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कत्ले गारत 17

6 जनवरी 2023

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वे चार लोग थे ।और मैं उनके बीच में एक अकेला लेटा हुआ था। और मेरी नींद को देखते हुए उन लोगों ने जागाने के लिए एक ने मुझे छू करा आवाज लगाया था।
उनकी आवाजों से मेरी आंखें खुल गई थी। मैंने नजर इधर-उधर घुमा कर देखा ,कुछ नहीं था। मेरा घोड़ा सामने ही चर रहा था। मैंने आंखें खोल कर आसपास देखा ।सामने कोई नहीं था। वे चार लोग जिनको मैं महसूस कर रहा था -वह भी नहीं थे। इसका अर्थ यह था -कि जो भी मैं देख रहा था, एक सपना था।
गनीमत थी की वह अपना था। वरना कुछ न कुछ होने वाला था। शायद 4 लोग मुझे मारने के लिए आ रहे हो।
मैंने महसूस किया- घंटे भर के करीब ,मैं नींद के झोक में सो गया था ।शायद थकान की वजह से रही होगी। और खुद को मैं चलने के लिए तैयार कर चुका था। मैं पानी के चश्मे के पास पहुंचा, पानी पी ।और चेहरे में पानी मारकर मैंने अपने चेहरे को फ्रेश किया। फिर आगे बढ़ने के लिए तैयार हो गया।
 घोड़ा भी घूम रहा था। मैंने उसक लगाम पकड  कर का पानी के पास ले गया- बोला पानी पी ले ! बाद में जल्दी पानी मिले या ना मिले।
मेरे घोड़े ने पानी में मुंह मारा और फुर्रफुर्र करके पानी उड़ाने लगा। इसका मतलब उसका मन पानी से भर गया था ।फिर मैंने उस का पीठ थपथपाया। और घोड़े पर चढ़ गया।
मैंने घोड़े को अपने गांव वाले रास्ते पर डाल दिया। और धीरे-धीरे घोड़ा भागने लगा।
तभी मुझे एहसास हुआ मेरे पीछे कोई आ रहा है। मैंने अब पीछे मुड़कर देखा ।वही चार लोग थे ।जो मेरे पीछे-पीछे आ रहे थे। घोड़े को मैंने सरपट दौड़ा ना चाहा।
तभी एक ने आवाज लगाई- रुक जा!
मैंने कुछ मुड़कर ,घोड़े को मोड़ कर ,उनकी ओर देखा ।पूछा -क्या बात है, क्या चाहते हो तुम मुझसे?
चारों बिल्कुल मेरे सामने आ गये, उनके भाले मेरी और तने हुए थे।
उनमें से एक जो सरदार सा दिखता था। सबसे बलिष्ठ था ।वह मेरे ओर भाला जानते हुए  बोला -घोड़ा हमें देकर जाओ ,वरना तुम यही मारे जाओगे!
मैं बोला -तुम मुझे लूटना चाहती हो! तुम क्या लुटेरे हो ?जो घोड़ा लूटना चाहते हो?
हम जो भी है !हम तुम्हें घोड़े के साथ जाने नहीं देंगे !यह घोड़ा हमारे साथ ही रहेगा।
चारों के भाले मेरी ओर  तने हुए थे।
वह देखने में जंगली थे ।बलवान थे ।और उनके पास हथियार था। और मुझे लूटने में आमादा हो रहे थे।
मैं एक राहगीर हूं ।मुझे तुम इस तरह से लूट नहीं सकते। यह गलत है।
गलत और सही का फैसला करने वाले तुम कौन होते हो? यह जंगल हमारा है ।यहां से कोई भी गुजरता है ,उसका सामान हम लूट लेते हैं।
 हम सिर्फ  चार नहीं है ।अगर, मैं अभी आवाज लगाऊंगा तो ,कई लोग यहां पर तुम्हें, बा हथियार  घेर लेंगे ।और तुम्हारे वोटीवोटी नोच खाएंगे ।तुम्हारी भलाई इसी में है कि अभी हम सिर्फ तुमसे तुम्हारा घोड़ा लेना चाहते हैं। वह नहीं देते हो ,तो फिर हमें तुम्हें जबरदस्ती करनी होगी। अभी तो हम सिर्फ तुम्हें प्यार से मांग रहे हैं।
मुझे समझ नहीं आ रहा था। कि मैं क्या करूं? अगर मैं सरपट दौड़ता हूं ।घोड़े के साथ ।तो पीछे से वे मुझ पर बार कर सकते थे। और अभी वही कह रहे थे ।कि मैं सिर्फ चार नहीं है। और भी है। जो एक आवाज में हथियार सहित मुझे आकर घेर भी सकते थे।
मैं अपने दोस्त घोड़े  को किसी भी तरह उनके हाथ में सौपना नहीं चाहता था। इस बियाबान  जंगल में मेरे गांव तक पहुंचने का एक ही मेरा साधन था। वह मेरा घोड़ा था ।जिसने मेरी जिंदगी बचाई थी ।और अभी भी वह मेरे साथ।
और मेरे मरते दम तक; उसे मैं साथ छोड़ना नहीं चाहता था !न ही घोड़ा  मेरा साथ छोड़ना चाहता था।
अब मुझे पहली बार, इस परीक्षा में पास होना था। मेरे सीखे हुए मार्शल आर्ट ,सीखे हुए वह तलवार बाजी ,सीखा हुआ वह शारीरिक एक्सरसाइज सब का प्रयोग करके, मुझे इनके हाथों से बच के आगे निकलना था। उनसे मुझे पार पाना था। सच में यह मेरा इम्तहान था।
 और इस इम्तिहान में पास होना था। यह तो मामूली सी एक लड़ाई थी। मुझे तो बहुत लंबी लड़ाई लड़नी थी। उस कत्ले गारत के बदले में मुझे भी कई लोगों का कत्ल करना था।

मैं बोला -मैं कोई खून खराबा नहीं चाहता! तुम चार मेरे लिए कोई मायने नहीं रखते हो। अगर तुम चुपचाप से चले जाते हो, तो मैं कुछ नहीं करूंगा। नहीं तो तुम चारों की लाशें टुकड़े-टुकड़े में यही पड़ी मिलेगी -तुम्हारे लोगों को!

वह बोला- हम चार लोगों को तुम पार पा  लोगे? जबकि तुम निहत्थे हो?
किसने कह दिया तुम्हे कि मैं नहीं आता हूं
 मैंने अपने पीछे  छुपा रखा हुआ तलवार खींच लिया था। और बोला -अब बताओ ?क्या कहते हो? तुम लोग अपने आप को टुकड़े-टुकड़े कराना चाहते हो ,या फिर चुपचाप से यहां से खिसक जाओगे ,या फिर मुझे यहां से जाने दोगे?
मेरे हाथ में चमकते  तलवार देखकर भी ,उनके चेहरे में किसी प्रकार का खौफ नहीं चमका।

सरदार जो था। वह अट्टहास लगाता हुआ हंसा और बोला- अब तो हम तेरा घोड़ा लूट कर ही रहेंगे ।और तुझे भी मार कर ही दम लेंगे।
वह तीनों को ओर इशारा करता हुआ जोर से चीखा -मार डालो साले को!
जैसे ही वो सामने आए ,मेरा तलवार यू घुमा, उन को पता ही नहीं चला। और दो के हाथ में मेरा तलवार का धारदार वाला हिस्सा टकराया। दोनों के हाथसे भाले ,छिटकर दूर जा गिरे। और दोनों ने अपने हाथ को दूसरे हाथ से पकड़ लिया। उन के जख्मी हाथों से ,खून की धाराएं बह निकली।
वह दोनों ईस तरीके से जख्मी हो चुके थे। कि वह फिर से भाला  उठा ही नहीं सकते थे। कम से कम अपने जख्मी हाथों से तो नहीं।

अबकी बारी सरदार की थी। सरदार की ओर मैं मैं घुमा और उस पर मैंने तलवार से उसके हाथों पर बार कर दिया ।और बार इतना जोरदार था। उसका कोहनी के नीचे से एक हाथ काट कर वहीं पर गिर गया।
सरदार जोर से चीखा पड़ा। उसे मैंने मौका ही नहीं दिया था। कि वह मुझ पर भाले से प्रहार कर पाता। वही इतनी तेज गति से मैंने बिजली की गति से उस पर वार किया था, कि वह कुछ समझ ही नहीं पाया था।  उसके समझने से पहले यह हुआ था।
चौथी की प्रति मुझे वार करने का मौका नहीं मिला। वह पहले ही भाग चुका था। दौड़ते हुए मैंने आवाज लगाएं ।रुक जा कहां जा रहे हो? तेरा तो मैं गला ही काट लूंगा?
दो जो  मैंने पहले बार किया था। वह भी अपने जख्मों को दबाए हुए भाग खड़े हो चुके थे ।और सरदार तो अपने कटे हुए हाथ को देख रहा था ।कभी मुझे देख रहा था। उसको समझ नहीं आ रहा था। औ दर्द के मारे चीखे  जा रहा था।
मंजर भयानक हो चुका था। मेरा मकसद पूरा हो चुका था। अब वह मुझ पर बार नहीं करने वाले थे। मैं मुड़ा और अपनी घोड़े की और लपका।
मेरा घोड़ा हिनहिनाया । दो पैरो मैं खड़ा हो गया। 
जैसे कह रहा हो- कि तुमने ठीक किया!
मैं उछलकर घोड़े के ऊपर आ गया ।और लगाम थाम ली। घोड़ा सरपट दौड़ने लगा। मैंने पीछे मुड़ के देखा। पीछे कोई नहीं था ।यह मेरी परीक्षा थी। जिसमें मैं पास हो गया था।

 जिंदगी में पहली बार मैंने किसी के ऊपर ईस तरीके से हमला किया था। मगर यह मेरी मजबूरी थी ।अगर मैं उन पर हमला नहीं करता तो, मुझे खत्म कर देते वह मुझे कमजोर समझ कर मुझ पर हावी होने की कोशिश कर रहे थे।

वे डाकू लुटेरे थे। राहगीर को परेशान करने वाले। और उनको सबक सिखाना जरूरी था।

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रचनाएँ
कत्ले गारत
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बदले और खून से सनी खूनी सफर सफर का इतिहास है ।जिसे हम कत्ले गारत का नाम देकर यहां प्रस्तुत करना चाहते हैं।
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मेरी जिंदगी में सिर्फ एक ही लक्ष्य बचा हुआ था। और वो लक्ष्य था किसी तरह भी उन खूनियों का खात्मा करना। क्योंकि मुझे पता था। कि यह सारा सरकारी नुमाइंदों की मिलीभगत में हुई थी। इसलिए कानून का सहारा लेना

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अब बापी भी बड़ी हो चुकी थी। 10:11 साल की हो चुकी थी। दीदी के गोद में दूसरा एक बच्चा भी आ चुका था। उसकी भी उम्र अभी 4 साल की हो चुकी थी। मैं अग्निपुत्र- इस परिवार का एक अभिन्न अंग बन चुका था ।परिवार का

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यह वक्त नहीं था। कि मैं पंडित जी के साथ जाउं। गांव पहुंच कर खोजबीन करूं! जहां गांव के बारे में गांव की आबादी के बारे में नोटेड होता है ।क्योंकि ,अभी हम पुष्पलता के इलाज के लिए आए हुए थे। और जरूरी था,

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पुष्पा को समझ आ चुका था। जिंदगी के बारे में। पुष्पा को इस बात की समझ आ गई थी। जो जिंदगी में जीने के लिए पैसे की भी जरूरत होगी। जो मैं शहर जाकर ही कमा सकता था। गांव में रहकर तो हम सिर्फ खा पी सकते थे।

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मैं जिस रास्ते से इस गांव में आया था। उसी रास्ते से ही मुझे लौटना था। इतने सालों के बाद भी मैं वो रास्ता कभी भूल नहीं पाया था। वह नदी पार करना ,नदी पार करके फिर इस गांव में आना ,जब मैं कभी भूला नहीं प

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मुझे पता था ।मेरा रास्ता आसान नहीं था। मुझे यह भी पता था। जिन चार लोगों पर मैंने हमला किया था। वह लोग यकीनन कोई न कोई मेरे पीछे आने वाले थे। उन के मुताबिक वह सिर्फ चार नहीं थे ।पूरा कुनबा था। उन

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बीच में आए इन सब लोगों से मैं खुद को बचाना चाहता था।। मेरा मकसद अपने गांव तक पहुंचना था। यह देखना था ,उस कत्ले गारत में कोई बचा तो नहीं ।या यह जानना था -कि कत्ले गारत के बाद वहां इंडस्ट्री बसा है

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मुझे बहुत आगे निकलना था। वक्त बहुत जाया हो चुका था।मैंने आसमान की ओर देखा। सूरज क्षितिज पे कहीं छुपने की तैयारी कर रहा था। मुझे अपने गांव आगे बढ़ना था। और रात के रुकने की व्यवस्था भी करना था। मेरा घोड

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मकान के बाहर सारागांव जमा हो गया था। सारा गांव ही एक कुनबा था। गांव के लोग में एकता थी एक स्वर बद्धता थी ।जो वहां जमा होने पर दिखती थी।गांव के बड़े बुजुर्ग की आंखों में आंसू थे। बच्चे भूल से गए थे। उस

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उन के अंदर की ज्वाला को मैंने भड़काने की कोशिश की। उनके अंदर की ज्वाला शायद शांत हो चुकी थी ।या कुछ न कर पाने की वजह से वह चुपचाप हो गए थे।शायद वह नहीं चाहते थे ,कि जो बचे खुचे हैं, उनको कोई नुकसान पह

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मुझे अब भटकने की जरूरत नहीं थी। गांव वालों को पता था । वह पुराना गांव हमारा कहां पर है.. किस रास्ते से वहां पर जा सकते हैं!मैं अकेला ही उस ओर जाने के लिए तैयार था। मैं सबसे पहले उस धरती का दर्शन चाहता

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जब मेरी आंखें खुली, चट्टानों में बैठे-बैठे मुझे नशा सा छा गया था। जिसकी वजह से मैं वहीं पर लुढ़क गया था। करीब चार-पांच घंटे यूं ही मैं बेहोश सा पड़ा रहा। जब मेरे घोड़े ने मुझे

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मैं पानी पीकर और हाथ मुंह धो कर अपने गांव की ओर मुड़ा। चारों तरफ बाउंड्री लगी हुई, बीच में कोई इंडस्ट्री बसी हुई थी। बाउंड्री पत्थरों से दीवार बनाई गई थी इस पार से उस पार देख पाना मुमकिन नहीं था

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मैं अपने गांव में था। जो अभी फिलहाल इंडस्ट्री में तब्दील हो गई थी। और मेरे अपने लोग यहां कोई नहीं था। मेरा अपना मकान भी नहीं था।मैंने गांव की मिट्टी को अपनी मुट्ठी में लिया दिल से लगा लिया। सच म

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कामदारों से मुझे सिर्फ इतना ही पता चल सका था, कि वह अरबों पति लोग थे ।उनके पास पहुंचना मुश्किल काम था। मैं साइबर में बैठकर,इन लोगों का रिहायश, ऑफिस पता लगाना चाहता था। यूं तो वे लोग यहां भी

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मार्गरेटा से टोपला बस्ती, ज्यादा दूर नहीं था। करीब 20 किलोमीटर का रास्ता था । ऑन द रोड।अगर मैं अपने घोड़े पर ही टोपला बस्ती पहुंचता तो, लोग यही समझते ,कि कोई बैंड बाजा बारात वाला ही होगा। जो किस

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अंधेरी रात थी। आसमान में तारे चमक रहे थे। मगर टोपला बस्ती का यह एरिया ,रोशनी से जगमग आ रहा था। ऐसा लगता था जैसे आसमान के सारे तारे जमीन पर उतर आए हो। और कोठियों में जगमगा रहे हो।जहां मैं ठहरा था , रिस

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कत्ले गारत 30

25 जनवरी 2023
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मौसम इतना ठंडा नहीं था। फिर भी मैं अपने घोड़े को खुले छत में नहीं रख सकता था। रात को रुकने के लिए उसे भी छत चाहिए थी । घास चाहिए था ।और खाने के लिए दाना भी चाहिए था ।पानी भी चाहिए था। उसकी फिकर मुझे अ

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कत्ले गारत 31

29 जनवरी 2023
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अभिषेक ने जो कार्ड दिया था। उसमें सिर्फ उसका नाम और फोन नंबर लिखा हुआ था।और कहा था ।दो दिन बाद कॉल कर लेना। आज तीसरा दिन था। मैंने अभिषेक को कॉल किया था।अभिषेक निहायत ही शरीफ और ईमानदार शख्सियत था। और

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कत्ले गारत 32

30 जनवरी 2023
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मैंने ,अपने घोड़े को अस्तबल में ला के बांध दिया था। अस्तबल में घोड़े के लिए चारे की भी परेशानी नहीं थी।घोड़ा मवेशियों के साथ खुश रह सकता था। मैंने अपने कमरे की सफाई के लिए चाची को बोल दिया था। कमरा सा

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कत्ले गारत 33

31 जनवरी 2023
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कहते हैं - गुनाह कभी छुपता नहीं ।कभी न कभी गुनाह, नासूर बन के दिल को ,कचोटने लगती है।यह कुदरत का न्याय है। बदला लेने के लिए कुदरत ही तैयार करती है। मजलूम पर किया गया जुल्म कभी खाली नहीं जाता। उभ

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