अभिषेक ने जो कार्ड दिया था। उसमें सिर्फ उसका नाम और फोन नंबर लिखा हुआ था।
और कहा था ।दो दिन बाद कॉल कर लेना। आज तीसरा दिन था। मैंने अभिषेक को कॉल किया था।
अभिषेक निहायत ही शरीफ और ईमानदार शख्सियत था। और एक सुलझा हुआ इंसान भी था। उसके बात व्यवहार पर नरमी भी थी।
मगर मेरे पास कॉल करने के लिए कोई मोबाइल फोन नहीं था। आज की डेट में अगर अपने पास मोबाइल ना हो तो कॉल करना बड़ा मुश्किल काम था। क्योंकि एसटीडी , आईएसडी बुथ, जितने भी थे सारे बंद हो गए थे। क्योंकि हर इंसान के हाथों पर मोबाइल आ गया था।
और जिनके हाथ में मोबाइल नहीं था। उनके लिए कॉल करना या तो किसी से मोबाइल पर मांग कर करना पड़ता ,एसटीडी बुथ ढूंढ कर मिलना मुश्किल था।
इसीलिए जहां पर मैं चाय पीता था ।चाय वाले चाचा के पास मोबाइल थी। मैंने उन्हीं के मोबाइल से अभिषेक को कॉल किया था।
अभिषेक ने मुझे कोठी पर ही मिलने के लिए बुला लिया था। उसने कहा था आकर गेट पर मेरा नाम ले लेना, बस तुम्हें मैं मिल जाऊंगा।
मैंने ऊपर वाले को लाख-लख शुक्रिया किया। क्योंकि ,मुझे पता था ।मुझे कोठी पर ही काम मिलने वाला था। कोई भी काम हो ,मैं करने के लिए तैयार था।
अपने मिशन के लिए मुझे कुछ भी करना मंजूर था। अब मेरी मंजिल पास में ही थी ।मगर सबसे पहले मुझे यह भी पता लगाना था। कि वह लोग जो नौगांव की तबाही के दारोमदार थे ।जो कत्ले गारत में शामिल थे। उनका भी खाका निकालना था मुझे।
कुदरत मुझे मेरे हर कदम पे साथ दे रहा था। क्योंकि, अभिषेक ने मुझे फिर से रामेश्वर धनवार के पास पेश किया था। मैं रामेश्वर धनवार के आंखों में चढ़ गया था। रामेश्वर भगवार ने मुझे अपने पास ही रखने के लिए सोच लिया था।
जब मैं रामेश्वर धनवार के पास फिर से पेश हुआ था। तो रामेश्वर धनवार ने मुझे पूछा था- क्या -क्या कर सकते हो तुम?
मैंने फिर से वही बात दोहरा दी थी। मैं पढ़ा लिखा कम हूं ,क्योंकि ,हमारे गांव में कोई स्कूल नहीं था ।मैं नौगांव का नाम लेना नहीं चाहता था। नौगांव का जिक्र भी नहीं करना चाहता था। अगर नौगांव का जिक्र करता ,तो फिर धनवार मुझे यहां एक पल भी टिकने नहीं देता।
क्योंकि धनवार तो यही सोचता था ।कि क़त्ले गारत में ,नौगांव के सारे शख्सियत को उसने जलजले में खत्म कर दिया था। हर इंसान के सख्शियत को वहीं पर जला डाला था। मिटा डाला था।
उसे ईस बात का इल्म भी नहीं होगा ,जलजले में कुछ लोग बचकर भी निकल गए थे ।और उनमें से मै भी एक था। जो उसके सामने रूबरू खड़ा था।
धनवार ने मुझे कहा- लेकिन देखने से तो नहीं लगते कि तुम पढ़े-लिखे कम हो ? अच्छी सेहत है तुम्हारी! गांव में कुश्ती किया करतें थे?
तुम्हारे पास कोई पहचान पत्र ?कोई ऐसे काग जात है ?जो तुम्हारी आईडेंटिटी साबित कर सके?
मैंने बताया ढेकियाजुली के बारे में। गांव की परिस्थिति के बारे में। एक ऐसा गांव जिस पर अभी तक सरकार की नजर ही नहीं पड़ी होगी। कोई भी ऐसी सुविधा नहीं ,कोई भी मोटिंग केंद्र नहीं ।कोई भी स्कूल नहीं, फिर आईडेंटिटी कैसे बनती? मेरी आईडेंटिटी खुद मैं हूं। मेरे अलावा मेरे पास कोई कागजात नहीं है।
चलो तुम हमारे साथ ही रहोगे। तुम्हें कोई आईडेंटिटी की जरूरत नहीं पड़ेगी। जो भी जरूरत की चीज है ,वह अभिषेक तुम्हें समझा देगा।
मैं मन ही मन सोच रहा था। वाह रे किस्मत तुम्हारी मौत मुझे तुम्हारे पास खींच लाई है।
प्रत्यक्ष में बोला- ठीक है आप की जैसी मर्जी; मैंने हाथ जोड़ दिए।
अभिषेक मुझे लेकर कोठी के अंदर गुलयारे पर चलने लगा। भव्य कोठी थी मैंने ऐसा भव्य कोठी कभी देखा ही नहीं था ।सच तो यह था मैंने कोठियां बाहर बाहर से देखा था।
ऐसे कोठी के अंदर आने का यह पहला मेरा अवसर था।
सच माने तो मैंने आज तक ,अपनी सारी बातें आपको बताइ है। जेहन में ऐसी कोठी का नक्शा भी कभी चमका न था। मेरे लिए यह बिल्कुल नया अनुभव था। ज्यादातर मैंने झोपड़ी और मकाने देखी थी।भब्य महलों की कहानियां। कोठियों की कहानियां। मैंने किताबों में ही पड़ी थी। वास्तविकता में कभी मैं ऐसी कोठियों से रूबरू भी नहीं हुआ था।
मैं पहाड़ों के बीच ,जंगलों के बीच ,गांव पर रहने वाला शख्सियत ऐसे बड़े बड़े कोठियों की तो बात सोच ही नहीं सकता ।हां, जीजा जी से एक आध बार शहर जाते वक्त मैंने कई कोठिया वह भी दूर से। जरूर देखी थी। दो चार किताबें भी उठा कर लाया था ।मैंने पढ़ने के लिए ,उन किताबों में मैंने कोठियां जरूर देखी थी। मगर रूबरू यह पहला मौका था इसीलिए मेरा एहसास भी अजीब सा था।
अभिषेक मुझे लिए आगे बढ़ रहा था। गलियारे से, और एक एक चीज में ध्यान से देख रहा था ।गलियारे में कई दरवाजे भी दिखे थे मेरे को। शायद उस दरवाजे के पीछे कमरा बना हो।
इस कोठी के भव्यता को देखकर , मैं ठगा सा रह गया था। मुझे यूं लग रहा था जैसे इन दीवारों के पीछे कई लाशें दफन हों। गलियारे में भी जैसे फूलों की खुशबू, फूलों की महक, बहकी हुई सी लग रही थी।
पूरे गलियारे में ,करीने से एक ही कतार में बड़े बड़े फूलों के गमले लगे हुए थे जिसमें ताजे फूल मुस्कुरा रहे थे।
फूलों की खुशबू से ,और मुस्कुराते फूलों से इंसान का चेहरा यूं भी खिल जाता है।
सच में फूलों की खुशबू से मुझे अच्छा सा महसूस हो रहा था।
मगर मेरा यहां आना ही रामेश्वर धनवार का डाउनफॉल था। मेरा यहां इसके कोठी पर प्रवेश करना ही यमराज का आवागमन था।
न जाने कब किस वक्त उसकी मौत हो जाए। या तो सिर्फ ऊपर वाला ही जानता था।
मैं अभिषेक के पीछे पीछे चलता रहा । चलते चलते मुझे पीछे क्वार्टर में ले गया हूं। जहां छोटे-छोटे कई क्वार्टर से बने हुए थे। एक ही लाइन पर।यह सारे क्वार्टर कोठी अन्दर काम करने वाले लोगों के लिए था।
यह सारे क्वार्टर कोठी के एक ही ईंड में था। मैं अभिषेक के पीछे -पीछे ही चल रहा था। लगभग क्वाटर सारे खत्म होने के बाद ,अंत में एक क्वार्टर था। जिसकी कुंडी बाहर से लगी हुई थी ।अभिषेक ने बाहर से कुंडी खोला ।और अंदर प्रवेश करता हुआ बोला-आ जाओ अंदर।
मैं अंदर घुसा । करीब 10 बाय 12 का एक छोटा सा कमरा था ।और उसकी एक साइट पर किचन और बाथरूम बना हुआ था।
बोला- आज के बाद तुम यहीं पर रहोगे!
कमरे के अंदर एक खटिया लगा हुआ था ।दूसरे साइट पर टेबल और कुर्सी भी लगी हुई थी। और कुछ सामान वहां पर था नहीं। तुम्हें ओढ़ने और बिछाने के लिए बिस्तर ला कर मैं दूंगा ।और खाने के लिए तुम्हें कोठी से ही आ जाएगी। तुम्हें यहां बनाने की जरूरत नहीं पड़ेगी ।
कोठी के अंदर और बाहर काम करने वाले सब के लिए अलग से एक रसोई है ।वहां पर ही सब का खाना बनता है। तुम चाहो तो वहीं पर जाकर खा सकते हो ।या फिर यहीं पर मंगा सकते हो। तीन वक्त का खाना। चाय पानी सब कुछ मिल जाएगा ।कुछ देर में मैं तुम्हें कुछ सामान भिजवा दूंगा यहीं पर। पानी पीने रखने के लिए । सब कुछआज आराम करो कल से तुम्हें मैं काम समझा दूंगा।
जब अभिषेक निकलने लगा तो मैंने कहा- भैया मेरे साथ मेरा घोड़ा भी है! जिसे मैं छोड़ नहीं सकता। उसे रखने की जगह मिल जाएगी कहीं पर?
मैं सोच रहा था मेरी बातों से अभिषेक चौकेगा। मगर वह चौका नहीं , उसने कोई अप्रत्याशित रिएक्शन किया नहीं।
उसने बोला- कोई बात नहीं ,बैक साइड में जहां पर गाय और भैसे बंधी हुई है। वहीं पर तुम अपने घोड़े को भी बाध सकते हो। और दूसरी बात घोड़े के लिए चारा भी वहीं से मिल जाएगा। एक रास्ता पिछवाड़े से भी है ।तुम वहीं से आ जा सकते हो ।कोठी के फ्रंट साइड से आने की जरूरत नहीं है। उधर कोई तुम्हें बोलेगा भी नहीं।
मैं बोला मेरा घोड़ा यही पास में ही है ।और दूसरी बात मेरा कुछ कपड़ा और सामान होटल में रखे हैं, क्या मैं उसे जाकर ला सकता हूं?
अभिषेक मुस्कुराता हुआ बोला- शौक से अपना सामान लेकर आओ।और पीछे से ही अंदर आ जाना। अपनी घोड़ को भी लेकर आना और गाय भैंसों के साथ ही कहीं पर बाध देना।
मैंने यह पूछा ही नहीं कि मुझे क्या काम करना है। मैंने तो खुद उन पर अपने आप को सरेंडर कर दिया था। जो भी काम दे दोगे कर लूंगा। मुझे रहने और खाने की सुविधा मिल जाए! और मैंने उन्हें यह भी नहीं कहा था कि मुझे इतना पैसा चाहिए!
खैर मेरे रहने खाने की व्यवस्था हो गई थी ।साथ में मुझे यह खुशी थी कि मुझे रामेश्वर धनवार की कोठी में ही रहने को मिला था।
मेरा शिकार सामने था ।रसूख वाला था। इसीलिए मुझे अपने काम को अंजाम देने के मुझे इतने सारे प्लान करने पड़ रहे थे। वरना मैं कब का उसे खत्म कर चुका होता।
अभिषेक जाते जाते बोला - कुछ देर ठहरो ।मैं तुम्हारे लिए बिस्तर मंगवा देता हूं। हर चीज अंदर कर लो। फिर अंदर एक ताला चाबी रखा हुआ है ।उसे लगाकर चाबी अपनी जेब में डाल कर ,फिर अपना सामान लेने के लिए चले जाना।ऐसे तो यहां चोरी होती नहीं ।मगर फिर भी अपने कमरे की रखवाली करना। ताला लगाना जरूरी है।
मेरे प्लान पर हर चीज पॉजिटिव होती जा रही थी। कुदरत हर कदम पर मेरा साथ दे रहा था।
कुछ देर में ही अभिषेक ने मेरे लिए, कई सामान भिजवा दिए ,बिस्तर ,ओढने वाला सामान, नहाने के लिए बाद रूम का सामान, और कई चीजें ।उसने जो जरूरी थी सब भिजवा दिया था।
अभी तो मुझे यूं लग रहा था ।जैसे कि प्राइमरी नींद के सारे सामान आ गए थे। अंदर ही एक ड्राज पर ताला और चाबी रखा हुआ था ।वह निकालते हुए अभिषेक ने मेरे को पकड़ा दिया था। अब ताला लगाओ ,और कहीं भी जा सकते हो ।खाने का टाइम तुम्हें पता ही है ,जब भी आओ तो , वह कहता हुआ रुका और बोला- चलोआओ मैं तुम्हें किचन दिखा देता हूं। किचन में जाकर बोल दोगे तो तुम्हें खाना भिजवा देगा।
मैंने पूछा -और मेरे घोड़ के लिए ठहरने की जगह , मेरा मतलब अस्तबल कहां पर है?
अभिषेक बोला- चलो पहले अस्तबल पहले दिखा देता हूं।
वह मुझे उस साइड की ओर लेता चला गया। जहां पर गाय भैंसे बंधी हुई थी। और उन्हीं मवेशियों से दूध दुहा करते। उन्हीं दूधों का चाय और पीने के लिए दूध मुहैया होता। उस समय मैंने गिनती नहीं की करीब, दश से ज्यादा ही होंगी भैंसें। और उनके बगल में ही गायें बंधी हुई थी। अस्तबल दिखाने के बाद अभिषेक मेरे को किचन की ओर लेता चला गया।
इसी बहाने मैं, कोठी का एक भाग का जायजा ले ही रहा था।
मगर अब यहां का जायजा लेना मेरे लिए आसान हो गया था। मगर मैं तो अंदरूनी सिक्योरिटी चेक करना चाहता था। मुझे अभी तक पता नहीं था। कि यह लोग मुझे क्या काम देने वाले हैं ,क्या काम करवाने वाले हैं ?क्योंकि अब मुझे यहां आना जना फ्री सा हो गया था। मुझे आब यहां घूमने के लाइसेंस मिल गई थी।
किचन में पहुंचकर अभिषेक ने सभी से मेरा परिचय कराया था ।और कहा था की -आजके बाद इनका भी खाना यहीं बनेगा। ऐ चाहें तो कमरे में खा सकते हैं ।या फिर यहीं आकर खा सकते हैं। जो इनकी मर्जी पर है।
किचन में काम करने के लिए तीन औरतें और तीन पुरुष ,इस वक्त दिख रहे थे ।जो खाना बनाने में लगे हुए थे।
सारा दिखाने के बाद अभिषेक मुस्कुराता हुआ मुझसे पूछा -अब मैं जाऊं?
मैंने निहायत शरीफ इंसान की तरह हाथ जोड़ दिए बोला-आपकी बड़ी मेहरबानी।
अभिषेक मुस्कुराता हुआ मेरे कंधे पर हाथ रख कर बोला- मेहरबानी मेरी नहीं नेताजी की है! वही दाता है हमारे ।उनकी इमानदारी से सेवा करना ही हमारा कर्तव्य है!
मैं मन ही मन बोला, इसीलिए तो मैं यहां पहुंचा हूं ।उसे सीधे नर्क में भेजने के लिए। मगर प्रत्यक्ष में मैं बोला- ऐसे इंसान की तो हर कोई सेवा करना चाहेगा। अब मुझे मौका मिला है। तो इस मौके को मैं गवाना नहीं चाहता।
अभिषेक बोला -आज अपना सारा सेट कर लो, कल से मैं तुम्हें अपने कर्तव्य के बारे में बताऊंगा! कहता हुआ वह मेरा कंधा थपथपाया हुआ निकलने लगा, निकलते निकलते बोला -कुछ भी चीज की जरूरत हो तो इनसे बोल देना !यह मुझे बता देंगे ।मैं तुम्हारी हर चीज पूरी कर दूंगा। कहता हुआ जाने लगा। फिर जाते-जाते मुड़कर अपनी जेब में हाथ डाला ।और उसने मुझे कुछ नोट 500 के निकाल के मेरे हथेली में रखते हुए बोला- यह एडवांस समझ के रख लो। होटल का किराया, देकर क्लियर करके आ जाना। ठीक है?
कहता हुआ वह मुझे किचन में ही छोड़कर निकल गया था।
मैं सबसे पहले बाहर निकलना चाहता था। अपने घोड़े को और अपने बैग जो मैंने होटल में रख रखे थे ।उसे लेकर आना था ।क्योंकि, वह जरूरी था।
मगर ,एक बात थी ।अगर अभिषेक मेरे उन तलवारों को देख लेता। तो शायद उसे किसी बात पर नाराजगी जरूर होती।
जब मैं निकलने लगा तो ,किचन में काम करने वाली चाची ने मुझे, रोकते हुए कहा- अभी चाय नाश्ता बना हुआ है, चाय पीते जाओ बेटा!
वहीं पर बडा सा डायनिंग हॉल सा बना हुआ था। मैं वहीं पर कुर्सी पर पसर गया ।और चाची मुझे चाय और नाश्ता परोस कर जाते-जाते पूछ लिया- तुम्हारा नाम क्या है बेटा?
मैं बोला -अग्निपुत्र!
चाची बोलीं- यहां खाने पीने के लिए शर्माना मत ,जो भी चाहिए मांग लेना, जब भी चाहिए आकर बता देना ।कोई रोक टोक नहीं है यहां, खाने पीने के लिए।
मैंने उनकी आंखों में असीम ममता सी देखी। जो मैं अपनी मां की आंखों में देखता था। असीम ममता ,असीम प्यार।
चाची ने पूछा-यह किस काम के लिए आया हो?
मैंने कहा -अभी मुझे कुछ पता नहीं! कि मुझे किस काम के लिए प्रयोग करेंगे। जो भी मिल जाएगा ,मैं कर लूंगा। मुझे काम की जरूरत थी। मुझे रहने खाने की जगह की जरूरत थी। जो मुझे मिल गया है। मैं अपने साथ अपना घोड़ा भी लेकर आया हूं। जिसे होटल में बांध रखा है ।उसे लेकर आता हूं ।होटल में मेरा एक बैग और सामान है ।उसे भी ले कर आऊंगा । कहता हुआ, मैं चाय पीने लगा ।
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