई से भरा हुआ था।
इसलिए निकासी एक ही ओर से कहा जा सकता था।
यह से फिर मेरा सफर तय होना था। गांव वालों ने बताया था। हमारा पुराना गांव नौगांव, शायद यहां से एक आध घंटे की दूरी पर थी। अगर घोड़े पर निकलता तो।
गांव वालों ने मुझे बताया वहां पर रिहायस के लिए भी कई क्वार्टर से बने हुए हैं। जो मजदूर काम करते हैं। वे उन क्वार्टरों में रहा करते हैं।
मैं सारी स्थिति को देखकर वापस भी आ सकता था।
सारी स्थिति को देखकर मुझे तय करना था। कि आगे मुझे किस तरीके से काम करना है।
मामी ने मुझे खाने और पीने के लिए एक पोटला रख दिया था। भूख लगे तो खा लेना। जल्दी वापस आ लेना। क्योंकि, वहां से एक घंटे का ही रास्ता था।
यह मेरे लिए बहुत बढ़िया था। मैं कोई भी काम इस गांव से संचालन कर सकता था। मेरे लिए रहने और छुपने के लिए इस गांव में बढ़िया जगह था।
मगर मुझे इस गांव के सुरक्षा का भी उतना ही ध्यान रखना था। जितना मैं खुद का रखता हूं।
मामी ने मुझे कहा था। शाम तक किसी तरह लौट के आ जाना। मामा खेतों में निकल गए थे। और लोग भी शायद खेतों में निकल गए थे।
यहां पर कोई स्कूल था नहीं, इसीलिए पढ़ाई के लिए बच्चों का कोई साधन नहीं था। इसीलिए बच्चे इधर उधर गांव में ही खेलते रहते । या फिर माता पिता के साथ खेतों में चले जाते। या फिर घर में ही इधर-उधर बच्चों के साथ खेलते रहते ।
गांव वालों ने मवेशी भी पाल रखे थे। जिनको जंगलों में चरने के लिए ले जाया करते।
मैंने अपने घोड़े को पुच कारा घोड़े की पीठ पर ज़िन चढाया, रकाब बधा ,फिर मैं चलने के लिए जब तैयार हुआ ।तो मामी ने मुझे पूजा की थाली से आरती की और तिलक की, मैंने मामी के पैर छुए, और आगे निकल पड़ा।
मैंने अपना धारदार तलवार और कुछ कुछ हथियार अपने थैले में डाल दिया था। दो धारी तलवार थी ।उसको मैंने अपने पीठ पर ही पहले की तरह सेट कर लिया था।
मुझे पीठ पर, अपने पीठ पर सवार होते देख घोड़ा खुश हो गया था। क्योंकि, कुछ दिनों से मैंने उसकी सवारी नहीं की थी।
मैंने अपने घोड़े की लगाम खिंची थी ।और घोड़े को ऐड लगाते हुए धीरे-धीरे गांव से निकलने लगा। गांव के बच्चे गांव के बाहर तक मेरे पीछे पीछे भागते हुए आए ।और हाथ हिलाने लगे।
शायद इस गांव में कुछ ऐसे बच्चे भी थे। जिनके मां बाप नहीं थे। जलजले में मारे गए थे। कत्ले गारत में कत्ल हो गया थे।
मेरा घोड़ा सरपट दौड़े जा रहा था। यहां से कई दूर तक रास्ता साफ था। पगडंडी थी मगर फिर भी खुला हुआ मैदान सा देखता था। कुछ दूर जाने के बाद फिर जंगलात शुरू हो जाती थी। पहाड़ों का श्रृंखला शुरू हो जाता था। पहाड़ों की श्रृंखला के बीच से होते हुए ,दर्रों से होते हुए मुझे आगे बढ़ना था।
दो पहाड़ों के बीच का रास्ता संकरा सा था। ऐसा लगता था ,दो पहाड़ों ने जरा सा हट कर बीच में रास्ता बनाया हो।
पहाड़ी दर्रों से होते हुए मुझे आगे निकलना था।
पहाड़ी पर झाड जंगल से भरा हुआ था। मुझे साफ करते हुए आगे निकलना था ।क्योंकि, लगता था। कई दिनों से इस रास्ते पर कोई सवारी चली नहीं थी। रास्ता क्या था ।पगडंडी थी।
यहां जंगली जानवरों का भी खौफ था। आदमखोर जानवर अक्शर यहां पर आ जाते थे। और घात लगाकर इंसानी जिंदगी को खत्म कर देते थे। मुझे ऐसे जंगली जानवर से बचते हुए आगे निकलना था।
आगे दर्रों पर कई जगह यू लगते थे ।जैसे बाग बगीचे के अंदर आ गया हूं। यह एक, भूलभुलैया था। कई ऐसे झाड़ जंगलात थे जिनके छूने से, जिनके गैस निकलने से, इंसान रास्ता भटक जाता था।
उनसे झाड जंगलों से निकलता हुआ गैस इंसानी दिमाग में असर कर जाता था। और ऐसा लगता था। ऐसे लगता जैसे इंसान सेंसलेस तो नहीं होता था- मगर थिंकलेस हो जाता था। एक ही रास्ते पर बार-बार गुजरता। फिर वही पहुंच जाता। उसे समझ नहीं आती ऐसी स्थिति आ जाती थी।
इसी स्थिति से निपटने के लिए ,सिर्फ एक ही काम हो सकता था। जंगल में ,कि वहां पर हल्की सी आग जला कर आगके पास थोड़ी देर बैठ जाए। जिससे शायद उन गैसों से आदमी को निपटारा मिल जाता। आदमी भटकता नहीं। फिर सही रास्ते पर निकल जाता है।
या फिर ऐसे होता था। की डेढ- दो घंटे बाद इंसान के दिमाग में चढ़ा हुआ वह नशा, अपने आप ही खत्म हो जाता। और फिर उसे रास्ता सही दिखाई देने लगता।
यह फूल और फूल से निकलने वाले सुगंध, और गैस से बचकर निकलना हर इंसान के बस में नहीं था।
क्योंकि ,खूबसूरत फूलों की और सभी अपनी नज़र कर ही लेते हैं। जब भी वह उस फूल की ओर अपनी नजर करते हैं ,फिर वह नशीला गैस इंसानी फेफड़े में चला जाता ।और इंसान रास्ता भटक जाता है। उसी रास्ते पर बार-बार घूमता रहता।
उसे यहसास ही नहीं होता ,कि एक ही रास्ते में वह बार-बार घूम रहा है। बार-बार घूमकर पहुंच रहा है। दो-तीन बार ऐसा होने के बाद तब इंसानी दिमाग में यह बात आती, अरे यहीं से तो मैं अभी-अभी गुजरा था। फिर कैसे आ गया। मगर फिर भी उसे रास्ता दिखाई नहीं देता। जब वह बैठकर हल्का सा आग लगाता। तब जाकर वह गैस का नशा छुट जाता। फिर इंसान को अपना सीधा रास्ता दिखाई देता।
जंगल में यूं लगता जैसे किसी पिशाच या जिन्नके फेरे में आदमी पड़ गया हो।जो उसे बाहर निकलने का रास्ता ही नहीं दे रहा हो ।भूल भुलैया सा घूमता रहता ,पहाड़ों की तलहटी में चारों ओर। फिर दो चार घंटे में अपने आप रास्ता नजर आता जैसे उस गैस का असर कम हो जाता।
मैंने कुछ छोटे-छोटे पेड़ों के डाल काट लिया था ।और रास्ते में चिन्ह लगाने लगा था।
क्योंकि मुझे पता था ।अगर चिन्ह नहीं लगाऊंगा ,तो मैं रास्ता भूल जाऊंगा। चिन्ह लगाने पर मुझे एहसास हो जाएगा। कि मैं इस रास्ते से पहले गुजरा हूं।
फिर एक ही रास्ते पर 2,4 बार घूमने की संभावना कम होगी।
मैं अभी निकलना चाहता था। जल्दी मैं नौगांव पहुंच सकूं ,फिर उस का जायजा ले सकूं। और आगे की जाने वाली कार्रवाई को कर सकूं।
मुझे कोई जल्दबाजी नहीं थी। क्योंकि, कई सालों तक मैंने इंतकाम के लिए इंतजार किया था। दो चार पल मेरे लिए कोई मायने नहीं रखते थे। बस मुझे मुकम्मल जगह पहुंचना था। और उन लोगों के चेहरे देखने थे ।जिन्होंने मेरा पूरा का पूरा गांव जला दिया था। मेरे अपने लोगों को कत्ले गारत में कत्ल कर दिया था।
मुझे अभी भी उन लोगों की चीखें सुनाई देती है। मुझे अपने मां-बाबा के चीखने की आवाजें सुनाई देती है । हुआ जलता हुआ गांव दिखाई देता है ।जलते हुए गांव की चीख पुकारें सुनाई देती है ।दिखाई देता है-वह कत्ले गारत ।
रास्ते में मैंने गुजरे हुए रास्ते में चिन्ह लगाने के बाद ,मैं आगे बढ़ चुका था ।आगे आगे बहुत आगे निकलते गया था ।
मगर मुझे ऐसा क्यों लग रहा था। मैं एक ही रास्ते पर फिर से घूम रहा हूं, क्योंकि मेरे लगाए हुए चीन फिर मुझे ही नजर आने लगे थे। मुझे समझ आ गया था ।कि मैं भूलभुलैया के चक्कर में पड़ गया हूं। मुझ पर भी उन फूलों की खुशबू की ,उन गैसों का असर हो गया था। क्योंकि ,मैं दूसरी बार उसी रास्ते से गुजर रहा था ।जिस रास्ते से कुछ देर पहले मैंने पेड़ों के डाल काटकर चिन्ह लगाए थे।
मैं समझ गया था। मुझे कुछ देर यही रूकना था ।कुछ देर आराम करना था ।मेरे जेब में कोई माचिस या लाइटर नहीं था ।मेरे जेब में कोई ऐसा साधन नहीं था। जिससे कि मैं कहीं पर आग दिखा सकूं।
अब मेरी यह मजबूरी बन गई थी। कि मुझे वहां पर कुछ देर जरूर रुकना था। अगर मैं नहीं रुकता तो, फिर इसी तरह चक्कर पर चक्कर लगाता रहता। और मैं अपने घोड़े को भी छोड़ नहीं सकता था। क्योंकि अगर मेरे हाथ से यहां पर घोड़ा छूट जाता ।तो मिलने की संभावना 50% रह जाती। क्योंकि मैं तो भूल भुलैया में खो जाता ।मेरा घोड़ा भी पता नहीं भूल भुलैया में खो जाता। या फिर मेरे पास आता पहुंच पाता या नहीं पहुंच पाता।
संभावनाएं कम थी। इसीलिए घोड़े को मैं छोड़ नहीं सकता था ।मैं एक टीले से पत्थर पर बैठ गया था। और घोड़े को भी मैंने लगाम पकड़कर वहीं पर रोक लिया था। घोड़े का मैंने बोल दिया था- कहीं जाना मत; यहीं पर रूके रहना, नहीं तो भटक जाएगा!
मेरा घोड़ा मेरी बातों को समझता था। और कही गई बातों को अमल भी करता था। जैसे घोड़ा ना हो ,कोई आज्ञाकारी बच्चा हो। मेरी जिंदगी में इस घोड़े का बहुत महत्व था। मैं इसे अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करता रहा।
यह घोड़ा ना होता तो ,शायद मैं भी ना होता। मैं भी मां -बाबा के साथ जल गया होता !मां बाबा ने मेरे को जलने से रोक दिया था- कि मुझे भगा दिया था, भागने के आदेश दे दिए थे!
और मां बाबा को मैं जलता छोड़, मरता छोड़ भाग गया था। उस वक्त मुझे कुछ सुजा न था। बस उनकी आवाज सुनाई दे रही थी।-- भाग अग्नि भाग..। यह मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा दर्द था।
वह दर्द मैं कभी भुला नहीं सकता था। दर्द को मिटाने के लिए ,मैं बदले की आग में तड़पता रहा ।वक्त का इंतजार करता रहा।
कुछ देर वहां बैठने के बाद मुझे यू दिखाई देने लगा जैसे बिल्कुल रास्ता साफ हो। वरना मुझे यूं दिखाई दे रहा था। मेरे आंखों के आगे धूंध के बादल छाए हुए हो।
मैं समझ गया था ।अब वह नशा गैस का असर खत्म हो गया था। अब आगे बढ़ने के लिए उठा। मगर यह क्या ? मैं उठ ही नहीं पा रहा था। जैसे पत्थर से चिपक गया हूं।
राह भटकने के किस्से तो मैंने कयी सुने थे। मगर, इस तरीके से पत्थर से ही चिपक जाऊंगा, ऐसा मैंने कभी सुना नहीं था ।न जाने क्या यह तिलस्व थी। दर्रों पर अक्सर प्रेत आत्माएं घूमती रहती है। दिनदहाड़े अकेले इंसान को अपनी चपेट में ले लेती है।
मुझे क्या हो रहा था ?मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था? मेरा सर भी कुछ चकराने सा लगा था। पता नहीं क्या था ?मैं अपने आप को बेहोश होने से रोक नहीं पा रहा था!
क्या यह प्रेतो का मामला था? भूत पिशाच कुछ जो मेरे रास्ते में रोड़े बन रहे थे-
जो मुझे आगे जाने से रोक रहे थे? क्यों?
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