यह वक्त नहीं था। कि मैं पंडित जी के साथ जाउं। गांव पहुंच कर खोजबीन करूं! जहां गांव के बारे में गांव की आबादी के बारे में नोटेड होता है ।क्योंकि ,अभी हम पुष्पलता के इलाज के लिए आए हुए थे। और जरूरी था, कि हम पुष्प लता के पास ही रहे।
पुष्प लता के बुखार उतरने से रहा। उतर ही नहीं रहा था।
पुष्प लता ने कुछ ऐसी चीज खा ली थी। या फिर ऐसा कोई देख लिया था। डरावनी चीज। जिसकी वजह से उसके अंदर एक खौफ सा समा गया था।
शायद उसी खौफ़ की वजह से उसका बुखार उतर ही नहीं रहा था। डॉक्टर तो अपनी एलोपैथी दवाओं से उसकी इलाज करने की कोशिश कर रहा था।
पुष्प लता कई बार अपने आपसे रात को भी घबरा कर जाग रही थी। उसके बाबा ने उसे कई बार पूछने की कोशिश की।
मैं ने भी उसे कई बार पूछने की कोशिश की थी। किस चीज की वजह से वह खौफ़ खा रही थी।
मगर उसने अपने होठों से कुछ नहीं कहा। मगर उसकी आंखों से पता चलता था। कोई ऐसा खौफ था। जो उसकी आंखों में बस गया था ।और उतर ने को राजी नहीं था ।वही खौफ़ उसके अंदर बुखार बन कर बैठ गया था।
वह नदी में पानी भरने के लिए गई थी। और चकरा कर वहीं पर गिर गई थी ।गांव वालों ने गांव की और सारी लड़कियों ने उसे देख लिया था ।फिर उसे उठाकर लेकर आई थी।
यह समझ से बाहर था ।कि कौन सा ऐसा चीज देख लिया था ।उसने पानी में जिसकी वजह से ओ खौफ़ खा रही थी।
क्या कोई मगरमच्छ आ गया था ?या कोई ऐसा जानवर जिसे कभी उसने देखा ना हो? या फिर इसके बारे में सिर्फ सुना हो!?
खौफनाक जानवर की बात होती तो शायद वो बताती भी ।मगर लगता तो यह खौफनाक जानवर नहीं ,कोई ऐसी बात थी जो उसके दिल में बैठ गई थी। जिस से वह खौफ़ खा रही थी। या फिर कोई अनहोनी की आशंका से वह डरी हुई थी।
सभी जानते थे ,उसके और अग्नि के बीच में कुछ अच्छे संबंध है।
मैं ने कभी उसे इस नजरिए से देखा तो न था।
बुजुर्ग वर कहते हैं -इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छुपती! शायद यही बात रही होगी?
किसी हाल में पुष्पलता को पता चल गया था- शायद की मैं अब उसके गांव में रहने वाला नहीं हूं। उसे छोड़कर जाने वाला हूं।शहरों में कमाई करने के लिए।
शायद उसके दिल में मुझसे बिछड़ने का खौफ़ हो। मुझसे बिछड़ने का उसे अचानक दर्द हो या ।फिर कोई और बात तो हो नहीं सकती थी।
खैर !पुष्प लता का इलाज चलता रहा।
मैं और भृगु चाचा उसी मंदिर में ठहरे हुए थे।
मंदिर के पुजारी ने मुझ से बचन लिया था। कि मैं फिर लौट के आऊंगा। उनका मानना था -कि वह गांव के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए ,हमें सरकारी दफ्तरों के खाक छानने होंगे।
पंडित जी से शायद मैं पहली बार मिला ना था। उससे पहले भी पापा के साथ मिला हो सकता हूं ।वरना वह मुझे पहचानते कैसे? यकीनन बाबा मुझे बचपन में उनके पास लेकर आए हो ?वरना वह मुझे देखते ही कैसे पहचान लेत?
बचपन में देखे हुए कई चेहरे इंसान भूल जाता है। यह बात तो वाजिब थी ।मगर, मुझे पंडित जी ने बचपन में देखा था। और जवानी में देखते ही पहचान जाना? एक अजीब सवाल पैदा करता था? या फिर यह हो सकता था ।कि बचपन से मेरे चेहरे में कोई बदलाव ही ना आया हो ।
बचपन का वो चेहरा हूबहू वैसा हो। शरीर में ही सिर्फ बदलाव आया हो।
मैं ने अगली बार पंडित जी से मिलने के बाद; इस बात का जिक्र जरूर करूंगा! मैंने सोच लिया था। कैसे वे मुझे इतने सालों बाद भी पहचान सकते थे। क्या मेरे चेहरे में बचपन से कोई बदलाव नहीं आया था। या पंडित जी के पास कोई दिव्य दृष्टि थी ?पहचानने की।
दूसरे दिन पुष्पलता का रिपोर्ट आ गया था। डॉक्टर ने डिक्लियर किया था। कि उसे किसी प्रकार की शारीरिक बीमारी नहीं है ।मानसिक तौर से उसको किसी बात का आघात जरूर लगा है ।
जो बात उसके दिल में घर कर गई है।जो उससे बातचीत से ही ठीक हो सकती है। बुखार तो ठीक हो जाएगा ।मगर उसके दिल में जो चोट लगी है ।वह समय के साथ ठीक होने वाला है।
पुष्प लता को किस बात का दुख हुआ था ।वह तो खुद वही बता सकती थी। उसके अलावा किसी को इसके बारे में जानकारी नहीं थी। क्योंकि, वह हर किसी से, हर कोई बात खुलकर नहीं बताती थी।
मुझे लगने लगा था कि कई दिनों से पुष्प लता बदली बदली सी लग रही थी। एक पहेली सी लग रही थी। उसकी आंखों में भी न जाने कैसा चमक सा आ गया था ।वह मुझे देखती आंखों में तो देखती रह लेती। मैं समझ नहीं पाता वह कहना क्या चाहती थी।
शायद वह आंखों ही आंखों में बहुत कुछ कह रही थी। मगर मेरी समझ से बाहर थी। क्योंकि, मुझ में ऐसा कुछ था नहीं ।जो किसी की दिल की बात को यूं समझ लूं।
वह बुखार से तड़पती। मैं उसके हाथों को पकड़ लेता और सहलाने लगता, तो। मुझे लगता उसकी आंखों में चमक सी आ गई हो। ओ मेरी आंखों में देखती रहती। वह मुझे निहारती रहती ।कहती कुछ नहीं।
भृगु चाचा दवा लेने के लिए गए हुए थे। धर्मशाला के उस कमरे पर मैं और पुष्पलता ही थे ।मैंने पुष्प लता के हथेली को अपने हथेली में रखकर सहला रहा था। उसको बुखार तेज था। मैं ने तावल भीगा कर ठंडे पानी में, उसके सर पर रख दिया था। और उसके तलवे में भी मैंने पानी से भीगा टावल रख दिया था। वह दिन-ब-दिन क्षीण होती जा रही थी।
मैंने उसकी हथेली को अपने हथेली रखा तो उसने मुझे हसरत भरी नजरों से देखा। "अग्नि" वह मुझसे क्षीण आवाज में बोली-तुम मुझे छोड़कर कहीं नहीं जाओगे ना?
मैं बोला-गांव से शहर में कमाई करने के लिए तो जाना ही होगा ना?
पुष्प लता बोली- फिर तुम कभी लौट के नहीं आओगे ना?
मैं बोला- यह कैसी बातें कर रही है तू? मेरा गांव है! मेरे लोग हैं !मैं तो शहर में सिर्फ कमाने के लिए जा रहा हूं ना? तुम हो ,सब कुछ मेरा ही तो है, फिर लौटकर क्यों नहीं आऊंगा?
वह हसरत भरी निगाहों से मुझे देखते हुए बोली- तुम मेरे लिए लौट के आओगे ना?
मैं समझ नहीं पा रहा था ।पुष्प लता क्या करना चाहती है? मुझे लग रहा था कहना कुछ और चाहती है !कह कुछ और रही है ।आंखें कुछ और कर रही है ।बातें कुछ और कर रही है। उसकी बातें और उसके एक्सप्रेशन पर जमीन आसमान का फर्क था ।
जो दिल से तड़प रही थी। कुछ और कहना चाहती थी ।जो कहना चाहती थी। शायद मैं समझ नहीं रहा था ।वह लड़की थी लड़कियां कभी भी अपने दिल की बातें पहले नहीं खोलती। वह चाहती है, कि पहल लड़के की ओर से हो।
मगर मैं समझ नहीं पा रहा था ।और यह उसकी मजबूरी थी, कि मैं समझा नहीं पा रहा था।
शायद उसने ठान लिया था ।कि बस अब कह देना है ।दिल की बात कह देना है। वरना बहुत देर हो जाएगी ।ट्रेन छूट जाएगी?
पुष्प लता आखिरकार बोले ही पड़ी थी-अग्नि मैं तुम्हारे बगैर जी नहीं पाऊंगी ।तुम्हें आंखों से देखे बगैर मैं जी नहीं पाऊंगी ।मैं मर जाऊंगी!
मैं उसकी आंखों में देखता रह गया था। तुम मुझसे इतना प्यार करती हो!?
पुष्पलता बोली -क्या तूम्हे पता नहीं है? सारे गांव वाले जानते हैं! सिर्फ तुम ही नहीं जानते!?
तुम मुझे छोड़कर तो नहीं जाओगे ना!?
उसकी इस बातों का मैं क्या जवाब दूं ?मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था ।मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे कोई कच्चा धागा मेरे चारों ओर लपेटकर मुझे बांधा जा रहा है। मेरी आजादी को कोई छीन रहा है। मुझे बंधन में जकड़ा जा रहा है ।मैं बंधन में बनने के लिए जिंदा नहीं था। मुझे कुछ करना था ।
संपूर्ण गांव वालों के लिए, जो मारे गए थे ,उनके मौत का बदला लेना था। उनको दरिंदों को बताना था। की फैसला इसी संसार में होता है। जीते जी होता है।
वह फिर बोली - तुम मुझे छोड़ कर तो नहीं जाओगे ना?
मैं संज्ञा सुन्न हो गया था। सोचने समझने की शक्ति जैसे किसी ने छीन ली हो।
वह फिर बोली- बोलो ! अग्नि बोलो !तुम क्या चाहते हो? वरना तुम मेरा मरा मुंह देखोगे!
मैंने उसके तपते हाथेली को कस के दबा लिया था। बोला था -नहीं !तुम ऐसा कुछ नहीं करोगी !समझी-?लेकिन मुझे शहर तो जाना ही होगा ।मैं..
पुष्पलता बोली-मगर वादा करके जाओगे कि तुम मेरे लिए लौट के आओगे ।तो अपने प्यार के लिए लौट के आओगे ।मैं तुम्हारे बगैर जिंदा नहीं रह पाऊंगी ।तुम्हारे बगैर मैं मर जाऊंगी।
मैं बोला- मगर अभी मैं थोड़ी जा रहा हूं! अभी तो गांव चलेंगे !तुम्हें घोड़े में बिठा कर गांव लेकर जाऊंगा। मैं बोला -मुझे खुशी है, कि तुम जैसी खूबसूरत लड़की ,गांव की सबसे खूबसूरत लड़की !मुझसे प्यार करती है !मुझे चाहती है! मेरा जिंदगी का हिस्सा बनना चाहती है।
पुष्प बोली- अग्नि! तुम मुझे एक बार अपने गले से लगा लो, मैं इसी के सहारे ही रह लूंगी।
मैंने उसके तपते हुए जिस्म को अपनी छाती में सटा लिया था। अपने बाहों के घेरे में कस लिया था ।मुझे यूं लगने लगा था ।जैसे उसका तपता हुआ जिस्म पिघलने लगा हो।
वह पसीने से तरबतर हो गई थी ।मेरे जिस्म की गर्मी से ।और उसके बुखार से तपते हुए जिस्म की वजह से ,उसके शरीर से पसीने छूटने लगे थे। मैंने उसे फिर से बिस्तर पर लिटा दिया था।
अब उसकी आंखों में अजीब सी चमक अजीब सा संतोष भरा हुआ था ।जैसे उसने जिंदगी की बहुत कीमती चीज पा लियो हो।कुछ ऐसा पा लया हो जो उसको
जन्म जन्मांतर से पाना चाहती हो।
जिसका उसे जन्म जन्मांतर से ही इंतजार हो।
सच में प्यार बहुत खूबसूरत होता है । इससे बढ़कर दुनिया में और कोई चीज नहीं होती ।प्यार है, मोहब्बत है, तो संसार दुख में भी खिल उठता है।
उसने संतोष की लंबी सांस लिए , उसे यूं लगा जैसे उसके अंदर फिर से शक्ति भर गई हो। उसके अंदर फिर से जान आ गई हो। अब मैं मर भी जाऊं तो कोई गम नहीं है।
क्या बात करती है पगली ?तू मर जाएंगी तो मैं रह पाऊंगा? तेरे बगैर तो मैं भी नहीं रह पाऊंगा, मैंने अपनी जिंदगी के सारे पल तुम्हारे नाम कर दी है, यह मेरा वादा रहा। जिंदगी के हर धड़कन, हर सांसे ,तुम्हारे नाम करदी है।
(अग्नि पुत्र प्रेम जाल में फस गया था। क्या अग्निपुत्र अपने मिशन से भटक गया था, दिल में भड़क रही बदले की आग, प्रेम अग्नि में जलकर भस्म हो गए थे?)
पंडित जी ने अग्नि पुत्र को कैसे पहचान लिया था? वास्तव में अग्नि पुत्र से पंडित जी पहले कभी रूबरू हुए थे? क्या था यह राज?
*******